भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने आज (29 नवम्बर 2014) महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ विश्वविद्यालय, वाराणसी के 40वें राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन किया।
‘विकास,विविधता तथा लोकतंत्र’ विषय पर बोलते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि भारत के समाज विज्ञानियों को हमारी सफलताओं और विफलताओं का गहराई से मूल्यांकन करना चाहिए। इस विषय में स्पष्टता होनी चाहिए कि विकास का अर्थ क्या है? क्या इसका अर्थ केवल सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि है अथवा क्या इसमें भूटान द्वारा अपनाई गई राष्ट्रीय खुशहाली के तत्व भी शामिल हैं?इस बात पर विश्वास जताते हुए कि भारत शीघ्र ही 8-9 प्रतिशत वार्षिक विकास प्राप्त करेगा और तीन ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनेगा, राष्ट्रपति ने समाज विज्ञानियों से कहा कि वे इस बात का पता लगाएं कि पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना किस प्रकार प्रगति लाई जा सकती है। उन्होंने कहा कि जलवायु, परिवर्तन तथा मानसून के असामान्य व्यवहार का हमारे देश तथा लोगों पर बहुत व्यापक प्रभाव पड़ेगा। उन्होंने विद्वानों का आह्वान किया कि वे सुधारात्मक उपायों को ढूंढें।
राष्ट्रपति ने कहा कि आजादी के आरंभिक दिनों के दौरान बहुत से लोगों को इसमें संशय था कि क्या भारत में लोकतंत्र टिक पाएगा। तथापि, हमारा लोकतंत्र बहुत सफल रहा है। 2014 के लोकसभा चुनावों ने यह सिद्ध कर दिया है कि किस प्रकार 1.27 करोड लोग खुद पर शासन करने में सक्षम हैं। उन्होंने साथ ही यह भी चेतावनी दी कि लोकतंत्र केवल चुनावों में मतदान करने से कहीं अधिक होता है। हमारे संविधान में सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक न्याय सभी की सामूहिक परिकल्पना शामिल है। हम एक आदर्श की प्राप्ति के लिए दूसरे की अनदेखी करने का जोखिम नहीं उठा सकते। इसके अलावा, अन्ना हजारे के आंदोलन के दौरान जन-जागरुकता के द्वारा जनता एक ऐसी ताकत के रूप में एकजुट हो गई थी कि सरकार सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ संवाद करने के लिए बाध्य हो गई थी। इससे पता चलता है कि हमारी राजनीतिक प्रणाली एक ऐसे मॉडल के रूप में विकसित हो गई है जिसमें जनता द्वारा कानूनों और कार्यों की हर स्तर पर संवीक्षा की जा सकती है। भले ही चुने गए प्रतिनिधियों को वापस बुलाने का अधिकार मौजूद न हो।
राष्ट्रपति ने कहा कि भारत विविधता में बसता है तथा हमारी सबसे बड़ी शक्ति विविधता है। एकरूपता लाने के प्रयास असफल रहे हैं तथा भारतीय सभ्यता विविधता तथा एक-दूसरे के प्रति सहनशीलता के कारण जीवित रही है। उन्होंने कहा कि विभिन्न पृष्ठभूमियों, भाषाओं,संस्कृति तथा जातीयता के लोग जिस तरह एक संविधान के तहत एक विधान भवन में बैठते हैं वह भारत की विविधता को दर्शाता है।
राष्ट्रपति ने अंत में सम्मेलन का आह्वान किया कि वे इस पर विचार-विमर्श करें कि किस प्रकार भारत की विविधता का आनंद उठाया जा सकता है, लोकतंत्र को मजबूत किया जा सकता है तथा विकास की दिशा में आगे बढ़ा जा सकता है।
यह विज्ञप्ति1810 बजे जारी की गई।