भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने प्रशिक्षण और शिक्षा के द्वारा भारत के विशाल श्रमबल को, जो उसकी जनसंख्या का दो तिहाई है, कौशल प्रदान करने का आह्वान किया। वह आज (29 नवंबर, 2014) कोलकाता में मेट्रोपोलिटन संस्थान (मुख्य) की 150वीं वर्षगांठ के समापन समारोह के अवसर पर बोल रहे थे।
राष्ट्रपति ने कहा कि हमारे देश की प्रगति हमारे युवाओं के उत्साह, प्रेरणा,पहल तथा ऊर्जा पर निर्भर है। भारत विश्व में सबसे अधिक युवा जनसंख्या का दावा करता है। इस जनसांख्यिकीय बढ़त का लाभ केवल शिक्षा के माध्यम से लिया जा सकता है।
राष्ट्रपति ने यह उल्लेख किया कि भारत के पास विश्व की सबसे बड़ी शिक्षा प्रणाली है जिसमें कुल 10.7 करोड़ विद्यार्थी पंजीकृत हैं। तथापि,माध्यमिक शिक्षा स्तर पर प्रवेश का अनुपात अमरीका के 96 और दक्षिण अफ्रीका के 94 तथा रूस और मैक्सिको के 89के मुकाबले भारत में केवल 53 है।
राष्ट्रपति जी ने उल्लेख किया कि दो लाख से अधिक मेधावी विद्यार्थी विदेशी विश्वविद्यालयों में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए देश को छोड़ जाते हैं तथा प्रमुख अंतरराष्ट्रीय सर्वेक्षणों द्वारा हमारे किसी भी संस्थान को सर्वोच्च 200 संस्थानों में शामिल नहीं किया गया है। तथापि, छठी सदी ईसवी पूर्व से लेकर 12वीं सदी ईसवी के बीच ऐसा समय था जब विश्व भर के विद्वान नालंदा, तक्षशिला तथा विक्रमशिला जैसे उच्च ज्ञान की भारतीय पीठों तक पहुंचते थे। राष्ट्रपति ने कहा कि देश में शिक्षा के स्तर में सुधार लाया जाना चाहिए तथा सभी पृष्ठभूमियों के मेधावी विद्यार्थियों के लिए शिक्षा को सुलभ करवाया जाना चाहिए। ऐसे अच्छे स्तर के तथा समर्पित शिक्षकों का एक बड़ा पूल तैयार करने की भी जरूरत है जिन्हें अगली पीढ़ी को संवारने का उत्तरदायित्व सौंपा जा सकता है।
यह विज्ञप्ति 1500 बजे जारी की गई