सातवें वार्षिक मिशन प्रमुख सम्मेलन के प्रतिभागियों ने आज (30 मई, 2016) राष्ट्रपति भवन में भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी से भेंट की।
इस अवसर पर राष्ट्रपति ने कहा कि अफ्रीकी विद्यार्थियों पर हाल ही के हमले उनके लिए व्यक्तिगत तौर पर अत्यंत पीड़ादायक हैं क्योंकि एक विद्यार्थी, राजनीतिक कार्यकर्ता और सांसद के रूप में उन्होंने प्रत्यक्ष तौर पर देखा है कि भारत और अफ्रीका हमेशा से घनिष्ठ साझीदार रहे हैं। यदि भारत की जनता अफ्रीकी जनता के साथ हमारी मैत्री तथा हमारे देश में उनके स्वागत की दीर्घ परंपरा को कमजोर करेगी तो यह अत्यधिक दुर्भाग्यपूर्ण होगा। भारत में अफ्रीकी विद्यार्थियों को अपनी हिफाजत और सुरक्षा के बारे में डरने की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने सराहना की कि विदेश मंत्रालय गृह मंत्रालय के परामर्श से कुछ छिटपुट घटनाओं पर सक्रिय रूप से कार्य कर रहा है तथा भारत में अफ्रीकी विद्यार्थियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए प्रशासन के साथ मिलकर काम कर रहा है।
राष्ट्रपति ने कहा कि भारत और अफ्रीका की जनता के संबंध प्राचीन काल से रहे हैं। रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने एक अत्यंत दुखपूर्ण कविता लिखी थी कि रंगभेद कितनी बड़ी बुराई है। मिस्र के गामल अब्देल नासिर तथा घाना के वामे क्रुमा जैसे नेता 1955 में बांडुंग के एफ्रो-एशियाई सम्मेलन तथा 1961 के बेलग्रेड के गुटनिरपेक्ष आंदोलन की स्थापना में जवाहरलाल नेहरू के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े थे। नेल्सन मंडेला गांधीवादी सिद्धांतों के मूर्त रूप थे। भारत ने अफ्रीका के उपनिवेशवाद और रंगभेद की समाप्ति के लिए लंबे अंतरराष्ट्रीय संघर्ष का नेतृत्व किया। नेहरू के नेतृत्व में भारत को 1946 में दक्षिण अफ्रीका के साथ व्यापार संबंधों को तोड़ने में कोई हिचकिचाहट नहीं हुई थी जबकि उसके साथ हमारे विश्व व्यापार का लगभग पांच प्रतिशत व्यापार होता था। 1994 में रंगभेद की समाप्ति के बाद ही उन्होंने वाणिज्य मंत्री के रूप में सामान्य व्यापार संबंध बहाल किए थे। समूचा भारत इस स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान जोमो केन्याटा, जूलियस नेय्येरे और केनेट कोंडा जैसे अफ्रीकी नेताओं के समर्थन में खड़ा था। भारत के सदियों से अफ्रीकी देशों के साथ व्यापार संबंध रहे हैं और अफ्रीका के प्रत्येक 54 देशों में कारोबार, उद्योग आदि कर रहा फलता-फूलता भारतीय समुदाय विद्यमान है।
राष्ट्रपति ने कहा कि सबसे सुविख्यात अनिवासी भारतीय महात्मा गांधी थे जिन्होंने दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह के साथ अपना प्रथम प्रयोग किया था। दक्षिण अफ्रीका ने ही भारत को गांधी जी को उपहार में दिया था। अफ्रीका के साथ भारत के संबंध किसी भी रूप में खतरे में नहीं पड़ने चाहिए। हमारी प्राचीन सभ्यता की परंपरा अथवा प्रमुख मूल्यों के विपरित कोई भी भावना पैदा नहीं की जानी चाहिए। अफ्रीका के साथ भारत के युगों पुराने ऐतिहासिक संबंधों की समुचित जानकारी हमारे युवाओं को दी जानी चाहिए।
आतंकवाद के मुद्दे पर बोलते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि यह एक बुराई है जिसे विश्व समुदाय को दृढ़ संकल्प के साथ मिलकर निपटने की जरूरत है। कोई आतंकवाद अच्छा या बुरा नहीं होता है। विश्व के सभी देशों द्वारा व्यापक सहयोग इस वैश्विक खतरे का मुकाबला करने के लिए आवश्यक है। राष्ट्रपति ने मिशन प्रमुखों से भारत और विदेश के उच्च शिक्षा संस्थानों के बीच संपर्क बढ़ाने के लिए भरसक प्रयास करने का आग्रह किया। उन्होंने उनसे देश के अनुसंधान और नवान्वेषण को सुदृढ़ बनाने के तरीकों और साधनों की पहचान करने के लिए भी कहा।
राष्ट्रपति ने कहा कि मिशन प्रमुखों का सम्मेलन पहली बार 1961 में आयोजित हुआ था जब भारत के प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू थे। उनका इस सम्मेलन के साथ एक स्मरणीय संबंध रहा है क्योंकि ऐसे सम्मेलन आयोजित करने की परिपाटी के बंद करने के बाद उन्होंने विदेश मंत्री के रूप में 2008 में इसे पुनः जीवित किया गया। हमें यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि सम्मेलन अब एक वार्षिक परंपरा बन गया है और यह व्यापक परिचर्चा का शानदार अवसर उपलब्ध करवाता है। राष्ट्रपति ने कहा कि भारतीय विदेश सेवा का सृजन अत्यंत ध्यानपूर्वक किया गया है और प्रतिभावान लोगों ने इसे प्रोत्साहित किया है। दो बार विदेश मंत्री रहने के कारण उन्हें विदेश मंत्रालय के साथ अपने विगत संबंध पर गर्व है।
यह विज्ञप्ति 2000 बजे जारी की गई।