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राष्ट्रपति ने तमिलनाडु विधान सभा के हीरक जयंती समारोह में भाग लिया

राष्ट्रपति भवन : 30.11.2012

भारत के राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी आज (30 नवम्बर, 2012) तमिलनाडु विधान सभा के हीरक जयंती समारोह में भाग लिया। उन्होंने पूर्व विधायकों के लिए एक होस्टल की आधारशिला रखी।

राष्ट्रपति ने विधायकों से वैधानिक निकायों की गरिमा और सम्मान कायम रखने के लिए हीरक जयंती समारोह के अवसर पर एक निष्ठापूर्ण शपथ लेने का आग्रह किया।

राष्ट्रपति ने कहा कि भारत के संविधान में विधान सभा को राज्य के शासन के केन्द्र में रखा है और सामाजिक-आर्थिक बदलाव के एक प्रथम साधन के रूप में इसकी संकल्पना की है। राज्य विधान मंडल का प्रथम दायित्व राज्य के सुशासन और प्रशासन के लिए आवश्यक कानून बनाना है। संविधान की सातवीं अनुसूची में राज्य प्रशासन और विधान के 66 मदें सूचीबद्ध गई हैं।

उन्होंने सदस्यों को याद दिलाया कि जन प्रतिनिधि होना सौभाग्य और सम्मान की बात है। इस सौभाग्य में भारी जिम्मेदारी छिपी है। निर्वाचित प्रतिनिधियों को बहुत सी भूमिकाएं निभानी हैं और अपनी पार्टी, विधान सभा और निर्वाचन क्षेत्र की एक से बढ़कर एक मांग होती है। विधायक का कार्य चौबीस घंटे का होता है। विधायकों को जनता की समस्याओं और चिंताओं के प्रति संवेदनशील और सक्रिय होना चाहिए; उनकी शिकायतों, तकलीफों और समस्याओं को विधान सभा के मंच पर उठाना चाहिए तथा जनता और सरकार के बीच कड़ी के रूप में कार्य करना चाहिए।

उन्होंने कहा कि विधान सभा इस मायने में कार्यपालिका की स्वामी है कि अपनी मंत्रिपरिषद सहित मुख्य मंत्री सामूहिक और पृथक रूप से विधान सभा के प्रति जवाबदेह होते हैं। कार्यपालिका साधारण बहुमत के द्वारा राज्य विधान सभा में अविश्वास प्रस्ताव पारित करके किसी भी समय पदच्युत की जा सकती है। इसके अलावा, शासन के बहुत से प्रपत्रों को विधायिका द्वारा पारित उपयुक्त कानून द्वारा अमल में लाया जाता है। कार्यपालिका विधायिका पर पूरी तरह निर्भर होती है और यह आवश्यक है कि कानून बनाने का काम समुचित सोच-विचार और ध्यान से होना चाहिए ताकि हमारे लोकतांत्रिक कामकाज सुचारु रूप से हो।

उन्होंने कहा कि विधान, धन और वित्त के मामलों में अत्यंत सतर्कता बरतनी चाहिए। निर्वाचित प्रतिनिधियों का धन और वित्त पर विशेष नियंत्रण होता है। विधायिका के अनुमोदन के बिना कार्यपालिका कोई काम नहीं कर सकती, कोई भी कर विधायिका द्वारा पारित कानून के बिना नहीं लगाया जा सकता और कोई भी धनराशि विधायिका के अनुमोदन के बिना राज्य के समेकित कोष में से आहरित नहीं की जा सकती। प्रशासन और विधान की बढ़ती जटिलता के कारण विधायकों को कानून पारित करने से पूर्व पर्याप्त विचार-विमर्श और जांच पड़ताल कर लेनी चाहिए।

उन्होंने कहा कि सभी संसदीय आचरण, प्रक्रियाएं और परंपराएं व्यवस्थित और त्वरित कार्य करने के लिए है। सदन में अनुशासन और शिष्टाचार बनाए रखना तथा नियमों, परंपराओं तथा सभ्य आचरण का अनुपालन बहुत आवश्यक है। असहमति एक जान-पहचानी लोकतांत्रिक अभिव्यक्ति है परंतु इसे शालीनता के साथ संसदीय आचरण, नियमों और परंपराओं के दायरे और सीमाओं के भीतर व्यक्त करना चाहिए। संसदीय प्रणाली के प्रभावी कामकाज का प्रमुख सिद्धांत यह है कि बहुमत शासन करेगा और अल्पमत विरोध, रहस्योद्घाटन और संभव हुआ तो पदच्युत कर देगा। परंतु ऐसा विधायिका द्वारा निर्मित नियमों के दायरे में किया जाना चाहिए। अल्पमत पक्ष को बहुमत पक्ष के निर्णयों को स्वीकार करना चाहिए और बहुमत पक्ष को अल्पमत पक्ष के विचारों का सम्मान करना चाहिए।

उन्होंने बल दिया कि हंगामे को प्रभावी संसदीय हस्तक्षेप के रूप में कभी प्रयोग करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। प्रत्येक विधायक का यह सुनिश्चित करने का प्रयास होना चाहिए कि इस कक्ष में होने वाली बहस की विषयवस्तु और गुणवत्ता जन प्रतिनिधि के रूप में उनकी प्रतिष्ठा के पूरी तरह उपयुक्त होनी चाहिए। विभिन्न राजनीतिक दलों के सदस्य होने के नाते, विधायकों का उनकी पार्टी के घोषणा-पत्र और नीतियों द्वारा मार्गदर्शन करना होगा। तथापि विकास और लोक कलयाण के बहुत से मुद्दे हैं जो दलगत बाधाओं से ऊपर होते हैं। सम्पूर्ण विधान सभा को जनता, राज्य और देश के हित के लिए एकजुट होकर कार्य करना चाहिए। संक्षेप में, विधान सभा की भूमिका और कामकाज को तीन प्रकार से वर्णित किया जा सकता है, चर्चा, असहमति और निर्णय। चौथा प्रकार हंगामा को पूरी तरह छोड़ देना चाहिए।

उन्होंने कहा कि सभी विधायकों और राजनीतिक दलों को यह जानना होगा कि लोकतंत्र कल्याण, सुशासन और समाज के चहुमुखी विकास के लिए है, स्पर्द्धात्मक लोक लुभावन के लिए नहीं। इस अवसर पर राष्ट्रपति ने अध्यादेश के जरिए कानून बनाने की कुछ राज्यों की प्रवृत्ति पर गंभीर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि सामान्यत: तात्कालिक आवश्यकता होने पर ही अध्यादेशों को लागू करना चाहिए।

हमारे देश के राजनीतिक दलों और नेताओं द्वारा इस विषय पर सामूहिक रूप से चिंतन करने की जरूरत है कि हमारी संसद और विधान सभाओं का सुचारू संचालन कैसे सुनिश्चित किया जाए और क्या कुछ मौजूदा नियमों को इस उद्देश्य के लिए संशोधित करने की जरूरत है।

यह विज्ञप्ति 1730 बजे जारी की गई