भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने आज (30 दिसंबर, 2013) राष्ट्रपति निलयम उद्यान, बोलारम्, सिकंदराबाद में ‘नक्षत्र वाटिका’ का शुभारंभ किया। यह शुरुआत उद्यान के लए निर्धारित क्षेत्र में ‘अशोका’ का पौधा रोपकर की गई।
इस उद्यान में कुल मिलाकर 27 पौधे (सूची संलग्न) होंगे तथा यह छह महीने में पूर्ण होगा। निलयम उद्यान में एक जडी-बूटी उद्यान पहले से मौजूद है तथा इस परिसर में यह दूसरा विशिष्ट उद्यान होगा। (राष्ट्रपति भवन, नई दिल्ली पसिर में विभिन्न तरह के गुलाब के फूलों से सज्जित मुगल उद्यान के अलावा नक्षत्र उद्यान, जड़ी-बूटी उद्यान, कैक्टस उद्यान, आध्यात्मिक उद्यान, बोन्साई उद्यान आदि जैसे उद्यान मौजूद हैं)
हिंदू ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जिस भी मनुष्य ने इस धरती पर जन्म लिया है, वह 27 नक्षत्रों, अर्थात चंद्रमा की 28 मासिक कलाओं में से 27 में से किसी न किसी से संबंधित है। प्रत्येक नक्षत्र को उसके प्रमुख ग्रह से पहचाना जाता है तथा उसकी ज्योतिषीय राशि से संबंधित होता है। यह माना जाता है कि प्रत्येक राशि का नक्षत्र मंडल किसी न किसी वृक्ष से संबधित होता है। ये 27 नक्षत्र तथा 9 ग्रह एक दूसरे के समक्ष होते हैं तथा प्रत्येक नक्षत्र मंडल धरती पर किसी-न-किसी वृक्ष से संबंधित होता है। वृक्ष मनुष्य को ऊर्जा प्रदान करता है तथा यह माना जाता है कि इन वृक्षों की उपस्थिति से वृक्ष के नजदीक ध्यान करने वाले व्यक्ति पर उच्च मानसिक, शरीर वैज्ञानिक तथा आध्यात्मिक प्रभाव पड़ता है। ये वृक्ष चिकित्सकीय, सामाजिक, सौंदर्यात्मक तथा आर्थिक दृष्टि से बहुत मूल्यवान हैं।
अशोक अथवा ‘सिरका इंडिका’, भारत, बर्मा, सीलोन, मलाया तथा बंगाल के स्थानीय पौधे हैं।
‘अशोक’ का वृक्ष फरवरी-मार्च के दौरान नारंगी-लाल घने पुष्प गुच्छों के रूप में खिलते हैं। हरे पत्तों की पृष्ठभूमि में नारंगी-लाल पुष्पों के गुच्छ मनमोहक सुंदरता का दृश्य उपस्थित करते हैं।
हिंदुओं द्वारा इस वृक्ष को पवित्र माना जाता है क्योंकि यह प्रेम के देवता, कामदेव को समर्पित है। बुद्ध का जन्म भी अशोक के वृक्ष के नीचे हुआ था इसलिए यह बौद्ध अनुयाइयों के लिए पवित्र है। इसे थाईलैंड और बर्मा के बौद्ध मठों के उद्यानों में बहुतायत से लगाया जाता है। यह वृक्ष उर्वरता का प्रतीक बन गया तथा बहुत से बौद्ध मंदिरों की मूर्तिकलाओं में इसको देखा जा सकता है।
यह विज्ञप्ति 1730 बजे जारी की गई।