श्री संतोष कुमार गंगवार, वस्त्र राज्य मंत्री
श्रीमती जोहरा चटर्जी, सचिव, वस्त्र मंत्रालय,
पुरस्कार विजेता और विशिष्ट प्रतिभागीगण,
विशिष्ट बुनकरों तथा कारीगरों को वर्ष 2011 के प्रतिष्ठित राष्ट्रीय पुरस्कार, शिल्प गुरु पुरस्कार तथा संत कबीर पुरस्कार प्रदान करने के लिए आपके बीच उपस्थित होना वास्तव में मेरे लिए प्रसन्नता का विषय है।
2. सबसे पहले मैं पुरस्कार विजेताओं को बधाई देता हूं तथा भारत के हथकरघा और हस्तशिल्प उद्योग के संरक्षण तथा प्रोत्साहन में उनके योगदान की हार्दिक सराहना करता हूं। मुझे विश्वास है कि आपके प्रयास बहुत से लोगों को प्रोत्साहित और प्रेरित करेंगे।
3. देवियो और सज्जनो, हमारे स्वदेशी हस्तशिल्प और हथकरघा भारतीय जीवन-शैली के आकर्षक पहलू हैं। उनकी व्यापकता हमारे राष्ट्र की विविधता तथा असीम रचनात्मकता का प्रतीक है। प्रत्येक भौगोलिक क्षेत्र तथा यहां तक कि उप-क्षेत्र की भी अपनी विशिष्ट शैली और परंपरा है जो उस समाज के प्राचीन जीवन-प्रवाह से निकली है। प्रत्येक स्थिति में, स्थानीय सामग्रियों और संसाधनों का प्रयोग किया जाता है। हमारे शिल्पकारों ने, सदियों के दौरान, पत्थर और धातु, चंदन और मिट्टी में प्राण फूंकने की अनेक और प्राय: अनोखी तकनीकें निर्मित की हैं। उन्होंने बहुत समय पहले ही अपने समय से काफी आगे की वैज्ञानिक और इंजीनियरी पद्धतियों में पारंगतता हासिल कर ली थी। उनकी कृतियां उनके बेहतरीन ज्ञान और अत्यंत विकसित सौंदर्यबोध को व्यक्त करती हैं। इसी प्रकार हमारे बुनकरों द्वारा प्राप्त कलाकारी तथा महीनता का स्तर बेजोड़ है और बहुत सी पारंपरिक बुनाइयां आधुनिक मशीनों की क्षमता से बाहर हैं’’।
4. ये कौशल पीढ़ी-दर-पीढ़ी बने रहे हैं तथा इन्होंने हमारे समाज के जमीनी स्तर पर आजीविका और प्रेरित सामाजिक-आर्थिक तरक्की प्रदान की है। इस सेक्टर ने महिलाओं, युवाओं और विकलांगों के सशक्तीकरण में उल्लेखनीय योगदान किया है। महिलाएं बुनकर सेक्टर के कार्यबल का बड़ा हिस्सा हैं तथा कारीगर सेक्टर की संख्या में उनका हिस्सा 50 प्रतिशत से ज्यादा है। बुनकरों और कारीगरों का एक बड़ा हिस्सा अनुसूचित जातियों और जनजातियों तथा धार्मिक अल्पसंख्यकों का है। इस सेक्टर ने न केवल ग्रामीण इलाके में परिवारों को कम निवेश पर आय के अवसर, बल्कि कृषि पैदावार कम होने के दौरान अतिरिक्त आय भी मुहैया करवाई है। इस सेक्टर की मजबूती से पलायन रुकता है तथा पारंपरिक आर्थिक संबंधों को बनाए रखने में सहायता मिलती है। यह उल्लेखनीय है कि 24 लाख हथकरघों के साथ हथकरघा सेक्टर लगभग 44 लाख व्यक्तियों को रोजगार उपलब्ध करवाता है तथा हस्तशिल्प सेक्टर 70 लाख लोगों को रोजगार मुहैया करवाता है। वस्त्र उद्योग कृषि के बाद सबसे अधिक रोजगार के अवसर प्रदान करता है। यह देखा गया है कि 2010 से लेकर अब तक भारतीय अर्थव्यवस्था में समग्र मंदी के बावजूद हथकरघा सेक्टर में निर्यात में 34 प्रतिशत वृद्धि तथा हस्तशिल्प सेक्टर में निर्यात में 126 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी।
5. तथापि, इसे अनदेखा नहीं किया जा सकता कि अपने व्यापक उत्पादन आधार के बावजूद इस सेक्टर का विकास अवरुद्ध हुआ है। इसे ऋण तक अपर्याप्त पहुंच, बिचौलियों पर निर्भरता, कच्चे माल की अपर्याप्त उपलब्धता, अप्रचलित प्रौद्योगिकी तथा बाजार तक सीमित पहुंच के कारण नुकसान हुआ है। इस सेक्टर के उत्पादों को सस्ते आयात तथा मशीन निर्मित विकल्पों से प्रतिस्पर्द्धा के कारण खतरा बना हुआ है। इन पहलुओं पर तत्काल, व्यवस्थित और व्यापक तौर पर ध्यान देना जरूरी है तथा हमें क्षमता, कौशल, डिजायन और अवसंरचना के विकास पर और ध्यान देना चाहिए।
6. यह याद रखना जरूरी है कि हमारे राष्ट्र के निर्माताओं ने दीर्घकाल में हस्तशिल्पों और हथकरघों के संरक्षण के महत्त्व को समझ लिया था। उन्होंने सुसंकल्पित पहल, राष्ट्रीय स्तर के कार्यक्रमों तथा सहयोगी कानूनों सहित इसकी सततता सुनिश्चित करने के अनेक उपाय शुरू किए थे। मैं बल देकर कहना चाहूंगा कि आज हमारे लिए यह बहुत जरूरी है कि हम उनके इस स्वप्न को साकार करने का भरसक प्रयास करें। हमें अनेक स्तरों पर एकजुट और सामूहिक कदम उठाने होंगे। उदाहरण के लिए इसमें, इन क्षेत्रों की बैंक और वित्तीय संस्थाओं से ऋणों तक पहुंच की सुविधा तथा घरेलू और विदेशी बाजारों में इन क्षेत्रों के उत्पादों को बढ़ावा देना शामिल है। मेरा यह दृढ़ विश्वास है कि विश्वविद्यालय, कारपोरेट घराने और सरकारी विभाग ऐसे अनुसंधान को प्रायोजित करते हुए और स्वयं करते हुए योगदान कर सकते हैं, जिससे स्थानीय कारीगरों और बुनकरों को पारंपरिक औजारों और डिजायनों के रूपांतरण और उन्नयन की नवान्वेषी प्रौद्योगिकी हासिल हो सके।
7. और हमारे पक्ष में बहुत सारी बातें हैं। भारत में विशिष्ट कच्चे माल जैसे, बांस, सींग, जूट की प्रचुर उपलब्धता, कुशल कारीगरों और स्वदेशी ज्ञान के भण्डार ने हमारी उत्पादन लागत को कम बनाए रखा है। सरकार 12वीं पंचवर्षीय योजना में और अधिक सहायक नीतियों पर कार्य कर रही है। हथकरघा और हस्तशिल्प क्षेत्र छोड़ देने वाले बहुत से लोगों ने इसे पुन: अपनाना शुरू कर दिया है। यह एक शुभ संकेत हैं कि सरकारी प्रयास असरकारक रहे हैं। फिर भी यह आवश्यक है कि सभी संबंधित सरकारी विभाग चौकस रहें और मौजूदा और नये उभरते हुए बाजारों की मांग को तुरंत पूरा करें।
8. देवियो और सज्जनो, हमारी ’गुरु-शिष्य परंपरा’ हमारी पारंपरिक कला और शिल्पों का एक अन्य असाधारण पहलू है। दक्ष-शिल्पकारों और बुनकरों ने युगों-युगों से अपनी भावी पीढ़ियों को अपना कौशल प्रदान करने में गौरव का अनुभव किया है। गांधीजी का, वास्तव में, इस बारे में एक अत्यंत स्पष्ट विचार था और वह हस्तशिल्प को शिक्षा का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा मानते थे। उन्होंने कहा था, ‘यदि हम केवल कुछ को ही नहीं बल्कि अपने सभी सात लाख गांवों को जीवित रखना चाहते हैं, तो हमें अपनी ग्रामीण हस्तकलाओं को पुनर्जीवित करना होगा। और आप आश्वस्त रह सकते हैं कि यदि हम इन शिल्पों के जरिए बेहतरीन प्रशिक्षण प्रदान करें तो हम एक क्रांति ला सकते हैं।’’
9. इन विचारों को आपके समक्ष रखते हुए, मैं इन पुरस्कारों को आरंभ करने के लिए वस्त्र मंत्रालय को धन्यवाद देता हूं। मैं एक बार फिर उन सभी शिल्पकारों और बुनकरों को बधाई देता हूं जिन्हें पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। मैं इस अवसर पर आपको तथा आपके माध्यम से अपने राष्ट्र के सभी भागों के शिल्पकार और बुनकर समुदाय को बधाई देता हूं तथा आने वाले वर्षों में उनके रचनात्मक कार्य के लिए अपनी शुभकामनाएं देता हूं।
धन्यवाद,
जय हिंद!