मुझे 27वें सूरजकुंड अंतरराष्ट्रीय शिल्प मेले के उद्घाटन के लिए यहां उपस्थित होकर अत्यंत प्रसन्नता हो रही है। यह मेला भारत के पर्यटन तथा सांस्कृतिक कैलेंडर में तथा पूरी दुनिया में जागरूक पर्यटकों के लिए भी महत्त्वपूर्ण तारीख बन चुका है। मुझे याद है कि इस मेले को 1987 में छोटे स्तर पर केवल 3 एकड़ के मैदान में आयोजित किया गया था। मुझे वास्तव में खुशी है कि यह अब विकसित होकर अंतरराष्ट्रीय मेले की शक्ल ले चुका है—अब यह 40 एकड़ में फैला हुआ है तथा इसमें भारत के सभी राज्यों के शिल्पकार तथा बुनकर और 20 देशों के प्रतिभागी भाग ले रहे हैं। मुझे यह जानकर प्रसन्नता हो रही है कि पिछले वर्षों की उपस्थिति के हिसाब से अगले पंद्रह दिनों में इस मेले में एक मिलियन से अधिक दर्शकों के आने की संभावना है। इस प्रकार यह भारत की समृद्ध विविधता—इसके बेहतरीन हथकरघे, हस्तशिल्प, सुगंधों और स्वादिष्ट व्यंजनों को प्रदर्शित करने का एक और अवसर होगा।
जिन देशों के साथ हमारे सभ्यतागत संबंध रहे हैं, उन देशों के हमारे मित्रों की सहभागिता इसकी सफलता का प्रतीक है। यह मेला अपने ढंग से भारत तथा विदेशों में शिल्पकारों और कारीगरों के समुदायों के बीच सांस्कृतिक संबंधों को कायम करने में सहायक रहा है। भारत की विविध लोककलाओं और परंपराओं से संबंधित इन 800 से अधिक कलाकारों और कारीगरों के जमावड़े से उन्हें अपने उत्पादों का प्रदर्शन करने और उनको लोकप्रिय बनाने का शानदार अवसर मिलता है। यह, दर्शकों को हमारे देश की सांस्कृतिक विरासत के इस पहलू तथा यहां प्रदर्शित इसकी कला और हस्तशिल्प का ज्ञान प्राप्त करने और समझने का अवसर प्रदान करता है। स्कूली बच्चों और पर्यटकों को इस जीवंत ग्रामीण परिवेश का आनंद उठाने तथा इन हुनरमंद लोगों से सीधे मिलने का अवसर मिलेगा। विभिन्न प्राचीन कलारूपों को बचाए रखने के प्रति इन शिल्पकारों की प्रतिबद्धता और समर्पण के कारण ही बहुत सी खास परंपराएं मिटने से बच पा रही हैं।
विशिष्ट अतिथिगण, देवियो और सज्जनो, हस्तशिल्प और परंपरागत कलाएं, हमारी भारतीय जीवन पद्धति का प्रतिनिधित्व करती हैं। हमारे देश की सृजनात्मकता भी इसके जीवंत निवासियों और उनकी कलाओं के समान ही विविधतापूर्ण है। यह हमारे सौंदर्यबोध और कुशल कारीगरी का प्रतीक है। हमारे हस्तशिल्प और परंपरागत कलाएं अत्यधिक केंद्रीकृत क्रियाकलाप हैं, जो स्थानीय परिवेश से प्रभावित होते हैं और हर एक मामले में स्थानीय परंपराओं पर आधारित तथा स्थानीय सामग्री और संसाधनों से निर्मित होते हैं। इन विविध कलाओं ने पीढ़ी-दर-पीढ़ी लोगों को सहारा दिया है और सबसे निचले स्तर पर सतत् आजीविका और सामाजिक-आर्थिक विकास में सहयोग दिया है। भारतीय हस्तशिल्प उद्योग ने लंबे समय से हमारे देश के लिए विदेशी विनिमय जुटाने में बहुत योगदान दिया है। पिछले दशक के दौरान इस सेक्टर में प्रत्येक राज्य ने कुल मिलाकर प्रगति प्रदर्शित की है। परंतु, बड़े पैमाने पर उत्पादन के बावजूद वैश्विक हस्तशिल्प निर्यात बाजार में भारत का हिस्सा 2 प्रतिशत से कम है। मुझे मालूम है कि भारत में हस्तशिल्प सेक्टर के सामने इसकी प्रगति को अवरुद्ध करने के लिए कई खतरे और चुनौतियां मौजूद हैं। इस सेक्टर में बड़े पैमाने पर विकेंद्रीकरण है। ऋण की प्राप्ति नहीं हो पाती, बिचौलियों जैसे बाहरी कारकों पर निर्भरता रहती है, कच्चे माल की अपर्याप्त उपलब्धि होती है, अवसरंचनात्मक सुविधाएं अपर्याप्त हैं, और प्रौद्योगिकी पुरानी पड़ चुकी है, बाजार तक सीमित पहुंच है, और सबसे बड़ी चुनौती मशीन से बने उत्पाद हैं जो कि सस्ती नकल होते हैं परंतु बड़े पैमाने पर उत्पादन करके उनकी लागत बहुत कम आती है। इसके अलावा 2008 के आर्थिक संकट के बाद हस्तशिल्प के निर्यात में कमी आई है। परंतु फिर भी इस सेक्टर पर ध्यान देने, उसे प्रोत्साहित करने तथा उसे गति प्रदान करने के लिए कई अच्छे कारण भी मौजूद हैं। कई ऐसे सकारात्मक कारक हैं जिनसे हमें फायदा उठा सकते हैं—भारत में हमारे पास कुछ खास कच्चा माल प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है, जैसे कि बांस, सींग, जूट, कुशल कारीगर तथा स्वदेशी ज्ञान, हमारी उत्पादन लागत प्राय: कम होती है और यह सेक्टर सदैव महिलाओं, युवाओं और अशक्तजनों के सशक्तीकरण का जरिया रहा है। सौभाग्य से, भारत सरकार तथा विभिन्न राज्य सरकारों की नीतिगत पहलों के चलते भारतीय हस्तशिल्प के निर्यात में लगभग 20 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। अच्छा संकेत यह है कि जो कारीगर इस सेक्टर को छोड़ चुके थे, वे वापस लौटने लगे हैं। इस सेक्टर की सक्रियता को बचाए रखने के लिए क्षमता, दक्षता, डिजायन, अवसरंचना तथा माल के क्षेत्र में विकास करते हुए सरकार के प्रयास इसके भविष्य में सुधार लाने में कारगर रहे हैं। तथापि, यह जरूरी है कि सरकार सावधान रहे और वह विकसित देशों के मौजूदा बाजारों तथा लेटिन अमरीका, उत्तरी अमरीका और यूरोप के नए उभरते बाजारों की मांग पर नजर रखे। यह भी जरूरी है कि इस सेक्टर में घटते निवेश पर ध्यान दिया जाए और न केवल बेहतर अवसरंचना वरन् अच्छी गुणवत्ता के कच्चे माल की आपूर्ति, परिवहन सुविधा, ऋण की उपलब्धता, आधुनिक डिजायन तथा विपणन व्यवस्था के क्षेत्र में संस्थागत सहयोग सुनिश्चित किया जाए।
मुझे इस बात की प्रसन्नता है कि हरियाणा सरकार ने विभिन्न मंत्रालयों के सहयोग से इस सालाना मेले का संस्थागत रूप दे दिया है। यह मेला रंगों का, खुशियों का और हमारे देश की भावनाओं का शानदार उत्सव है और इसकी कलात्मक प्रतिभा और कौशल पर गर्व का प्रतीक बन गया है। मैं हरियाणा सरकार और खासकर हरियाणा के पर्यटन विभाग को इस मेले के आयोजन के लिए बधाई देता हूं।
मैं कर्नाटक सरकार को भी अपनी विशिष्ट सांस्कृतिक तथा पुरातात्विक विरासत को बड़े सौंदर्यपरक ढंग से प्रदर्शित करने के लिए बधाई देता हूं। मुझे खुद मैसूर पैलेस के शानदार दरवाजों की प्रतिकृति को देखने में आनंद आया है तथा मैं सदैव वेलूर, हम्पी, जैन बासादी तथा बीजापुर के वास्तुशिल्प शैलियों का प्रशंसक रहा हूं। अपना घर, विदेशी भागीदारों और सार्क देशों के स्टाल तथा अफ्रीका पेवेलियन भी नि:संदेह दर्शकों को आकर्षित करेंगे।
मुझे उम्मीद है कि इस मेले की सफलता से भारत के दूसरे राज्यों को इसी तरह के मेलों के आयोजन की प्रेरणा मिलेगी। मुझे विश्वास है कि आने वाले वर्षों के दौरान सूरजकुंड शिल्प मेला हमारे बेहतरीन सम्माननीय कारीगरों को आकर्षित करता रहेगा।
इन्हीं शब्दों के साथ, मैं 27वें सूरजकुंड मेले की सफलता की कामना करता हूं। मुझे इस मेले का उद्घाटन करते हुए खुशी हो रही है।
जय हिंद!