मुझे आज केन्द्रीय सूचना आयोग के आठवें अधिवेशन के अवसर पर आपके बीच उपस्थित होकर वास्तव में बहुत प्रसन्नता हो रही है। यह इस बात पर विचार करने का तथा आत्मचिंतन करने का एक महत्वपूर्ण अवसर है कि सूचना के अधिकार ने किस प्रकार सरकार तथा इसके नागरिकों के कार्यों को प्रभावित किया है।
सूचना का अधिकार अधिनियम को जन प्राधिकारियों के कार्यों में पारदर्शिता तथा जवाबदेही को बढ़ावा देने हेतु सरकार तथा जन प्राधिकारियों के पास उपलब्ध सूचना को प्राप्त करने के लिए अधिनियमित किया गया था। इसका उद्देश्य जवाबदेह और जिम्मेदार शासन की स्थापना है तथा यह सूचना रखने और नियंत्रित करने वालों तथा नागरिकों, जो लोकतंत्र के सर्जक तथा लाभभोगी दोनों हैं, के बीच शक्ति समीकरण का बेहतर संतुलन कायम करने के लिए स्थापित किया गया तंत्र है।
मैं सभी भागीदारों का आह्वान करता हूं कि वे इस अधिवेशन के अवसर का उपयोग पारदर्शिता, जवाबदेही और सुशासन के क्षेत्र में, स्थाई रुचि के मुद्दों पर विचार-विमर्श के लिए करें। मुझे खुशी है कि इस अधिवेशन में फिक्की, सीआईआई तथा एसोचेम के विशेषज्ञ भी भाग ले रहे हैं जो अपने कार्यों के बारे में कतिपय बुनियादी सूचनाओं का खुलासा करने में निगमित तथा निजी सेक्टर की जिम्मेदारियों और प्रतिबद्धताओं के बारे में चर्चा करेंगे। इस तरह के विचार-विमर्शों से निजी तथा सार्वजनिक क्षेत्र सहित, शासन के सभी पहलुओं में भरोसे की संस्कृति को बढ़ावा मिलेगा। मुझे यह जानकर भी खुशी हो रही है कि इस वर्ष समावेशी विकास के बरक्स सूचना का अधिकार, सूचना का अधिकार-एक भ्रष्टाचार विरोधी उपाय तथा मीडिया और सूचना का अधिकार जैसे सूचना के अधिकार के प्रमुख क्षेत्रों पर विचार-विमर्श होगा। मैं समझता हूं कि पिछले आठ वर्षों के दौरान सूचना की मांग में काफी वृद्धि हुई है। आयोग ने अपने निर्णयों द्वारा विभिन्न श्रेणी की सूचनाओं के खुलासे के लिए बुनियादी सिद्धांत निर्धारित कर दिए हैं जिन्हें अब तक खुलासे के योग्य नहीं माना जाता था। मुझे बताया गया है कि मांगी गई सूचना को अस्वीकार करने की दर में धीरे-धीरे कमी का रूझान आया है तथा जहां यह 2007-08 में 7.2 प्रतिशत थी, 2009-10 में 6.4 प्रतिशत थी वहीं 2010-11 में यह 5.2 प्रतिशत थी। तथापि वर्ष 2012-13 में अस्वीकृति का प्रतिशत बढ़कर 7.2 प्रतिशत हो गया। यह तथ्य, कि आयोग के समक्ष अपीलों तथा शिकायतों की बढ़ोतरी के प्रतिशत में कमी का रुझान दिखाई दे रहा है इस बात की पुष्टि करता है कि गुणवत्ता युक्त स्वैच्छिक खुलासे तथा केन्द्रीय जनसूचना अधिकारियों तथा अपीलीय प्राधिकारियों के बेहतर प्रशिक्षण से अस्वीकृति की दर में कमी आती है।
तथापि आयोग के सामने अपीलों/शिकायतों की भारी संख्या इस बात का प्रतीक है कि स्वैच्छिक खुलासे की गुणवत्ता में सुधार की जरूरत है, जिससे सूचना मांगने वालों को लंबी पक्ति में न खड़ा होना पड़े। उन्होंने जनप्राधिकारियों का आह्वान किया कि वे पहलकदमी करते हुए स्वेच्छा से जनता के उपयोग के लिए सूचना का खुलासा करें।
कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग, भारत सरकार ने अप्रैल 2013 में अपने क्षेत्राधिकार के अधीन मंत्रालयों/विभागों तथा जन-प्राधिकारियों के लिए स्वैच्छिक खुलासे संबंधी दायित्वों के बारे में दिशानिर्देश जारी किए हैं। इसमें मंत्रालय/विभाग तथा जनप्राधिकारियों को संयुक्त सचिव स्तर अथवा ऊपर के वरिष्ठ अधिकारियों को नोडल अधिकारी पदनामित करने का प्रावधान रखा गया है, जो अधिनियम की धारा 4 के तहत दायित्वों के कार्यान्वयन पर नजर रखे और उच्चतम प्रबंधन तथा केन्द्रीय सूचना आयोग को इसकी प्रगति की जानकारी दे सके। यह बहुत से सिविल सोसाइटी संगठनों की पुरानी मांग रही है। इस परिपत्र के द्वारा केन्द्र सरकार ने स्वैच्छिक खुलासे के क्षेत्र का विस्तार किया है तथा इसमें अन्य के साथ साथ नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक तथा लोक लेखा समिति लेखा पैरा, सार्वजनिक निजी भागीदारी खरीद, सरकारी पदाधिकारियों की विदेश यात्राओं आदि से संबंधित सूचनाओं को शामिल किया है। इस परिपत्र में मंत्रालयों/विभागों जनप्राधिकारियों से अपने स्वैच्छिक खुलासों का परीक्षण तीसरे पक्ष से कराने तथा उन्हें भारत सरकार और केन्द्रीय सूचना आयोग को सूचित करने की अपेक्षा की गई है। इस प्रकार की सूचना एक साझा पोर्टल पर होने से उसकी मानीटरी तथा सूचना देने की प्रक्रियाओं में काफी सुधार आएगा।
यह भी खुशी की बात है कि कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग ने हाल ही में एक पोर्टल शुरू किया है जिससे नागरिकों को सूचना का अधिकार, आवेदन तथा प्रथम अपील को ऑनलाइन भेजने तथा सूचना मांगने वालों की भारी संख्या को सूचना प्रदान करने के लिए भुगतान की औपचारिकता पूरी करने की सुविधा प्राप्त होगी।
केन्द्रीय सूचना आयोग की भूमिका सूचना का अधिकार के कार्यान्वयन में आयोग विनियामक, न्याय निर्णायक तथा सलाहकार की है। यह सार्वजनिक निजी भागीदारी व्यवस्थाओं में भी खुलासा दायित्वों को लागू करने के लिए योजना आयोग के साथ मिलकर सक्रियता से काम कर रहा है। इसकी पहल पर राष्ट्रीय शैक्षणिक अनुसंधान परिक्षण की सभी पुस्तकों की जिल्द पर सूचना का अधिकार का संदेश छपवाया जा रहा है। ये सभी पहलें प्रशंसनीय हैं और मैं केन्द्रीय सूचना आयोग के सदस्यों और कर्मचारियों को अभी तक अच्छा कार्य करने पर बधाई देता हूं।
इसी तरह से पारदर्शिता और लोकतंत्र के बारे में अपने उत्साह में, हमें एक क्षण के लिए भी इस सच्चाई को अनदेखा नहीं करना चाहिए कि इन सभी व्यवस्थाओं के केन्द्र में स्थित नागरिक के भी निजता के कुछ अलंघनीय अधिकार हैं। सार्वजनिक और निजी के बीच बहुत ही महीन अंतर है। सूचना का अधिकार अधिनियम में ऐसे मुद्दों के निपटने के प्रावधान हैं परंतु ऐसे कुछ क्षेत्र हैं जिन्हें और स्पष्ट करना होगा। संभवत:, एक ऐसी व्यवस्था निर्मित करने की आवश्यकता है जो अवैध साधनों के जरिए निजत का हनन होने से व्यक्ति को सुरक्षा प्रदान करे।
जन प्राधिकारियों के लिए एक प्रमुख चुनौती है ‘सूचना को रखरखाव’। डाटा प्रबंधन कार्य में सुधार तथा रिकार्ड और कार्य संचालन के कंप्यूटरीकरण के चलते नागरिक स्वयं ही अपने आवेदन जन प्राधिकारियों के कार्य संचालनक्रम के अंदर अपने आवेदन की स्थिति जान पाएंगे। सूचना का अधिकार अधिनियम में भी इसकी धारा 4 में इस तरह के खुलासे तथा रिकार्ड प्रबंधन को अनिवार्य बनाया गया है। हमें सूचना का अधिकार अधिनियम के कार्यान्वयन को सशक्त करने के लिए कारगर ढंग से सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकियों का उपयोग करने में सक्षम होना चाहिए।
सूचना का अधिकार अधिनियम के पहले आठ वर्षों का अनुभव यह रहा है कि यह शासन में सुधार का एक महत्वपूर्ण उपादान है। सूचना का अधिकार अधिनियम को नागरिक तथा जन प्राधिकारियों के बीच, एक का लाभ दूसरे की हानि, के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। लोकतंत्र में शासन विश्वास और भरोसे पर चलता है तथा नागरिकों और सरकार के बीच विश्वास का स्तर एक परिपक्व लोकतंत्र का सर्वोत्तम संकेतक है। सरकार को लोकतंत्र के संचालन के लिए अत्यावश्यक एवं जागरूक समाज के विनिर्माण के लिए हर संभव प्रयास करने होंगे।
मैं इस अधिवेशन में उपस्थित प्रतिभागियों को शुभकामनाएं देता हूं और मुझे विश्वास है कि उनका विचार-विमर्श बहुत सफल रहेगा।
धन्यवाद,
जय हिन्द ।