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60वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण

विज्ञान भवन, नई दिल्ली : 03.05.2013



60वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार समारोह के अवसर पर आपके बीच आकर मुझे बहुत खुशी हो रही है। प्रारंभ में मैं, दादा साहब फाल्के पुरस्कार के विजेता, श्री प्राण को बधाई देना चाहूंगा। मुझे मालूम हुआ है कि वे बीमार हैं परंतु मुझे विश्वास है कि वे जल्दी ही स्वस्थ हो जाएंगे। मैं उनके दीर्घ एवं स्वस्थ जीवन की कामना करता हूं। मैं राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार विजेताओं को भी बधाई देता हूं।

आज, भारतीय सिनेमा को 100 वर्ष पूर्ण हो चुके हैं। इसी दिन दादा साहेब फाल्के द्वारा प्रथम मूक फीचर फिल्म की लंबाई की फिल्म ‘राजा हरिश्चंद्र’ को रिलीज किया गया था। जब 20वीं सदी के शुरुआत में सिनेमा प्रौद्योगिकी भारतीय तट पर पहुंची तो भारतीय समुदाय ने उसका स्वागत किया तथा उसे मन से अंगीकार किया। हमारे देश में इस माध्यम का प्रयोग कथा सुनाने की परंपरा को मजबूत करने के लिए कारगर ढंग से किया गया। बाद में समय के गुजरने के साथ-साथ सिनेमा भारत के सभी इलाकों तथा भाषाओं का समावेश करते हुए एक सशक्त माध्यम के रूप में उभरा और इस प्रकार इसने हमारे लोगों की सामाजिक-राजनीतिक आकांक्षाओं को प्रतिबिंबित किया। फिल्म उद्योग ने प्रौद्योगिकीय बदलावों को अंगीकार करते हुए मूक श्वेत-श्याम से उन्नत डिजिटल सिनेमा की ओर रूपांतर किया है।

वास्तव में भरतीय सिनेमा एक वैश्विक उपक्रम बन चुका है। इसने खुद को उच्चीकृत किया है तथा उस तरीके में भी पूर्ण बदलाव किया है, जिसके द्वारा यह दर्शकों तक पहुंचता है। मुझे इस बात पर गर्व है कि आज भारतीय सिनेमा ने बहुत से देशों में बाजार ढूंढ निकाला है। धीरे-धीरे हमारे फिल्म निर्माताओं को अंतरराष्ट्रीय फिल्मोत्सवों में मान्यता तथा सम्मान प्राप्त हो रहा है। यह इस बात का बड़ा उदाहरण है कि भारत की साफ्ट पावर किस तरह विश्व भर में देश का छवि का बना सकती है। हमारी सांस्कृतिक विरासत समृद्ध तथा विविध है और यह दुनिया को भारत की—एक ऐसे देश की कहानी सुनाने के लिए एक महत्त्वपूर्ण आधार रही है और अभी भी बनी हुई, जो लाखों वर्ष पुराना है, जो समसामयिक विश्व में महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है तथा जिसका भविष्य उज्जवल है।

मैं समझता हूं कि वर्ष 2012 के लिए फीचर, गैर-फीचर खंड अथवा सिनेमा पर श्रेष्ठ लेखन, सभी के लिए रिकार्ड तोड़ प्रविष्टियां प्राप्त हुई थी। यह रुझान उत्साहजनक है। मुझे उम्मीद है कि आने वाले वर्षों में इन प्रविष्टियों की संख्या बढ़ती रहेगी।

यह एक ऐसा अवसर है जिसकी भारतीय फिल्मोद्योग को इंतजार रहता है, क्योंकि इस मौके पर योग्य व्यक्तियों को उनकी सृजनात्मक और सौंदर्यात्मक उत्कृष्टता के लिए सम्मानित किया जाता है। यह ऐसा अवसर भी है, जब नई तथा उभरती हुई प्रतिभाओं को मान्यता प्रदान की जाती है। इस वर्ष जितने पुरस्कार प्रदान किए जा रहे हैं, वह इस बात का प्रतीक हैं कि भारतीय सिनेमा ने गुणवत्ता में बहुत सुधार किया है। यह जानकर खुशी हुई कि बहुत वर्षों बाद असम के छोटे से समूह द्वारा बोली जाने वाली भाषा मिसिंग में बनी फिल्म ने पुरस्कार जीता।

देवियो और सज्जनो,

सिनेमा संदेश संप्रेषित करने का एक सशक्त माध्यम है। सिनेमा की भाषा कई तरह से क्षेत्रों और सीमाओं से परे होती है। हमारे देश में ऐसे लोगों की बड़ी संख्या है जो सिनेमा देखते हैं और उससे प्रभावित होते हैं। हाल ही में महिलाओं और बच्चों के विरुद्ध अपराध की घटनाओं ने देश की अंतरात्मा को झकझोर दिया है। हमें अपने मूल्यों के हृस को रोकना होगा। मैं इस अवसर पर सिनेमा की उस महत्त्वपूर्ण भूमिका पर जोर देना चाहूंगा जिसे देश की नैतिकता के पुन: निर्धारण में सिनेमा द्वारा निभाया जा सकता है और निभाया जाना चाहिए। फिल्म उद्योग से जुड़े प्रत्येक व्यक्ति का यह दायित्व है कि वह सिनेमा जैसे शक्तिशाली माध्यम का प्रयोग एक सहिष्णु तथा सौहार्दपूर्ण भारत के निर्माण के लिए सकारात्मक सामाजिक मूल्यों के चित्रण के लिए करे। मैं मनोरंजन उद्योग का आह्वान करता हूं कि उसे इस जिम्मेदारी के प्रति जागरूक तथा संवेदी होना चाहिए तथा ऐसा सिनेमा उपलब्ध कराने के सभी प्रयास करने चाहिए नैतिक शक्ति प्रदान करे।

मुझे यह जानकर खुशी हो रही है कि सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय गुणवत्तायुक्त तथा सार्थक फिल्मों के लेखन और निर्माण को प्रोत्साहित करने के लिए कई कदम उठा रहा है। मुझे यह भी मालूम हुआ है कि देश में फिल्मों की शूटिंग को बढ़ावा देने के लिए, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा भारत में फिल्म निर्माण को बढ़ावा देने तथा सुविधा प्रदान करने के लिए एक अंतरमंत्रालयीन समिति गठित करने जा रहा है जो देश में फिल्मों की शूटिंग की अनुमति देने के लिए सरकार की विभिन्न एजेंसियों की एकल खिड़की के रूप में कार्य करेगी। मुझे विश्वास है कि इससे हमारे फिल्मोद्योग को मजबूत करने में बहुत सहयोग मिलेगा।

आज के तेजी से बदलते परिवेश में सिनेमा की तकनीक तथा सौंदर्यबोध में भी बदलाव आ रहा है। परंतु इस बदलाव के बीच में भी ऐसी प्रतिभाएं हैं जो अपना निशान छोड़ जाती हैं। उनके कार्य कालातीत होते हैं तथा उन्हें पीढ़ी दर पीढ़ी प्रशंसा प्राप्त होती है। ऐसा ही एक व्यक्तित्व, आज के दादा साहेब फाल्के पुरस्कार के विजेता, श्री प्राण हैं। उन्होंने अपना फिल्मी जीवन फिल्म में नायक के रूप में शुरू किया परंतु बाद में एक नायाब खलनायक की भूमिका अपना ली। उन्होंने जो भी अलग-अलग तरह की भूमिकाएं की हर एक को बेहतरीन ढंग से प्रस्तुत किया। मैं श्री प्राण को केवल उनकी अनुपम कलाकारी के लिए ही नहीं वरन वास्तविक जीवन में एक बेहतरीन इन्सान के रूप में भी याद करता हूं।

मैं निर्णायक मंडल के सभी सदस्यों को उनके सामने प्रस्तुत प्रविष्टियों के मूल्यांकन के लिए उनके अथक प्रयासों के लिए बधाई दता हूं। मैं एक बार फिर से प्रत्येक पुरस्कार विजेता को बधाई देता हूं तथा उत्कृष्टता प्राप्ति के उनके प्रयासों के लिए शुभकामना देता हूं। मुझे विश्वास है कि आने वाले वर्षों में उनकी सृजनात्मकता नई-नई ऊंचाइयां छूएगी तथा वे अच्छा तथा मूल्याधारित मनोरंजन प्रदान करते रहेंगे।

धन्यवाद,

जय हिन्द!