मुझे आज स्मारक डाक टिकटों के इस सेट को जारी करने पर अत्यंत प्रसन्न्ता हो रही है।
आज हम वर्तमान भारत के आठ महानतम संगीतकारों को सम्मानित कर रहे हैं,हम उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व तथा उनकी अनन्य विरासत को याद कर रहे हैं। नि:संदेह ये आठ संगीतकार विश्व संगीत के इतिहास की महानतम विभूतियों में से हैं। उन्होंने न केवल व्यक्तिगत पारंगतता प्राप्त की बल्कि अपने-अपने क्षेत्रों में उन संगीत घरानों के विकास और प्रगति में असाधारण योगदान दिया जहां उन्होंने संगीत की शिक्षा ली थी और उसमें पारंगतता प्राप्त की थी। उनके इस योगदान तथा हमारी सांस्कृतिक विरासत को,इससे प्राप्त समृद्धि को मापना तथा उसका आकलन संभव नहीं है। इसकी प्रतिध्वनि अपरिमित है तथा उनके नामों का उल्लेख बड़े सम्मान के साथ किया जाएगा। उनका संगीत आने वाले बहुत से दशकों तक नई और पुरानी पीढ़ियों द्वारा संजोया जाएगा।
मैं इन डाक टिकटों के प्रकाशन की पहल के लिए डाक विभाग को बधाई देता हूं। जब ये डाक टिकट पत्रों और पत्रिकाओं पर लग कर यात्रा करेंगे और डाक टिकट संग्रहकर्ताओं और संगीत के शौकीनों के संग्रह में जुड़ेंगे तथा विभिन्न महाद्वीपों में लोगों द्वारा प्रयोग किए जाएंगे तो यह उन सभी को संगीत की उपलब्धियों के उस स्वर्णयुग की जानकारी और स्मरण करवाएंगी,जो भारत के शास्त्रीय संगीत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण काल था।
इस समयजब हम भारतीय, एक राष्ट्र के रूप में,वैश्वीकृत दुनिया की चुनौतियों का सामना करते हुए बहुत सारी चीजों,राजनीतिक प्रक्रियाओं और आर्थिक प्रगति और विकास के साथ सक्रियता से जुड़े हुए हैं,थोड़ा रूक कर अपनी अनूठी सांस्कृतिक विरासत पर चिंतन करना राहतपूर्ण और ऊर्जादायक होता है। अपने विशुद्ध रूप में संगीत हमारी आत्माओं के लिए आध्यात्मिक पोषाहार है। यह हमारी सांस्कृतिक और पंथनिरपेक्ष विरासत का आधार है। कहा जाता है कि हमारा भारतीय संगीत जिसका उद्गम वेदों में है, स्वयं ईश्वर का उपहार है;यह नादब्रह्म, ईश्वर का स्वर है, ऐसा संगीत है जो ब्रह्मांड में व्याप्त है।
यद्यापि इन प्रतिभावान आत्माओं की उपलब्धियों को कुछ ही शब्दों नहीं समेटा जा सकता परंतु भारतीय संगीत में उनके असाधारण योगदान के कुछ पहलुओं को याद करके मैं अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करना चाहूंगा।
उस्ताद अली अकबर खानने1976 में इलाहाबाद के संगीत सम्मेलन में 13 वर्ष की आयु में अपनी पहली प्रस्तुति दी। सरोद में उनकी निपुणता तथा उनकी शानदार बंदिशों ने उन्हें‘राष्ट्रीय निधि’ की उपाधि प्रदान की। एक कलाकार और शिक्षक के रूप में उन्होंने न केवल भारत बल्कि यूरोप और अमरीका में भी भारतीय शास्त्रीय संगीत को लोकप्रिय बनाया।
पंडित भीमसेन जोशी ने गायन की खयाल शैली का विकास किया। वह भक्ति संगीत की अपनी लोकप्रिय प्रस्तुतियों के लिए अधिक विख्यात थे। वह प्रशिक्षण और स्वभाव से एक शास्त्रीय संगीतकार थे परंतु उन्होंने एक ऐसा दृष्टिकोण विकसित किया जिसका उद्देश्य पारंपरिक मूल्यों और लोकप्रिय संस्कृति की अभिरुचियों के बीच एक संतुलन स्थापित करना था।
श्रीमती डी.के. पट्टाम्मल ने महज चार वर्ष की आयु में अपनी शिक्षा आरंभ कर ली थी,और धीरे-धीरे कर्नाटक संगीत की एक महान विभूति बन गईं। उन्होंने संगीत के क्षेत्र में उच्चतम स्थान प्राप्त किया। श्रीमती एम.एस.सुब्बालक्ष्मी और श्रीमती एम.एल. वसंतकुमारी के साथ उन्हें‘कर्नाटक संगीत की महिला त्रिमूर्ति’ माना जाता था। उन्होंने रागम तनम पल्लवी,ऐसी रचना जिसपर सदैव पुरुष कलाकारों का आधिपत्य रहा था, की उत्कृष्ट प्रस्तुति के द्वारा ‘पल्लवी पट्टामम्मल’की उपाधि अर्जित की।
श्रीमती गंगूबाई हंगल, एक अन्य बाल प्रतिभा थी जिन्होंने महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरु,सरोजिनी नायडू और मौलाना अबुल कलाम आजाद की गरिमापूर्ण उपस्थिति में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के1924 के सत्र में अपनी पहली प्रस्तुति दी। वह संगीत को अपनी आजीविका बनाने के लिए संकीर्णता और विरोध से लड़ीं तथा2006 के अपने अंतिम संगीत कार्यक्रम तक 75वर्षों तक शास्त्रीय संगीत के प्रति समर्पित रहीं।
पंडित कुमार गंधर्व को नए रागों की रचना तथा मध्य प्रदेश के संगीत को प्रमुखता देने के लिए याद किया जाता है। उनकी विरासत में‘निर्गुण भजनों’और लोक गीतों के साथ उनके विस्मयकारी प्रयोग शामिल हैं।
जयपुर अतरौली घराने केपंडित मल्लिकार्जुन मंसूर ने गीतों की प्रस्तुति में भावनात्मकता को खोए बिना मधुरता और लय दोनों में महीन फरेबदल के माध्यम से नए प्रतिमान स्थापित किए थे।
पंडित रवि शंकर को उन ऊंचाइयों के लिए सदैव याद किया जाएगा जो उन्होंने सुप्रसिद्ध सितार वादक तथा हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के रचनाकार के रूप में प्राप्त की। उन्होंने अपनी शानदार प्रस्तुतियों और रचनात्मक बंदिशों के द्वारा विश्व के सभी भागों में सितार को लोकप्रिय बनाया। उनके अपारंपरिक लयबद्ध आवर्तनों तथा अनूठी रचनाओं के प्रयोग आज भी बेजोड़ हैं।
उस्ताद विलायत अली खान, जिन्होंने रवि शंकर और अली अकबर खान के साथ विश्व को भारतीय संगीत से परिचय करवाया,भारतीय शास्त्रीय संगीत की एक अन्य महानतम विभूति थे। वह निस्संदेह20वीं शताब्दी के सबसे प्रभावशाली संगीतज्ञों में से एक थे।
देवियो और सज्जनो, हमारी पीढ़ी को इन आठ उत्कृष्ट कलाकारों की प्रेरणादायक प्रस्तुतियों को जानने और सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। भावी पीढ़ी को उनकी प्रतिभा पर आश्चर्य होगा। हममे से अधिकांश को उन्हें व्यक्तिगत रूप से जानने और उनके असाधारण कौशल का अनुभव करने का अवसर प्राप्त हुआ है। मेरा अपना यह दृढ़ विश्वास है कि सभी विविधताओं से युक्त भारतीय संगीत मानव सभ्यता को एक महानतम उपहार है।
मैं इन स्मारक डाक टिकटों के प्रकाशन के लिए डाक विभाग को बधाई देता हूं;इन महान हस्तियों को सम्मानित करके देश अपना सम्मान कर रहा है।
ये डाक टिकट राष्ट्रपति भवन के नवनिर्मित संग्रहालय में रखे जाएंगे जहां भारत और विदेश के विभिन्न भागों के दर्शक इस सप्ताहांत के बाद से इन्हें देख सकेंगे।
मैं आपके वर्तमान और भावी प्रयासों की सफलता की कामना करता हूं।
जय हिन्द।