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इंजीनियरी निर्यात संवर्धन परिषद की हीरक जयंती समारोह के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति का अभिभाषण

विज्ञान भवन, नई दिल्ली : 03.09.2015



शिक्षक दिवस पर यहां उपस्थित होना और आप सभी को संबोधित करना मेरे लिए वास्तव में प्रसन्नता की बात है। मुझे इस अवसर पर आप के बीच उपस्थित होने पर खुशी हो रही है जब हम देश भर के उन बहुत से शिक्षकों की समर्पित सेवाओं का सम्मान कर रहे हैं जो बच्चों की बौद्धिक और नैतिक नींव का निर्माण करने और उसे सुदृढ़ करने के कार्य में सक्रिय रूप से शामिल रहे हैं। इस दिन हम आप में से उन लोगों को राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित करते हैं जिन्होंने स्कूली शिक्षा के सुधार में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। मैं इस राष्ट्रीय सम्मान के लिए आपको बधाई देता हूं। मैं अपने देश के सभी शिक्षकों को भी बधाई देता हूं तथा उनकी सेवा और समर्पण के प्रति हमारा आभार व्यक्त करता हूं।

हमारे देश में 5 सितम्बर शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह मेरे प्रख्यात पूर्ववर्ती डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जन्म जयंती है जो हमारे देश के एक महान विद्वान और दार्शनिक तथा सबसे पहले एक महान शिक्षक थे। वह उन शिक्षाविदों के परामर्शदाता और सम्मानित मार्गदर्शक थे जिन्होंने आधुनिक भारत की शैक्षिक प्राथमिकताओं को समझा। बहुत पहले उन्होंने कहा था, ‘शिक्षा का उद्देश्य सूचनाओं की प्राप्ति नहीं है,यद्यपि यह महत्वपूर्ण है अथवा तकनीकी कौशल अर्जित करना नहीं है,जो आधुनिक समाज में अत्यावश्यक है परंतु ऐसी मानसिक प्रवृत्ति,ऐसी तार्किक अभिवृत्ति,ऐसी लोकतांत्रिक भावना का निर्माण करना है जो हमें जिम्मेदार नागरिक बनाए।

ये शब्द आज भी हमें इस मूलभूत प्रश्न पर आत्मविश्लेषण करने की आवश्यकता की याद दिलाते हैं: इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए हम अपने बच्चों को कैसा शैक्षिक अनुभव प्रदान कर रहे हैं?तेजी से बदल रहे वर्तमान विश्व में, जहां नए विचार,मूल्य और संकल्पनाएं तेजी से पुरानों का स्थान ले रही हैं,किसी भी विद्यार्थी के लिए शिक्षा की गुणवत्ता का महत्व और भी बढ़ गया है। शिक्षा से व्यक्ति को संकीर्ण वैश्विक नजरिए तथा जाति,समुदाय, नस्ल और लिंग की सीमाओं से मुक्त होना चाहिए। शिक्षकों को,युवा मन द्वारा विश्व को समझने तथा इसे बेहतर बनाने के लिए संवारने का दायित्व सौंपा गया है। इस प्रयोजन के लिए स्कूलों,कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में कार्यरत शिक्षकों को स्वयं के लिए यह तय करना होगा कि शिक्षक बनने का मतलब क्या है और इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए उनके कौन से प्रयास उनके योगदान को सार्थक बना सकते हैं। यह आत्मविश्लेषण करने का सही समय है।

मैं मानता हूं कि हमें पहले से कहीं अधिक आज अपने बच्चों में त्याग,सहिष्णुता, बहुलता,सद्भावना और करुणा के सभ्यतागत मूल्य समाविष्ट करने के लिए प्रेरित शिक्षकों की आवश्यकता है। एक प्रेरित शिक्षक को मूल्योन्मुख,मिशन-प्रेरित, आत्म-प्रेरित,स्व-प्रोत्साहित और परिणामोन्मुख व्यक्ति के रूप में परिभाषित करता हूं। वह अपने कार्यों के जरिए तथा विद्यार्थियों को अपनी क्षमता अर्जित करने में मदद करने के लिए ज्ञान प्रदान करके वातावरण को सकारात्मक तरीके से प्रभावित करने का कार्य करता है। एक प्रेरित शिक्षक विद्यार्थियों के व्यक्तिगत लक्ष्यों को सामाजिक और राष्ट्रीय लक्ष्यों से जोड़ता है। ऐसे शिक्षक न केवल मस्तिष्क बल्कि हृदय को भी प्रभावित करते हैं। शब्दों,कार्यों और कृत्यों से वे न केवल विद्यार्थियों को प्रेरित करते हैं बल्कि प्रदर्शन और विचारशीलता के उच्च स्तर पर ले जाते हैं। हमारे राष्ट्र का भविष्य निर्माण करने वाले जागरूक,चेतनाशील और बौद्धिक नागरिक तैयार करने का दायित्व शिक्षकों का है।

प्रिय शिक्षको,

एक समय था जब हमारे यहां तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला,वल्लभी, सोमपुरा तथा ओदंतपुरी जैसी शिक्षण की प्रख्यात पीठें थीं। वह सुदूर स्थानों के विद्वानों को आकर्षित करती थी। इन विश्वविद्यालयों में पढ़ाने वाले प्रबुद्धजनों ने हमारी प्राचीन शिक्षण प्रणाली को एक उच्च स्थान प्रदान किया। हमें अपने उस अग्रणी स्थान को पुन:प्राप्त करना होगा। हम इस दिशा में मार्गदर्शन के लिए शिक्षकों से अपेक्षा रखते हैं। हमें सुनिश्चित करना चाहिए कि हमारी शिक्षा प्रणाली प्रतिभाओं को शैक्षिक पेशे की ओर आकर्षित करे।

हमारे शिक्षकों द्वारा स्वयं को नई दिशा प्रदान करने तथा शिक्षण और अधिगम हेतु प्रासंगिक और प्रभावी नजरिया निर्मित करने के लिए नई पद्धतियां विकसित करने की आवश्यकता है। उन्हें उत्कृष्टता हासिल करने के लिए अनुसंधान,प्रयोगधर्मिता तथा नवान्वेषण के माध्यम से अपनी क्षमताओं का भी निरंतर पुन:नवीकरण करना चाहिए। सूचना और संचार प्रौद्योगिकी एक अन्य क्षेत्र है जहां शिक्षकों को तेजी से बदल रही प्रौद्योगिकियों के साथ गति बनाए रखनी होगी। सबसे पहले शिक्षकों का सूचना और संचार प्रौद्योगिकी में सहज होना आवश्यक है। संचार प्रौद्योगिकी में प्रगति से सूचनाओं के बढ़ते प्रवाह के कारण शिक्षकों को न केवल उपलब्ध सूचना से फायदा उठाने बल्कि सूचनाओं के बढ़ते प्रवाह के दबाव में न आने के लिए विद्यार्थियों का मार्गदर्शन करना चाहिए। उन्नत संचार प्रौद्योगिकी को यह सुनिश्चित करना होगा कि विशेष आवश्यकता वाले बच्चों सहित विद्यार्थियों को सूचना और संचार प्रौद्योगिकी के पूरे लाभ प्राप्त हों।

हमें प्रशिक्षण और पेशागत विकास के लिए संस्थागत सुविधाएं जुटाने के दीर्घकालिक लक्ष्य की दिशा में कार्य करना चाहिए। मुझे विश्वास है कि भारत सरकार की पंडित मदन मोहन मालवीय शिक्षक और शिक्षण राष्ट्रीय मिशन योजना समग्र तरीके से इन तात्कालिक प्राथमिकताओं और संबंधित मुद्दों का समाधान करेगी।

शिक्षा राष्ट्र को सशक्त और सक्षम बनाती है। एक सुदृढ़ शिक्षा प्रणाली एक जागरूक समाज की नींव है। हमारे सपनों के भारत का निर्माण करने के लिए हमारे सम्मुख सबसे प्रमुख कार्य आधुनिक प्रौद्योगिकियों को समाविष्ट करते हुए तथा समानता के मुद्दों का समाधान करते हुए शिक्षा की गुणवत्ता सुधारना है।

मित्रो, यह हमारा सहज विश्वास है कि जहां हमारे माता-पिता हमें जन्म देते हैं,वहीं हमारे गुरु हमारे चरित्र और आकांक्षाओं को संवारते हैं। आप गुरु हैं;और आप पर भावी नेतृत्व का निर्माण करने का दायित्व है। वर्तमान समय में,परिश्रम, ईमानदारी,सच्चाई, वैज्ञानिक प्रवृत्ति,हमारे पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता तथा ईमानदारी जैसे मूल्यों पर बल देना अत्यावश्यक है। मेरे प्रिय शिक्षको आप,इनका खुद प्रयोग करते हुए, चरित्रवान नागरिक तैयार करने के लिए अपने विद्यार्थियों में इन महत्वपूर्ण मूल्यों को पैदा कर सकते हैं।

देवियो और सज्जनो,

मैं, इस अवसर पर उस पेशेवर समर्पण की हार्दिक सराहना करता हूं जिसके द्वारा आप सभी ने हमारे राष्ट्र को एक आत्मविश्वास से परिपूर्ण,जीवंत तथा आधुनिक भारत बनाने में प्रशंसनीय भूमिका निभाई है। मैं,उन सभी शिक्षकों को बधाई देता हूं जिन्हें पुरस्कारों से सम्मानित किया जा रहा है। मैं,आप सभी को भावी प्रयासों के सफल होने की शुभकामनाएं देता हूं। मैं,देश के समस्त शिक्षण समुदाय को अपनी शुभकामनाएं देता हूं तथा उनसे भारत को अगले स्वर्ण युग के पथ पर ले जाने के प्रयासों में दृढ़ रहने का आग्रह करता हूं।

धन्यवाद,

जय हिन्द!