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स्वामी विवेकानंद सभागार उद्घाटन के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण

संगीत नाटक अकादमी कथक केंद्र, नई दिल्ली : 04.07.2016



1. मेरे लिए कथक केंद्र में विवेकानंद समभागारके उद्घाटन में भाग लेना सचमुच सौभाग्यशाली है। मैं इस अवसर पर श्री महेश शर्मा,संस्कृतिक मंत्रालय, श्री एन.पी. सिन्हा,सचिव (संस्कृति) और श्री शेखर सेन,संगीत नाटक अकादमी के अध्यक्ष को मुबारकबाद देना चाहता हूं। आधुनिक समय में महान भारतीयों में से एक का नाम देना,मुझे विश्वास है कि यह ऑडिटोरियम अनेक कथक प्रस्तुतियां और कार्यक्रम निष्पादित करेगा जो स्वामी विवेकानंद के विचारों और सोच को जीवित रखेंगे।

2. स्वामी विवेकानंद ने भारत के प्राचीन आध्यात्मिक विचार को साकार किया- यह भारत जो मुक्त,आपके साथ और निरंतर विकासशील रहा है। इसी प्रकार कथक के प्राथमिक भारतीय नृत्य का रूप है जिसमें अनेक प्रभाव डाले,उन्हें आत्मसात किया और विकसित किया तथा महाभारत के समय से ही चौथी शताब्दी पूर्व में इसके मूल रूप से इसको बनाए रखा।

3. राजाओं और सम्राटों के दरबारों में फलते-फूलते हुए मंदिर नृत्य से कथक में उपनिवेशी शासन के अंतर्गत अनेक बार पतन का सामना किया। सामान्य जनता में कथक को बहाल करने और उसका प्रचार करने में1964 में इसके आरंभ से संगीत नाटक अकादमी और कथक के द्वारा किया गया कार्य सचमुच सराहनीय है। यह भी उल्लेखनीय है कि जिन गुरुओं को कथक केंद्र ने प्रशिक्षित किया उन्होंने सुनिश्चित किया कि कथक नृत्य की उपयुक्तता और शास्त्रीय समृद्धि के प्रचार में और उसे लोकतांत्रिक बनाने में कहीं कमी नहीं आई है।

4. यह प्रत्येक भारतीय को हमारी विरासत और राष्ट्रीय चरित्र के प्रति सचेत करता है। जब हम किसी कथक नर्तक को पारसी सारंगी,मुगल दिलरूबा और बांसुरी पर वादन करते हुए हिन्दुस्तान शास्त्रीय संगीत की धुन पर वृंदावन में भगवान कृष्ण,राधा और गोपियोंके साथ गायन नृत्य करते हुए देखते हैं। मध्य एशिया केबर्लिद दर्वेशके लहराते हुए परिधान में सुसज्जित कथक/नर्तक के भव्य संकेत से अभिव्यक्त शास्त्रीय भारतीयभाव और रासकी अभिव्यक्ति सचमुच मार्मिक है।

5.स्वामी विवेकानंद ने एक बार देखा,सच्ची कला कला को एक लिली पुष्प से तुलना की जा सकती है जो जमीन से निकलता है,जमीन से ही अपना भोजन प्राप्त करता है,जमीन को ही स्पर्श करता है और उसके बावजूद भी उससे कहीं ऊपर रहता है। इसलिए कला को प्रकृति के स्पर्श में रहना चाहिए- और जहां जहां तक यह कला पहुंचती है,कला का क्षय होता है-फिर भी यह प्रकृति से उपर है। यह कहकर स्वामी जी कला पर उत्कृष्टता का पर्याप्त भार डाल दिया है। इस प्रकार की उत्कृष्टता को जमीन में डाला जाता है और फिर भी अपने आप को पर्याप्त - बहुधा सुपर मानव अनुशासन,धैर्य, अभ्यास और एकाग्रता द्वारा भी अपने आप को जमीन से ऊपर उठाया जा सकता है। शास्त्रीय भारतीय कला का रूप विशेषकर नृत्य,मुझे गर्व है, उत्कृष्टता के मानकों पर खरी उतरते हैं जो अपेक्षित हैं।

6.स्वामी जी ने स्वयं इस बात को स्वीकार किया जब उन्होंने यह कहा और मैं उद्धृत करता हूं, ‘नाटक सभी कलाओं में सबसे कठिन कला है। इसमे दो बातों की संतुष्टि होनी चाहिए- प्रथम कान और दूसरा आंख। चित्र को पेंट करने के लिए यदि एक वस्तु को पेंट किया जाए तो बहुत आसान है;परंतु भिन्न-भिन्न वस्तुओं को पेंट करना और उसके बाद भी केंद्रीय मूल बात को बनाए रखना बहुत मुश्किल है। दूसरी कठिनाई मंच प्रबंधन की है जो भिन्न-भिन्न वस्तुओं का इस प्रकार से संयोजन करता है कि मूल बात बनी रहे। उससे भी कठिन है नृत्य जिसमें नाटक भी शामिल है जैसे कि कथक में होता है। नर्तक कलाकार द्वारा अभिनय नृत्य,नृत्य, ताल और सुर सभी एक साथ सम स्वर में वादित होते हैं जो दर्शकों को एकाग्र करता है।

7.मुझे सूचित किया गया है कि कथक में निर्देश देने के अतिरिक्त कथक केंद्र तबला और पकवाज में डिप्लोमा भी प्रदान करता है।

8.स्वामी विवेकानंद जो आज उद्धाटन किए गए इस सुंदर ऑडिटोरियम के नाम को सुसज्जित करता है,एक अच्छे गायक ही नहीं थे बल्कि एक अपवाद वादक भी थे। हम स्वामी जी के गहन आध्यत्मिक प्रोग्रेस,उनके एकल पांडित्य, वाक्पटुआ और आकर्षण के कार्य में बहुत अधिक बोलते हैं परंतु उनके द्वारा सबसे पहले लिखी गई पुस्तक संगीत पर थी। उन्हें हिंदुस्तान में शास्त्रीय संगीत में प्रशिक्षण दिया गया और यह कहा जाता है कि अपने जीवन के दूसरे भाग में उषाकाल में वे अपने तानपुरा की धुन बजाते थे और बेलुरमठ के आश्रम के अन्य निवासियों को जगाने के लिए राग हित भैरव में तानसेन द्वारा रचित ध्रुपद गाया करते थे।

9.भारत की इस महान कलात्मक विरासत को आगे ले जाते और मजबूत करते हुए संगीत नाटक अकादमी और कथक केंद्र में उदाहरणीय कार्य किया है। मैं उन्हें उनके परिश्रम में निरंतर सफलता की कामना करता हूं और समझता हूं कि वे इससे भी बड़ी पहुंच के एिल संघर्ष करेंगे। मैं इस सभागार को सभी कथक के गुरुओं,छात्रों और शिष्यों को समर्पित करता हूं और उम्मीद करता हूं कि स्वामी विवेकानंद उन्हें उत्कृष्ट दूरदर्शिता से सदैव आर्शीवाद देंगे। मैं उम्मीद करता हूं कि सघन और पूर्ण रूप से यंत्र सुसज्जित सभागार इच्छुक और विवेकी दर्शकों के साथ कथक नृत्य को प्रोत्साहित करेगा।

जय हिन्द।

धन्यवाद।