कमांडेंट, राष्ट्रीय रक्षा कॉलेज, वाइस एडमिरल सुनील लांबा, एवीएसएम, संकाय तथा स्टाफ सदस्य, भारतीय सशस्त्र सेनाओं, सिविल सेवाओं तथा मित्र विदेशी राष्ट्रों के अधिकारीगण। मुझे आप सबका राष्ट्रपति भवन में स्वागत करते हुए बहुत प्रसन्नता हो रही है।
2. अपनी गतिशील प्रकृति के कारण, विश्व नेतृत्व तथा नीति निर्माताओं के सामने आज वैश्विक परिवेश बहुत-सी चुनौतियां खड़ा कर रहा है। पिछले कुछ समय से जो घटनाक्रम हैरतअंगेज तेजी से सामने आए हैं, उनका अनुमान एक दशक पूर्व लगा पाना भी संभव नहीं था।
3. प्रत्येक राष्ट्र अपने कार्यों में अपने राष्ट्रीय हितों तथा उद्देश्यों से निर्देशित होता है। शक्ति संबंधों में निरंतर बदलाव आ रहे हैं और यदि कोई देश अपने आसपास के बदलावों को समझने में और खुद को उनके अनुसार ढालने में समर्थ नहीं होगा तो उसकी सुरक्षा को गंभीर खतरा पैदा हो जाएगा।
4. क्योंकि प्राकृतिक तथा मानव निर्मित संसाधन सदैव बेशकीमती होते हैं इसलिए इन संसाधनों पर नियंत्रण के लिए देशों के बीच कठोर प्रतिस्पर्धा रहेगी।
5. आज सुरक्षा के बहुत से आयाम हैं क्योंकि इसमें आर्थिक, ऊर्जा, खाद्य, स्वास्थ्य, पर्यावरणीय और सुरक्षा के अन्य पहलू शामिल होते हैं। इसलिए सभी क्षेत्रों और विधाओं में गहन अनुसंधान और गुणवत्ता विश्लेषण एक सर्वोपरि आवश्यकता बन गई है, जिसके लिए विधाओं की विशाल विविधताओं के अध्ययन हेतु एक सर्वांगीण दृष्टिकोण की जरूरत है। इसके लिए अंतर्निहित कड़ियों को मजबूत बनाने का पूरा प्रयास करना होगा और उन्हें बिल्कुल अलग-अलग नहीं मानना होगा। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि ऐसा दृष्टिकोण अपनाने के बहुत लाभ होंगे। इसी के साथ हमें बड़े परिदृश्य से ध्यान नहीं हटाना है और अनुसंधान के प्रमुख उद्देश्यों पर सदैव ध्यान एकाग्र रखना है।
6. किसी भी राष्ट्र की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि वह अपने पास उपलब्ध संसाधनों का किस तरह उपयोग कर पाता है, इनमें से सबसे पहला संसाधन है मानव संसाधन। राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए मानव संसाधन के विकास का महती कार्य आपके संस्थान, भारत के राष्ट्रीय रक्षा कॉलेज द्वारा किया जा रहा है, जहां न केवल सशस्त्र बलों के अधिकारियों को वरन् सिविल सेवाओं तथा मित्र विदेशी राष्ट्रों के अधिकारियों को भी राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी नीतिगत निर्णय लेने के लिए पृष्ठभूमि ज्ञान प्रदान किया जाता है।
7. हमारी जैसी लोकतांत्रिक प्रणाली में राष्ट्र के विभिन्न अंगों को एक दूसरे की शक्तियों और सीमाओं को समझना होगा। राजनीतिक नेतृत्व तथा वरिष्ठ सिविल सेवा अधिकारियों को रक्षा सेनाओं की क्षमताओं तथा उनकी सीमाओं से परिचित होना चाहिए। इसी प्रकार सशस्त्र बलों के अधिकारियों को उन सीमाओं और संवैधानिक ढांचे को समझने की जरूरत है जिसके तहत राजनीतिक ढांचा तथा सिविल सेवाएं कार्य करती हैं। तथापि, दोनों को ही राष्ट्रीय सुरक्षा के उस व्यापक परिदृश्य से परिचित होना चाहिए ताकि वे अत्यंत महत्त्वपूर्ण मामलों पर सुविचारित निर्णय ले सकें।
8. मैं समझता हूं कि राष्ट्रीय रक्षा कॉलेज के पाठ्यक्रम में छह अध्ययन पाठ्यचर्या का हिस्सा हैं। सामाजिक-राजनीतिक अध्ययन में आपको राष्ट्रीय सुरक्षा को प्रभावित करने वाले मुद्दों का आकलन करने के लिए भारतीय समाज तथा राजव्यवस्था की प्रमुख विशेषताओं से परिचित कराया जाता है। अर्थव्यवस्था, विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी अध्ययनों के तहत आपको उन सिद्धांतों और कार्यों से परिचित कराया जाता है जो आर्थिक रुझानों को बनाते हैं तथा सुरक्षा संबंधी क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने में विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी के प्रभाव के बारे में बताया जाता है। इसी प्रकार अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा परिवेश, वैश्विक मुद्दे तथा भारत के कार्यनीतिक पड़ोस के तहत अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा परिवेश तथा इसका भारत की विदेश नीति पर प्रभाव पर अध्ययन केंद्रित होता है। राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए कार्यनीतियों और ढांचों संबंधी अंतिम अध्ययन में वर्ष भर में सीखे गए तथा अनुभव किए गए संपूर्ण ज्ञान का संश्लेषण तथा निष्कर्ष होता है।
9. मुझे उम्मीद है कि यह पाठ्यक्रम आपको और अधिक जागरूक तथा अच्छी जानकारी रखने वाले ऐसे व्यक्तियों के रूप में विकसित करेगा जो देश के सुरक्षा परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए सुविचारित निर्णय ले सकें। राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी समस्याओं के बहु-विधात्मक उपायों की जरूरत को पहले भी स्वीकार किया जाता था। राजनीति संबंधी अपनी प्रसिद्ध पुस्तक में कौटिल्य ने कहा था कि ‘‘भले ही धनुष से तीर छोड़ने वाला धनुर्धर एक भी व्यक्ति की जान ले सके अथवा नहीं परंतु व्यक्ति अपनी बुद्धि का प्रयोग करते हुए गर्भ के अंदर भी जान ले सकता है।’’ पंडित जवाहर लाल नेहरू ने भी 1960 में राष्ट्रीय रक्षा कॉलेज का उद्घाटन करते हुए कहा था कि, ‘‘रक्षा कोई अलग-थलग विषय नहीं है। यह आर्थिक, औद्योगिक तथा देश में अन्य बहुत से पहलुओं से जुड़ा है तथा इसमें सभी शामिल हैं।’’
10. सैन्य कार्यों में क्रांतिकारी प्रगति तथा वैश्वीकरण के कारण सशस्त्र सेनाओं की भूमिका का भी परंपरागत सैन्य मामलों से कहीं आगे फैलाव हो चुका है। यह स्पष्ट है कि इस जटिल रक्षा तथा सुरक्षा परिवेश में भावी संघर्षों में अधिक एकीकृत बहु-राष्ट्रीय तथा बहु-एजेंसी प्रयासों की जरूरत होगी। भविष्य के जटिल सुरक्षा परिवेश से निपटने के लिए सैन्य अधिकारियों, पुलिस अधिकारियों तथा सिविल सेवकों को तैयार करने के लिए अनिवार्य रूप से समग्र, एकीकृत तथा विस्तृत ढंग से तैयारी करनी होगी।
11. मैं, एक बार फिर से आप सभी को आपके भावी प्रयासों की सफलता के लिए शुभकामनाएं देता हूं तथा उम्मीद करता हूं कि आप राष्ट्रीय रक्षा कॉलेज तथा देश के लिए और अधिक प्रतिष्ठा प्राप्त करेंगे।
जयहिंद!