प्रतिभाशाली शिक्षकों को राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान करने के अवसर पर भारत के महामहिम राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण
नई दिल्ली : 05.09.2012
विद्वान शिक्षको एवं सम्मानित राष्ट्रीय पुरस्कार विजेताओ,
मानव संसाधन विकास मंत्री श्री कपिल सिब्बल,
मानव संसाधन विकास राज्यमंत्री श्री ई अहमद, और
डॉ. डी. पुरंदेश्वरी,
देवियो और सज्जनो,
आप, पूरे भारत के ऐसे समर्पित पुरुष एवं महिलाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिन्होंने हमारी पीढ़ियों को शिक्षा एवं ज्ञान प्रदान किया है। आज शिक्षक दिवस के इस अवसर पर, आपके बीच उपस्थित होकर मुझे वास्तव में खुशी हो रही है। मैं आपका हार्दिक अभिनंदन करता हूं।
शिक्षक दिवस 5 सितम्बर को, मेरे प्रख्यात पूर्ववर्ती डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म दिवस पर मनाया जाता है जो कि हमारे देश के एक महान विद्वान और दार्शनिक थे। वर्ष 1962 में जब वे भारत के राष्ट्रपति बने तो उनके प्रशंसकों ने उनसे अनुरोध किया कि वे, उन्हें अपना जन्मदिन मनाने की अनुमति दें। डॉ. राधाकृष्णन, जो कि स्वयं एक प्रख्यात शिक्षक थे, ने तब कहा था, ‘मेरे जन्मदिन को अलग से मनाने के बजाए, मेरे लिए यह सम्मान की बात होगी कि 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाए।’ यह मेरा सौभाग्य है कि मैं इस अवसर पर उन्हें तथा सभी शिक्षकों के प्रति सम्मान व्यक्त करने के लिए आप लोगों के बीच उपस्थित हूं।
वेदों के समय के संतों और मनीषियों से लेकर स्वामी विवेकानंद, रवीन्द्रनाथ टैगोर तथा गांधी जी तक, सदियों से हमारे गुरुओं ने, हमें हमारी अनोखी विरासत प्रदान की है, जिसने हमारे मन और मस्तिष्क को पोषित किया है। आधुनिक काल में, चंद्रशेखर वेंकटरमण, सुब्रह्मण्यन चंद्रशेखर तथा अमृत्य सेन जैसे विद्वानों ने भौतिकी तथा अर्थशास्त्र के विकास में भूमिका निभाई है और ऐसे सिद्धांतों का प्रतिपादन किया है जिन्हें संपूर्ण विद्वत जगत में मान्यता मिली है, स्वीकृति मिली है और सराहा गया है। मैं इन सभी विद्वानों को नमन करता हूं।
मित्रो,
अपने सपनों के भारत का निर्माण करने के लिए हमारे सामने सबसे पहला काम है शिक्षा के स्तर में सुधार लाना। एक ऐसे देश में, जहां की जनता न केवल आयु में वरन जोश में भी युवा है, शिक्षकों पर ऐसी शिक्षा प्रदान करने की जिम्मेदारी है जो कि मूल्यों और अधुनातन विषय-सामग्री, दोनों के लिहाज से समृद्ध हो। मैं स्वयं एक शिक्षक रहा हूं और मैंने सदैव स्वामी विवेकानंद के इन शब्दों से प्रेरणा प्राप्त की है, ‘‘शिक्षा एक ऐसी प्रक्रिया है जिससे चरित्र का निर्माण होता है, मस्तिष्क की ताकत में वृद्धि होती है तथा बुद्धि में कुशाग्रता आती है, जिसके परिणामस्वरूप व्यक्ति अपने पैरों पर खड़ा हो सकता है। और एक शिक्षक का पवित्र कर्तव्य है अपने शिष्यों में जिज्ञासा की भावना उत्पन्न करना।’’ मुझे शिक्षक बंधुओं को प्रेरित करने वाले इससे बेहतर शब्द आज तक नहीं मिले।
आपका पावन कर्तव्य है कि आप अपने शिष्यों को ज्ञान का संकलन तथा अपनी प्रतिभा का पता लगाने और अपनी शारीरिक और अंतरव्यक्तित्व क्षमताओं, ज्ञानात्मक योग्यताओं और विषय-सामग्री संबंधी दक्षताओं का विकास करने के योग्य बनाएं। शिक्षा से उनके मन समृद्ध होने चाहिए, उनकी सीमाओं का विस्तार होना चाहिए तथा उनमें नए विचारों तथा अवसरों की खोज करने के लिए सतत् पिपासा पैदा होनी चाहिए।
शिक्षकों के रूप में, हम सभी को मालूम है कि शैक्षणिक क्रियाकलाप तथा सीखने की प्रक्रियाएं अब केवल कक्षा-आधारित पाठ्यचर्या तक सीमित नहीं हैं। यह आवश्यक है कि विद्यार्थियों के लिए उपयुक्त शिक्षा अनुभवों को डिजाइन किया जाए। वैज्ञानिक अभिरुचि का विकास जरूरी है। नई प्रौद्योगिकी का अनुकूल और उसका अनुप्रयोग हमारी शिक्षा के सभी स्तरों के लिए पाठ्यचर्या विकास का अनिवार्य अंग होना चाहिए। नई-नई पद्धतियां तथा शिक्षण सामग्री की सहायता से नई पीढ़ी को और अधिक सीखने, और अधिक खोज करने तथा समाज को और अधिक योगदान देने के लिए तैयार किया जाना चाहिए।
जैसा कि मैंने एक अन्य स्थान पर कहा है कि मेरा पक्का विश्वास है कि शिक्षा एक ऐसा मंत्र है जो भारत में अगला स्वर्ण युग ला सकता है। हमारा ध्येय होना चाहिए, ज्ञान के लिए सब और ज्ञान सबके लिए।
शिक्षा के अधिकार के लागू होने से, हमारे देश ने वर्ष 2015 तक सभी के लिए शिक्षा का लक्ष्य निर्धारित किया है। शिक्षकों के रूप में, आप इस प्रयास में अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं। किसी भी व्यक्ति को सीखने, अपने चिंतन को व्यापक बनाने और नए क्षितिजों की खोज के मूल्यवान अवसर से वंचित नहीं किया जाना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति को हमारे देश और इसकी विरासत की गहरी समझ होनी चाहिए और उसमें राष्ट्र के प्रति अपने दायित्व और कर्त्तव्य के बारे में सोचने की क्षमता होनी चाहिए। जैसा कि गांधीजी ने हमें सिखाया था, लोकतंत्र को चलाने के लिए केवल तथ्यों के ज्ञान के बजाय ‘सही शिक्षा’ की जरूरत होती है।
इसके लिए जरूरी है कि शैक्षणिक कार्यक्रमों में लगातार सुधार से जुड़े हुए सुप्रशिक्षित और स्वप्रेरित शिक्षकों को लेकर, हमारे शैक्षणिक संकाय को सशक्त किया जाए जो विद्यार्थियों की बदलती जरूरतों के प्रति पूरी तरह सचेत हों।
शिक्षकों को स्वयं नए नजरिए से सोचना चाहिए और बेहतर संस्थागत क्षमता विकसित करनी चाहिए। शोध, प्रयोगधर्मिता और नवान्वेषण के द्वारा अपनी क्षमताओं और उत्कृष्टता में निरंतर नवीनता लाने वाले, योग्य और सक्षम शिक्षक ही राष्ट्र की ताकत बनेंगे। हमें निष्पादन मानदण्ड स्थापित करने और शिक्षकों के नवान्वेषी प्रशिक्षण और व्यावसायिक विकास के लिए सर्वोत्तम संस्थागत सुविधाएं निर्मित करने के, दीर्घकालिक लक्ष्य प्राप्त करने की दिशा में कार्य करना होगा। मैं यह अपेक्षा करता हूं कि भारत सरकार का राष्ट्रीय शिक्षक और प्रशिक्षण मिशन, इन सभी तात्कालिक प्राथमिकताओं और संबंधित मुद्दों पर समग्र रूप से ध्यान देगा।
इस संदर्भ में, शिक्षा प्रदान करने की दिशा में कुछ श्रेष्ठ पहलें करने वाले निजी क्षेत्र और गैर सरकारी संगठनों के प्रयासों की, मैं इस अवसर पर सराहना करना चाहूंगा। उन्होंने यह दिखा दिया है कि यदि निष्ठा और ईमानदारी से कार्य किया जाए तो बहुत कुछ संभव है।
मैं इस अवसर पर, हृदय की गहराई से, आपके इस पेशेवर समर्पण के प्रति आभार व्यक्त करता हूं जिसके द्वारा आपने हमारे राष्ट्र को एक ऐसे आत्मविश्वास से परिपूर्ण, सजीव और आधुनिक देश बनाने में एक सराहनीय भूमिका निभाई है, जिसके नागरिक अपनी विद्वत्ता और बुद्धिमत्ता तथा समाज के प्रति योगदान के लिए विख्यात हैं। आप में से जिन्हें पुरस्कार देकर सम्मानित किया जा रहा है, मैं उन्हें बधाई देता हूं। मैं आप सभी को अपने भावी प्रयासों में सफल होने की कामना करता हूं। आपके माध्यम से मैं, देश के सम्पूर्ण शिक्षक समुदाय को अपनी हार्दिक शुभकामनाएं देता हूं।
अपनी बात समाप्त करने से पहले मैं अपना एक विचार आपके समक्ष रखना चाहता हूं।
मैं जब भी एक शिक्षक के बारे में सोचता हूं तो मेरे मन में एक छवि उभर आती है : मैं एक ऐसा रोशन दिया देखता हूं जिसके चारों ओर हजारों बिना रोशनी के दीये हैं। वह रोशन दीया उन सभी हजार दीयों को प्रज्वलित कर देता है जो बाद में दूसरे हजारों दीयों को प्रज्वलित करते हैं और मैं देखता हूं कि उजाले का बढ़ता हुआ दायरा हमारी मातृभूमि के अंधेरे को दूर कर देता है।
मानव संसाधन विकास मंत्री श्री कपिल सिब्बल,
मानव संसाधन विकास राज्यमंत्री श्री ई अहमद, और
डॉ. डी. पुरंदेश्वरी,
देवियो और सज्जनो,
आप, पूरे भारत के ऐसे समर्पित पुरुष एवं महिलाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिन्होंने हमारी पीढ़ियों को शिक्षा एवं ज्ञान प्रदान किया है। आज शिक्षक दिवस के इस अवसर पर, आपके बीच उपस्थित होकर मुझे वास्तव में खुशी हो रही है। मैं आपका हार्दिक अभिनंदन करता हूं।
शिक्षक दिवस 5 सितम्बर को, मेरे प्रख्यात पूर्ववर्ती डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म दिवस पर मनाया जाता है जो कि हमारे देश के एक महान विद्वान और दार्शनिक थे। वर्ष 1962 में जब वे भारत के राष्ट्रपति बने तो उनके प्रशंसकों ने उनसे अनुरोध किया कि वे, उन्हें अपना जन्मदिन मनाने की अनुमति दें। डॉ. राधाकृष्णन, जो कि स्वयं एक प्रख्यात शिक्षक थे, ने तब कहा था, ‘मेरे जन्मदिन को अलग से मनाने के बजाए, मेरे लिए यह सम्मान की बात होगी कि 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाए।’ यह मेरा सौभाग्य है कि मैं इस अवसर पर उन्हें तथा सभी शिक्षकों के प्रति सम्मान व्यक्त करने के लिए आप लोगों के बीच उपस्थित हूं।
वेदों के समय के संतों और मनीषियों से लेकर स्वामी विवेकानंद, रवीन्द्रनाथ टैगोर तथा गांधी जी तक, सदियों से हमारे गुरुओं ने, हमें हमारी अनोखी विरासत प्रदान की है, जिसने हमारे मन और मस्तिष्क को पोषित किया है। आधुनिक काल में, चंद्रशेखर वेंकटरमण, सुब्रह्मण्यन चंद्रशेखर तथा अमृत्य सेन जैसे विद्वानों ने भौतिकी तथा अर्थशास्त्र के विकास में भूमिका निभाई है और ऐसे सिद्धांतों का प्रतिपादन किया है जिन्हें संपूर्ण विद्वत जगत में मान्यता मिली है, स्वीकृति मिली है और सराहा गया है। मैं इन सभी विद्वानों को नमन करता हूं।
मित्रो,
अपने सपनों के भारत का निर्माण करने के लिए हमारे सामने सबसे पहला काम है शिक्षा के स्तर में सुधार लाना। एक ऐसे देश में, जहां की जनता न केवल आयु में वरन जोश में भी युवा है, शिक्षकों पर ऐसी शिक्षा प्रदान करने की जिम्मेदारी है जो कि मूल्यों और अधुनातन विषय-सामग्री, दोनों के लिहाज से समृद्ध हो। मैं स्वयं एक शिक्षक रहा हूं और मैंने सदैव स्वामी विवेकानंद के इन शब्दों से प्रेरणा प्राप्त की है, ‘‘शिक्षा एक ऐसी प्रक्रिया है जिससे चरित्र का निर्माण होता है, मस्तिष्क की ताकत में वृद्धि होती है तथा बुद्धि में कुशाग्रता आती है, जिसके परिणामस्वरूप व्यक्ति अपने पैरों पर खड़ा हो सकता है। और एक शिक्षक का पवित्र कर्तव्य है अपने शिष्यों में जिज्ञासा की भावना उत्पन्न करना।’’ मुझे शिक्षक बंधुओं को प्रेरित करने वाले इससे बेहतर शब्द आज तक नहीं मिले।
आपका पावन कर्तव्य है कि आप अपने शिष्यों को ज्ञान का संकलन तथा अपनी प्रतिभा का पता लगाने और अपनी शारीरिक और अंतरव्यक्तित्व क्षमताओं, ज्ञानात्मक योग्यताओं और विषय-सामग्री संबंधी दक्षताओं का विकास करने के योग्य बनाएं। शिक्षा से उनके मन समृद्ध होने चाहिए, उनकी सीमाओं का विस्तार होना चाहिए तथा उनमें नए विचारों तथा अवसरों की खोज करने के लिए सतत् पिपासा पैदा होनी चाहिए।
शिक्षकों के रूप में, हम सभी को मालूम है कि शैक्षणिक क्रियाकलाप तथा सीखने की प्रक्रियाएं अब केवल कक्षा-आधारित पाठ्यचर्या तक सीमित नहीं हैं। यह आवश्यक है कि विद्यार्थियों के लिए उपयुक्त शिक्षा अनुभवों को डिजाइन किया जाए। वैज्ञानिक अभिरुचि का विकास जरूरी है। नई प्रौद्योगिकी का अनुकूल और उसका अनुप्रयोग हमारी शिक्षा के सभी स्तरों के लिए पाठ्यचर्या विकास का अनिवार्य अंग होना चाहिए। नई-नई पद्धतियां तथा शिक्षण सामग्री की सहायता से नई पीढ़ी को और अधिक सीखने, और अधिक खोज करने तथा समाज को और अधिक योगदान देने के लिए तैयार किया जाना चाहिए।
जैसा कि मैंने एक अन्य स्थान पर कहा है कि मेरा पक्का विश्वास है कि शिक्षा एक ऐसा मंत्र है जो भारत में अगला स्वर्ण युग ला सकता है। हमारा ध्येय होना चाहिए, ज्ञान के लिए सब और ज्ञान सबके लिए।
शिक्षा के अधिकार के लागू होने से, हमारे देश ने वर्ष 2015 तक सभी के लिए शिक्षा का लक्ष्य निर्धारित किया है। शिक्षकों के रूप में, आप इस प्रयास में अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं। किसी भी व्यक्ति को सीखने, अपने चिंतन को व्यापक बनाने और नए क्षितिजों की खोज के मूल्यवान अवसर से वंचित नहीं किया जाना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति को हमारे देश और इसकी विरासत की गहरी समझ होनी चाहिए और उसमें राष्ट्र के प्रति अपने दायित्व और कर्त्तव्य के बारे में सोचने की क्षमता होनी चाहिए। जैसा कि गांधीजी ने हमें सिखाया था, लोकतंत्र को चलाने के लिए केवल तथ्यों के ज्ञान के बजाय ‘सही शिक्षा’ की जरूरत होती है।
इसके लिए जरूरी है कि शैक्षणिक कार्यक्रमों में लगातार सुधार से जुड़े हुए सुप्रशिक्षित और स्वप्रेरित शिक्षकों को लेकर, हमारे शैक्षणिक संकाय को सशक्त किया जाए जो विद्यार्थियों की बदलती जरूरतों के प्रति पूरी तरह सचेत हों।
शिक्षकों को स्वयं नए नजरिए से सोचना चाहिए और बेहतर संस्थागत क्षमता विकसित करनी चाहिए। शोध, प्रयोगधर्मिता और नवान्वेषण के द्वारा अपनी क्षमताओं और उत्कृष्टता में निरंतर नवीनता लाने वाले, योग्य और सक्षम शिक्षक ही राष्ट्र की ताकत बनेंगे। हमें निष्पादन मानदण्ड स्थापित करने और शिक्षकों के नवान्वेषी प्रशिक्षण और व्यावसायिक विकास के लिए सर्वोत्तम संस्थागत सुविधाएं निर्मित करने के, दीर्घकालिक लक्ष्य प्राप्त करने की दिशा में कार्य करना होगा। मैं यह अपेक्षा करता हूं कि भारत सरकार का राष्ट्रीय शिक्षक और प्रशिक्षण मिशन, इन सभी तात्कालिक प्राथमिकताओं और संबंधित मुद्दों पर समग्र रूप से ध्यान देगा।
इस संदर्भ में, शिक्षा प्रदान करने की दिशा में कुछ श्रेष्ठ पहलें करने वाले निजी क्षेत्र और गैर सरकारी संगठनों के प्रयासों की, मैं इस अवसर पर सराहना करना चाहूंगा। उन्होंने यह दिखा दिया है कि यदि निष्ठा और ईमानदारी से कार्य किया जाए तो बहुत कुछ संभव है।
मैं इस अवसर पर, हृदय की गहराई से, आपके इस पेशेवर समर्पण के प्रति आभार व्यक्त करता हूं जिसके द्वारा आपने हमारे राष्ट्र को एक ऐसे आत्मविश्वास से परिपूर्ण, सजीव और आधुनिक देश बनाने में एक सराहनीय भूमिका निभाई है, जिसके नागरिक अपनी विद्वत्ता और बुद्धिमत्ता तथा समाज के प्रति योगदान के लिए विख्यात हैं। आप में से जिन्हें पुरस्कार देकर सम्मानित किया जा रहा है, मैं उन्हें बधाई देता हूं। मैं आप सभी को अपने भावी प्रयासों में सफल होने की कामना करता हूं। आपके माध्यम से मैं, देश के सम्पूर्ण शिक्षक समुदाय को अपनी हार्दिक शुभकामनाएं देता हूं।
अपनी बात समाप्त करने से पहले मैं अपना एक विचार आपके समक्ष रखना चाहता हूं।
मैं जब भी एक शिक्षक के बारे में सोचता हूं तो मेरे मन में एक छवि उभर आती है : मैं एक ऐसा रोशन दिया देखता हूं जिसके चारों ओर हजारों बिना रोशनी के दीये हैं। वह रोशन दीया उन सभी हजार दीयों को प्रज्वलित कर देता है जो बाद में दूसरे हजारों दीयों को प्रज्वलित करते हैं और मैं देखता हूं कि उजाले का बढ़ता हुआ दायरा हमारी मातृभूमि के अंधेरे को दूर कर देता है।
ही वह दीये हैं।
जाइए और रोशनी फैलाइए।
आपकी यात्रा मंगलमय हो।
जाइए और रोशनी फैलाइए।
आपकी यात्रा मंगलमय हो।