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डॉ. दुर्गाबाई देशमुख महिला विकास पुरस्कार प्रदान किए जाने के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण

राष्ट्रपति भवन, नई दिल्ली : 05.11.2012



स्वामी विवेकानंद ने कहा था, ‘‘सभी राष्ट्र, महिलाओं को समुचित सम्मान प्रदान करके महान बने हैं। जिस देश और राष्ट्र ने महिलाओं को सम्मान नहीं दिया है वह कभी समृद्ध नहीं बना है।’’

मुझे, इन चार संगठनों को, जिनके कार्यों को आज सम्मानित किया जा रहा है, डॉ. दुर्गाबाई देशमुख महिला विकास पुरस्कार प्रदान करके प्रसन्नता हो रही है।

यह अवसर डॉ. दुर्गाबाई देशमुख द्वारा महिला और समाज विकास में दिए गए उनके योगदान पर विचार करने का भी अवसर है। वह एक सांसद थी, एक संस्था निर्मात्री थी और समाज विकास में अग्रणी थीं। वह केन्द्रीय समाज कल्याण बोर्ड की प्रथम अध्यक्षा थीं। योजना आयोग की सदस्य के रूप में उन्होंने सोच समझकर और व्यवस्थित रूप से समाज विकास को नियोजन की प्रक्रिया में शामिल करने का प्रयास किया। उन्होंने इस कार्य के लिए समाज विकास में नए विचारों के सृजन, अनुसंधान, समर्थन और कार्य-क्षेत्र में प्रयोग हेतु एक मंच के रूप में समाज विकास परिषद की स्थापना की।

डॉ. दुर्गाबाई का मानना था कि, ‘‘समाज कल्याण के क्षेत्र में सरकार अकेले अपने नागरिकों के लिए सभी आवश्यक उपायों को शुरू और कार्यान्वित नहीं कर सकती। न ही यह उन निरोधात्मक सेवाओं पर नज़र रख सकती है, जो समाज को स्वस्थ रखते हैं। राष्ट्रीय प्रयासों में तभी गहनता तथा सार्थकता आती है जब वे उसी जमीन पर सहज, समर्पित कार्य शुरू हो जहां से ये जुड़े हुए हैं।’’

विशिष्ट अतिथियो, राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों के अनुसार, ‘‘राज्य लोगों के कल्याण को प्रोत्साहित करने का प्रयास करेगा।’’ भारत सरकार ने अपने कार्यक्रमों और नीतियों के माध्यम से समावेशी विकास पर ध्यान केन्द्रित करके सार्वजनिक नीति में प्रमुख दिशात्मक परिवर्तन किया है। सरकार हमारे समाज के कमजोर और पिछड़े वर्गों के विकास के प्रति वचनबद्ध है। यह शिक्षा एवं कौशल विकास के जरिए देश के नागरिकों के सशक्तीकरण पर आधारित तीव्र और समावेशी विकास प्रक्रिया पर ध्यान दे रही है। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना तथा राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन रोजगार के अवसर प्रदान करने के महत्त्वपूर्ण प्रयास हैं। इसी प्रकार राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन अब महानगरों से हटकर प्रथम श्रेणी के और मध्यम श्रेणी के नगरों की ओर ध्यान दे रहा है। राष्ट्रीय शहरी बेघर कार्यक्रम एक नई योजना है जो गरीबों को आश्रय और राहत प्रदान करेगी। लैंगिक बजट को हमारी योजना प्रक्रिया में यह सुनिश्चित करने के लिए पूर्णत: समेकित कर दिया गया है कि प्रत्येक विकासात्मक क्षेत्र हमारी राष्ट्र के विकास और प्रगति में महिलाओं की भागीदारी पर समुचित बल दे।

तथापि अपेक्षित लक्ष्यों को सरकारी, निजी और स्वैच्छिक क्षेत्रों के एकजुट प्रयास से ही वास्तविकता में बदला जा सकता है। सामाजिक कल्याण में स्वैच्छिक प्रयास की जड़ें भारत के इतिहास और विरासत में गहराई तक फैली हुई हैं। चाहे निम्नतम् स्तर पर सशक्तीकरण हो अथवा आपातकालीन सहायता हो, स्वैच्छिक क्षेत्र अपने नवान्वेषी, बहुक्षेत्रीय और समर्पित दृष्टिकोण के कारण काफी आगे हैं। स्वैच्छिक संगठनों ने भारत में सहभागितापूर्ण लोकतंत्र को आकर देने में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वे सुदूर और कई बार विषम भू-भागों तक पहुंच चुके हैं और समानुभूति व सद्भावना के साथ समाज के कमजोर वर्गों से जुड़े हैं। इसलिए हमारी पंचवर्षीय योजनाओं में स्वैच्छिक संगठनों के गहरे और व्यापक नेटवर्क के माध्यम से जन सहयोग को प्रेरित करने पर समुचित ध्यान दिया गया है। वर्तमान में, योजना आयोग ने लगभग 11 मंत्रालयों और संगठनों की भागीदारी से एक गैर सरकारी संगठन साझीदारी प्रणाली आरम्भ की है। इसमें महिला और बाल विकास मंत्रालय, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय, जनजातीय कार्य मंत्रालय, उच्चतर शिक्षा विभाग आदि शामिल हैं। मुझे विश्वास है इस प्रयास का अभीष्ट वर्गों पर निश्चित सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

विशिष्ट अतिथिगण, आज जिन संगठनों को पुरस्कार प्राप्त हुए हैं, उन्होंने समाज में उल्लेखनीय योगदान से अपनी एक अलग पहचान बनाई है। मिजोरम विधवा एसोसियेशन, दी पीपल्स फोरम एसोसिएशन, बैंगलोर का दी सुमंगली सेवा आश्रम तथा अहमदनगर, महाराष्ट्र का स्नेहालय, उन महिलाओं और बच्चों के लिए उम्मीद और गरिमा लेकर आए हैं जिन्हें सरकार और समाज के सहयोग की जरूरत है। उन्होंने विधवाओं, निराश्रित महिलाओं और लावारिस और उपेक्षित बच्चों सहित समाज के पिछड़े वर्गों के जीवन को एक नई दिशा प्रदान की है। उन्होंने शोषितों को बचाने और उनका पुनर्वास करने के क्षेत्र में देश के विषम और सुदूर भागों में कार्य किया है। इन्होंने उनमें से वंचित और पिछड़े हुए लोगों को शिक्षा का उपहार दिया है और व्यावसायिक प्रशिक्षण, सूक्ष्म ऋण तथा अन्य सहयोग द्वारा उन्हें स्वावलम्बी बनाने में मदद की है। मुझे विश्वास है कि वे ग्रामीण व शहरी केन्द्रों में स्थित सम्पूर्ण भारत में अपने जैसे सैकड़ों अन्य संगठनों को भी प्रेरित करेंगे।

इन्हीं चंद शब्दों के साथ, मैं, इस प्रतिष्ठित पुरस्कार को आरम्भ करने के लिए पुन: केन्द्रीय समाज कल्याण बोर्ड को बधाई देता हूं। मैं, वर्ष 2005, 2006 और 2007 के लिए प्रतिष्ठित दुर्गाबाई देशमुख पुरस्कार के चारों विजेताओं को बधाई देता हूं और उनके भावी प्रयासों की सफलता की कामना करता हूं।