1. सर्वप्रथम मैं कुलाध्यक्ष पुरस्कार2017- जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय जिसकी घोषणा सर्वोत्तम विद्यालय के रूप में की गई है,के विजेताओं; और हिमाचल प्रदेश,बनारस हिंदू विश्वविद्यालय और तेजपुर विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों जिन्हें नवोन्वेषण और अनुसंधान की श्रेणियों में पुरस्कृत किया गया है,को बधाई देता हूं। आज दिए गए सम्मान उन्हें एकाग्र समर्पण और कड़ी मेहनत के लिए दी गई मान्यता है। उनके उत्कृष्टता के अनुसरण में एक ओर यह पहचान उन्हें निष्पादन के उच्चतर स्तर के लिए प्रेरणा देती है अैर दूसरी ओर मानव विदेश के वृहद क्षेत्र में अनुसंधान करने के लिए केंद्रीय विश्वविद्यालय प्रणाली में।
देवियो और सज्जनो,
2. भारतीय उच्चतर शिक्षा प्रणाली के परिणामों की गुणवत्ता के बारे में बहुत कुछ कहा गया है। अनेक लोगों ने तर्क दिया है कि पिछले कुछ वर्षों में वृहद विस्तार के परिणामों के रूप में स्तर में गिरावट आई है तथापि अनेकों ने तर्क दिया है कि उच्चतर शिक्षा प्रदान करने ेमें बढ़ती युवा आबादी के संदर्भ में हमारी क्षमता को बढ़ाना अति आवश्यक है।250 मिलियन युवा लोग- जो कि देश की कुल आबादी का पांचवा हिस्सा है-15 से 24वर्ष की आयु के है। उच्चतर शिक्षा प्रणाली पर यह दायित्व है कि वह उनकी आकांक्षाओं को पूरा करे और उनकी विद्वता क्षमता को कुशल बनाए। मैं निःसंदेह बड़ी पहुंच और बेहतर गुणवत्ता के बीच अथवा उच्चतर साम्यता और बेहतर स्तर के बीच कोई विरोधाभास नहीं देखता। यह पूर्णतः संभव है कि मात्रा और गुणवत्ता की विशेषताओं को उसी दिशा में एक ही समय पर आगे बढ़ाया जाए।
मित्रो,
3. विश्व स्तरीय संस्थानों की अवधारणाओं ने नीति-निर्धारकों,शिक्षकों और अकादमिक विशेषज्ञों का ध्यान देर से अपनी ओर आकृष्ट किया। न्यायपीठ भी अब अभी जानना चाहता है कि एक विश्व स्तरीय संस्थान के गठन के लिए किन अवयवों की आवश्यकता है और क्या ऐसे संस्थानों की कुछ विशेषताएं एक क्षेत्र और एक अर्थव्यवस्था के संदर्भ में विशिष्ट हो सकती हैं। लेकिन किसी भी विश्व स्तरीय संस्थान को नाम देने के लिए कुछेक प्रमुख गुणों का होना अनिवार्य है। मैं उनमें से कुछ का वर्णन करना चाहूंगाः
(क) मेधावी छात्रों और संकाय की संख्यात्मक उपस्थितिः यह एकाएक नहीं होता क्योंकि संस्थानों को प्रतिभाशाली व्यक्तियों का पुल तैयार करने से पहले परिपक्वता की एक डिग्री हासिल करनी होती है। इस संबंध में हमारे बुहत से हाल ही के अनेक श्रेष्ठ संस्थान आरंभ में समस्या का सामना कर सकते हैं, परंतु नीति उत्प्रेरक उनकी मदद कर सकते हैं। ग्लोबल इनिशिएटिव्स ऑफ अकादमिक नेटवर्क (ज्ञान) कार्यक्रम के अंतर्गत लगभग780 विदेशी संकाय विशेषज्ञों ने भारतीय संस्थानों में पढ़ाने के लिए अपने आपको पंजीकृत किया है। हम यहां उभरते हुए अवसरों की खोज के लिए अपनी मातृभूमि की ओर विदेशों में कार्य कर रहे भारतीयों को आकर्षित करने के लिए एक अनुकूल आर्थिक वातावरण ढूंढ रहे हैं। इस ब्रेन ड्रेन का उपयोग करने के लिए हमारे संस्थान अच्छा कार्य कर रहे हैं।
(ख) भौतिक अवसंरचना और शैक्षिक संसाधनों के प्रोत्साहन के लिए वित्तीय संसाधन की पर्याप्तताः रिसर्च सुविधाओं की स्थापना के लिए औद्योगिक परियोजनाओं,पदों के प्रायोजन और संबंधों जैसे नवोन्वेष प्रणाली के लिए सरकारी वित्त पोषण से परे संस्थानों को देखना पड़ता है।
(ग) एक शासन मॉडल जो संस्थानों को महत्वपूर्ण विश्लेषण और सही मीमांसा की पद्धति लागू करने समय परिवर्तन के लिए जल्द क्रिया करता हैः ऐसी प्रणाली को सशक्त संस्थागत अग्रणियों की आवश्यकता है जो संस्थानों की कल्पना के संचालन में सभी प्रकार के सहयोग और प्रतिबद्धताओं की सूची तैयार करता है। यह अकादमिक अग्रणियों के संवर्ग निर्मित करने के भी मांग कर सकता है जो छात्रों और शिक्षकों के बीच अनुसरणशीलता को प्रेरित कर सकता है। शासन अवसंरचना में ड्राफ्टिंग पूर्व छात्र और उद्योग विशेषज्ञ भी अकादमिक वातावरण में एक नया दृष्टिकोण दे सकते हैं।
(घ) एक पारितंत्र जो अनुसंधान और नवोन्वेष का समर्थन करता हैः हमारे संस्थानों के लिए एक चुनौति अनुसंधान के लिए शिक्षा के बाद होशियार छात्रों को रोकने की भी रही है। कुछ अच्छे छात्र या तो निगम सरकारी और अन्य क्षेत्रों में प्रवेश के लिए औपचारिक शिक्षा छोड़ देते हैं या अथवा विदेशों में विश्वविद्यालयों में उच्चतर डिग्री प्राप्त करने के लिए चले जाते हैं। इस प्रवृत्ति को रोकने के लिए हमें अपनी शिक्षा प्रणाली में व्यापक परिवर्तन करने होंगे। सभी स्तरों पर हमारे संस्थानों में शिक्षा शास्त्र को रचनात्मक सोच,नयी सीख और वैज्ञानिक जांच को प्रोत्साहन देना पड़ता है। एक वातावरण जहां पूछताछ आधारित परियोजना कार्य द्वारा लर्निंग मॉड्यूल्य की पूर्ति की जाती है,आवश्यक हों। यह छात्रों में अनुसंधान करने और नवान्वेष करने के लिए रुचि पैदा करेगा। यदि हमारे पास सर्वोत्तम अनुसंधान प्रयोगशालाएं,टाइ अप्स और उद्योग के साथ संबंध और विदेशी संस्थानों के साथ सहयोग द्वारा पूरित मेधावी अनुसंधानकर्ताओं का एक बड़ा पुल हो और एक आकर्षक प्रतिपूर्ति प्रणाली हो तो हमारे संस्थान और अधिक आधुनिकतम अनुसंधान में शामिल हो सकता है।
मित्रो,
4.अनुसंधान कार्यकलापों के क्षेत्रों को हमारे देश के विकासात्मक चुनौतियों से जुड़ना होगा। हमारे विश्वविद्यालय के सर्वोत्तम मस्तिष्कों को मैं आपको सफाई,परिवहन, मलजल निपटान,नई स्वच्छता प्रणाली, स्वास्थ्य लाभ,सूखा रोधक कृषि जैसे क्षेत्रों में समाधानों में कार्य करने के लिए लगाना होगा। उन्हें ऐसे नए ज्ञान को ऐसे नवान्वेषी परिणामों में भी बदलने के लिए बदलना होगा जो आम आबादी के लिए प्रत्यक्ष रूप से लाभकारी हों। नवोन्मेषी मस्तिष्कों को औजारों और हथियार तैयार करने होंगे जो किसानों, कर्मचारियों,शिल्पकारों और बुनकरों की गरीबी को कम कर सकें। अनुसंधान और नवोन्वेष के सफल परिणामों के लिए सबसे अच्छा बैरोमीटर यह होना चाहिए कि आबादी के एक बड़े भाग के लिए लाभदायक प्रयोग होना चाहिए।
5.मुझे खुशी है कि नवोन्वेष और अनुसंधान दोनों के लिए पुरस्कार विजेता इन मानदंडों को पर्याप्त रूप से पूरा कर सकते हैं। डॉ. दीपक पंत बेकार प्लास्टिक को एलपीजी में सीधे परिवर्तित करने वाले रिक्टर के पास जमीनी सतर पर ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति करने और वातावरण के संरक्षण की पर्याप्त क्षमता है। भारतीय कालाजार के निदान और उपचार में डॉ. श्याम सुंदर की शानदार अनुसंधान में आबादी के स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधार निहित है। प्रोेफेसर निरंजन कारक के अग्रणी कार्य के विज्ञान के क्षेत्र में वृहद प्रयोग है। विशेषकर संसाधन संरक्षण के संदर्भ में यह जानना खुशी की बात है कि हमारे केंद्रीय विश्वविद्यालयों में इस प्रकार की अच्छी गुणवत्ता अनुसंधान के नवोन्वेष को स्थान प्राप्त है।
देवियो और सज्जनोः
6.जेएनयू को अकादमिक उत्कृष्टता में निरंतर अनुसरण के लिए सर्वोत्तम विश्वविद्यालय के रूप में घोषित किया गया है। इसने छात्रों और संकाय की गुणवत्ता,संकाय प्रशिक्षण, अनुशंसा-पत्र,प्रकाशन, अनुसंधान परियोजनाओं,विदेशी सहयोग, सेमिनार और नवोन्वेष प्रदर्शनों जैसे सभी प्रमुख मानदंडों में उत्कृष्ट निष्पादन दर्शाया है। मैं विश्वविद्यालय से इस अच्छे कार्य को बनाए रखने के लिए आग्रह करता हूं।
7.अनेक केंद्रीय विश्वविद्यालय जो हाल ही में गठित किए गए हैं,की गणना तत्काल उच्च सम्मान के लिए नहीं की जा सकती। परंतु उन्हें गंभीरता से रैंकिंग में भागीदारी आरंभ करनी चाहिए। इससे वैश्विक सर्वोत्तम अभ्यास के साथ-साथ शैक्षिक प्रबंधन के लिए फ्रेमवर्क भी हासिल होगा। नये विश्वविद्यालयों को सफलतापूर्वक अपरिपक्व या शुरुअती समस्याओं का समाधान करन होगा। संस्थान निर्माण पर केंद्रीत स्वस्थ प्रबंधन पर एक कुंजी है। आज जारी की गई पुस्तक जिसमें18 पूर्व कुलपतियों की स्मृति है। हमारे वर्तमान अकादमिक अग्रणियों को कीमती पाठ पढाएंगे। पंडित जवाहरलाल नेहरु के ये शब्द अवश्य याद रखें,किसी महान कार्य में निष्ठा और कुशल कार्य चाहे इसकी एकदम पहचान न हो सके,में अंततः हल अवश्य रहता है।
8.अंत में मैं एक बार फिर से पुरस्कार विजेताओं को बधाई देता हूं। मैं उम्मीद करता हूं कुलाध्यक्ष पुरस्कार केंदीय विश्वविद्यालयों और अकादमिक समुदायों को लगातार उत्कृष्टता की दिशा में कार्य करने के लिए प्रेरित करता रहेगा। मैं आप सबको आपके परिश्रम के लिए ढेर सारी शुभकामनाएं देता हूं।
धन्यवाद,
जयहिंद ।