होम >> अभिभाषण >> अभिभाषण विस्तार

केन्द्रीय जांच ब्यूरो द्वारा आयोजित 14वें डी.पी. कोहली स्मारक व्याख्यान के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण

विज्ञान भवन, नई दिल्ली : 06.04.2013



केन्द्रीय जांच ब्यूरो के स्वर्ण जयंती समारोह में आप सभी के बीच उपस्थित होना मेरे लिए वास्तव में सौभाग्य की बात है। मुझे स्वर्गीय धर्मनाथ प्रसाद कोहली, जो केन्द्रीय जांच ब्यूरो के दूरदर्शी संस्थापक निदेशक थे, के 14वें स्मारक व्याख्यान देने का अवसर प्राप्त करके विशेष रूप से प्रसन्नता हुई है।

भारतीय सिविल सेवा के एक प्रख्यात सदस्य स्वर्गीय श्री कोहली ने इस संगठन को स्वरूप और पहचान देने में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने इस संगठन में तीन प्रमुख मूल्यों परिश्रम, निष्पक्षता और ईमानदारी का समावेश किया। केन्द्रीय जांच ब्यूरो द्वारा पिछले दशकों के दौरान अर्जित प्रतिष्ठा, उनकी और उनके बाद आए सभी निदेशकों की विशिष्ट सेवाओं स्पष्ट प्रतीक है, जिन्होंने इस विशिष्ट संगठन को सशक्त करने में अपना-अपना योगदान दिया है।

देवियो और सज्जनो, केन्द्रीय जांच ब्यूरो ने 14वें डी.पी. कोहली स्मारक व्याख्यान के विषय के रूप में ‘सुशासन’ का चुनाव उचित ही किया है। मेरे विचार से इससे अधिक उपयुक्त विषय और कोई नहीं हो सकता।

सुशासन शब्द लगभग दो दशक पूर्व विकास के शब्दकोश में आया था। इस अवधारणा ने, सामाजिक कल्याण और जनहित के साथ इसके अभिन्न संबंधों के बढ़ते महत्त्व के कारण, आज पहले से कहीं अधिक महत्त्व और प्रासंगिकता प्राप्त कर ली है। यह विकास के दर्शन में एक प्रमुख अवधारणा बन चुका है। उनके द्वारा स्थापित सुशासन की गुणवत्ता के आधार पर ही आज देशों का मूल्यांकन किया जाता है। कल्याणकारी राज्य की अवधारणा ने बहुत पहले ही पुलिस राज्य की अवधारणा का स्थान ले लिया था।

समाज की बहुत सी गंभीर खामियों के मूल कारण के रूप में सुशासन के अभाव को माना गया है। इससे नागरिकों की सुरक्षा, उनके सामाजिक और आर्थिक अधिकार छिन जाते हैं।

यद्यपि सुशासन शब्द की कोई सर्वागीण परिभाषा नहीं है परंतु इसका निहित आशय और विचार व्यापक हैं। इसमें वास्तव में मानवीय संपर्क के सभी पहलू शामिल हैं। यह स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी प्रासंगिक है।

समाज में प्रत्येक संगठन की, सुशासन को प्रोत्साहित करने में एक निर्णायक भूमिका है। ये भूमिकाएं, प्रत्येक समाज द्वारा विकसित ढांचे और संस्थानों के आकार पर निर्भर करते हुए अलग-अलग हो सकती हैं।

सुशासन मुख्य रूप से कुछ बुनियादी पूर्व-शर्तों की मौजूदगी पर निर्भर है। विधि के शासन का अलंघनीय अनुपालन इसके केन्द्र में है और इसी से भागीदारीपूर्ण निर्णय ढांचा, पारदर्शिता, संवेदनात्मकता, जवाबदेही, समता और समावेशिता की प्रमुख जरूरत का उद्भव होता है।

संक्षेप में, सुशासन का अर्थ है एक ऐसा व्यापक ढांचा जिसमें जनहित मुख्य हो। सुशासन द्वारा लोगों को खुशहाली प्राप्त करने के लिए एक अनुकूल और सहायक माहौल पैदा किया जाना चाहिए। जैसा कि कौटिल्य ने अपने प्राचीन ग्रंथ ‘अर्थशास्त्र’ में बल दिया है, ‘‘लोगों की खुशहाली ही शासक की खुशहाली है; उनके हित में ही उसका हित है, उसका व्यक्तिगत हित उसका सच्चा हित नहीं है; लोगों की वास्तविक भलाई ही सच्ची भलाई है: इसलिए राजा को अपनी प्रजा की समृद्धि और कल्याण के लिए कार्य करना चाहिए’’।

महात्मा गांधी की एक सुदृढ़ और समृद्ध भारत की संकल्पना में अथवा पूर्ण स्वराज के समग्र कार्यान्वयन में सुशासन के महत्त्वपूर्ण तत्त्व शामिल हैं जिनसे इसका आधार निर्मित होता है। इसकी सार्वभौमिक प्रासंगिकता पर बल देते हुए पंडित जवाहर लाल नेहरू ने कहा था, ‘‘महात्मा ने वंचित और निर्धनों पर बल देते हुए हम सभी को सामाजिक न्याय पर विचार करने के लिए विवश कर दिया’’।

सुशासन के ये प्रमुख सिद्धांत हमारे संस्थापकों द्वारा संविधान में शामिल किए गए थे। एक कल्याणकारी राष्ट्र की स्थापना के उद्देश्य को इसमें अभिव्यक्ति मिली। हमारे संविधान में उन मूल्यों का उल्लेख किया गया है जो हमारे देश की शासन व्यवस्था में प्रमुख होने चाहिए।

देवियो और सज्जनो, हम अपनी स्वतंत्रता के 66 वर्ष के बाद अपनी शासन व्यवस्था का आकलन कैसे करें? इसमें कोई संदेह नहीं है कि हमने विकास के सभी प्रमुख क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण प्रगति की है।

प्रथम पंचवर्षीय योजना अवधि के दौरान, 3.5 प्रतिशत वार्षिक विकास की तुलना में, हमने ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना अवधि के दौरान प्रतिवर्ष 8 प्रतिशत की विकास दर हासिल की है। 1960 के दशक की हरित क्रांति से हमारा देश अनाज के मामले में आत्मनिर्भर हो गया। हमने गरीबी की मात्रा भी कम की है। आज भारत क्रय शक्ति समता के लिहाज से विश्व की तीसरी विशालतम अर्थव्यवस्था है।

हम, निश्चित रूप से इन उपलब्धियों पर गर्व कर सकते हैं। परंतु यह भी सच है कि अभी बहुत कुछ किया जाना शेष है। हमारी सुशासन प्रणाली के सामने मौजूद चुनौतियां कुछ महत्त्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय विश्लेषणों में प्रदर्शित हुई हैं जो मुख्य रूप से सामाजिक सूचकांक पर निर्भर हैं। अभिव्यक्ति एवं जवाबदेही, राजनीतिक स्थिरता तथा हिंसा का अभाव, सरकार की कारगरता, नियामक गुणवत्ता, विधि का शासन और भ्रष्टाचार नियंत्रण जैसे प्रमुख शासन संकेतकों के मामले में भारत का स्थान ब्राजील, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, यूके और अमरीका से नीचे है।

हम रूपांतर के मोड़ पर हैं और बदलाव की गति में रूकावट का जोखिम नहीं उठा सकते। हमारे सम्मुख अनेक चुनौतियां हैं और हमें उनका संकल्प और विश्वास के साथ सामना करना है। और, इन सबके मूल में शासन का मुद्दा है।

हमने सुशासन के अनेक क्षेत्रों में उल्लेखनीय प्रगति की है। कुछ में, हमारी उपलब्धियां दूसरों से अधिक हैं। हमारे सहभागितापूर्ण निर्णय ढांचे को बेहतर बनाने, विधि के शासन के प्रयोग को सुधारने, पारदर्शिता बढ़ाने, जवाबदेही में वृद्धि करने, अपेक्षाकृत अधिक समता और समावेशिता प्रोत्साहित करने तथा सहमति आधारित नज़रिए को बढ़ाने की अभी बहुत गुंजायश है। संक्षेप में, मैं कुछ क्षेत्रों पर प्रकाश डालना चाहूंगा।

गरीबी की मात्रा अभी भी लगभग 30 प्रतिशत है और हमें इसे दूर करना होगा। यदि हम समाज के उपेक्षित वर्ग का उत्थान न कर सकें तो आर्थिक प्रगति के आंकड़ों का कोई फायदा नहीं है। इसलिए हमारी प्रगति समावेशी और सतत् होनी चाहिए।

देवियो और सज्जनो, समावेशिता के लिए शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी प्रमुख आवश्यकताओं तक समान पहुंच जरूरी है। हमारे प्रयासों का लक्ष्य समस्त जनसंख्या को शिक्षित बनाना होना चाहिए। मुझे विश्वास है कि शिक्षा के क्षेत्र में सर्वशिक्षा अभियान, मध्याह्न आहार योजना तथा राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान जैसी अग्रणी स्कीमों से हमारी बहुत सी समस्याओं का समाधान होगा।

वहनीय स्वास्थ्य देखभाल हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। हमारे देश के बहुत से लोग चिकित्सा उपचार की ऊंची लागत के कारण गरीब हो रहे हैं। यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन की सफलता से लाभ उठाते हुए, ग्रामीण मिशन और नए शहरी मिशन को मिलाकर 21000 करोड़ रुपए का बजट परिव्यय के साथ 2013-14 में एक नए राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की परिकल्पना की गई है। स्वस्थ जनसंख्या में ही राष्ट्र निर्माण में अपेक्षाकृत अधिक योगदान करने की क्षमता होती है।

आज, हमारे बदलते विकास नमूने में एक अन्य महत्तवपूर्ण कारक भी दिखाई देता है। नया नारा हकदारी के माध्यम से सशक्तीकरण है जिसे कानून का सहारा प्राप्त हो। हमने अपनी विकास प्रक्रिया के लिए अधिकार आधारित दृष्टिकोण अपनाया है। शिक्षा, रोजगार और खाद्य सुरक्षा का अधिकार इस विकास कार्यनीति का आधार हैं। मैं कामना करता हूं कि यह विकास कार्यनीति पूर्णत: कार्यान्वित हो।

हमारे उपेक्षित वर्गों को सशक्त बनाने के लिए, हमने उन्हें रोजगार और शिक्षा का अधिकार दिया है। हमने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम, 2005 तथा शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 जैसे कानून लागू किए। लोगों को खाद्य सुरक्षा प्रदान करने का कानून लागू करने की प्रक्रिया भी पूरी होने वाली है।

‘आधार’ परियोजना प्रत्येक निवासी को एक विशिष्ट पहचान संख्या प्रदान करेगी। इससे हमारे, विशेषकर गरीब और जरूरतमंद, नागरिकों को आसानी से अनेक लाभ और सेवाएं अधिक कुशलता के साथ मिलेंगी। जनवरी, 2013 में आरंभ की गई ‘प्रत्यक्ष लाभ अंतरण’ योजना में आधार प्रणाली के सहयोग से अधिक पारदर्शिता आएगी तथा लेन-देन लागत में कमी होगी।

देवियो और सज्जनो, हमारी वितरण प्रणालियों को दुरुस्त करना होगा और केवल सुशासन से इस समस्या का हल हो सकता है। यदि गरीब व्यक्ति के लिए लाभ तक उसकी पूरी पहुंच नहीं हो रही है तो इसके दो प्रमुख कारण भ्रष्टाचार और अक्षमता हैं।

भ्रष्टाचार हमारे देश के लोकतांत्रिक ताने-बाने के लिए खतरा है। यह सभी नागरिकों में समानता पैदा करने के प्रयासों को नुकसान पहुंचाता है। मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि हाल ही में शासन में और अधिक पारदर्शिता लाने की हमारी प्रतिबद्धता को दृढ़ करने के लिए अनेक कदम उठाए गए हैं। उठाए गए कुछ कदमों में 2011 में भ्रष्टाचार के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र समझौते की पुष्टि, 2010 से वित्तीय कार्रवाई कार्यबल की सदस्यता, विदेशी लोक अधिकारियों तथा अंतरराष्ट्रीय लोक संगठनों के अधिकारियों की रिश्वत खोरी निवारण बिल 2011 की शुरुआत तथा भारतीय दंड संहिता में संशोधन द्वारा निजी क्षेत्र में घूसखोरी को दांडिक अपराध बनाने के प्रस्ताव संबंधी पहलें शामिल हैं।

खराब शासन के मूल में, चाहे वह योजना का कार्यान्वयन या मूल्यों का अनुपालन हो, बदलाव के प्रति हमारी सुस्ती है। मुझे आपको यह याद नहीं दिलाना होगा कि किस प्रकार एक परिश्रमी राष्ट्र की प्रतीक एक युवती की गत वर्ष दिसंबर में भारत में एक क्रूर हमले में जान चले जाने से राष्ट्र कितना आहत हुआ था। जो मैं पहले भी कर चुका हूं, उसे मैं दोहराता चाहूंगा और मेरा मानना है कि अपनी नैतिक दिशा को फिर से निर्धारित करने का यही समय है।

पुलिस और जांच संगठन सामाजिक बदलाव का माहौल पैदा करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। एक सतर्क पुलिस बल और जांच एजेंसी यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि कोई भी अपराध दण्डित हुए बिना न रहे। आरोपों की तीव्र और पूर्ण जांच सुनिश्चित करना जरूरी है। अभियोजन भी तेजी से होना चाहिए ताकि दोषी को बिना विलम्ब के दण्ड दिया जा सके। इससे दण्ड का निवारक महत्त्व बढ़ेगा। इससे संवेदनात्मकता भी बढ़ेगी जो सुशासन की एक सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता है।

अंत में, मैं दोहराना चाहूंगा कि सुशासन हमारा एक अविचल लक्ष्य होना चाहिए। यह सतत् विकास, समावेशिता और आर्थिक प्रगति की कुंजी है। इसलिए, हमें इस महान उद्देश्य की प्राप्ति के लिए फिर से स्वयं को समर्पित करना होगा।

मैं, सभी पदक विजेताओं और उनके परिवार के सदस्यों को बधाई देता हूं, मुझे विश्वास है कि वे निष्ठा, कार्यकौशल और दूरदर्शिता के साथ राष्ट्र की सेवा करते रहेंगे। मैं, केन्द्रीय जांच ब्यूरो के उनके भावी प्रयासों में सफल होने की कामना करता हूं।

मैं, केन्द्रीय जांच ब्यूरो के सभी पूर्व और वर्तमान अधिकारियों व कर्मचारियों को बधाई देता हूं जिनके अथक प्रयासों और एकाग्र निष्ठा ने इसे न केवल देश की एक श्रेष्ठ और संभवत: समाज के प्रत्येक वर्ग द्वारा जांच की सबसे अपेक्षित एजेंसी बना दिया है। इससे संगठन की विश्वसनीयता का पता चलता है।

धन्यवाद,

जय हिंद।