मैं, सबसे पहले भारतीय नौसेना और महादेई के कप्तान को, अकेले, बिना रुके, बाहरी सहायता रहित, पूरे विश्व की नौ परिक्रमा, सागर परिक्रमा-II के सफलतापूर्वक पूर्ण होने पर बधाई देता हूं। विश्व के कुछ सबसे जोखिम भरे महासागरों में अकेले, बिना सहायता के समुद्र में निरंतर 150 दिन से अधिक लम्बी समुद्री यात्रा करना एक असाधारण कार्य है। पहली बार एक भारतीय समुद्री यात्री की यह दुर्लभ उपलब्धि, एक व्यक्ति और संगठन, जिसका वह प्रतिनिधित्व करते हैं, के संकल्प, दृढ़ निश्चय और साहस को प्रदर्शित करती है।
शारीरिक रूप से दुष्कर कार्य होने के अलावा, एकल नौपरिसंचालन के लिए नौसंचालन मौसमविज्ञान और नौका रखरखाव की विषद जानकारी का होना जरूरी है। नौवाहक न केवल तूफानी समुद्र द्वारा इधर-उधर धकेल दिया जाता है बल्कि उसे दुनियादारी से दूर एकाकीपन और समुद्र में अनजानी घटनाओं का सामना करना पड़ता है। 9-10 मीटर ऊंची लहरों तथा अंटार्कटिक की ठण्ड सहित 100 किलोमीटर प्रतिघंटा से ज्यादा की रफ्तार वाली हवाओं से संघर्ष करना मानवीय सहनशक्ति की कठिन परीक्षा हो सकती है। अकेलापन ही इतना अधिक होता है कि नजदीकी भूमि से हजारों किलोमीटर दूर होने के कारण यदि कुछ अनहोनी हो जाए तो किसी मदद या बचाव की कोई गुंजायश नहीं होती है। तीन अंतरीपों केप लियूविन, केप हॉर्न और केप ऑफ गुड हॉप को पार करने के लिए अदम्य साहस, दृढ़ निश्चय और संकल्प की जरूरत होती है।
मुझे विश्वास है कि लेफ्टिनेंट कमांडर अभिलाष टॉमी युवा समुद्री यात्रियों की भावी पीढ़ी के लिए एक प्रेरणा स्रोत बने रहेंगे। उनकी दुर्लभ समुद्री यात्रा ने हमारे राष्ट्र को उन चुनिंदा देशों की श्रेणी में स्थान दिलाया है जिनके नागरिक ऐसी दुर्गम समुद्री यात्रा पूरी करने में सफल रहे हैं। मैं, लेफ्टिनेंट कमांडर अभिलाष टॉमी के माता-पिता तथा परियोजना के मार्गदर्शक वाइस एडमिरल (सेवानिवृत्त) एम.पी. अवाती को बधाई देता हूं। मैं, श्री रत्नाकर दांडेकर जिन्होंने भारत में ऐसी शानदार नौका का निर्माण किया है, को भी बधाई देता हूं।
मुझे बताया गया है कि अभियान ने मीडिया को बहुत आकर्षित किया है और युवाओं के बीच समुद्री यात्रा तथा समुद्री साहसिक कार्य करने का उत्साह पैदा किया है। मुझे यह भी जानकारी दी गई है कि ब्लॉग और फेसबुक पर कप्तान की इंटरनेट पोस्ट को सभी आयु के प्रशंसकों द्वारा उत्साह के साथ पढ़ा जाता है।
एक राष्ट्र की सामाजिक और आर्थिक खुशहाली, न केवल व्यापार बल्कि समुद्र में सुरक्षा के प्रति पैदा होने वाले खतरों से निपटने के मामले में भी समुद्र के साथ जुड़ी हुई है। गैर राष्ट्रीय तत्वों के जरिए समुद्र में आतंकवाद का प्रायोजन समूचे राष्ट्र के लिए चिंता का विषय है। ऐतिहासिक रूप से भारत सदैव शांति के लिए प्रतिबद्ध रहा है। शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के प्रति हमारी प्रतिबद्धता कमजोरी पर नहीं बल्कि इस परिपक्व समझ पर आधारित है कि शांति के जरिए ही कोई राष्ट्र अपने सामाजिक और आर्थिक विकास के उद्देश्यों को हासिल कर सकता है। तथापि, शांति ऐसी ताकत से ही प्राप्त की जा सकती है जो हमारी क्षेत्रीय संप्रभुता तथा आर्थिक और सामाजिक समुद्री हितों की रक्षा करने के लिए पर्याप्त हो।
निरंतर उच्च विकास प्राप्त करने का हमारा संकल्प तभी पूरा हो सकता है जब हमारी समुद्री सीमाएं और परिसंपत्तियां सुरक्षित, स्थिर हों और सहायक के रूप में काम करें। भारत की समुद्री शक्ति के प्रमुख तत्व के रूप में, भारतीय नौसेना के सम्मुख देश के समुद्रवर्ती हितों की रक्षा का चुनौतीपूर्ण कार्य है। हमारे देश की सुरक्षा में, नौसेना एक अग्रणी भूमिका निभाती है। यह वास्तव में गौरव का विषय है कि भारतीय नौसेना समुद्र में मैत्री और सद्भावना के सेतु निर्मित करने के साथ-साथ पेशेवर उत्कृष्टता और कौशल से अपने दायित्वों का निभा रही है। इस संबंध में सफेद वर्दी में हमारे पुरुष और महिलाओं की नि:स्वार्थ सेवा, निष्ठा और कार्य कौशल वास्तव में सराहनीय है।
मैं, भारतीय नौसेना के सभी वर्दीधारी पुरुषों, महिलाओं, उनके परिवारों और असैन्य कर्मियों को अपनी शुभकामनाएं देता हूं और उनके सभी प्रयासों के सफल होने की कामना करता हूं।
जय हिंद!