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राष्ट्रीय भूविज्ञान पुरस्कार- 2013 प्रदान करने के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण

राष्ट्रपति भवन ऑडिटोरियम : 06.04.2015



1.मुझे आज की शाम राष्ट्रीय भू-विज्ञान पुरस्कार 2013 प्रदान करने के लिए आपके बीच उपस्थित होकर वास्तव में खुशी हो रही है। सबसे पहले मैं इस अवसर पर इन पुरस्कार विजेताओं को बधाई देना चाहूंगा जिन्होंने अपने प्रेरणादायक तथा समर्पित प्रयासों के द्वारा हमारे देश में भू-विज्ञानों के विकास में योगदान दिया है।

2.ये पुरस्कार 1966 में राष्ट्रीय खनिज पुरस्कार के रूप में,मौलिक/अनुपयुक्त भूविज्ञानों, खनन तथा संबद्ध क्षेत्रों में असाधारण उपलब्धियों के लिए व्यक्तियों और वैज्ञानिकों की टीमों को सम्मानित करने के उद्देश्य से किए गए थे। बाद में इन पुरस्कारों का विस्तार करके इनमें भू-विज्ञान विकास के नए तथा प्रासंगिक क्षेत्रों को शामिल किया गया। इसे भू-विज्ञानों में अनुसंधान को और प्रोत्साहन देने के लिए राष्ट्रीय भू-विज्ञान पुरस्कारों के रूप में विस्तार किया गया। मैं खान मंत्रालय को इस पहल के लिए बधाई देता हूं। यह देखकर प्रसन्नता होती है कि ये प्रख्यात पुरस्कार न केवल आजीवन उपलब्धियों को मान्यता प्रदान करते हैं वरन् युवा अनुसंधानकर्ताओं के विशिष्ट प्रयासों पर भी ध्यान देते हैं।

देवियो और सज्जनो,

3. भू-विज्ञान, विज्ञान की वह व्यापक शाखा है जो हमारे पृथ्वी ग्रह से संबंधित है। पृथ्वी को प्रकृति का सर्वाधिक महत्वपूर्ण नजारा बनाने वाले बहुत से कारक हैं। भूविज्ञान का अध्ययन प्रकृति की विभिन्न शक्तियों की पारस्परिक संबद्धता का पता लगाने में मनुष्य को सक्षम करता है। यह महत्वपूर्ण विज्ञान शाखा हमें पृथ्वी की उत्पत्ति तथा उसकी ऊर्जस्विता,समुद्र, भूकंप, ज्वालामुखी,नदी प्रणालियों आदि के रहस्यों का उद्घाटन करने में सहायता देती है। यह हमें इस ग्रह पर जीवन के उद्विकास के बारे में बढ़ती समझ की दिशा में भी योगदान देता है।

4.भू-विज्ञान एक प्राचीन विद्या है। सदियों से इसने मानवीय सभ्यताओं और उनके संक्रमण की दिशा का निर्धारण किया है। इस वैज्ञानिक क्षेत्र के तहत हुई खोजों ने प्रस्तर युग,ताम्र युग, कॉस्य युग तथा लौह युग को दिशा दी है। हाल ही के वर्षों में इसने आधुनिक औद्योगिक विश्व की आधारशिला - चाहे वह अंतरिक्ष यान हो या विमान,सेलफोन हो या कंप्यूटर, परमाणु अस्त्र हो या प्रक्षेपास्त्र प्रणाली रखने में सहायता दी है। भू-वैज्ञानिक अनुसंधान से प्राप्त निष्कर्षों ने वैज्ञानिक प्रगति में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

देवियो और सज्जनो,

5. भारत ने अपनी अनोखी भू-वैज्ञानिक विविधताओं के चलते भूविज्ञानों के उद्विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हमारे देश में उन्नीसवीं सदी के अंत तथा बीसवीं सदी की शुरुआत के दौरान गोंडवानालैंड,चार्नोकाइट्स,कार्बोनेटाइट्स, टैक्टोनिक्स, भूकंप तथा कच्चा खनिज भंडार पर जो संकल्पनाएं विकसित की गई वे इस व्यापक विद्या के विकास में उपयोगी सिद्ध हुई।1990के दशक के भारत की एक विशिष्ट उपलब्धि चट्टानों के अध्ययन के लिए पहली बार पेट्रोलॉजिकल माइक्रोस्कोप की शुरुआत रही है।

6.भारत के पास भूगर्भविज्ञान अनुसंधान कार्य की एक समृद्ध विरासत है।1851में स्थापित, भारतीय भूगर्भ विज्ञान सर्वेक्षण दुनिया का अपनी तरह का यह दूसरा ऐसा संगठन है। धीरे-धीरे इसने भूविज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में ज्ञान का बड़ा भंडार विकसित कर लिया है। इसने एक मेधावी भू-वैज्ञानिकों के एक बड़े पूल को तैयार करने में सहयोग दिया है जिन्होंने विशाल हिमालय श्रृंखला से लेकर समुद्रों के तल,तपते रेगिस्तानों,समुद्र, वन क्षेत्रों, जमे हुए आर्कटिक क्षेत्रों तक विभिन्न क्षेत्रों में अमिट छाप छोड़ी है। इस प्रमुख संगठन ने बहुत से शिक्षा संगठनों,अनुसंधान संस्थानों तथा खोज एजेंसियों को जन्म दिया है। मुझे अपने देश के विभिन्न संस्थानों और संगठनों में अनुसंधान एवं विकास की परंपरा को कायम रखने तथा उसे आगे प्रोत्साहित होते देखकर खुशी हो रही है।

देवियो और सज्जनो,

7.भारत के खनिज तथा खनन सेक्टर के समक्ष हमारी अर्थव्यवस्था की विकास क्षमता को सतत् बनाए रखने की अग्नि परीक्षा है। हमारे खनिज भंडार भूवैज्ञानिकों के लिए चुनौती तथा अवसर दोनों ही हैं। सरकार इस क्षेत्र में अनुसंधान तथा विकास को बढ़ावा देने के प्रति कृतसंकल्प हैं। भू-वैज्ञानिकों को इन बहुमूल्य खनिज संसाधनों के विकास,संरक्षण तथा वृद्धि के लिए एक कारगर कार्य योजना तैयार करनी चाहिए। उन्हें हमारे देश में सतत् विकास की प्राप्ति के लिए तथा इसके साथ ही समाज की चिंताओं के समाधान के लिए नवान्वेषी युक्तियां सुझानी चाहिएं।

8.पारिस्थिकीय हृस तथा जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव पूरी दुनिया के सामने प्रमुख चिंता बनकर उभरे हैं। पृथ्वी का कोई भी कोना आज पर्यावरण के विनाश के खतरे से अछूता नहीं है। हमारे देश को भी पिछले दिनों बहुत सी प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ा है। इनके कारण जन-धन की बहुत हानि हुई है। इनमें से बहुत सी आपदाओं का कारण प्राकृतिक संतुलन से मानवीय छेड़छाड़ को माना गया है। पर्यावरणीय खतरों को कम करने तथा इस तरह की आपदाओं के प्रति अधिक सहनशक्ति सुनिश्चित करने के लिए भू-वैज्ञानिक समुदाय को आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में और अधिक वस्तुनिष्ठ अनुसंधान की जरूरत है।

देवियो और सज्जनो,

9.हमारे भू-वैज्ञानिक संगठनों और अन्य संस्थाओं ने पिछले कुछ दशकों के दौरान विश्लेषात्मक तथा उपकरण अवसंरचना पर भारी निवेश किया है। इन उपकरणों का उचित प्रयोग करते हुए हमारे वैज्ञानिकों को भू-विज्ञान को भावी रूप प्रदान करने लिए महत्वपूर्ण परिणाम देने होंगे। आठवीं सदी के जेम्स हट्टन जिन्हें आधुनिक भूगर्भ विज्ञान का जनक माना जाता है,ने कहा था, ‘‘विज्ञान के मामलों में उत्सुकता का शमन आलस्य को नहीं वरन् नई इच्छाओं को जन्म देता है।’’मुझे विश्वास है कि हमारे भू-वैज्ञानिक अपने समर्पण तथा उत्साह के द्वारा सभी कठिनाइयों का सामना करते हुए सफलता प्राप्त करेंगे।

10.मैं एक बार पुन: पुरस्कार विजेता वैज्ञानिकों को बधाई देता हूं तथा उम्मीद करता हूं कि वे दूसरे लोगों के लिए उत्कृष्टता के मानकों को स्थापित करने के अपने प्रयासों को जारी रखेंगे। इन्हीं शब्दों के साथ मैं अपनी बात समाप्त करता हूं।

धन्यवाद!

जयहिन्द