भारत के संविधान के अनुच्छेद 51 पर विश्व के मुख्य न्यायाधीशों के अंतराष्ट्रीय सम्मेलन के प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए भारत के राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण
नई दिल्ली : 06.12.2012
राष्ट्रपति भवन में सिटी मांटेसरी स्कूल द्वारा लखनऊ में आयोजित विश्व के मुख्य न्यायाधीशों के 13वें अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में आए हुए प्रख्यात न्यायाधीशों और न्यायविदों का स्वागत करते हुए मुझे बहुत खुशी हो रही है। मुझे दुनिया भर की विभिन्न
विधिक परंपराओं के न्यायविदों से मिलकर और उनसे बातचीत करके बहुत खुशी हो रही है।
यह बहुत प्रसन्नता की बात है कि 53 वर्ष पहले स्थापित सिटी मांटेसरी स्कूल द्वारा पिछले 13 वर्षों से इस तरह के सम्मेलनों के आयोजन की पहल की जा रही है।
इस सम्मेलन का विषय है ‘भारत के संविधान का अनुच्छेद 51’। अनुच्छेद 51 में प्रावधान है कि राज्य अंतरराष्ट्रीय शांति तथा सुरक्षा को बढ़ावा देने का प्रयास करेगा, देशों के बीच न्यायपूर्ण तथा सम्मानजनक रिश्ते कायम करने तथा अंतरराष्ट्रीय कानूनों के प्रति सम्मान जगाने और अंतरराष्ट्रीय विवादों के मध्यस्थता द्वारा समाधान को प्रोत्साहित करेगा। अनुच्छेद 51 के प्रतिपादन से कुछ ही वर्ष पूर्व, भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ के घोषणा पत्र पर विचार-विमर्श और उसको अंगीकार करने की कार्यवाही में भाग लिया था। इसलिए अनुच्छेद 51 में संयुक्त राष्ट्र संघ के घोषणा पत्र की भाषा की छाप नजर आती है।
अंतरराष्ट्रीय शांति तथा सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए, देशों के बीच न्यायपूर्ण तथा सम्मानजनक रिश्ते कायम करना तथा अंतरराष्ट्रीय कानून के प्रति सम्मान का समावेश करना पहली शर्त है। भारतीय संविधान में अनुच्छेद 51 एक ऐसा विशिष्ट प्रावधान है जिसमें सरकार को अन्य राष्ट्रों के साथ अच्छे तथा मैत्रीपूर्ण संबंध बनाने के लिए प्रयास करने का दायित्व सौंपा गया है। यह संविधानिक निर्देश सदैव भारत की विदेश नीति का केंद्रीय तत्त्व रहा है।
अनुच्छेद 51 के तहत अंतरराष्ट्रीय कानून तथा भारत द्वारा की गई संधियों और करारों को देश में विशेष दर्जा प्रदान किया गया है। यह भारत के संविधान तथा भारतीय कानून व्यवस्था में अंतरराष्ट्रीय कानून को दिए जाने वाले उच्च सम्मान तथा हमारे संविधान निर्माताओं की वैश्विक दृष्टिकोण का प्रतीक है। विभिन्न अंतरराष्ट्रीय लिखतों, विशेषकर मानवाधिकार की सार्वभौमिक घोषणा तथा मौलिक अधिकारों के निर्वचन में राजनीतिक एवं सिविल अधिकारों तथा आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों संबंधी दो प्रतिज्ञापत्रों को पारित करने तथा उनका कार्यन्वयन करने में इस अनुच्छेद का सहारा लिया गया है। भारत के न्यायालयों ने यह माना है कि इस अनुच्छेद के अधिकार से अंतरराष्ट्रीय लिखत, खासकर भारत जिनका पक्षकार है, भारत के कानून का हिस्सा हो जाते हैं, बशर्ते वह भारतीय कानूनों से असंगत न हों। अंतरराष्ट्रीय लिखतों का सहारा लिया जा सकता है और उन्हें लागू किया जा सकता है।
मौजूदा विश्व में अंतरराष्ट्रीय कानूनों के महत्व को कम करके नहीं आंका जा सकता। संयुक्त राष्ट्र संघ के घोषणा पत्र में कुछ मूलभूत सिद्धांत—जैसे कि राज्यों की संप्रभुतात्मक समानता, शक्ति के प्रयोग की मनाही तथा मूलभूत मानवाधिकारों की रक्षा, जिनका सभी देशों द्वारा पालन किया जाता है, प्राय: खतरे में रहते हैं या फिर उनका उल्लंघन होता है। अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद, सामूहिक विनाश के हथियारों का प्रसार, बहु-देशीय अपराध, नशीली दवाओं की अवैध तस्करी, मानव तस्करी तथा अवैध पैसे का कारोबार जैसी कुछ अन्य चुनौतियां है। वैश्विक तापन और जलवायु परिवर्तन, भ्रष्टाचार, निर्धनता तथा स्वास्थ्य सुविधा जैसी भी कुछ अन्य प्रमुख समस्याएं है जिनका समाधान जरूरी है।
यह जरूरी है कि राज्य कानून के शासन के प्रति और संयुक्त राष्ट्र संघ के घोषणा पत्र, न्याय तथा शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के सिद्धांतों सहित, अंतरराष्ट्रीय कानून के सम्मान पर आधारित विश्व व्यवस्था के सद्भावना के साथ अनुपालन के प्रति वचनबद्धता दोहराएं। आप जैसे न्यायविदों पर राज्यों को इस बात के लिए बाध्य करने का महत्त्वपूर्ण दायित्व है कि वे कानून के शासन का पालन करें और उसके प्रति जनता का समर्थन जुटाएं।
विश्व का कोई भी देश अंतरराष्ट्रीय कानून के मूलभूत सिद्धांतों की अवहेलना करने का जोखिम नहीं उठा सकता क्योंकि एक न्यायपूर्ण विश्व व्यवस्था केवल अंतरराष्ट्रीय कानून व्यवस्था को अपनाने से ही संभव है। आज अंतरराष्ट्रीय कानून मानव जीवन के हर पहलू को छूता है। तेज प्रौद्योगिकीय विकास के कारण दुनिया सिकुड़ गयी है। इसके कारण पर्यावरण के क्षरण, आतंकवाद, अंतरराष्ट्रीय व्यापार, मानवाधिकार तथा राष्ट्रीय क्षेत्राधिकार से बाहर के संसाधनों के उपयोग संबंधी समस्याओं के समाधान के लिए सामान्य नजरिया विकसित करने तथा अंतरराष्ट्रीय नियमों की जरूरत हुई है। बढ़ते वैश्विकरण तथा एक दूसरे पर निर्भरता के कारण राज्यों को न केवल अपने नागरिकों के लिए भोजन, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और आवास की बेहतर उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए वरन् उनको अपराध, हिंसा तथा आक्रमण से बचाने और कानून के तहत स्वतंत्रता का ऐसा ढांचा उपलब्ध कराने के लिए एक दूसरे से सहयोग और मिल-जुलकर प्रयास करने होंगे जिससे व्यक्ति को समृद्धि प्राप्त हो सके तथा समाज का विकास हो सके।
विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने के नाते, भारत लोकतांत्रिक मूल्यों तथा प्रक्रियाओं को बढ़ावा देने में विश्वास रखता है। हमने लगातार प्रमुख वैश्विक समस्याओं के समाधान के लिए तथा अंतरराष्ट्रीय सहकारिता और सहयोग बढ़ाने के लिए एक महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया है। भारत अपने बच्चों के लिए विश्व को सुरक्षित बनाने तथा गरीबी खत्म करने के लिए अपने साझीदारों के साथ मिलकर प्रयास करने के लिए प्रतिबद्ध है, जिससे हर-एक को अपनी क्षमता का उपयोग करने की सुविधा और विकल्प प्राप्त हो सके। भारत का यह भी मानना है कि लोकतंत्र की रक्षा, आर्थिक प्रगति, सतत् विकास, लैंगिक न्याय सुनिश्चित करने, गरीबी और भूख मिटाने तथा मानवाधिकारों और मूलभूत स्वतंत्रता की रक्षा करने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कानून के शासन को बढ़ावा दिया जाना एक जरूरी उपाय है।
मुझे इस बात की जानकारी है कि आप विश्व सरकार की स्थापना के विषय पर भी चर्चा कर रहे हैं। ऐसी सरकार एक बहुत दूर की आदर्श परिकल्पना है। परंतु आज हमारे पास संयुक्त राष्ट्र संघ है। विश्व के सभी देशों और नागरिकों को संयुक्त राष्ट्र संघ को समर्थन देने और उसे मजबूत करने का अधिकाधिक प्रयास करना चाहिए।
संयुक्त राष्ट्र संघ का संस्थापक सदस्य होने के नाते, भारत संयुक्त राष्ट्र संघ के घोषणा पत्र में निहित इसके उद्देश्यों और सिद्धांतों का समर्थन करता है। भारत ने घोषणा पत्र के उद्देश्यों के क्रियान्वयन तथा संयुक्त राष्ट्र संघ के विशेषज्ञ कार्यक्रमों एवं एजेंसियों के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
भारत ने आतंकवाद रोधी, सामूहिक विनाश के हथियारों की गैर सरकारी व्यक्तियों तक पहुंच पर रोक, तथा संयुक्त राष्ट्र शांति-रक्षण, शांति-प्रोत्साहन प्रयासों के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग को जुटाने के लिए प्रयास किया है। सोमालिया के तट के पास समुद्र में लुटेरों द्वारा अंतरराष्ट्रीय समुद्री व्यापार तथा सुरक्षा को होने वाली गंभीर चुनौती को देखते हुए भारत ने इन लुटेरों के खिलाफ समन्वित अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा दिया है।
कांगो गणराज्य, लेबनान, गोलान पहाड़ियों, लइबेरिया, कोट डि आइवरी, साइप्रस, ईस्ट तिमोर, हैती और दक्षिण सूडान सहित पूरी दुनिया में कुल मिलाकर 10 शांति रक्षक मिशनों में 8000 से अधिक सैनिकों के साथ, भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा सैनिक भेजने वाला देश है।
पिछले कई दशकों के दौरान, भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ से और अधिक सक्रिय भूमिका निभाने तथा एक ऐसी समतापूर्ण विश्व-व्यवस्था और आर्थिक परिवेश कायम करने के लिए आग्रह किया है जो कि विकासशील देशों में तीव्र गति से आर्थिक प्रगति और विकास के लिए उपयुक्त हो। नई वैश्विक प्रणाली के संदर्भ में भारत ने सक्रिय रूप से संयुक्त राष्ट्र से यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया है कि विकासशील देश इन प्रक्रियाओं का समतापूर्ण ढंग से लाभ उठा सकें।
खासकर, भारत ने विकासशील देशों को अधिकृत विकास सहायता में बढ़ोत्तरी की जरूरत—विशेषकर विकसित देशों से अधिकृत विकास सहायता को उनकी सकल राष्ट्रीय आय का 0.7 प्रतिशत तक बढ़ाने—विकासशील देशों को प्रौद्योगिकी का हस्तांतरण करने, व्यापार की अधिक समतापूर्ण शर्तें, विकसित देशों में औद्योगिकीकरण कृषि विकास तथा खाद्य सुरक्षा में तेजी लाने पर भी जोर दिया है।
भारत संयुक्त राष्ट्र के सुधार और पुनर्संरचना की ठोस हिमायत करता है जिससे यह अपने सदस्यों की नई जरूरतों का अधिक कारगर ढंग से जवाब दे सके। वस्तुनिष्ठ सच्चाइयां संयुक्त राष्ट्र में संपूर्ण तथा वास्तविक सुधार की जरूरत की ओर इशारा करती है : यह संगठन छह दशक पुराना है; घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर होने के बाद से इसके लगभग चार गुणा सदस्य बढ़ चुके हैं; और आज का विश्व 1945 के विश्व से बहुत अलग है। 21वीं सदी की राजनीतिक, आर्थिक सामाजिक, पर्यावरणीय तथा जनसंख्यात्मक चुनौतियों की प्रकृति वैश्विक है तथा आज दुनिया मानव इतिहास के किसी भी समय के मुकाबले कहीं अधिक निकट से परस्पर जुड़ी हुई और परस्पर निर्भर है। इसके कारण संयुक्त राष्ट्र पर निर्भरता बढ़ी है क्योंकि यह राष्ट्रों के समुदाय के लिए अकेला लोकतांत्रिक, सार्वभौमिक मंच है। इसलिए संयुक्त राष्ट्र संघ के सुदृढ़ीकरण के लिए व्यापक सुधार जरूरी है। भारत का मानना है कि संयुक्त राष्ट्र संघ को, सदस्य देशों की, विशेषकर उन विकासशील देशों की जो कि इसकी सदस्यता का अधिकांश भाग हैं, जरूरतों एवं प्राथमिकताओं का ध्यान रखने में सक्षम होना चाहिए।
भारत का मानना है कि संयुक्त राष्ट्र में तब तक कोई भी सुधार पूर्ण नहीं होगा जब तक कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का विस्तार नहीं होता। यह जरूरी है कि सुरक्षा परिषद का विस्तार, स्थाई और अस्थाई दोनों श्रेणियों में किया जाए। एशिया, अफ्रीका तथा दक्षिण अमरीका से ऐसे विकासशील देशों को इसमें शामिल करने से, जो कि वैश्विक जिम्मेदारी निभाने में सक्षम हैं, विकासशील देशों की असुरक्षा के समाधान के लिए, अपेक्षित इष्टतम निर्णय लेने में सहायता मिलेगी।
जनसंख्या, क्षेत्रफल के आकार, सकल घरेलू उत्पादन, आर्थिक क्षमता, सभ्यतागत धरोहर, सांस्कृतिक विभिन्नता, राजनीतिक प्रणाली तथा पूर्व में और वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र की गतिविधियों में जारी सहयोग—विशेषकर संयुक्त राष्ट्र शांति-रक्षण अभियान, जैसे वस्तुनिष्ठ मानदंडों के आधार पर भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थाई सदस्यता का सबसे उपयुक्त पात्र है। भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थाई सदस्यता की जिम्मेदारियों को निभाने के लिए अपनी इच्छा और क्षमता दर्शाई है।
मैं सभी विशिष्ट प्रतिभागियों को, भारत आने के लिए अपना समय निकालने और प्रयास करने के लिए बधाई देता हूं। मैं सिटी मांटेसरी स्कूल को, विश्व शांति का संदेश फैलाने के अच्छे कार्य के लिए बधाई देता हूं तथा स्कूल को इस बात के लिए प्रोत्साहित करना चाहूंगा कि वे इस दिशा में, खासकर बच्चों और युवाओं को केंद्र में रखकर अपने प्रयास जारी रखें।
धन्यवाद,
जय हिंद!
यह बहुत प्रसन्नता की बात है कि 53 वर्ष पहले स्थापित सिटी मांटेसरी स्कूल द्वारा पिछले 13 वर्षों से इस तरह के सम्मेलनों के आयोजन की पहल की जा रही है।
इस सम्मेलन का विषय है ‘भारत के संविधान का अनुच्छेद 51’। अनुच्छेद 51 में प्रावधान है कि राज्य अंतरराष्ट्रीय शांति तथा सुरक्षा को बढ़ावा देने का प्रयास करेगा, देशों के बीच न्यायपूर्ण तथा सम्मानजनक रिश्ते कायम करने तथा अंतरराष्ट्रीय कानूनों के प्रति सम्मान जगाने और अंतरराष्ट्रीय विवादों के मध्यस्थता द्वारा समाधान को प्रोत्साहित करेगा। अनुच्छेद 51 के प्रतिपादन से कुछ ही वर्ष पूर्व, भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ के घोषणा पत्र पर विचार-विमर्श और उसको अंगीकार करने की कार्यवाही में भाग लिया था। इसलिए अनुच्छेद 51 में संयुक्त राष्ट्र संघ के घोषणा पत्र की भाषा की छाप नजर आती है।
अंतरराष्ट्रीय शांति तथा सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए, देशों के बीच न्यायपूर्ण तथा सम्मानजनक रिश्ते कायम करना तथा अंतरराष्ट्रीय कानून के प्रति सम्मान का समावेश करना पहली शर्त है। भारतीय संविधान में अनुच्छेद 51 एक ऐसा विशिष्ट प्रावधान है जिसमें सरकार को अन्य राष्ट्रों के साथ अच्छे तथा मैत्रीपूर्ण संबंध बनाने के लिए प्रयास करने का दायित्व सौंपा गया है। यह संविधानिक निर्देश सदैव भारत की विदेश नीति का केंद्रीय तत्त्व रहा है।
अनुच्छेद 51 के तहत अंतरराष्ट्रीय कानून तथा भारत द्वारा की गई संधियों और करारों को देश में विशेष दर्जा प्रदान किया गया है। यह भारत के संविधान तथा भारतीय कानून व्यवस्था में अंतरराष्ट्रीय कानून को दिए जाने वाले उच्च सम्मान तथा हमारे संविधान निर्माताओं की वैश्विक दृष्टिकोण का प्रतीक है। विभिन्न अंतरराष्ट्रीय लिखतों, विशेषकर मानवाधिकार की सार्वभौमिक घोषणा तथा मौलिक अधिकारों के निर्वचन में राजनीतिक एवं सिविल अधिकारों तथा आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों संबंधी दो प्रतिज्ञापत्रों को पारित करने तथा उनका कार्यन्वयन करने में इस अनुच्छेद का सहारा लिया गया है। भारत के न्यायालयों ने यह माना है कि इस अनुच्छेद के अधिकार से अंतरराष्ट्रीय लिखत, खासकर भारत जिनका पक्षकार है, भारत के कानून का हिस्सा हो जाते हैं, बशर्ते वह भारतीय कानूनों से असंगत न हों। अंतरराष्ट्रीय लिखतों का सहारा लिया जा सकता है और उन्हें लागू किया जा सकता है।
मौजूदा विश्व में अंतरराष्ट्रीय कानूनों के महत्व को कम करके नहीं आंका जा सकता। संयुक्त राष्ट्र संघ के घोषणा पत्र में कुछ मूलभूत सिद्धांत—जैसे कि राज्यों की संप्रभुतात्मक समानता, शक्ति के प्रयोग की मनाही तथा मूलभूत मानवाधिकारों की रक्षा, जिनका सभी देशों द्वारा पालन किया जाता है, प्राय: खतरे में रहते हैं या फिर उनका उल्लंघन होता है। अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद, सामूहिक विनाश के हथियारों का प्रसार, बहु-देशीय अपराध, नशीली दवाओं की अवैध तस्करी, मानव तस्करी तथा अवैध पैसे का कारोबार जैसी कुछ अन्य चुनौतियां है। वैश्विक तापन और जलवायु परिवर्तन, भ्रष्टाचार, निर्धनता तथा स्वास्थ्य सुविधा जैसी भी कुछ अन्य प्रमुख समस्याएं है जिनका समाधान जरूरी है।
यह जरूरी है कि राज्य कानून के शासन के प्रति और संयुक्त राष्ट्र संघ के घोषणा पत्र, न्याय तथा शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के सिद्धांतों सहित, अंतरराष्ट्रीय कानून के सम्मान पर आधारित विश्व व्यवस्था के सद्भावना के साथ अनुपालन के प्रति वचनबद्धता दोहराएं। आप जैसे न्यायविदों पर राज्यों को इस बात के लिए बाध्य करने का महत्त्वपूर्ण दायित्व है कि वे कानून के शासन का पालन करें और उसके प्रति जनता का समर्थन जुटाएं।
विश्व का कोई भी देश अंतरराष्ट्रीय कानून के मूलभूत सिद्धांतों की अवहेलना करने का जोखिम नहीं उठा सकता क्योंकि एक न्यायपूर्ण विश्व व्यवस्था केवल अंतरराष्ट्रीय कानून व्यवस्था को अपनाने से ही संभव है। आज अंतरराष्ट्रीय कानून मानव जीवन के हर पहलू को छूता है। तेज प्रौद्योगिकीय विकास के कारण दुनिया सिकुड़ गयी है। इसके कारण पर्यावरण के क्षरण, आतंकवाद, अंतरराष्ट्रीय व्यापार, मानवाधिकार तथा राष्ट्रीय क्षेत्राधिकार से बाहर के संसाधनों के उपयोग संबंधी समस्याओं के समाधान के लिए सामान्य नजरिया विकसित करने तथा अंतरराष्ट्रीय नियमों की जरूरत हुई है। बढ़ते वैश्विकरण तथा एक दूसरे पर निर्भरता के कारण राज्यों को न केवल अपने नागरिकों के लिए भोजन, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और आवास की बेहतर उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए वरन् उनको अपराध, हिंसा तथा आक्रमण से बचाने और कानून के तहत स्वतंत्रता का ऐसा ढांचा उपलब्ध कराने के लिए एक दूसरे से सहयोग और मिल-जुलकर प्रयास करने होंगे जिससे व्यक्ति को समृद्धि प्राप्त हो सके तथा समाज का विकास हो सके।
विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने के नाते, भारत लोकतांत्रिक मूल्यों तथा प्रक्रियाओं को बढ़ावा देने में विश्वास रखता है। हमने लगातार प्रमुख वैश्विक समस्याओं के समाधान के लिए तथा अंतरराष्ट्रीय सहकारिता और सहयोग बढ़ाने के लिए एक महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया है। भारत अपने बच्चों के लिए विश्व को सुरक्षित बनाने तथा गरीबी खत्म करने के लिए अपने साझीदारों के साथ मिलकर प्रयास करने के लिए प्रतिबद्ध है, जिससे हर-एक को अपनी क्षमता का उपयोग करने की सुविधा और विकल्प प्राप्त हो सके। भारत का यह भी मानना है कि लोकतंत्र की रक्षा, आर्थिक प्रगति, सतत् विकास, लैंगिक न्याय सुनिश्चित करने, गरीबी और भूख मिटाने तथा मानवाधिकारों और मूलभूत स्वतंत्रता की रक्षा करने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कानून के शासन को बढ़ावा दिया जाना एक जरूरी उपाय है।
मुझे इस बात की जानकारी है कि आप विश्व सरकार की स्थापना के विषय पर भी चर्चा कर रहे हैं। ऐसी सरकार एक बहुत दूर की आदर्श परिकल्पना है। परंतु आज हमारे पास संयुक्त राष्ट्र संघ है। विश्व के सभी देशों और नागरिकों को संयुक्त राष्ट्र संघ को समर्थन देने और उसे मजबूत करने का अधिकाधिक प्रयास करना चाहिए।
संयुक्त राष्ट्र संघ का संस्थापक सदस्य होने के नाते, भारत संयुक्त राष्ट्र संघ के घोषणा पत्र में निहित इसके उद्देश्यों और सिद्धांतों का समर्थन करता है। भारत ने घोषणा पत्र के उद्देश्यों के क्रियान्वयन तथा संयुक्त राष्ट्र संघ के विशेषज्ञ कार्यक्रमों एवं एजेंसियों के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
भारत ने आतंकवाद रोधी, सामूहिक विनाश के हथियारों की गैर सरकारी व्यक्तियों तक पहुंच पर रोक, तथा संयुक्त राष्ट्र शांति-रक्षण, शांति-प्रोत्साहन प्रयासों के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग को जुटाने के लिए प्रयास किया है। सोमालिया के तट के पास समुद्र में लुटेरों द्वारा अंतरराष्ट्रीय समुद्री व्यापार तथा सुरक्षा को होने वाली गंभीर चुनौती को देखते हुए भारत ने इन लुटेरों के खिलाफ समन्वित अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा दिया है।
कांगो गणराज्य, लेबनान, गोलान पहाड़ियों, लइबेरिया, कोट डि आइवरी, साइप्रस, ईस्ट तिमोर, हैती और दक्षिण सूडान सहित पूरी दुनिया में कुल मिलाकर 10 शांति रक्षक मिशनों में 8000 से अधिक सैनिकों के साथ, भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा सैनिक भेजने वाला देश है।
पिछले कई दशकों के दौरान, भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ से और अधिक सक्रिय भूमिका निभाने तथा एक ऐसी समतापूर्ण विश्व-व्यवस्था और आर्थिक परिवेश कायम करने के लिए आग्रह किया है जो कि विकासशील देशों में तीव्र गति से आर्थिक प्रगति और विकास के लिए उपयुक्त हो। नई वैश्विक प्रणाली के संदर्भ में भारत ने सक्रिय रूप से संयुक्त राष्ट्र से यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया है कि विकासशील देश इन प्रक्रियाओं का समतापूर्ण ढंग से लाभ उठा सकें।
खासकर, भारत ने विकासशील देशों को अधिकृत विकास सहायता में बढ़ोत्तरी की जरूरत—विशेषकर विकसित देशों से अधिकृत विकास सहायता को उनकी सकल राष्ट्रीय आय का 0.7 प्रतिशत तक बढ़ाने—विकासशील देशों को प्रौद्योगिकी का हस्तांतरण करने, व्यापार की अधिक समतापूर्ण शर्तें, विकसित देशों में औद्योगिकीकरण कृषि विकास तथा खाद्य सुरक्षा में तेजी लाने पर भी जोर दिया है।
भारत संयुक्त राष्ट्र के सुधार और पुनर्संरचना की ठोस हिमायत करता है जिससे यह अपने सदस्यों की नई जरूरतों का अधिक कारगर ढंग से जवाब दे सके। वस्तुनिष्ठ सच्चाइयां संयुक्त राष्ट्र में संपूर्ण तथा वास्तविक सुधार की जरूरत की ओर इशारा करती है : यह संगठन छह दशक पुराना है; घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर होने के बाद से इसके लगभग चार गुणा सदस्य बढ़ चुके हैं; और आज का विश्व 1945 के विश्व से बहुत अलग है। 21वीं सदी की राजनीतिक, आर्थिक सामाजिक, पर्यावरणीय तथा जनसंख्यात्मक चुनौतियों की प्रकृति वैश्विक है तथा आज दुनिया मानव इतिहास के किसी भी समय के मुकाबले कहीं अधिक निकट से परस्पर जुड़ी हुई और परस्पर निर्भर है। इसके कारण संयुक्त राष्ट्र पर निर्भरता बढ़ी है क्योंकि यह राष्ट्रों के समुदाय के लिए अकेला लोकतांत्रिक, सार्वभौमिक मंच है। इसलिए संयुक्त राष्ट्र संघ के सुदृढ़ीकरण के लिए व्यापक सुधार जरूरी है। भारत का मानना है कि संयुक्त राष्ट्र संघ को, सदस्य देशों की, विशेषकर उन विकासशील देशों की जो कि इसकी सदस्यता का अधिकांश भाग हैं, जरूरतों एवं प्राथमिकताओं का ध्यान रखने में सक्षम होना चाहिए।
भारत का मानना है कि संयुक्त राष्ट्र में तब तक कोई भी सुधार पूर्ण नहीं होगा जब तक कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का विस्तार नहीं होता। यह जरूरी है कि सुरक्षा परिषद का विस्तार, स्थाई और अस्थाई दोनों श्रेणियों में किया जाए। एशिया, अफ्रीका तथा दक्षिण अमरीका से ऐसे विकासशील देशों को इसमें शामिल करने से, जो कि वैश्विक जिम्मेदारी निभाने में सक्षम हैं, विकासशील देशों की असुरक्षा के समाधान के लिए, अपेक्षित इष्टतम निर्णय लेने में सहायता मिलेगी।
जनसंख्या, क्षेत्रफल के आकार, सकल घरेलू उत्पादन, आर्थिक क्षमता, सभ्यतागत धरोहर, सांस्कृतिक विभिन्नता, राजनीतिक प्रणाली तथा पूर्व में और वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र की गतिविधियों में जारी सहयोग—विशेषकर संयुक्त राष्ट्र शांति-रक्षण अभियान, जैसे वस्तुनिष्ठ मानदंडों के आधार पर भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थाई सदस्यता का सबसे उपयुक्त पात्र है। भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थाई सदस्यता की जिम्मेदारियों को निभाने के लिए अपनी इच्छा और क्षमता दर्शाई है।
मैं सभी विशिष्ट प्रतिभागियों को, भारत आने के लिए अपना समय निकालने और प्रयास करने के लिए बधाई देता हूं। मैं सिटी मांटेसरी स्कूल को, विश्व शांति का संदेश फैलाने के अच्छे कार्य के लिए बधाई देता हूं तथा स्कूल को इस बात के लिए प्रोत्साहित करना चाहूंगा कि वे इस दिशा में, खासकर बच्चों और युवाओं को केंद्र में रखकर अपने प्रयास जारी रखें।
धन्यवाद,
जय हिंद!