मुझे इस अवसर पर यहां उपस्थित होकर, राष्ट्रीय नवाचार फाउंडेशन के इस कार्यक्रम में शामिल होने पर बहुत खुशी हो रही है, जो कि जमीनी नवान्वेषकों की उपलब्धियों को मान्यता देने के लिए आयोजित किया जा रहा है। आरंभ में, मैं राष्ट्रीय नवाचार फाउंडेशन को बधाई देता हूं।
सामाजिक रूपांतरण की भारतीय कहानी धीरे-धीरे सामने आ रही है। नवाचार के इस दशक में हर एक सेक्टर में मौजूद समस्याओं के विवेकपूर्ण समाधान की जरूरत है।
पिछले एक दशक के दौरान, हजारों हनी बी नेटवर्क सदस्यों के योगदान से, राष्ट्रीय नवाचार फाउंडेशन ने जो उपलब्धि हासिल की है, वह काबिले तारीफ है। शोध यात्राओं, सामाजिक संबद्धता के लिए एक नया मुहावरा, के माध्यम से विभिन्न गांवों तक जमीनी स्तर पर पहुंच बनाई गई है। सृजनात्मक व्यक्तियों को उनके दरवाजे पर ही सम्मान प्रदान करने से यह संदेश जाता है कि देश को उन लोगों के समृद्ध ज्ञान की भी जरूरत है जो कि अन्यथा कम जाने-पहचाने जाते हैं।
मुझे विशेषकर इस बात की खुशी है कि 7वें द्विवार्षिक पुरस्कारों में देश के सभी हिस्सों से नवान्वेषक शामिल हैं। बच्चे भी हैं और बुजुर्ग भी। नि:संदेह, नवान्वेषी समाधानों की खोज किसी भी उम्र में हो सकती है लेकिन यदि हम कम उम्र में शुरुआत कर लें तो हम पूरे जीवन में अधिक प्रभाव डाल सकते हैं। मेरा सुझाव है कि राष्ट्रीय नवाचार फाउंडेशन, उन सृजनात्मक बच्चों के लिए कार्यशालाएं आयेजित करें जिन्हें प्रतिवर्ष सम्मानित किया जाता है ताकि उन्हें अपने जीवन में चुनौतियों को समझने और उनसे निपटने में सहायता मिल सके। उनकी सृजनात्मकता और कौतूहल का उपयोग बेहतर सामाजिक कल्याण के लिए किया जाना चाहिए। स्कूल और कॉलेज की पाठ्यपुस्तकों में भी जमीनी नवान्वेषकों और नवान्वेषक बच्चों के जीवन पर आधारित कुछ पाठ होने चाहिए।
जमीनी नवान्वेषकों के नजदीक, मूल्य शृंखला में बहुत सी कमजोर कड़ियों में सामुदायिक सृजन कार्यशालाओं और प्रयोगशालाओं का न होना एक बड़ी कमी है। राष्ट्रीय नवाचार फाउंडेशन ने, जम्मू-कश्मीर में एक तथा पूर्वोत्तर के राज्यों में सात सामुदायिक कार्यशालाओं सहित 13 राज्यों में जमीनी नवान्वेषकों के लिए बुनियादी सृजन सुविधाओं के रूप में जो 27 सामुदायिक कार्यशालाएं स्थापित की हैं, वह प्रशंसनीय हैं। किसी भी विचार को आदिरूप में अंतरित करना किसी भी उद्भवन चक्र का एक महत्त्वपूर्ण चरण होता है। जब किसी नवान्वेषक के घर के नजदीक ऐसी सृजनात्मक सहायता उपलब्ध हो तो उसकी आवागमन लागत में काफी कमी आएगी और इससे किसी विचार के वास्तविकता में बदलने में सहायता मिलेगी।
इस वर्ष नवाचारों को सम्मानित किए जाने के कई उदाहरण सामने हैं, जो कि इस बात का प्रतीक हैं कि नवान्वेषक, फलों और जड़ी-बूटियों के लिए बांस प्रसंस्करण मशीनों, तथा बहुउद्दशीय जड़ी-बूटी प्रसंस्करण मशीनों जैसी स्थानीय समस्याओं के मजबूत, किफायती तथा कारगर समाधान तैयार कर सकते हैं। उनसे न केवल नवान्वेषकों के लिए उद्यमिता की संभावनाएं बनती हैं वरन् वे उपभोक्ताओं के लिए टिकाऊ आजीविका विकल्प भी प्रदान करते हैं। विभिन्न विकासात्मक कार्यक्रमों के तहत, इस तरह के नवाचारों के क्षेत्र परीक्षण को बढ़ावा दिया जाना चाहिए, जिससे देश में आजीविका के अवसरों में वृद्धि होगी।
राष्ट्रीय नवाचार फाउंडेशन को जमीनी प्रौद्योगिकीय नवाचार अधिप्राप्ति निधि के तहत नवाचार तथा सामाजिक रूप से उपयोगी प्रौद्योगिकियों को हाथ में लेना चाहिए तथा उनके लिए कम मूल्य अथवा बिना मूल्य पर, देश के विभिन्न हिस्सों में उद्यमियों को लाइसेंस प्रदान करना चाहिए। यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि इनका लाभ यथाशीघ्र आम जनता को पहुंचे। सामाजिक रूप से उपयोगी प्रौद्योगिकियों को बिना अतिरिक्त लागत के प्रसार के लिए सामाजिक मीडिया का भी प्रयोग किया जा सकता है।
मैं यह मानता हूं कि जब तक जोखिमपूर्ण नवान्वेषी उद्यमों के शुरुआती चरण पर ही वित्तीय सहायता उपलब्ध नहीं होती, तब तक लाखों सृजनात्मक व्यक्तियों की आकांक्षाएं अपूर्ण रहेंगी। हमें यह मिल-जुलकर सुनिश्चित करना होगा कि समुचित सहायता के अभाव में कोई भी विचार बिना अवसर पाए न रह जाए। जब तक राष्ट्रीय नवाचार फाउंडेशन, दो से तीन हजार विचारों पर कार्य को हाथ में नहीं लेता तब तक यह संभव नहीं होगा कि वह उन कुछ सौ संभावित व्यवहार्य विचारों तक पहुंच पाए जो कि अंतत: बाजार तक पहुंचने के लिए, बीस से तीस खोजें दे सके। हमें यह सुनिश्चित करने के लिए मिल-जुलकर प्रयास करने होंगे कि सभी संभावित विचारों का वृहत्तर राष्ट्रीय हित में उपयोग किया जाए।
हाल ही में, केंद्रीय विश्वविद्यालयों के कुलपतियों से विचार-विमर्श करते हुए मैंने उन्हें सलाह दी कि वे हर विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय नवाचार क्लब की एक शाखा स्थापित करें। ये क्लब देश के आंतरिक हिस्सों में नवाचारों की खोज करें, उनका प्रचार करें, उनकी समस्याओं को समझें और पहचानें तथा बेहतरीन उपलब्धियों की प्रशंसा करें।
अकादमिक संस्थानों को हमारे समाज की सृजनात्मक क्षमताओं पर अधिक ध्यान देना चाहिए और जमीनी नवाचार का मूल्य संवर्धन करना चाहिए ताकि उनका वाणिज्यिक और सामाजिक प्रसार हो सके। इस तरह की साझीदारी को, युवाओं और उकने संकाय निर्देशकों की ऊर्जा को दिशा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी जिससे भारत एक सच्चा समावेशी समाज बन सके। औपचारिक तथा अनौपचारिक विज्ञान के बीच यह कड़ी न केवल इन जमीनी प्रौद्योगिकियों को व्यवहार्य उत्पादों के रूप में परिणत होने में सहायता देगी बल्कि दूसरे लोगों में भी प्रायोगिक संस्कृति पैदा करेगी।
विश्वविद्यालय, ऐसी सह-सृजनात्मक प्रयोगशालाएं स्थापित कर सकते हैं जहां युवा विद्यार्थी तथा नवान्वेषक मिल-जुलकर कार्य कर सकते हैं। देश के आंतरित हिस्सों से विभिन्न सृजनात्मक विचारों की छोटी सी प्रदर्शनी से युवा मस्तिष्कों को प्रेरणा मिलेगी और उन्हें निष्क्रियता से झकझोरेगी मुझे, इस बात की खुशी है कि भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद, वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद तथा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की विभिन्न प्रयोगशालाएं जमीनी नवाचार आंदोलन को सक्रिय रूप से सहयोग दे रही हैं। मैं निजी क्षेत्र का आह्वान करता हूं कि वे भी इस समावेशी नवाचार आंदोलन का सहयोग दें।
महिलाओं का ज्ञान, हमारे समाज को समावेशी बनाने के लिए अत्यंत महतवपूर्ण है। हमें औपचारिक प्रणाली की सहायता से, सामाजिक समस्याओं को सुलझाने की उनकी क्षमता को मानना होगा, पहचानना होगा तथा उसे बढ़ाना होगा। कृषि विकास को, इस पर निर्भर भारी जनसंख्या के जीवन स्तर में सुधार के लिए बढ़ावा देना होगा।
मैंने देखा है कि भारतीय नवाचार फाउंडेशन द्वारा मान्यता प्राप्त बड़ी संख्या में नवाचार, इस सेक्टर से हैं। यदि केंद्रीय तथा राज्य स्तर पर कृषि विभाग इन विचारों को साझा कर पाएं तो अन्य बहुत से किसानों, कारीगरों, मछुआरों तथा महिलाओं को परीक्षण करने का प्रोत्साहन मिलेगा। जनसामान्य अथवा विशिष्ट उपयोगों के लिए, लोगों के इन सृजनात्मक विचारों के प्रचार-प्रसार के लिए वैज्ञानिकों, प्रसार कर्मचारियों, लोक प्रशासकों को, पुरस्कृत किया जाना आवश्यक है।
जो लोग नवाचारों का प्रसार करते हैं, वे भी उन्हीं लोगों की तरह प्रशंसा के पात्र हैं जो उनका विकास करते हैं। मुझे बताया गया है कि भारतीय नवाचार फाउंडेशन ने ऐसे कर्मचारियों को भी साझीदार पुरस्कारों की सूची में शामिल किया है ताकि देश में स्वस्थ तथा आपस में सहयोगी नवाचार का माहौल सृजित हो सके। भारत संभवत: अकेला ऐसा देश है जहां जमीनी नवाचार राष्ट्रीय नवाचार प्रणाली का हिस्सा हैं। हमें अब लोकप्रशासन के सभी स्तरों पर नवाचार की संस्कृति स्थापित करनी होगी, जिससे भारतीय मेधा की लगातार अवहेलना की कहानी बीते दिनों की बात हो जाए। भविष्य में कोई भी सृजनात्मक आवाज अनसुनी न रहे, कोई भी नवान्वेषी मस्तिष्क बिना अवसर प्राप्त किए न रहे तथा संस्थागत रूपांतरण की कोई भी कहानी ऐसी न रह जाए जो हमारी नई पीढ़ी तक न पहुंची हो।
स्वामी विवेकानंद की 150वीं जन्म जयंती के मौके पर मैं युवाओं से आग्रह करूंगा कि वे भारत को सृजनात्मक, सहयोगात्मक तथा करुणायुक्त समाज बनाने के लिए खुद को पुन: समर्पित करें। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में इतनी तरक्की के बावजूद अभी बहुत सी समस्याएं अनसुलझी रह गई हैं, चाहे वह धान की रोपाई हो, चाय की पत्तियों की बिनाई हो, मोची के उपकरण हों, सिर पर मैला ढोने वाले हों। मुझे इस बात की खुशी है कि राष्ट्रीय नवाचार फाउंडेशन ने उन लोगों के लिए आकर्षक पुरस्कार घोषित किए हैं, जो इनके लिए नवान्वेषी तथा एकदम वहनीय समाधान प्रस्तुत कर सकें।
मैं नवान्वेषकों को उनके भावी प्रयासों के लिए शुभकामनाएं देता हूं तथा उम्मीद करता हूं कि वे अपने पर्यावरण पर दुष्प्रभाव डाले बिना, बेगारी कम करने, दक्षता बढ़ाने तथा जनता के जीवन स्तर में सुधार के लिए प्रयास करते रहेंगे।
जय हिंद!