1. इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय आदिवासी विश्वविद्यालय के प्रथम दीक्षांत समारोह में भाग लेने के लिए यहां आकर मुझे वास्तव में बहुत प्रसन्नता हो रही है। यह उन सभी प्रतिभावान विद्यार्थियों के लिए एक चिरप्रतीक्षित तथा गर्व का क्षण है जिन्होंने उपाधियां प्राप्त की हैं। मैं सभी स्नातकों तथा उन लोगों को जिन्होंने उल्लेखनीय कार्य के लिए पुरस्कार प्राप्त किए हैं तथा उन संकाय सदस्यों को बधाई और शुभकामनाएं देता हूं जिन्होंने उनको शिक्षा दी है।
2. वर्ष 2011 की जनसंख्या के अनुसार भारत की आदिवासी जनसंख्या 104 मिलियन है जो भारत की कुल जनसंख्या का 8.6 प्रतिशत है। वे भौगोलिक तथा सांस्कृतिक पृथकता तथा अपर्याप्त भौतिक अवसंरचना की समस्या से पीड़ित हैं। इसके परिणामस्वरूप, आदिवासी अर्थव्यवस्था में, संस्थागत वित्त सहित फंड की सार्थक रूप से खपत की क्षमता कम है। आदिवासी समुदायों को मातृ तथा बाल मृत्युदर, कृषि की जोतों के आकार तथा शिक्षा की उपलब्धता के मामले में सामान्य जनसंख्या से पिछड़ा हुआ पाया गया है।
3. भारत में अनुसूचित जनजातियों के लिए नीति को तैयार करते समय यह दुविधा होती है कि उनके जीवन स्तर में सुधार लाने के लिए मुख्य धारा की शिक्षा में तथा स्वास्थ्य सेवा तथा आय सर्जन में उनकी पहुंच सुनिश्चित करते हुए बहुत विशिष्ट तथा समृद्ध संस्कृति एवं मूल्यों से युक्त आदिवासी अस्मिता का संरक्षण कैसे किया जाए। इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय आदिवासी विश्वविद्यालय, आदिवासी समुदायों तक शिक्षा की बेहतर पहुंच की जरूरत को पूरा करने का एक महत्त्वपूर्ण माध्यम है। मुझे यह जानकर खुशी हो रही है कि इस विश्वविद्यालय में आरंभ से ही जनजातीय वर्ग के विद्यार्थियों की संख्या लगभग 46 प्रतिशत रही है। मुझे इस बात की भी प्रसन्नता है कि इन विद्यार्थियों में से लगभग 40 प्रतिशत लड़कियां हैं। मुझे यह जानकर खुशी हो रही है कि इस विश्वविद्यालय ने अपना क्षेत्रीय परिसर मणिपुर में खोला है जहां काफी संख्या में आदिवासी लोग रहते हैं। मुझे बताया गया है कि इस क्षेत्रीय केंद्र के स्नातक भी आज उपाधियां प्राप्त कर रहे हैं। यह तथ्य कि इस विश्वविद्यालय के शिक्षक भारत के 18 राज्यों से हैं, इसके राष्ट्रीय स्वरूप का प्रतीक है।
देवियो और सज्जनो,
4. लड़की को शिक्षित करना हमारे समाज को त्रस्त करने वाली बाल मृत्युदर, मातृ मृत्युदर, परिवार का स्वास्थ्य जैसी बहुत सी समस्याओं का सर्वोत्तम समाधान है। शिक्षित महिला न केवल अपने बच्चों को नैतिक शिक्षा प्रदान करेगी वरन् कुल मिलाकर समाज के नैतिक ताने-बाने को भी मजबूत करेगी। यदि बहुत ग्रहणीय उम्र से ही सही शिक्षा तथा नैतिक मूल्यों की शिक्षा दी जा सके तो हम संतुलित मन: स्थितियुक्त ऐसे व्यक्ति विकसित कर सकते हैं जो समाज को रचनात्मक ढंग से योगदान दे सकें।
5. शिक्षा सामाजिक-आर्थिक बदलाव लाने वाला सशक्त उपकरण है। महिलाओं और बच्चों के प्रति बढ़ते अपराधों को देखते हुए उनकी सुरक्षा, हिफाजत तथा उनकी सम्मान सुनिश्चित करने के लिए कारगर कदम उठाने की जरूरत है। इससे, हमारे समाज में मूल्यों के हृस को रोकने की जरूरत का भी पता चलता है। हमारे विश्वविद्यालयों को वर्तमान नैतिक चुनौतियें का सामना करने तथा यह सुनिश्चित करने में अग्रणी भूमिका निभानी चाहिए कि अपनी मातृभूमि से प्रेम; दायित्वों का निर्वाह; सभी के प्रति करुणा; बहुलवाद के प्रति सहिष्णुता; महिलाओं और बुजुर्गों का सम्मान; जीवन में सच्चाई और ईमानदारी; आचरण में अनुशासन और आत्मनियंत्रण; तथा कार्यों में जिम्मेदारी के हमारे सभ्यागत मूल्यों का युवाओं के मस्तिष्कों में अच्छी तरह समावेश हो।
देवियो और सज्जनो,
6. आदिवासी समुदायों की संपूर्ण जीवनशैली में प्रकृति से समरसता तथा उसका संरक्षण विद्यमान है। आदिवासी प्रकृति संरक्षण में अग्रणी रहे हैं तथा आदिवासियों और जंगलों के बीच मजबूत पारस्परिक लाभदायक संबंध रहे हैं। तथापि, जंगलों में परंपरागत वन जोतों के बारे में आदिवासियों के अधिकार प्राय: विवादों में आते रहे हैं।
7. खराब भू-अभिलेख प्रणाली के चलते निरक्षरता, निर्धनता तथा अज्ञानता के कारण देश के बहुत से हिस्सों में आदिवासियों के संसाधनों का गैर-आदिवासियों को हस्तांतरण हो चुका है। प्राकृतिक संसाधनों तक कम पहुंच के कारण आदिवासी निर्धनता की ओर बढ़ते हैं तथा इससे प्राय: उनकी स्थिति प्रवासी मजदूरों की हो जाती है। कई मामलों में विस्थापित आदिवासियों के अपर्याप्त पुनर्वास से उनके कष्टों में बढ़ोत्तरी होती है तथा वे संपत्ति तथा रोजगार से वंचित हो जाते हैं।
8. आदिवासी समुदायों का गैर-सशक्तीकरण, उनके विकास के लिए चलाए गए आर्थिक अथवा अन्य सभी प्रयासों में अपेक्षा से कम परिणाम प्राप्त होने का एक प्रमुख कारण है। आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा तथा उनके कल्याण को बढ़ावा देने के लिए राज्य तथा केंद्र सरकारों को सतत् और संकेंद्रित प्रयास करने की तत्काल आवश्यकता है। विकास का लाभ भारत के सबसे अधिक वंचित समुदायों तक पहुंचना चाहिए।
देवियो और सज्जनो,
9. मेरे विचार में, इस बात पर बहस करना, कि पहले विकास को रखा जाए या फिर सुरक्षा, निरर्थक है। दोनों को साथ-साथ रखना होगा। आदिवासी क्षेत्रों में हमारे नागरिकों की सुरक्षा और हिफाजत सुनिश्चित की जानी चाहिए। उन्हें राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में बराबर का भागीदार बनने के लिए सक्षम बनाया जाना चाहिए। इसी के साथ, संपूर्ण देश को यह स्पष्ट करना होगा कि हाल ही में छत्तीसगढ़ में वाहनों के काफिले पर आक्रमण जैसी घटनाओं को, जिसमें बहुत सी जानें गई, किसी भी तरह स्वीकार नहीं किया जा सकता। हमारी लोकतांत्रिक राजव्यवस्था में हिंसा का कोई स्थान नहीं है। हमारा देश, जनता को दहशतजदा करने के ऐसे प्रयासों से न तो भयभीत होगा न ही डरेगा। कृपया मुझे एक बार फिर से इस घटना में मृत लोगों के परिवारों के प्रति गहरी संवेदना प्रकट करने की तथा घटना में घायल लोगों की शीघ्र स्वस्थ होने की कामना करने की अनुमति दें।
देवियो और सज्जनो,
10. इस समय, जब देश एक साथ मिलकर आगे बढ़ रहा है। यह अत्यंत जरूरी है कि हम यह सुनिश्चित करें कि समाज के सभी वर्ग समावेशी और समतापूर्ण विकास में सहभागी और लाभभोगी बनें। भारत सरकार ने आदिवासी जनता के विकास के लिए कई उपाय शुरू किए हैं। इसने आदिवासी जनता को मुख्यधारा के जनता क साथ लाने के लिए तीव्र शैक्षणिक विकास पर जोर दिया है। सरकार ने आदिवासियों द्वारा बेहतर शिक्षा प्राप्त करने के उद्देश्य से छात्रवृत्ति, मुफ्त आवास एवं भोजन, मुफ्त वस्त्र, किताबें तथा स्टेशनरी आदि जैसी अवसंरचनाएं तथा अन्य प्रोत्साहन प्रदान करने के लिए अनुवर्ती पंचवर्षीय योजनाओं में काफी अधिक धनराशि का आबंटन किया है। परंतु आदिवासियों की सामाजिक तथा आर्थिक स्थिति में वांछित परिवर्तन की गति अभी धीमी है।
देवियो और सज्जनो,
11. शिक्षा, संभवत: मानव सशक्तीकरण तथा राष्ट्रीय प्रगति का सबसे महत्त्वपूर्ण साधन है। किसी भी देश का विकास प्रमुखत: उसकी आर्थिक स्थिति पर निर्भर होता है। उच्च आर्थिक प्रगति की हमारी कार्यनीति का लक्ष्य गरीबी हटाना तथा सभी के लिए विकास सुनिश्चित करना है। हमें अपनी जनता, खासकर सामाजिक-आर्थिक पिरामिड के सबसे निचले पायदान पर स्थित जनता के लिए, आर्थिक प्रगति को प्रासंगिक बनाना है। समतापूर्ण न्याय, जो कि लोकतांत्रिक राज-व्यवस्था का उच्चतर लक्ष्य है, को केवल अच्छी शिक्षा प्रणाली से ही पाया जा सकता है। भारत का जन संख्यिकीय ढांचा बदल रहा है और वर्ष 2025 तक एक तिहाई भारतीय कामकाजी उम्र में होंगे। हमें इस जनसंख्या का लाभ उठाना होगा, परंतु इसके लिए हमारे युवाओं को योग्य तथा प्रशिक्षित होना चाहिए ताकि वे राष्ट्रीय प्रगति में योगदान दे सकें। उन्हें गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा तथा व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान करके तैयार करना होगा।
12. हमारे उच्च शिक्षा सेक्टर को संख्या तथा गुणवत्ता दोनों में सुधार की जरूरत है। हमें अपने उच्च शिक्षा संस्थानों में शिक्षा प्रदान करने के तरीके में नवान्वेषी बदलाव लाने होंगे। उनमें उत्कृष्टता की संस्कृति का समावेश होना चाहिए। ई-क्लासरूम जैसे प्रौद्योगिकी मॉडलों का अधिक प्रयोग होना चाहिए, जिससे दूरी पर विजय पाते हुए, व्याख्यानों का दूर-दूर के क्षेत्रों तक प्रसार करके सूचना तथा ज्ञान को साझा किया जा सके। इससे संख्या, गुणवत्ता, सुगम्यता तथा संकाय की कमी की समस्या का समाधान हो सकता है।
13. हमारे देश में बहुत से स्थान ऐसे हैं जहां आस-पास कोई भी उच्च शिक्षा संस्थान नहीं है। इसके कारण तथा आर्थिक कठिनाइयों के चलते बहुत से मेधावी विद्यार्थी उच्च शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाते। इसके परिणाम चिंताजनक हैं। भारत में 18-24 आयु वर्ग में प्रवेश दर केवल 7 प्रतिशत है, जबकि इसकी तुलना में जर्मनी में 21 प्रतिशत तथा अमरीका में 34 प्रतिशत है। उच्च शिक्षा तक अधिक पहुंच, खासकर दूरवर्ती क्षेत्रों में, आज की जरूरत है। इसके लिए न केवल संस्थान स्थापित करने होंगे तथा मौजूदा संस्थानों की क्षमता में वृद्धि करनी होगी बल्कि प्रौद्योगिकीय समाधानों तथा छात्र सहायता कार्यक्रमों का अधिकाधिक प्रयोग करना होगा, जिससे यह आर्थिक रूप से पिछड़ी पृष्ठभूमि के मेधावी विद्यार्थियों के लिए वहनीय हो।
देवियो और सज्जनो,
14. हमारी पूर्व प्रधानमंत्री, स्वर्गीय श्रीमती इन्दिरा गांधी, जिनके नाम पर इस विश्वविद्यालय का रखा गया है, ने अपने प्रथम स्वतंत्रता दिवस व्याख्यान में समाज के निर्बल वर्ग, खासकर आदिवासियों पर प्रयास केंद्रित करने की जरूरत पर बल दिया था। मुझे विश्वास है कि यह विश्वविद्यालय उनके स्वप्न को पूर्ण करने का पूर्ण प्रयास रहेगा तथा आदिवासी जनता के लिए गुणवत्तायुक्त उच्च शिक्षा तथा अनुसंधान को मजबूत प्रोत्साहन देने और आदिवासी युवाओं को नई दिशा प्रदान करने के लिए हर संभव कदम उठाएगा। इस विश्वविद्यालय की शक्ति इसके विद्यार्थियों में निहित है। इसे उनकी शिक्षा, नैतिकता तथा वैयक्तिक विकास पर पर्याप्त निवेश करना चाहिए।
देवियो और सज्जनो,
15. मैं आपका ध्यान महात्मा गांधी की ओर आकर्षित करना चाहूंगा। उन्होंने कहा था, ‘‘साहित्य की शिक्षा का तब तक कोई मूल्य नहीं है जब तक यह मजबूत चरित्र का निर्माण करने में सफल न हो।’’ जैसे-जैसे आप जीवन में आगे बढ़ते हैं याद रखें कि शिक्षा और ज्ञान प्राप्ति की कोई सीमा नहीं है। सदैव खुले दिमाग से आगे बढ़ें और अपनी सीमाओं का विस्तार करें तथा नई ऊँचाइयों तक पहुंचें। यदि आप ईमानदारी और समर्पण से, काम करेंगे तथा आंतरिक धैर्य को धारण करें तो किसी भी चुनौती का समाधान संभव है। मैं आप सभी को जीवन और जीविकोपार्जन के लिए शुभकामनाएं देता हूं। मैं इस अवसर पर प्रबंधन को तथा उन सभी भागीदारों को बधाई देता हूं जिन्होंने इस विश्वविद्यालय को स्थापित किया है।
धन्यवाद,
जय हिन्द!