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राष्ट्रीय रियल एस्टेट विकास परिषद के राष्ट्रीय सम्मेलन के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण

विज्ञान भवन, नई दिल्ली : 07.12.2012



मुझे आज राष्ट्रीय रियल एस्टेट विकास परिषद के 11वें राष्ट्रीय सम्मेलन में आप सभी के बीच उपस्थित होकर बहुत खुशी हो रही है। यह बैठक वास्तव में महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह हमारे देश की आम जनता के लिए सतत् आवास के लिए कार्य योजनाओं तथा रोड मैपों पर चर्चा करेगी जो कि इन बुनियादी जरूरतों की अधिक कमी का सामना कर रहे हैं।

आवासीय सेक्टर पर दबाव के चलते आने वाले दशकों में उत्तरी क्षेत्र में बड़ी तेजी से शहरीकरण होने की संभावना है। वर्ष 2011 में खत्म होने वाले दशक में 32 प्रतिशत के लगभग बढ़ोतरी के बाद वर्ष 2030 तक शहरी जनसंख्या के 600 मिलियन तक पहुंचने की संभावना है और इस शताब्दी में विश्व की अधिकांश जनसंख्या शहरों में रहने लगेगी।

विकासशील देशों में शहरीकरण को रोकना संभव नहीं है, खासकर भारत में जो कि विश्व की सबसे तेजी से प्रगतिशील अर्थव्यवस्था है। यही कारण है कि जिन देशों में अर्थव्यवस्था तेजी से प्रगति करती है, उनका शहरीकरण तेजी से होता है। इसके लिए, सामग्री तक बेहतर पहुंच, उपभोक्ताओं की अधिक संख्या, जानकारी के द्वारा बेहतर नेटवर्किंग के अवसर, कुशल कार्मिक तथा वैश्वीकरण के कारण औद्योगिक एवं सेवा सेक्टरों का शहरों अथवा उसके आसपास के इलाकों में क्रेद्रित होना जैसे कारक उत्तरदायी हैं।

ये सभी कारक बहुत से लोगों को रोजगार के नए अवसरों की तलाश में शहरों की ओर प्रस्थान करने के लिए प्रोत्साहित करेंगे। शहरी क्षेत्रों में आर्थिक क्रियाकलापों के केंद्रित होने से, इन केंद्रों का प्रमुख स्थलों अथवा आर्थिक प्रगति के केंद्रों के रूप में महत्त्व बढ़ जाता है। परिणामस्वरूप, भारत की सकल घरेलू उत्पादन में शहरी क्षेत्रों का योगदान इस शताब्दी के मध्य तक 75-80 प्रतिशत तक पहुंचने का अनुमान है। इसलिए, इस माहौल से उत्पन्न चुनौतियों का प्रबंधन न केवल देश की आर्थिक समृद्धि के लिए बल्कि सामाजिक दृष्टिकोण से भी महत्त्वपूर्ण है।

शहरीकरण के प्रबंधन और उसका लाभ उठाने के लिए यह जरूरी है कि हम इन ‘शहरी क्षेत्रों’ में मकान, सड़क, पानी, बिजली, मलजल निकासी, स्वच्छता, परिवहन, शिक्षा तथा स्वास्थ्य सुविधा जैसे बुनियादी शहरी अवसरंचना में उपलब्ध कराएं। हमारे यहां कई बड़े शहर हैं जैसे मुंबई, दिल्ली, चैन्नै और कोलकाता। इस तरह की घनी आबादी की उपेक्षा शहरी अव्यवस्था में बदल सकती है और इसके परिणामस्वरूप आर्थिक प्रगति और कानून तथा व्यवस्था पैदा हो सकती है।

इसलिए हमें शहरी शासन, योजना तथा वित्तीय व्यवस्था पर जोर देना होगा। ऐसे द्वितीयक शहरों और कस्बों के विकास की संभावनाएं तलाशना भी जरूरी है जहां सरकार द्वारा अवसंरचनात्मक सुविधाएं प्रदान करने की सहायक भूमिका के द्वारा निजी निवेशकों को प्रोत्साहित करके घनी आबादी से कुछ लोगों को यहां स्थानांतरित किया जा सके।

सरकार ने शहरी सेक्टर की चुनौतियों के समाधन के लिए कई उपाय किए हैं। शहरी अवसंरचना के विकास के लिए तथा शहरी गरीबों के लिए बुनियादी सुविधाओं की व्यवस्था के लिए भारत सरकार द्वारा 2005 में शुरू किया गया जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण मिशन इसी प्रकार का एक प्रयास है। इससे कुछ परिणाम प्राप्त हुए हैं परंतु सार्वजनिक निजी भागीदारी मॉडल के तहत निजी सेक्टर के साथ साझीदारी स्कीमों में तालमेल बिठाने के लिए अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। केवल सरकारी स्कीमों से ही समस्या का समाधान नहीं हो सकता और निजी सेक्टर, जिसे सुव्यवस्थित शहरी केंद्रों से लाभ होगा, को भी इस दिशा में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी है।

कम समृद्ध आर्थिक समूहों को आवास की कमी का खामियाजा उठाना पड़ता है। 2011 की जनगणना के आधार पर, आवास एवं शहरी गरीबी उन्मूलन मंत्रालय द्वारा स्थापित तकनीकी समूह ने यह आकलन किया है कि 2012 में कुल 18.78 मिलियन आवासों की कमी थी और इनमें से 95 प्रतिशत कमी आर्थिक रूप से कमजोर तबके और अल्प आय वर्ग श्रेणी से थी। इसके कारण लगभग 25 प्रतिशत शहरी जनता गंदी बस्तियों और झोपड़-पट्टियों में रहने के लिए विवश है। सरकार को इस सच्चाई का अहसास है और उसने 2009 में गंदी बस्ती में रहने वाले लोगों को स्वामित्व प्रमाण पत्र सहित आवास उपलब्ध कराने के लिए राजीव गांधी आवास योजना शुरू की है।

बैंकरों के हितों की रक्षा तथा लाभभोगियों की सहायता के लिए बंध-पत्र गारंटी निधि तथा ब्याज छूट स्कीमें शुरू की गई हैं। यह एक ऐसा बड़ा तथा महत्त्वपूर्ण कदम है जो सरकार ने शहरी गरीबों का आवासीय समस्या को दूर करने के लिए उठाया है। परंतु जिस बात पर मैंने अभी जोर दिया है, निजी क्षेत्र को सतत् समाधान ढूंढ़ने के लिए और अधिक पहलें शुरू करनी होगी। सरकार प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष प्रोत्साहनों के माध्यम से वहनीय आवासों के निर्माण को आकर्षक बनाने के लिए कदम उठा रही है। वहनीय आवास परियोजनाओं पर धारा 35 एडी के तहत पूंजीगत व्यय पर 150 प्रतिशत की भारत कटौती, बाहरी वाणिज्यिक उधार तथा सेवा कर में छूट कुछ ऐसे प्रोत्साहन हैं जिनकी वित्त मंत्री के रूप में अपने आखिरी बजट में मैंने घोषणा की थी।

जैसा कि आप सभी जानते हैं अल्प आय वर्ग के लोगों के आवास के मालिक होने के प्रयासों में बहुत-सी बड़ी-बड़ी रुकावटें हैं। इनमें से प्रमुख हैं, जनता के इस हिस्से को बैंकिंग चैनलों के जरिए कर्ज की सुविधा उपलब्ध कराने में मुश्किलें। जहां एक ओर उच्च आय वर्ग और मध्य आय वर्ग कम दर पर बंध-पत्र ऋणों तथा आयकर अधिनियम के अधीन उपलब्ध कटौतियों से लाभ उठाने में सफल रहे हैं और वहां आवास ऋण का वितरण कई गुणा बढ़ा है वहीं निर्बल वर्ग और अल्प आय वर्ग के परिवार इसमें पिछड़ गए हैं।

बैंक उन्हें प्राय: ऋण देने में इसलिए अनिच्छुक होते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि ये ऋण गैर-निष्पादन परिसंपत्ति हो सकते हैं। मुझे विश्वास है कि बैंक इस चुनौती का सामना करने के लिए आगे आएंगे और इस तबके को अधिक ऋण प्रदान करने के लिए नवान्वेषी पद्धतियां अपनाएंगे। मुझे उम्मीद है कि बंध-पत्र गारंटी निधि तथा ब्याज छूट स्कीम, जो कुछ ही दिनों पहले शुरू की गई हैं, से इन तबकों को आसानी से ऋण मिल पाएगा।

इस सेक्टर के सामने दूसरी चुनौती जमीन की कमी है। जमीन सीमित है तथा बड़े शहरों में आवास की 90 प्रतिशत कीमत जमीन की कीमत होती है। सरकार और निजी सेक्टर दोनों को आवास के लिए जमीन उपलब्ध कराने के तरीके ढूंढ़ने होंगे। एक तरीका यह हो सकता है कि शहरी संकुलों के नजदीकी क्षेत्रों से जमीन का अधिग्रहण करके उन्हें तीव्र जन परिवहन प्रणाली के द्वारा शहरी केंद्रों से जोड़ दिया जाए। इसी प्रकार, यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि जो जमीन उपलब्ध है, उसका अधिकतम प्रयोग, योजना मानदंडों में संशोधन करके किया जाए। इसके साथ ही, यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि सभी आवासीय परियोजनाओं में अल्प आयु वर्ग के लिए स्कीमें होनी चाहिए। इसे शहर-नियोजन कार्य योजना का हिस्सा बनाया जाना चाहिए। इस जरूरत के महत्त्व को कम करके नहीं आंका जा सकता क्योंकि आर्थिक रूप से पिछड़े तबके ऐसी सेवाएं प्रदान करते हैं जिनके बिना शहरी संकुल स्वस्थ ढंग से नहीं रह सकते। इन केंद्रों को टैक्सी चालकों, नौकरानियों, सफाई वालों आदि की सेवाओं की जरूरत होती है। इसके द्वारा न केवल इन संकुलों के अस्तित्व के लिए वरन् सामाजिक जरूरत के लिहाज से भी समावेशी विकास को प्रोत्साहित किया जा सकता है।

मुझे इस बात की जानकारी है कि इसमें भूमि अधिग्रहण, टाउनशिप नियोजन, परियोजना अनुमोदन, निर्माण तथा लाभ भोगियों संबंधी बहुत सी चुनौतियां हैं। इस समय जारी प्रणालियों की जांच करके ऐसे उपाय करने होंगे जिससे समाज के आर्थिक रूप से कमजोर तबके को आवास उपलब्ध कराने का सपना साकार हो सके। नवान्वेषी प्रौद्योगिकियों, डिजायनों तथा सामग्री को अपनाने पर विशेष ध्यान देना होगा जिससे कम कीमत पर आवास प्रदान करने के कार्य में तेजी आए।

कौशल विकास ऐसा दूसरा क्षेत्र है जो कि आवास उद्योग के लिए विशेष रूप से प्रासंगिक है और इसमें नई प्रौद्योगिकियां अपनानी होंगी और मात्रा में भी बढ़ोतरी करनी होगी। सरकार और उद्योग को इस चुनौती का समाधान ढूंढ़ने के लिए सहयोग करना होगा। राष्ट्रीय कौशल विकास निगम इस कार्य में लगा हुआ है तथा रीयल एस्टेट उद्योग को भी इसके प्रयासों में सहयोग करना होगा जिससे सर्वोत्तम परिणाम प्राप्त हो सकें।

अंत में, मैं यह दोहराना चाहूंगा कि आवास तथा रीयल एस्टेट सेक्टर के पास देश की आर्थिक समृद्धि की कुंजी है क्योंकि यह न केवल एक महत्त्वपूर्ण सामाजिक लक्ष्य को पूरा करता है बल्कि वह उसके आगे और पीछे विभिन्न प्रकार के व्यवसायों से जुड़ा होता है। इस सेक्टर को आर्थिक प्रगति का इंजन ठीक ही कहा गया है।

मुझे उम्मीद है कि विशेषज्ञों तथा महत्त्वपूर्ण भागीदारों की इस सभा में आम आदमी की आवास की जरूरतों पर विचार-विमर्श होगा और इसका समाधान निकाला जाएगा। जरूरत इस बात की है कि सभी भागीदार सभी के लिए आवास के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए मिल-जुलकर प्रयास करें। यह न केवल एक आर्थिक जरूरत है वरन् मानवाधिकार के सार्वभौमिक घोषणा पत्र में हम पर यह सुनिश्चित करने का महती दायित्व डाला गया है कि ‘‘प्रत्येक व्यक्ति को ऐसे जीवन स्तर का अधिकार है जो उसके स्वास्थ्य और उसकी तथा उसके परिवार की खुशहाली के लिए, जिसमें भोजन, वस्त्र और आवास शामिल हैं, पर्याप्त हों’’ और इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए हमारे प्रयासों में कमी नहीं नजर आनी चाहिए।

मैं इस सम्मेलन की सफलता की कामना करता हूं।

जय हिंद!