देवियो और सज्जनो,
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के इस समारोह में आपके साथ शामिल होकर मुझे बहुत खुशी हो रही है। मैं इस अवसर पर देश के सभी हिस्सों में महिलाओं को हार्दिक बधाई देता हूं। मैं उन्हें अपने महान देश के निर्माण में उनके बहुमूल्य योगदान के लिए धन्यवाद देता हूं।
मुझे प्रसन्नता है कि इस अवसर पर हम उन विशिष्ट महिलाओं की अनुकरणीय सेवा को मान्यता प्रदान कर रहे हैं जिन्हें आज स्त्री शक्ति पुरस्कार दिया गया है। हम आज केवल उनकी ही नहीं बल्कि उन सभी महिलाओं की सराहना कर रहे हैं जिन्होंने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर हमारे देश में सामाजिक विकास के लिए कार्य किया है और योगदान दिया है।
मुझे इस बात की विशेष खुशी है कि रानी लक्ष्मी बाई पुरस्कार ‘निर्भया की हिम्मत’ को दिया गया है और इसे उस वीरांगना की माता ने ग्रहण किया है।
अब निर्भया के नाम से जानी जाने वाली यह बहादुर और साहसी लड़की अपने सम्मान और अपने जीवन के लिए आखिरी क्षण तक लड़ती रही। वह सच्ची वीरांगना है और भारतीय युवा तथा महिलाओं में सर्वोत्तम गुणों का प्रतीक हैं। उसकी दुखद मृत्यु बेकार नहीं जानी चाहिए। हमें यह सुनिश्चित करने के लिए हर संभव उपाय करना चाहिए कि ऐसी घटना पुन: न हों।
मैं अन्य स्त्री शक्ति पुरस्कार विजेताओं, असम की श्रीमती प्रणीता तालुकदार, दिल्ली की सुश्री सोनिका अग्रवाल, कर्नाटक की गौरम्या एच. सन्कीना, केरल की श्रीमती ओमना टी.के. तथा महाराष्ट्र की श्रीमती ओल्गा डी’मेलो को, महिला सशक्तीकरण में उनके बहुमूल्य योगदान के लिए सम्मानित करता हूं और अपनी गहन प्रशंसा व्यक्त करता हूं।
इस अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर, आइए हम महिलाओं की सुरक्षा और उनके कल्याण की दिशा में अपने प्रयास दोगुना करने का संकल्प लें। हमें यह सुनिश्चित करने के लिए प्रयास करने चाहिए कि हमारे देश में महिलाएं सुरक्षित तथा निरापद महसूस करें। हमें अपने समाज के हर सदस्य में महिलाओं के लिए उच्चतम सम्मान की भावना भरनी होगी।
हमें समाज के रूप में, महिलाओं के प्रति नकारात्मक नजरिये को बदलने के लिए प्रयास करना होगा। महिलाओं को ऐसा सुरक्षित, निरापद तथा अनुकूल माहौल प्रदान किया जाना चाहिए, जिसमें उनकी प्रतिभा पुष्पित हो सके और वे राष्ट्र निर्माण में अपनी पूरी भूमिका का निर्वाह कर सकें। हमारे इतिहास, परंपराओं, धर्म तथा सांस्कृतिक मूल्यों और हमारे संविधान की भी यही मांग है।
देवियो और सज्जनो, महिलाएं, हमारी कुल जनसंख्या का 48.5 प्रतिशत भाग हैं और हालांकि समग्र लैंगिक अनुपात में 2001 से 2011 के दशक के दौरान 7 अंकों की बढ़ोतरी हुई है परंतु 0 से 6 वर्ष के बच्चों के लैंगिक अनुपात में कमी चिंता का विषय है। महिला साक्षरता की दर भी 16.7 प्रतिशत है जो कि पुरुष साक्षरता के मुकाबले कम है। सर्वेक्षण से पता चलता है कि कृषि में भी महिलाओं की प्रति घंटा दिहाड़ी की दरें पुरुष दिहाड़ी की दरों के 50 से 75 प्रतिशत तक हैं। महिलाओं के विरुद्ध हिंसा की घटनाओं में वृद्धि और भी अधिक चिंता का कारण है।
यद्यपि, नई सहस्राब्दि में लैंगिक समानता तथा महिला उत्थान के बारे में हमारे नजरिए में काफी बदलाव हुआ है परंतु हमारे यहां अभी भी पितृसत्तात्मकता से जुड़ी जटिलताएं जारी हैं। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के मानवीय विकास सूचकांक तथा लैंगिक असमानता सूचकांक के अनुसार 187 देशों में, भारत का 134वां स्थान है। यह स्थिति अक्षम्य है, खासकर जब महिला समानता के संबंध में हमारे संविधान निर्माताओं की प्रतिबद्धता सुस्पष्ट थी। लैंगिक समानता का सिद्धांत हमारी उद्देशिका, मौलिक अधिकार, तथा मौलिक कर्तव्यों में तथा नीतिनिर्देशक सिद्धांतों में निहित है।
इस दिशा में उदासीनता के लिए कोई जगह नहीं है। कार्य स्थल पर महिलाओं के लिए सुरक्षित और निरापद माहौल सुनिश्चित करने के लिए, संसद द्वारा कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) विधेयक 2013 पारित कर दिया गया है। सरकार का इरादा, जीवन के हर क्षेत्र में महिलाओं की सुरक्षा के प्रयासों को सहयोग देने के लिए ‘निर्भया निधि’ के नाम से 1000 करोड़ रुपए का कोष स्थापित करने का भी है।
न्यायमूर्ति जे.एस. वर्मा समिति की सिफारिशों पर सरकार ने महिलाओं के विरुद्ध जघन्य यौन अपराधों के लिए कठोर दण्ड देने के लिए आपराधिक कानून में संशोधन करते हुए, एक अध्यादेश लागू किया है। तथापि, कानून तभी प्रभावी होंगे जब इन्हें कुशल प्रवर्तन तंत्र द्वारा सहयोग मिलेगा। पुलिस और न्यायपालिका में निरंतर और गंभीरतापूर्वक सुधार शुरू किए जाने चाहिए ताकि महिलाओं को उचित और तुरंत न्याय मिल सके। इन उपायों के साथ ही महिलाओं के सशक्तीकरण तथा उनके स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार के अवसरों में वृद्धि की भी कोशिश की जानी चाहिए। हमारे समाज में अभी भी जारी लैंगिक असमानताओं को पर्याप्त सामाजिक और भौतिक अवसंरचना के निर्माण और सभी स्तरों पर शासन में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने जैसे सक्रिय प्रयासों के जरिए ही समाप्त किया जा सकता है।
देवियो और सज्जनो, मैं इस संदर्भ में गांधी जी के शब्दों का उल्लेख करना चाहूंगा। उन्होंने कहा था, ‘‘महिला पुरुष की साथी है, जिसमें समान मानसिक क्षमता है। उसे पुरुष कार्यकलापों के छोटे से छोटे क्षेत्रों में भाग लेने का अधिकार है, उसे स्वतंत्रता की आजादी और पुरुष के समक्ष आजादी का समान अधिकार है।’’ एक राष्ट्र के तौर पर, हमें इन शब्दों को याद करना चाहिए और उनसे प्रेरणा प्राप्त करनी चाहिए। हमें सचेतन होकर भारत की महिलाओं के भविष्य में निवेश करना होगा।
सफल महिलाओं ने हमारे देश के इतिहास पर निरंतर अपनी छाप छोड़ी है। हमारे स्वतंत्रता संग्राम से लेकर और विशेष रूप से आज, बड़ी संख्या में महिलाओं ने अपनी उपलब्धियों और साहस और सफल होने के अपने संकल्प से बहुत से अन्य लोगों को प्रेरित किया है। ग्रामीण महिलाएं, अपने 33 प्रतिशत के आरक्षण से आगे बढ़कर पंचायत चुनावों में भागीदारी से अपनी सफलता की कहानियां लिख चुकी हैं। उन्होंने स्व-सहायता समूहों के द्वारा कार्यान्वित सूक्ष्म वित्त पहलों का लाभ उठाया है। यह जानकर खुशी होती है कि इनकी इन समूहों के नियंत्रण और प्रबंधन तथा सामूहिक निर्णय में निरंतर वृद्धि हो रही है। भारत में केवल महिलाओं के लिए समर्पित पहला बैंक भी आरंभ होने जा ़रहा है।
देवियो और सज्जनो, महिलाओं के सशक्तीकरण को न केवल लैंगिक समानता के हमारे प्रयासों का एक अंग माना जाना चाहिए बल्कि इसे राष्ट्र निर्माण में उनकी पूर्ण भागीदारी को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम भी माना जाना चाहिए। स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि एक राष्ट्र की प्रगति का सर्वोच्च मापदंड महिलाओं के साथ किया जाने वाला बर्ताव है। उन्होंने कहा था, ‘‘सभी राष्ट्रों ने महिलाओं के प्रति उचित सम्मान प्रकट करके ही महानता अर्जित की है। जो देश और राष्ट्र महिलाओं का सम्मान नहीं करता, वह न तो कभी महान बना है और न कभी भविष्य में बनेगा।’’
मैं भारत के सभी नागरिकों का आह्वान करता हूं कि वे हमारे संविधान में भारत की प्रत्येक महिला के लिए सुनिश्चित अधिकारों को, पूरी तरह व्यापक रूप से लागू करने के लिए अपने-अपने क्षेत्रों में सचेतन प्रयास करने का संकल्प लें। मैं, सभी पुरस्कार विजेताओं को उनके द्वारा किए गए सराहनीय कार्य तथा महिला और बाल विकास मंत्रालय की सराहना करता हूं।
धन्यवाद,
जय हिंद!