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वर्ष 2013 के अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर स्त्री शक्ति पुरस्कार प्रदान किए जाने के अवसर पर, भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण

राष्ट्रपति भवन, नई दिल्ली : 08.03.2014



विशिष्ट देवियो और सज्जनो,

नमस्कार!

सबसे पहले मैं इस वर्ष के स्त्री शक्ति पुरस्कार समारोह के सभी प्रतिभागियों को अपनी हार्दिक बधाई देता हूं और आपके माध्यम से, मैं भारत की सभी महिलाओं को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की बधाई देता हूं।

मैं भारत की सभी महिलाओं को सम्मान अर्पित करता हूं।

आज जब हम सामाजिक विकास के क्षेत्र में अपनी उत्कृष्टता और उपलब्धियों के लिए छह विशिष्ट महिलाओं का सम्मान कर रहे हैं, मैं भारत की उन सभी महिलाओं के प्रति सम्मान अर्पित करता हूं जिन्होंने राष्ट्र को जन्म और प्रेम का अपना अमूल्य उपहार दिया है।

भारत की भावी पीढ़ियों की गृहिणियों, माताओं, शिक्षिकाओं, जमीनी स्तर पर व्यवसायी महिलाओं तथा कारपोरेट जगत के उच्च पदों पर अधिकारियों के रूप में, उन्होंने अपने व्यक्तिगत प्रयासों के माध्यम से, वर्तमान भारत के निर्माण में बड़े-छोटे योगदान दिए हैं। जीवन के सभी क्षेत्रों में सम्मानित पेशेवरों के तौर पर, महिलाओं ने बड़े स्तर पर विज्ञान, अंतरिक्ष की खोज और अनुसंधान के मोर्चों पर भी अपनी छाप छोड़ी है। मैं, अपने कृषि क्षेत्र में, जो भारत की खाद्य सुरक्षा का मुख्य आधार है, लगी महिलाओं तथा उन अनेक महिला कर्मियों का उल्लेख करना चाहूंगा जिन्होंने हमारे देश के विशाल भौतिक ढांचे के ईंट-दर-ईंट निर्माण में, पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर कड़ी मेहनत की है।

विशिष्ट प्रतिभागियो, प्राचीन इतिहास वाले देश के रूप में हमने सदैव ध्यान रखा है कि हमारी पारंपरिक सामाजिक व्यवस्था में, महिलाओं को उचित समानता और सम्मान प्रदान किया जाए। 3000 से अधिक वर्ष पहले, हमारे समाज द्वारा महिलाओं को अनेक स्वतंत्रताएं प्रदान की गई थीं। ‘शक्ति’ अथवा महिला ऊर्जस्विता की अवधारणा उस सम्मान का प्रतीक है जो महिलाओं को दिया जाता था। सहशिक्षा विद्यमान थी और बालिकाओं को अध्ययन के समान अवसर प्राप्त थे। भारत का इतिहास ऐसी महिलाओं के उदाहरणों से भरा हुआ है जो पुरुषों के समान अधिकार और शक्तियां उपयोग करती थी, वे रानियों और महारानियों के रूप में महान प्रशासक रही हैं, उन्होंने योद्धाओं के रूप में सेना का नेतृत्व किया, सामाजिक और धार्मिक सुधारों की प्रेरणा दी तथा परम साहस और संकल्प के साथ भारत की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया। हमारे लिए यह याद रखना जरूरी है।

जब भारत को स्वतंत्रता प्राप्त हुई, हमारे संस्थापक स्वतंत्र भारत की महिलाओं को बराबर अधिकार देने के लिए दृढ़ता से कृतसंकल्प थे। जब उन्होंने हमारा संविधान बनाया; उन्होंने इसकी उद्देशिका, मौलिक अधिकारों और निदेशक सिद्धांतों में इस सिद्धांत को पूर्णत: समाहित किया। उनका लक्ष्य यह सुनिश्चित करना था कि इसके बाद हमेशा, भारत की विधि, नीतिगत ढांचे तथा विकासात्मक योजनाओं में महिला आबादी की प्रगति के लिए विशेष उपाय शामिल किए जाएं।

परिणामस्वरूप, दशकों के दौरान केंद्रीय और राज्य सरकारों ने ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में स्कूली शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल में लैंगिक समानता पर ध्यान केंद्रित किया है। सशक्तीकरण के एक प्रमुख तत्त्व, महिला साक्षरता में वृद्धि हुई है और 2011 में यह 65.46 प्रतिशत थी। राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन, समेकित बाल विकास सेवा योजना तथा जल और स्वच्छता नीतियों ने शिशु और मातृत्व मृत्यु दर को कम करने में मदद की है। 2013 के राष्टीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम में भी मातृत्व लाभ के महत्त्वपूर्ण तत्त्व को शामिल किया गया है।

यह देखा गया है कि स्थानीय सरकार की संस्थाओं की मजबूती से हमारी पंचायतों और शहरी स्थानीय निकायों में 10 लाख से ज्यादा महिलाएं आई हैं और महिलाओं के अपेक्षित राजनीतिक सशक्तीकरण की दिशा में यह उल्लेखनीय कदम है। परंतु इस प्रगति में हमारी संतुष्टि, यद्यपि यह उल्लेखनीय है, से हमारा ध्यान हमारे ही लोगों द्वारा भारत की महिलाओं के अधिकारों और उनकी गरिमा के घोर निंदनीय उल्लंघन से नहीं हटना चाहिए। यह समझना मुश्किल है कि भारतीय मूल्यों में पला-बढ़ा कोई व्यक्ति ऐसी क्रूरता में कैसे शामिल हो सकता है जो प्रतिदिन हमारे सामने आती हैं। महिलाओं की सुरक्षा के लिए केंद्रीय और राज्य सरकारों द्वारा लागू अनेक कानूनों तथा वर्तमान कानूनों में किए गए संशोधनों के बावजूद हमारी महिलाओं और बालिकाओं के लिए ऐसी सुरक्षा और हिफाजत प्रदान करने हेतु बहुत कुछ किया जाना बाकी है। जिसकी एक सभ्य समाज से अपेक्षा की जाती है।

मुझे विदित है कि महिला और बाल विकास मंत्रालय ने कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (निवारण, निषेध और समाधान) अधिनियम, 2013 तथा बच्चों के यौन अपराध से संरक्षण अधिनियम 2012 जैसे नए कानून बनाए हैं। ये समय पर की गई पहलें हैं। इसी प्रकार, ‘अहिंसा दूत’ कार्यक्रम का लक्ष्य महिलाओं और बच्चों के विरुद्ध हिंसा को रोकना है तथा इसमें जमीनी स्तर पर महिलाओं, महिला नेताओं, सामुदायिक कार्यकर्ताओं और नवयुवतियों को शामिल किया गया है। मैं यह कहना चाहूंगा कि ऐसे सभी प्रयासों में लक्ष्य प्राप्त करने के लिए, पुरुषों और महिलाओं, विशेषकर हमारे युवाओं को, इसे सफल बनाने के लिए विशिष्ट भूमिका और दायित्व सौंपते हुए शामिल किया जाए। आज हमारी आधी से ज्यादा आबादी लगभग 25 वर्ष या उससे कम आयु समूह की है। वे सामाजिक रूप से अधिक जागरूक हैं तथा पूरी तरह नए प्रकार की मूल्य प्रणालियों का निर्माण कर रहे हैं। इसलिए यह महत्त्वपूर्ण लक्ष्य समूह है और हमें उन्हें सही दिशा की ओर उन्मुख करने के लिए कोई क्षण या अवसर नहीं गंवाना चाहिए।

जब मैं आपसे एक वर्ष पहले मिला था, तब मैंने जिक्र किया था कि नए कानूनों से, भले ही उनकी परिकल्पना कितने ही बेहतर ढंग से की गई हो, कुशल कार्यान्वयन तंत्र द्वारा सहयोग किया जाना चाहिए। इस संबंध में क्या प्रगति है? क्या हम एक समाज के तौर पर निरंतर अपने पुलिस और न्यायिक तंत्र में तेजी से सुधार कर रहे हैं? हमें यह देखना होगा कि महिलाओं के विरुद्ध अपराधों की गंभीरता से जांच हो और उन्हें तुरंत न्याय प्रदान किया जाए। क्या हम यह सुनिश्चित करने के लिए ठोस कदम उठा रहे हैं कि हमारी महिलाओं के पास न्याय मांगने और उसे प्राप्त करने के लिए आवश्यक साधन हों? क्या हम सक्रिय रूप से आवश्यक सामाजिक और भौतिक ढांचे के निर्माण द्वारा असमानता को समाप्त कर रहे हैं?

यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि मात्र विधानों से हमारी महिलाओं का उत्थान नहीं होगा। हमें अपने मानसिक और नैतिक नजरिए, शहरी भावना और अपने सामाजिक आचरण का मौलिक रूप से पुन: निर्धारण करना होगा। हमें अपनी माताओं और बहनों को समुचित आदर और सम्मान प्रदान करने की अपनी परंपरा को पुन: जाग्रत करना होगा। ऐसा करके हम अपना सम्मान करेंगे।

महान कवि रवीन्द्रनाथ टैगोर के शब्द याद आते हैं, उन्होंने कहा था, ‘‘महिला राष्ट्र के भविष्य की निर्मात्री और दिशानिर्धारक है... उसके पास पुरुषों से कहीं अधिक मजबूत और हिम्मतवाला हृदय है...वह पुरुष की भावी प्रगति की सर्वोच्च प्रेरणा है...’’।

इन प्रेरणादायक शब्दों की सराहना करते हुए, हमें भारत की महिलाओं और बच्चों के जीवन और भविष्य को बेहतर बनाने के लक्ष्य के प्रति ईमानदारी से खुद को समर्पित करना चाहिए।

मैं, एक बार पुन: महिला और बाल विकास मंत्रालय को बधाई देता हूं तथा विशिष्ट पुरस्कार विजेताओं का अभिनंदन करता हूं। मुझे विश्वास है कि आपका उदाहरण और नेतृत्व अनेक लोगों को प्रेरित करेगा।

धन्यवाद,

जय हिंद!