महामहिम,ल्योन्छेन सेरिंग तोबगे, भूटान के प्रधानमंत्री,
महामहिमगण,
देवियो और सज्जनो,
सबसे पहले मैं महामहिम, प्रधानमंत्री को उनके स्वागत के शब्दों के लिए धन्यवाद देता हूं।
1. थिंपू में पुराने मित्रों के बीच आना सदैव प्रसन्नता का अनुभव होता है। पिछले दशक के दौरान,मुझे ड्रुक युल में कई बार आने का सौभाग्य मिला है। और हर बार,मैंने हिमालय की शृंखलाओं के ऊपर से होकर आपके देश की सुंदर चोटियों की ओर उड़ते हुए सदैव एक जानी-पहचानी सी व्यग्रता महसूस की है। ऐसा लगता है कि मानो नीचे बर्फ से ढके खुशनुमा पहाड़ मुझे यह याद दिला रहे हों कि मैं खुशहाली के ऐसे निवास की ओर जा रहा हूं जहां आर्थिक प्रगति कोई साध्य नहीं वरन केवल साधन है और जहां संतोष को अधिक महत्त्व दिया जाता है—और जहां विकास ने प्रबुद्ध जनता की प्राकृतिक विरासत के संरक्षण पर कोई दुष्प्रभाव नहीं डाला है।
2. देवियो और सज्जनो, रक्षा, वित्त और विदेश मंत्रालयों के प्रमुखों सहित,भारत सरकार में विभिन्न पदों पर सेवा करने के दौरान मुझे भारत-भूटान संबंधों का एक विशिष्ट परिदृश्य विकसित करने का अवसर मिला है। आज मैं इसे सारांशत: दो राष्ट्रों के बीच एक ऐसा अनुकरणीय द्विपक्षीय रिश्ता और परस्पर फायदे के लिए एक विशिष्ट और सफल साझीदारी तथा सदियों पुराने ऐतिहासिक तथा सांस्कृतिक संपर्कों से आबद्ध परस्पर निर्भर मित्रता के रूप में व्यक्त करना चाहूंगा। हमारी राष्ट्रीय परिस्थितियों में अंतर के बावजूद हम अपनी बहुत सी समानताओं तथा अनुपूरकताओं से मजबूती से बंधे हुए हैं। हमारे प्रगाढ़ द्विपक्षीय रिश्ते हमारी बहुत सी समान धारणाओं और प्राथमिकताओं पर आधारित हैं। हमारी सरकारों और लोगों के बीच गहरा विश्वास तथा भरोसा मौजूद है तथा हमने यह सुनिश्चित किया है कि निकट से सहयोग कर रहे पड़ोसियों के रूप में हम एक-दूसरे की चिंताओं तथा महत्त्वपूर्ण हितों के प्रति संवेदनशील रहें।
3. भारत की सरकार तथा जनता ने सदैव विभिन्न ड्रुक ग्यालपो की विचक्षणता तथा मैत्री को महत्त्व दिया है—जिनकी दूरदृष्टि ने हमारे रिश्तों को असाधारण तौर से प्रगाढ़ बनाने में योगदान दिया है।
4. यह तथ्य कि हमने 1950 के दशक के दौरान अपनी साझीदारी स्थापित की थी,इस बात का परिणाम तथा प्रतीक है कि हम दोनों राष्ट्रों के नेतृत्व के नजरिए एक जैसे हैं। भूटान के तृतीय महामहिम नरेश,जिग्मी दोर्जी वांग्चुक तथा भारत के प्रथम प्रधानमंत्री, पंडित जवाहरलाल नेहरू ने न केवल हमारी साझीदारी की असीमित क्षमताओं को पहचाना था बल्कि इसे प्रगाढ़ करने के लिए कई कदम उठाए थे। पंडित नेहरू द्वारा यहां आने के लिए चुनौतीपूर्ण भूभाग से होकर पारो तक की घोड़े की पीठ पर की गई यात्रा तथा भूटान के सम्राट तथा यहां के लोगों द्वारा उनको प्रदान किए गए यादगार स्वागत को आज भी याद किया जाता है। वे भारत के राष्ट्रनिर्माताओं तथा भूटान के पूर्व श्रद्धेय महामहिम नरेशों के बीच मौजूद प्रतिबद्धता तथा गर्मजोशी का साक्ष्य हैं। इसके बाद,हाल ही के वर्षों में महामहिम चतुर्थ एवं पंचम नरेशों सहित भूटान के विभिन्न सम्राटों की विचक्षणता तथा दूरदर्शिता ने हमारे अपने-अपने नागरिकों के फायदे के लिए हमारे दो देशों के बीच एक उपयोगी सहयोगात्मक रिश्ता कायम करने की दिशा में भारी योगदान दिया।
5. मेरा मानना है कि इस विरासत के उत्तराधिकारियों के रूप में यह हमारा कर्तव्य है कि हम यह सुनिश्चित करने के लिए इसके हर एक पहलू को पोषित करें कि हम इसको मजबूत बनाना जारी रखेंगे तथा इसकी पूर्ण क्षमता तक ले जाएंगे।
6. इस संदर्भ में, मुझे यह कहते हुए खुशी हो रही है कि पिछले महीनों के दौरान हमारे द्विपक्षीय संबंध सुदृढ़ तथा प्रगाढ़ हुए हैं। इस वर्ष के आरंभ में हमने भारत में महामहिम नरेश,जिग्मी खेसर नामग्येल वांग्चुक तथा महामान्या,महारानी अशी ज़ेसन पेमा वांग्चुक का स्वागत करते हुए गौरव का अनुभव किया;प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने पद ग्रहण करने के एक माह के भीतर ही अपनी पहली विदेश यात्रा के लिए भूटान को चुना तथा मैं26वर्षों के बाद भारत के किसी राष्ट्रपति की पहली राजकीय यात्रा पर यहां आया हूं। हमने इस वर्ष कई पहलें शुरू की हैं तथा संतुष्टि के की बहुत सी बातें हैं।
7. राजनीतिक तथा आधिकारिक स्तर पर हमारे आदान-प्रदान तथा सभी मुद्दों पर हमारे खुले संवाद ने,हमारे लोगों के समावेशी विकास और सामाजिक-आर्थिक प्रगति में परस्पर समझ तथा निकट सहयोग में सहायता प्रदान की है। सतत् विकास,सभी के लिए शिक्षा तथा जमीनी स्तर से ऊपर की ओर हमारी जनता की विशिष्ट जरूरतों को पूरा करने के लिए नवान्वेषी समाधानों का विकास हमारा साझा उद्देश्य है।
8. भारत का यह मानना है कि एक मजबूत,जीवंत तथा समृद्ध भूटान देखना भारत के हित में है। भूटान में हमारे मित्रों ने बताया है कि उनका मानना है कि एक मजबूत,एकजुट तथा आर्थिक रूप से गतिशील भारत भूटान के भी राष्ट्रीय हित में है। इस प्रकार हम दोनों ने ही विश्व के सामने यह सिद्ध कर दिया है कि हमारा भविष्य कई तरह से एक दूसरे से जुड़ा होने के चलते हम अपने देशों को पूर्ण सौहार्द के साथ सह-अस्तित्व में पाते हैं परंतु साथ ही हम अलग तथा स्वतंत्र हैं और अपनी विभिन्न एक जैसी विकासात्मक प्राथमिकताओं पर आगे बढ़ रहे हैं।
9. देवियो और सज्जनो, भारत और भूटान दोनों गौरवपूर्ण लोकतंत्र हैं। जहां भारतीयों को अपनी स्वतंत्रता के लिए लड़ना पड़ा,वहीं भूटान को यह बहुमूल्य उपहार खुद गद्दीनशीन सम्राट ने प्रदान किया था। भारत ने समाजवादी पंथनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य बनने का विकल्प चुना। शांति तथा अहिंसा के दूत,महात्मा गांधी, जिन्होंने उपनिवेशवादी शासन से भारत को आजादी दिलाई,स्वतंत्रता तथा स्वाधीनता तथा स्वावलंबन के बुनियादी मानवीय सिद्धांतों पर विश्वास करते थे,जो भारत के संविधान का आधार हैं। भूटान में महामहिम चतुर्थ नरेश,जिग्मी सिंगे वांग्चुक ने देश के कोने-कोने से भूटान की जनता से विचार-विमर्श की प्रक्रिया के बाद भूटान के संविधान को लिखने के कार्य का खुद मार्गदर्शन किया। भूटान के इस संविधान के अंतिम प्रारूप का भूटान की जनता द्वारा स्वागत किया गया और उसे अंगीकार किया गया है। एक सांविधानिक राजतंत्र तथा एक संसदीय लोकतंत्र के रूप में अपनी-अपनी राह पर चलते हुए,अपनी-अपनी सरकारों में सहभागिता तथा अपने भाग्य का निर्माण करने में भारत भूटान की जनता के साथ है।
महामहिम, महामहिमगण, देवियो और सज्जनो,
10. भूटान के साथ अपने दीर्घकालीन संबंधों से मैंने जो बातें सीखी हैं,उनमें से एक यह है कि भूटान के लोगों के जीवन और दर्शन से बहुत कुछ सीखा जा सकता है। आपने कम ही समय के अंदर तेजी से ऐसे सतत् विकास के नमूने को अपनाया है जिसमें आपने पूर्णत: सकल घरेलू उत्पाद आधारित मॉडल से दूरी बनाई है। चतुर्थ नरेश महामहिम,जिग्मी सिंगे वांग्चुक के इन गंभीर शब्दों ने मुझे बहुत प्रभावित किया है कि, ‘‘सकल राष्ट्रीय खशुहाली का विभिन्न लोगों ने विभिन्न अर्थ लगाया है परंतु मेरे लिए इसका तात्पर्य केवल ऐसा विकास है जो मानवीय मूल्यों से संचालित हो।’’
11. मैं इस बात से पूर्णत: सहमत हूं। भारत में विद्यार्थियों,राजनीतिज्ञों, पेशेवरों तथा कारपोरेट दुनिया के प्रतिनिधियों और सभी वर्गों के लोगों से अपनी बातचीत के दौरान मैं इस बात पर जोर देता रहा हूं कि भारतीय लोगों को अपने अंदर उन सभ्यतागत भारतीय मूल्यों के समावेश तथा पुनर्जागरण की जरूरत है जो उनके धर्म तथा संस्कारों का अनन्य हिस्सा रहे हैं।
12. यह महत्त्वपूर्ण है कि भूटान में,सकल राष्ट्रीय खुशहाली का सिद्धांत एक परिकल्पना भी है तथा भूटान की पंचवर्षीय योजनाओं के मूल्यांकन का उपकरण भी है। इसके चार स्तंभ—(i)स्तत्-विकास; (ii) सांस्कृतिक मूल्यों का संरक्षण तथा संवर्धन; (iii)राष्ट्रीय पर्यावरण का संरक्षण; तथा (iv)सुशासन की स्थापना अपनी सफलता के लिए जनता के पूर्ण और उत्साहजनक सहभागिता पर निर्भर है। भारत इन महत्त्वपूर्ण लक्ष्यों को साकार करने में सहायता के लिए तत्पर है।
13. भूटान की पहली पंचवर्षीय योजना के समय से ही भारत ने,जो कि स्वयं एक विकासशील अर्थव्यवस्था है, भूटान को अपनी तकनीकी सहायता की पेशकश की थी तथा अपनी संपूर्ण क्षमता और योग्यता के अनुरूप उसके साथ अपने संसाधनों को साझा किया है। हमारा यह सुविचारित प्रयास है कि जब हम अपनी राष्ट्रीय आकांक्षाओं की प्राप्ति का प्रयास कर रहे हैं तो भूटान के लोगों को अपने साथ लेकर चलें। हम सभी मामलों में भूटान के लोगों द्वारा परिकल्पित विशिष्ट प्राथमिकताओं के अनुरूप कार्य करते रहे हैं।
14. शिक्षा भूटान के लिए एक महत्त्वपूर्ण प्राथमिकता रही है। हम भूतकाल में अपने भूटानी मित्रों को अपने प्रमुख शैक्षणिक संस्थानों में स्थान देते रहे हैं तथा भविष्य में भी देते रहेंगे। मेरे साथ भारतीय प्रबंध संस्थान,अहमदाबाद के प्रो. अनिल गुप्ता आए हैं जो, अन्य बातों के साथ-साथ,लोक सेवकों को प्रशिक्षण प्रदान करके लोक प्रशासन की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए भूटान के शाही सिविल सेवा कमीशन के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करेंगे। राष्ट्रीय नवान्वेषण फाउंडेशन के उपाध्यक्ष की हैसियत से प्रो. अनिल गुप्ता भूटान की शिक्षा प्रणाली तथा अर्थव्यवस्था में नवान्वेषण की भूमिका बढ़ाने के लिए भूटान के शाही विश्वविद्यालय के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करेंगे। प्रो. सुनयना सिंह,कुलपति, अंग्रेजी एवं विदेशी भाषा संस्थान,हैदराबाद भी भूटान के शाही विश्वविद्यालय के साथ अंग्रेजी भाषा,अभिगम, शिक्षण तथा प्रशिक्षण में अकादमिक तथा परामर्श सेवाएं प्रदान करने के लिए समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करेंगी।
15. मुझे यह घोषणा करते हुए प्रसन्नता हो रही है कि हमने भारत के राजदूत के छात्रवृत्ति फंड का मूल्य एक करोड़ रुपए प्रतिवर्ष से बढ़ाकर2 करोड़ रुपए प्रतिवर्ष करने का निर्णय लिया है। इस छात्रवृत्ति का उपयोग भारत में प्रमुख शिक्षा संस्थानों में उच्च शिक्षा प्राप्त करने की इच्छा रखने वाले भूटान के मेधावी परंतु जरूरतमंद विद्यार्थियों को प्रोत्साहित करने के लिए किया जाएगा।
16. हाल ही में, गुजरात आयुर्वेद विश्वविद्यालय ने यह घोषणा की है कि वह प्रतिवर्ष भूटान के एक छात्र को आयुर्वेद चिकित्सा एवं शल्यक्रिया स्नातक (वीएएमएस) पाठ्यक्रम में पूर्ण छात्रवृत्ति के साथ अपने यहां प्रवेश देगा।
17. इसी प्रकार, शासकीय विधि विश्वविद्यालय,मुंबई ने भी भूटान के विद्यार्थियों के लिए दो स्थान आरक्षित किए हैं। मुझे यह कहते खुशी हो रही है कि पेश की जा रही छात्रवृत्तियां हमारे सर्वोत्तम शिक्षा संस्थानों में हैं।
18. हम भूटान में ही और अधिक शिक्षा संस्थान बनाने के लिए भूटान के साथ कार्य करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।11वीं पंचवर्षीय योजनावधि में हम शेरुब्से कॉलेज की इसकी अवसंरचना बढ़ाने में सहायता करेंगे।
19. भारत सरकार को, महामहिम भूटान के प्रधानमंत्री द्वारा शुरू किए गए स्कूल सुधार कार्यक्रम में भूमिका निभाने में खुशी होगी। हम इन सभी पहलों की सफलता की कामना करते हैं।
महामहिमगण, देवियो और सज्जनो,
20. जल विद्युत हमारे देशों के लिए बराबर के लाभ के सहयोग का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। मौजूदा तीन जलविद्युत परियोजनाओं ने लगभग समूचे भूटान के विद्युतीकरण,अतिरिक्त बिजली भारत को निर्यात करने तथा विकास और विस्तार को और अधिक तेज करने के लिए निश्चित राजस्व अर्जित करने में मदद की है। इस समय जारी पुनाटसांग्चू परियोजना के2018 तक पूर्ण होने तथा मांगदेछू परियोजना के 2017 के अंत तक पूरा होने की उम्मीद के साथ भूटान के विद्युत उत्पादन का भविष्य वास्तव में उज्ज्वल है।
21. अपनी सफलताओं को आगे बढ़ाने के लिए, हमने भारत और भूटान के सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के बीच संयुक्त उद्यमों के रूप में चार और परियोजनाएं भी शुरू करने का निर्णय लिया है। भारत के माननीय प्रधानमंत्री द्वारा जून, 2014में भूटान की अपनी यात्रा के दौरान, ऐसी प्रथम परियोजना कोलांग्छू की आधारशिला रखी गई है।
22. भूटान के इन सभी क्षेत्रों में हमारे सहयोग के साथ-साथ,विशाल और बढ़ते भारतीय बाजार में भूटान से कृषि प्रसंस्कृत खाद्य से लेकर सीमेंट के भारत को निर्यात की अपार संभावना है,भूटान अपने उपयोग के बाद जो अतिरिक्त उत्पाद देना चाहे, भारत वह सभी अपने यहां खपा सकता है।
महामहिम, महामहिमगण, देवियो और सज्जनो,
23. जैसे-जैसे हम 21वीं शताब्दी की ओर अग्रसर हो रहे हैं,मुझे विश्वास है कि हमारे सम्बन्धों के मूलभूत तत्त्व मजबूत बने रहेंगे। तथापि,विस्तार की और अधिक गुंजायश है। मैं मानता हूं कि भारत और भूटान दोनों को कौशल विकास,शिक्षा और नवान्वेषण पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
24. हम पर्यटन के क्षेत्र में और अधिक कार्य कर सकते हैं : मेरा मानना है कि पारो से मुंबई तक उड़ान के आरंभ होने से पश्चिमी भारत से पर्यटकों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।2015,जिसे ‘भूटान की यात्रा का वर्ष’निर्धारित किया गया है, के अवसर पर, मैं आपकी सरकार को इस क्षेत्र में भारी सफलता के लिए शुभकामनाएं देता हूं।
मित्रो,
25. यदि परंपरा और संस्कृति का त्याग आधुनिकीकरण के परंपरागत मार्ग की पहचान है तो भूटान ने यह सिद्ध कर दिया है कि दोनों का सुखद मिश्रण करना भी उतना ही जरूरी है। नरेश चतुर्थ के शब्दों में, ‘‘यदि हम अब नहीं सोचेंगे,तो हम भविष्य में अपने धर्म और संस्कृति की झलक विश्व को नहीं दिखा सकते।’’इस प्रकार, संस्कृति और धर्म को भूटान में विशेष आदर प्राप्त है। भारत में,महात्मा गांधी ने कहा था, ‘‘कोई भी संस्कृति जीवित नहीं रह सकती यदि यह विशिष्ट बने रहने का प्रयास करे’’हमारे दोनों देशों की साझी बौद्ध विरासत एक मूल्यवान आध्यात्मिक रिश्ता है। हमें इस बात की प्रसन्नता हुई थी कि महामहिम नरेश और महामान्या महारानी ने पिछले महीने बौद्ध गया,सारनाथ,नालंदा और राजगीर के पवित्र स्थलों की यात्राएं की। हम इन स्थलों की यात्रा करने के लिए अपने भूटानी भाइयों का स्वागत करते हैं और हम यथासंभव उन्हें सुविधाएं प्रदान करने का प्रयत्न करेंगे।
26. नालंदा विश्वविद्यालय में सहयोग पर समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करके हमारी सरकारें भूटानी विद्यार्थियों के लिए एक बार फिर विख्यात नालंदा विश्वविद्यालय की यात्रा करने के नए अवसर खोलेंगी। हमें सितंबर, 2014में नालंदा विश्वविद्यालय में भूटान के प्रथम विद्यार्थी का स्वागत करके प्रसन्नता हुई। हम इस प्राचीन विश्वविद्यालय के पुनरुद्धार और पुनरुत्थान में भूटान के सहयोग और मदद का स्वागत करेंगे।
27. अंत में, मैं सुझाव देना चाहूंगा कि भारत और भूटान को इस क्षेत्र की प्रगति के सकारात्मक और उपयोगी कार्यक्रमों तथा वैश्विक शांति,सुरक्षा और विकास के लिए हमारे क्षेत्रीय सहयोग के प्रयासों को आगे बढ़ाने के लिए दक्षेस के भीतर अपनी भूमिका को गंभीरता से लेना होगा। मेरी राय में,नेपाल में आगामी दक्षेस शिखर सम्मेलन एक ऐसी महत्त्वपूर्ण बैठक होगी जिसमें भूटान और भारत सर्जनात्मक विचार-विमर्श तथा दूरगामी परिणामों में योगदान के लिए एकजुट होकर कार्य कर सकते हैं।
महामहिमगण,
28. मुझे भूटान और भारत के भविष्य तथा हमारी आदर्श साझीदारी पर अत्यधिक भरोसा है।
29. इन्हीं शब्दों के साथ, मैं एक बार पुन: इस विशिष्ट सभा को संबोधित करने का अवसर प्रदान करने के लिए आपको धन्यवाद देता हूं। मैं आपको और आपके माध्यम से भूटान की जनता की निरंतर प्रगति और समृद्धि के लिए हार्दिक बधाई तथा सच्ची शुभकामना प्रकट करता हूं।
धन्यवाद,
ताशी डेलेक!!