मुझे, राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कुरुक्षेत्र के 10वें दीक्षांत समारोह को संबोधित करने के लिए यहां आकर खुशी हो रही है। मैं उपाधि प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों को उनके जीवन के इस यादगार दिन के लिए बधाई देता हूं। देश में इंजीनियरी की शिक्षा प्रदान करने के 50 वर्ष पूर्व करने पर मैं इस संस्थान को बधाई देता हूं।
मुझे बताया गया है कि स्वर्ण जयंती समारोहों के तहत इस संस्थान द्वारा इंजीनियरी और प्रौद्योगिकी, विज्ञान, मानविकी और प्रबंधन के उभरते क्षेत्रों पर संगोष्ठियां, कार्यशालाएं, व्याख्यान तथा प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है। राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कुरुक्षेत्र ने देश में गुणवत्तायुक्त व्यावसायिक शिक्षा प्रदान करने में ख्याति प्राप्त की है। उच्च शिक्षा के संस्थानों के बीच इसका ऊँचा स्थान है।
पिछले पांच दशकों के दौरान इस संस्थान ने ऐसे मेधावी इंजीनियर तैयार किए है जो कि इस पेशे तथा देश के लिए बेशकीमती हैं। शिक्षण तथा अनुसंधान में उत्कृष्टता प्राप्त करने की दिशा में इस संस्थान के संकाय और कर्मचारियों की समर्पित सेवा तथा प्रयास प्रशंसनीय है।
देवियो और सज्जनो, ज्ञान मानवीय सशक्तीकरण का सच्चा संबल है। देश के विकास में शिक्षा का योगदान किसी से भी कम नहीं है। सुप्रसिद्ध कवि विलियम बटलर यीट्स ने कहा था: ‘‘शिक्षा से कोई पात्र नहीं भरता बल्कि उससे अग्नि पैदा होती है’’।
हमारे देश की उभरती जनसंख्यिकी, जिसमें 2025 तक हमारी जनसंख्या का दो तिहाई हिस्सा कार्यकारी आयु में होने की संभावना है, से हमें उच्च आर्थिक प्रगति तथा समृद्धि का अवसर मिल रहा है। इस जनसंख्यिकी से हम लाभ उठा सकते हैं परंतु इसके लिए युवाओं को अर्हता प्राप्त तथा राष्ट्र की प्रगति में सहभागिता के लिए प्रशिक्षित होना चाहिए।
सभी जानते हैं कि भारत आर्थिक शक्ति बनने की दिशा में अग्रसर है। क्रय शक्ति समता के आधार पर हमारी अर्थव्यवस्था का आकार विश्व में तीसरे स्थान पर है। वर्ष 2012 से 2017 की पांचवी पंचवर्षीय योजना अवधि के दौरान 9 प्रतिशत की विकास दर की परिकल्पना की गई है। आर्थिक प्रगति के इस पैमाने की प्राप्ति के लिए कई सहायक कारक जरूरी हैं जिनमें से मुख्य है शिक्षा। धीरे-धीरे हमने सभी स्तरों पर गुणवत्तायुक्त शिक्षा प्रदान करने के लिए अच्छे शैक्षणिक संस्थानों की अवसंरचना खड़ी कर ली है। उच्च शिक्षा सेक्टर में भारत में 659 उपाधि प्रदान करने वाले संस्थान तथा 33023 कॉलेज मौजूद हैं। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों की संख्या जो वर्ष 2006-07 में केवल 7 थी, वह 2011-12 में बढ़कर 15 हो गई। इसी प्रकार उच्च शिक्षा संस्थानों में प्रवेश की संख्या भी 2006-07 में 1.39 करोड़ से बढ़कर 2011-12 में 2.18 करोड़ हो गई। 2006-07 में कुल नामांकनों में से 13 प्रतिशत इंजीनियरी में थे। यह संख्या अब बढ़कर 25 प्रतिशत हो गई है। इंजीनियरी में नामांकनों की संख्या, जो ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना अवधि में 25 प्रतिशत प्रति वर्ष के करीब थी, किसी भी अन्य क्षेत्र के मुकाबले सबसे अधिक थी।
भारत सरकार की 12वीं योजना कार्यनीति में उच्चतर शिक्षा में कई पहलें शामिल है। इनमें, और अधिक केंद्रीय विश्वविद्यालयों की स्थापना, तकनीकी शिक्षा और दूरवर्ती शिक्षा पर अधिक जोर, अकादमिक सुधार, शिक्षा ऋण पर ब्याज में छूट, नवान्वेषण विश्वविद्यालयों की स्थापना, मौजूदा संस्थानों का विस्तार तथा अनुसंधान, अवसंरचना, संकाय तथा पाठ्यचर्या सामग्री की बेहतर गुणवत्ता पर ध्यान देना शामिल है। इस कार्यनीति में समाज के सभी वर्गों को अधिक पहुंच तथा अधिक अवसर प्रदान करने पर उचित ध्यान दिया गया है। शासन सुधार तथा पुनर्गठन भी प्राथमिकता है।
उच्च शिक्षा के हमारे संस्थान गुणवत्ता की समस्या का सामना कर रहे हैं। एक अंतरराष्ट्रीय सर्वेक्षण ने दर्शाया है कि विश्व के सर्वोत्तम 200 विश्वविद्यालयों में एक भी भारतीय विश्वविद्यालय शामिल नहीं है। अत: इससे हमारे विश्वविद्यालयों तथा अकादमिक संस्थानों में शिक्षा प्रदान करने के तरीकों में सुधार के लिए कड़े कदम उठाने की जरूरत का पता चलता है। हमारे उच्च शिक्षा प्रदाताओ की विचार प्रक्रियाओं में उत्कृष्टता की संस्कृति का समावेश किए जाने की जरूरत है।
गुणवत्ता, वहनीयता तथा पहुंच, उच्च शिक्षा प्रणाली के मुख्य तत्व होने चाहिएं। इसमें अधिक क्षेत्रीय अंतर की अनुमति नहीं होनी चाहिए। हमें सुपुर्दगी प्रणाली में नवान्वेषण के द्वारा तकनीकी शिक्षा सहित उच्च शिक्षा को लोगों के दरवाजे तक ले जाना चाहिए।
देवियो और सज्जनो, सभी श्रेणियों के उच्च शिक्षा संस्थानों में संकाय की गंभीर कमी है। मौजूदा रिक्तियों को शीघ्रता से भरा जाना चाहिए। इसके साथ-साथ शिक्षा ग्रहण करने तथा सहयोगात्मक सूचना के आदान-प्रदान के लिए प्रौद्योगिकी का प्रयोग किया जाना चाहिए। इस संबंध में शिक्षा संबंधी राष्ट्रीय मिशन द्वारा सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी के माध्यम से उपलब्ध कराई गई सुविधाओं का पूरा उपयोग होना चाहिए। उदाहरण के लिए, महत्त्चपूर्ण व्याख्यानों का लाभ भौगोलिक रूप से दूरस्थ स्थानों में स्थित संस्थानों के विद्यार्थियों को दिया जा सकता है।
आज की दुनिया में ज्ञान की एक प्रमुख विशेषता निरंतर उन्नति है। जब तक हमारे शिक्षक अपने-अपने अकादमिक विषयों में अद्यतन जानकारी नहीं रखेंगे तब तक वे अपने विद्यार्थियों को समकालिक प्रासंगिकता का ज्ञान नहीं दे पाएंगे। हमारे विश्वविद्यालयों तथा संस्थानों को अपने शिक्षकों को अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठियों, पुनश्चर्या पाठ्यक्रमों, तथा परियोजना कार्यों में भाग लेने के लिए सुविधा प्रदान करनी चाहिए। इससे व्यापक नजरिए तथा ज्ञान के आदान-प्रदान का लाभ खुद-ब-खुद मिलेगा।
प्रत्येक अकादमिक संस्थान को अपने उन विशिष्ट अध्यापकों को सम्मान देना चाहिए जिन्होंने युवा मस्तिष्कों को पुस्तकों से आगे ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित किया है। ऐसे शिक्षक सर्वागीण ज्ञान तथा नवीन चिंतन के उत्प्रेरक होते हैं। इस तरह के ‘प्रेरित शिक्षकों’ को कनिष्ठ शिक्षकों तथा विद्यार्थियों का मार्गदर्शन करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
जल, पर्यावरण, स्वास्थ्य, शिक्षा तथा शहरीकरण जैसे राष्ट्रीय महत्त्व के विषयों पर गहन विश्लेषण तथा अनुसंधान की जरूरत होती है। हमारे उच्च शिक्षा संस्थानों को ऐसा अकादमिक ढांचा प्रदान करना चाहिए जिससे हमारे नीति निर्माताओं को इन विषयों की बेहतर समझ प्राप्त करने में सहायता मिले।
देवियो और सज्जनो, विश्व में घटते जा रहे प्राकृतिक संसाधनों के कारण नवान्वेषण और निरंतर प्रौद्योगिकी उन्नयन द्वारा ही भावी विकास को सुनिश्चित करना होगा। भारत की नवान्वेषण स्थिति अधिक उत्साहजनक नहीं है। 2011 में, चीन और अमरिका के प्रत्येक 5 लाख से ज्यादा आवेदनों की तुलना में हमारे देश में 42000 पेटेंट आवेदन किए गए। फोर्ब्स के नवीनतम सर्वेक्षण के अनुसार, केवल तीन भारतीय कंपनियां विश्व की सबसे नवान्वेषी कंपनियों में सूचीबद्ध की गई हैं। यदि हमारी शिक्षण संस्थाओं में नवान्वेषण की प्रक्रिया को स्थायी विशेषता बनाना है तो इस संख्या को बढ़ाना होगा। हमारे विश्वविद्यालय, इंजीनियरी कॉलेज तथा अनुसंधान और विकास केन्द्र नवान्वेषण के महत्त्वपूर्ण स्थान हैं। अधिक विकास पार्कों की स्थापना, जमीनी स्तर के नवान्वेषकों के साथ संबंध जोड़ना, अनुसंधान अध्येतावृतियों की संख्या में वृद्धि करना तथा अंतर्विधात्मक अनुसंधान को बढ़ावा देना कुछ आवश्यक तात्कालिक उपाय हैं।
हमारे इंजीनियरी कॉलेजों और तकनीकी संस्थाओं में नैनो प्रौद्योगिकी, बायो प्रौद्योगिकी, प्रणाली अभिकल्पना जैसी अग्रणी प्रौद्योगिकी तथा नवीकरणीय ऊर्जा जैसी सतत् विकास प्रौद्योगिकियों में अनुसंधान को सक्रिय बढ़ावा देने की जरूरत है।
कुछ अध्ययनों ने दर्शाया है कि किस प्रकार अकादमिक संस्थानों के कार्यों में पूर्व विद्यार्थियों द्वारा दिलचस्पी के असाधारण परिणाम निकले हैं। हार्वर्ड विश्वविद्यालय जैसे उच्च अमरिकी विश्वविद्यालयों के अधिकांश कार्यों के साथ पूर्व विद्यार्थी जुड़े हुए हैं। मुझे विश्वास है कि राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कुरुक्षेत्र के पूर्व विद्यार्थी भी इस संस्थान के कार्यों के साथ उपयोगी रूप से जुडेंगे।
मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कुरुक्षेत्र ने स्नातकोत्तर अध्ययन और अनुसंधान के विशिष्ट स्कूलों को स्थापित करके उल्लेखनीय प्रगति की है। मुझे विश्वास है कि रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन तथा वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद जैसी प्रतिष्ठित राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं और संगठनों के साथ घनिष्ठ अनुसंधान और विकास संबंधों की स्थापना के आपके प्रयास उपयोगी और अग्रणी प्रौद्योगिकी के विकास में सफल होंगे।
हमारी प्रणालियों में पर्याप्त लचीलेपन की कमी के कारण हमारी अकादमिक संस्थाओं में अकादमिक और अनुसंधान पदों पर प्रतिभाओं को बनाए रखना कठिन है। हमारी व्यवस्था को, बौद्धिक पूंजी की क्षति को रोकने के साथ-साथ अप्रवासी भारतीय और भारतीय मूल के लोगों सहित विदेशी विद्वानों की देश वापसी पर स्वागत करने के लिए तैयार रहना चाहिए। ऐसी पहल से, विदेश से भारत में अध्ययन और अनुसंधान के विचार और नए तरीके संपे्रषित हो सकेंगे। अनुसंधान में उद्योग का नज़रिया शामिल करने तथा नवान्वेषकों से बाजार लाभ प्राप्त करने के लिए अकादमी-उद्योग की साझीदारी भी सुदृढ़ करनी होगी।
देवियो और सज्जनो, भारत एक ज्ञानवान अर्थव्यवस्था के रूप में उभर रहा है। सुयोग्य जनशक्ति का हमारा भण्डार इस नवीन युग की आधार शिला बनेगा। मुझे उम्मीद है कि राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कुरुक्षेत्र राष्ट्रीय आत्मनिर्भरता के लिए कार्यक्षेत्र ज्ञान और कौशल को नई प्रतिस्पर्द्धा प्रौद्योगिकी में बदलने में अग्रणी बनेगा।
मुझे विश्वास है कि आज उपाधि प्राप्त करने वाले युवक और युवतियां आत्मविश्वास के साथ जीवन की चुनौतियों का सामना करेंगे तथा अपने पेशेवर कार्य के सभी पहलुओं में ईमानदारी, निष्ठा और कार्यकुशलता लाएंगे। आज यहां से स्नातक बनकर निकले सभी लोगों के लिए सहिष्णुता, अनुशासन, मानवता तथा समाज की विनम्र सेवा दिशानिर्देशक सिद्धांत होने चाहिए। आपका संस्थान महाभारत की पवित्र भूमि पर स्थित है जहां भगवान कृष्ण ने भगवद् गीता के माध्यम से इन सिद्धांतों को प्रतिपादित किया है। भगवद् गीता के उपदेश शाश्वत हैं और भावी मानव सभ्यता के लिए प्रांसगिक हैं। इस संदेश को सदैव याद रखें।
मैं पंडित मदन मोहन मालवीय के उन शब्दों से अपनी बात समाप्त करता हूं जो जिन्होंने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह के संबोधन में कहे थे: ‘‘जीवनपर्यंत अध्ययन करते रहो। न्यायवादी और निडर बनो। बुरे और घृणा योग्य काम करने से डरो। सच्चाई के लिए अटल रहो। अपने देशवासियों से प्यार करो। मातृभूमि से प्रेम करो। जनहित को बढ़ावा दो। जब भी अवसर मिले भलाई करो। आपके पास जो भी अतिरिक्त हो उसे दूसरों को देना सीखो।’’
मैं, उपाधि प्राप्त करने वाले सभी विद्यार्थियों को एक संतोषप्रद जीवन और जीविकापार्जन के लिए शुभकामनाएं देता हूं तथा राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कुरुक्षेत्र के प्रबंधन और संकाय की सफलता की कामना करता हूं।
धन्यवाद,
जय हिन्द!