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मिज़ोरम विश्वविद्यालय के 10वें दीक्षांत समारोह में भारत के राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण

आईजॉल, मिज़ोरम : 10.04.2015



1.आज मिज़ोरम विश्वविद्यालय के इस दसवें दीक्षांत समारोह में आपके बीच उपस्थित होना तथा आपको संबोधित करना मेरे लिए प्रसन्नता का अवसर है। मुझे इस अवसर का उपयोग मिज़ोरम की यात्रा करने के लिए करके भी खुशी हुई है जो भारत के राष्ट्रपति का पद संभालने के बाद मेरे लिए पहला अवसर है। आपके राज्य और विश्वविद्यालय में अपना स्वागत करने के लिए मैं आप सभी को धन्यवाद देता हूं।

2.मिज़ोरम प्राकृतिक सौंदर्य का भंडार है जिसमें पहाड़ी भू-भाग,गहरी खाइयां,बलखाती नदियां, रमणीय दृश्य तथा समृद्ध वनस्पति और जीव मौजूद हैं। विशेष तौर पर,अपने सुंदर परिवेश तथा शांत वातावरण से युक्त मिज़ोरम विश्वविद्यालय का परिसर शिक्षा प्राप्त करने के लिए आदर्श रूप से अनुकूल है।

3. मिज़ोरम 1972 में केंद्र शासित प्रदेश बनने से पूर्व असम राज्य का एक जिला था।1987में यह हमारे देश का 23वां राज्य बन गया। पश्चिम में बांग्लादेश तथा अपने दक्षिण और पूर्व की ओर म्यांमार के साथ700से ज्यादा किलोमीटर की लंबी अंतरराष्ट्रीय सीमा वाले मिज़ोरम की एक महत्वपूर्ण सामरिक अवस्थिति है। मिज़ो लोग वर्गभेद तथा लिंग भेद से पूर्णत: रहित निकटता से जुड़ा हुआ समाज है। वे अपने आदर-सत्कार के लिए विख्यात हैं तथा सह्दय,नि:स्वार्थ और मददगार स्वभाव के हैं।

प्यारे स्नातक विद्यार्थियों,

4. मैं इस महत्वपूर्ण अवसर पर आप सभी को बधाई देता हूं। आप सभी में उपलब्धि का उल्लास देखना सुखद है। आज जब आप अपने शैक्षिक जगत से बाहर जा रहे हैं,आश्वस्त रहें कि आपकी शिक्षा आपको हमेशा सक्षम बनाए रखेगी, आप जहां भी जाएंगे प्रगति करेंगे और जो भी करेंगे उसमें यश की प्राप्ति करेंगे। यह कहने के पश्चात्,मैं आप सभी को याद दिलाना चाहता हूं कि आप समग्र समाज के ऋणी हैं। आप पर अब लोगों की आशाओं और आकांक्षाओं की जिम्मेदारी है। शिक्षित व्यक्ति पर विशेष दायित्व होता है। अपने से कम भाग्यशाली साथियों का उत्थान एक पावन कार्य है जिसे आप जैसे प्रतिभावान लोगों को संपन्न करना होगा। अपने देश के प्रति यह ऐसा दायित्व है जिसके प्रति आपको सदैव उत्साह दिखाना होगा। यह एक ऐसा संबंध है जिसे आपको कभी तोड़ना नहीं है। इसलिए,अपने सपने पूरे करें। इसी के साथ, अपने देश और देशवासियों के सपने भी साकार करें।

5. भारत, आज तेजी से आगे बढ़ रहा है। चाहे व्यापार हो,उद्योग हो,व्यवसाय हो, शिक्षा हो अथवा संस्कृति, हम हर गतिविधि में तेजी के साथ अपनी प्रमुख रूप से युवा जनसंख्या के विचारों,उद्यम तथा कार्यकलापों के माध्यम से आगे बढ़ रहे हैं। उदीयमान भारत,मिज़ोरम सहित देश के हमारे युवाओं को व्यापक अवसर प्रदान कर रहा है। मिज़ोरम के युवाओं को राष्ट्र के भविष्य के निर्माण में देश के शेष हिस्सों के युवाओं के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलना चाहिए।

6.कुछ समय पहले हमारे राजधानी शहर दिल्ली में पूर्वोत्तर के युवाओं पर हमले की कुछ दुखद घटनाएं हुई थी। केन्द्र सरकार और दिल्ली सरकार दोनों ने न केवल दोषियों को पकड़कर और सजा देकर सख्त कार्रवाई की है बल्कि यह सुनिश्चित करने के ऐसे उपाय शुरू किए जिनसे ऐसी घटनाएं दोबारा घटित न हों। हमें सुनिश्चित करना चाहिए हमारे राष्ट्र का बहुलवादी स्वरूप तथा एकता का इसका सूत्र,जो सभी भारतीयों का सामूहिक गौरव है, ऐसी अस्वीकार्य घटनाओं से कमजोर न हो। ॒

 

मित्रो,

7.शिक्षा मानव अस्तित्व के दो मौलिक उद्देश्यों का समर्थन करती है: ज्ञान का प्रसार तथा चरित्र का निर्माण। उच्च शिक्षा की हमारे ऐसे भावी मार्गदर्शकों को तैयार करने में विशिष्ट भूमिका है जो वैश्विक शक्तियों के ऊंचे मंच पर हमारे देश को पहुंचाने के लिए चिकित्सा से लेकर इंजीनियरी, शिक्षण, प्रशासन, व्यवसाय,राजनीति और समाज सेवा जैसे विभिन्न क्षेत्रों में प्रयास करेंगे।

8.यद्यपि विगत कुछ वर्षों के दौरान हमारे उच्च शिक्षा क्षेत्र का तेजी से विस्तार हुआ है। परंतु अपने संस्थानों की गुणवत्ता के बारे में बताने के लिए हमारे पास बहुत ॒कम है। हमारा कोई भी संस्थान प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय सर्वेक्षणों में सर्वोच्च दो सौ स्थानों में शामिल नहीं किया गया है। मेरा मानना है कि कुछ प्रख्यात भारतीय संस्थान थोड़े बहुत विधिवत प्रयासों से बेहतर स्थान प्राप्त कर सकते हैं जबकि हमारे ज्यादातर संस्थान साधारण कोटि के हैं।

9.बहुत से मेधावी भारतीय विद्यार्थी विदेशी विश्वविद्यालयों में उच्च अध्ययन करते हैं। नोबेल विजेता - हर गोविंद खुराना;सुब्रह्मणयम चंद्रशेखर; डॉ. अमर्त्य सेन तथा वेंकटरमण रामकृष्णन ने उच्च शिक्षा के लिए विदेश जाने से पूर्व भारतीय विश्वविद्यालयों से स्नातक या स्नातकोत्तर अध्ययन किया। यह विडम्बनापूर्ण है कि विश्व स्तरीय विद्वान तैयार करने में सक्षम हमारी उच्च शिक्षा प्रणाली विदेशी विश्वविद्यालयों से मात खा रही है। इस प्रवृत्ति का मुकाबला करने के लिए गंभीर समीक्षा करना जरूरी है।

10.केन्द्रीय विश्वविद्यालय के कुलपतियों का राष्ट्रपति भवन में वार्षिक सम्मेलन,हमारे उच्च शिक्षा क्षेत्र में परिवर्तन की प्रक्रिया को तेज करने के तरीकों और उपायों पर विचार करने का अवसर प्रदान करता है। इस वर्ष का सम्मेलन फरवरी में आयोजित किया गया था और मुझे यह उल्लेख करते हुए प्रसन्नता हो रही है कि कुलपतियों की विभिन्न क्षेत्रों के भागीदारों और विशेषज्ञों के साथ सार्थक परिचर्चा हुई। मुझे विश्वास है कि इसके निष्कर्षों को समय सीमा के भीतर कार्यान्वित किया जाएगा। याद रखें कि केन्द्रीय विश्वविद्यालयों को भारत की उच्च शिक्षा में बदलाव लाने में आगे रहना चाहिए।

मित्रो,

11.शैक्षिक प्रबंधन का सुदृढ़ीकरण तात्कालिक आवश्यकता है। अध्ययन को अधिक प्रभावी बनाने के लिए अध्यापन को परिष्कृत,पाठ्यक्रम को अद्यतन बनाया जाना चाहिए, अंतरविद्यात्मक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए तथा मूल्यांकन तंत्र का सुधार किया जाना चाहिए। संकाय को उनके क्षेत्र में अधिक विशेषज्ञता प्रदान करने के लिए संकाय विकास कार्यक्रम आयोजित किए जाने चाहिए। उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिए, मूल क्षमताओं की पहचान करनी होगी और प्रोत्साहन देना होगा। गुणवत्ता के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिए प्रत्येक संस्थान का मानदंडीकरण और प्रत्यायन किया जाना चाहिए। यह जानकर प्रसन्नता हो रही है कि मिज़ोरम विश्वविद्यालय को राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद द्वारा 2014में श्रेणी प्रदान की गई है।

12.विश्वविद्यालय को संकाय और विद्यार्थी आदान-प्रदान, सेमिनार और कार्यशालाओं में भागीदारी, सहयोगपूर्ण अनुसंधान तथा शैक्षिक संसाधनों के आदान-प्रदान के माध्यम से अन्य शैक्षिक संस्थाओं के साथ संयोजनों को मजबूत बनाना चाहिए। इन प्रयासों में राष्ट्रीय ज्ञान नेटवर्क का उपयुक्त प्रयोग किया जाना चाहिए।

13.पाठ्यक्रम निर्माण और परियोजना मार्गदर्शन में उद्योग के कार्मिकों की भागीदारी,अध्ययन पीठ के प्रायोजन तथा विकास केन्द्रों और प्रयोगशालाओं की स्थापना के मामले में उद्योग के साथ संयोजन से विश्वविद्यालय लाभ प्राप्त कर सकता है। इसके लिए एक उद्योग-संयोजन प्रकोष्ठ की स्थापना की जानी चाहिए तथा शासन ढांचे में उद्योग विशेषज्ञों को शामिल किया जाना चाहिए। पूर्वोत्तर में स्थित केन्द्रीय विश्वविद्यालयों के साथ उपयुक्त औद्योगिक संयोजन में एक अवरोधक अर्थात उद्योगों की मौजूदगी के अभाव के मुद्दे पर इस वर्ष के कुलपति सम्मेलन के दौरान चर्चा हुई। इन समस्याओं का समाधान करने के लिए मंत्री स्तरीय समन्वयन आवश्यक है।

मित्रो,

14.उच्च शिक्षा संस्थान समाज का आदर्श होता है। इसे इस क्षेत्र के सामाजिक-आर्थिक विकास में योगदान देने के लिए सभी विशेषताओं को उपयोग में लाना होगा। केंद्र सरकार ने (i)वर्ष 2019तक भारत को स्वच्छ बनाने के उद्देश्य सेस्वच्छ भारत मिशन,(ii)डिजिटल समर्थ ज्ञानवान समाज की शुरुआत के लिए डिजिटल इंडिया तथा (iii)मॉडल गांवों के निर्माण के लिएसांसद आदर्श ग्राम योजनाजैसे विभिन्न कार्यक्रम शुरू किए हैं। कुलपतियों के सम्मेलन में यह निर्णय लिया गया था कि हर एक केन्द्रीय विश्वविद्यालय कम से कम पांच गांवों को अपनाकर उनका विकास करेंगे। मुझे विश्वास है कि मिज़ोरम विश्वविद्यालय इस उम्मीद पर खरा उतरेगा।

15.उच्च शिक्षा क्षेत्र में कुछ वैश्विक प्रवृत्तियां उभर रही हैं - चाहे वह गति,मात्रा और कौशल के फायदे प्रदान करने वाला मुक्त ऑनलाइन पाठ्यक्रम हो अथवा उच्च शिक्षा प्रणाली के अंतर्गत विद्यार्थियों की आवाजाही को सुगमता प्रदान करने वाली चयन आधारित अंक प्रणाली हो। विश्वविद्यालयों को शिक्षा के इन विकासक्रम की पहचान करनी चाहिए तथा इस गतिशील परिवेश से निपटने के लिए स्वयं को तैयार करना चाहिए।

मित्रो,

16.हमारे विश्वविद्यालयों का कर्तव्य अपने विद्यार्थियों में वैज्ञानिक प्रवृत्ति को बढ़ावा देना है। इस दिशा में एक प्रयास प्राचीन विद्यार्थियों और बुनियादी नवान्वेषकों के नवीन विचारों को प्रोत्साहन देना हो सकता है। ऐसे नवीन विचारों,जिन्हें विपणन योग्य उत्पादों में बदला जा सकता है,को मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है। अनेक विश्वविद्यालयों में नवान्वेषण क्लबों की स्थापना की पहल की गई है। इन क्लबों के कार्यकलापों को इन क्षेत्रों के भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों और राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों में स्थित नवान्वेषण विकास केन्द्रों के साथ जोड़ा जाना चाहिए। मुझे उम्मीद है कि कुछ ही वर्षों के भीतर बहुत से नए नवान्वेषण सामने आएंगे।

17.मैं एक बार फिर अपने वार्षिक दीक्षांत समारोह में मुझे आमंत्रित करने पर आपको धन्यवाद देता हूं। मैं कन्फूसियस के शब्दों से अपनी बात समाप्त करता हूं, ‘शिक्षा से विश्वास पैदा होता है,विश्वास से उम्मीद पैदा होती है, उम्मीद से शांति पैदा होती है।

 

धन्यवाद!

जयहिन्द।