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गणेश शंकर विद्यार्थी स्मृति मेडिकल कॉलेज, कानपुर के दीक्षांत समारोह में भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण

कानपुर, उत्तर प्रदेश : 10.05.2013



मुझे, आज गणेश शंकर विद्यार्थी स्मृति मेडिकल कॉलेज के दीक्षांत समारोह में उपस्थित होकर बहुत खुशी हो रही है। मुझे आज इस संस्थान में आकर गौरव का अनुभव हो रहा है, जिसका शिलान्यास 1956 में हमारे देश के प्रथम राष्ट्रपति, डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने किया था।

इस मेडिकल कॉलेज की स्थापना स्वर्गीय श्री गणेश शंकर विद्यार्थी की स्मृति में की गई थी, जो एक स्वतंत्रता सेनानी और विद्वान पत्रकार थे। वे, सामाजिक न्यास के प्रबल समर्थक और शोषितों के लिए लड़ने वाले थे। ‘प्रताप’ नामक क्रांतिकारी साप्ताहिक अखबार, जिसकी उन्होंने स्थापना की थी, के द्वारा उन्होंने शोषित कृषकों और मिल मजदूरों के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी। उन्होंने केवल चालीस वर्ष की कम आयु में ही देश के लिए अपने प्राणों का बलिदान कर दिया। मैं भारत के इस महान सपूत को श्रद्धांजलि देता हूं। यह मेडिकल कॉलेज उन आदर्शों पर संचालित होना चाहिए जिनके लिए वे लड़ते रहे।

हमारे देश की आजादी के बाद, यह पहला मेडिकल कॉलेज था जो उत्तर प्रदेश में स्थापित हुआ। इसकी स्थापना स्नातकोत्तर मेडिकल शिक्षा का विकास करने तथा विभिन्न चिकित्सा शाखाओं में विशेषज्ञ तैयार करने के लिए की गई थी। इसे आज अपनी अकादमिक उत्कृष्टता तथा व्यापक रोगी देखभाल सुविधाओं के लिए जाना जाता है। जो लोग इसकी स्थापना तथा प्रगति से जुड़े हैं, उनमें गर्व तथा संतोष की भवना होना उचित ही है।

देवियो और सज्जनो, स्वास्थ्य किसी भी देश की प्रगति का महत्त्वपूर्ण सूचक होता है। जब तक नागरिकों का स्वास्थ अच्छा न हो, तब तक उनकी उत्पादक क्षमता का पूरी तरह उपयोग नहीं किया जा सकता। भगवान बुद्ध ने कहा था : ‘शरीर को अच्छी तरह स्वस्थ रखना एक दायित्व है... उसके बिना हम अपना मस्तिष्क मजबूत और स्पष्ट नहीं रख पाएंगे।’ स्वस्थ जनता में शिक्षा, ज्ञान तथा रोजगार के अवसरों का उपयोग करने की बेहतर क्षमता होती है।

धीरे-धीरे, हमारी जनता के स्वास्थ्य की स्थिति में काफी सुधार हुआ है। परंतु हम अभी भी अपने लक्ष्यों से दूर हैं। शिशु मृत्यु दर अभी भी प्रति 1000 जीवित जन्म, पर 44 है, और मातृ मृत्यु दर काफी अधिक, प्रति एक लाख जीवित जन्म पर 212 है। हमने 12वीं योजना अवधि के अंत तक शिशु मृत्यु दर को 25 तथा मातृ मृत्यु दर को 100 तक नीचे लाने की परिकल्पना की है। हमें उन राज्यों पर अपने प्रयास केंद्रित करने चाहिए जो इसमें पिछड़ रहे हैं। देश में स्वास्थ्य प्रणाली को सशक्त करने में आपके जैसे संस्थानों की भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण रहेगी।

उपलब्धता, गुणवत्ता तथा वहनीयता एक सुदृढ़ स्वास्थ्य सेवा प्रणाली के तीन मजबूत आधार होते हैं। वर्ष 2005 में शुरू किया गया, राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन, एक ऐसी प्रमुख पहल थी जिसका उद्देश्य हमारे देश में स्वास्थ्य सेवाओं की पुनर्संरचना करना था। इसका डिजायन, स्वास्थ्य सेवा को उप-केंद्रों, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों तथा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों के माध्यम से ग्रामीण जनता के दरवाजों तक ले जाने के लिए बनाया गया था।

मुझे इस मिशन के सकारात्मक परिणामों का उल्लेख करते हुए खुशी हो रही है। इसने देश में 1.8 लाख स्वास्थ्य सेवा केंद्रों की भारी-भरकम अवसंरचना खड़ी की है। इस मिशन ने इस तंत्र में 1.4 लाख स्वास्थ्य सेवा कार्मिक भी जोड़े हैं। बेहतर अवसंरचना, प्रशिक्षित मानवशक्ति, कारगर दवाएं तथा आधुनिक उपकरणों के कारण सेवा की सुपुर्दगी में काफी सुधार हुआ है। परंतु अभी बहुत कुछ किया जाना है। वर्ष 2013-14 के लिए 21000 करोड़ रुपए के परिव्यय के साथ ग्रामीण मिशन तथा नए शहरी मिशन को मिलाकर एक नया राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन शुरू किया जा रहा है।

हमारे देश में स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के लिए, स्वास्थ्य पर खर्च बढ़ाने की जरूरत है। भारत में स्वास्थ्य पर सार्वजनिक खर्च सकल घरेलू उत्पाद का 1.2 प्रतिशत है। यह अमरीका, यू.के., ऑस्ट्रेलिया, नार्वे तथा ब्राजील जैसे देशों में 4 प्रतिशत से अधिक हो रहे व्यय के स्तर से काफी कम है। सार्वजनिक सेक्टर का व्यय दूसरी प्रतिस्पर्धात्मक जरूरतों के कारण कम हो पा रहा है। इसलिए हमें निजी स्वास्थ्य प्रदाताओं की अधिक सहभागिता को बढ़ावा देना चाहिए। हमें गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं को प्रदान करने में उनकी सहभागिता के लिए नवान्वेषी मॉडल विकसित करने चाहिए।

सभी को स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने के लिए वहनीयता अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। खर्चीला चिकित्सा उपचार कुछ लोगों, खासकर, गरीबों के लिए भारी पड़ सकता है। वास्तव में बहुत से लोग इसी कारण निर्धनता में फंस जाते हैं। अधिक मूल्य के कारण बहुत से लोग वास्तव में विशेषज्ञ चिकित्सा से वंचित रह जाते हैं। स्वास्थ्य बीमा प्रणाली में सुदृढ़ता लाकर इस परिदृश्य में सुधार लाया जाना चाहिए। राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना में लाभभोगियों को नकदी रहित आंतरिक रोगी उपचार की सुविधा मिलती है। इसकी सीमा में बढ़ोतरी करके, इसमें बीमाधारक को व्यापक प्राथमिक, अद्वितीय तथा तृतीय चिकित्सा सुविधा प्रदान की जानी चाहिए। हमें गरीबी की रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले हर व्यक्ति तक इस सुविधा की उपलब्धता सुनिश्चित करनी चाहिए।

हमारी स्वास्थ्य सेवा कार्यनीति में चिकित्सा उपचार तथा इन्टरवेंशन से आगे की भी व्यवस्था होनी चाहिए। भारत जैसे देश में जहां जीवन-शैली संबंधी बीमारियों में बढ़ोतरी का रुझान दिखाई दे रहा है, निवारक स्वास्थ्य सेवा प्रासंगिक है। इसलिए हमारी स्वास्थ्य प्रणाली में केवल लोगों के उपचार की ही नहीं वरन इन स्वास्थ्य संबंधी स्थितियों से बचाव के लिए मार्गदर्शन की भी व्यवस्था होनी चाहिए। स्वच्छता और सफाई की, बीमारियों की रोकथाम में महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इस दिशा में किए जा रहे प्रयास कारगर हों, यह सुनिश्चित करने के लिए हमें स्थानीय प्रतिभागिता वाले निकायों के सक्रिय योगदान को बढ़ावा देना चाहिए।

देवियो आर सज्जनो, स्वास्थ्य सेवाओं में प्रौद्योगिकी के प्रयोग को पूरी तरह मान्यता दी जानी चाहिए। टेलीमेडिसिन परियाजना में, सेटेलाइट प्रौद्योगिकी का प्रयोग करते हुए दूर-दराज के स्वास्थ्य केंद्रों को शहरी इलाकों में सुपर स्पेशियलिटी अस्पतालों के साथ जोड़ा गया है और इससे विशेषज्ञ स्वास्थ्य परामर्श, जरूरतमंदों तथा सुविधा रहित लोगों तक पहुंचने में सहायता मिली है। स्वास्थ्य क्षेत्र में प्रौद्योगिकी के अधिक प्रयोग की संभावना खोजी जानी चाहिए। हमें विभिन्न बीमारियों के लिए कारगर तथा कम खर्चीले उपचार ढूंढ़ने होंगे। चिकित्सा प्रक्रियाओं के लिए महंगे आयातित उपकरणों पर अपनी निर्भरता कम करने के लिए ऐसे उपकरणों को देश में ही विकसित करने की जरूरत है। विज्ञान, प्रौद्योगिकी तथा नवान्वेषण नीति 2013 में नवान्वेषण के द्वारा हमारे देश के विकास को भारी प्रोत्साहन देने की व्यवस्था की गई है। इस नीति का फायदा, हमारे मेडिकल स्कूलों, अनुसंधान प्रयोगशालाओं तथा फार्मास्यूटिकल और इन्स्ट्रूमेंटेशन उद्योग को बेहतर निरुपणों को विकसित करने तथा उन्नत मेडिकल उपकरण बनाने के लिए उठाना चाहिए। हमारे अस्पतालों तथा मेडिकल कॉलेजों में हो रहे नवान्वेषणों को, इस तरह के कार्यकलापों को प्रोत्साहित करने के लिए मान्यता दी जानी चाहिए।

गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा के लिए पर्याप्त संख्या में योग्य स्वास्थ्य पेशेवरों की जरूरत होती है। वर्ष 2011-12 में प्रति एक लाख की आबादी पर चिकित्सकों, दंत चिकित्सकों, नर्सों, फार्मासिस्टों तथा अन्य को मिलाकर लगभग 241 स्वास्थ्य पेशेवर थे। बारहवीं योजना के अंत तक हमें इन स्वास्थ्य पेशेवरों की संख्या को बढ़ाकर 354 तक लाने की उम्मीद है।

इसके लिए गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा शिक्षा प्रदान करने के लिए और अधिक संस्थानों को स्थापित करने की जरूरत है। यह अच्छी बात है कि इस तरह के प्रयासों को बढ़ावा देने के लिए अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान की तर्ज पर छह संस्थान स्थापित किए जा रहे हैं। हमारे मौजूदा मेडिकल स्कूलों, नर्सिंग कॉलेजों की क्षमता बढ़ाने तथा उनके स्तर में भी सुधार की जरूरत है। मुझे विश्वास है कि हमारे सार्वजनिक मेडिकल कॉलेज अधिक संख्या और बेहतर गुणवत्ता की दोहरी मांग को पूरा करने में सफल होंगे। हमारी स्वास्थ्य सेवा प्रणाली की सफलता हमारे चिकित्सकों तथा अन्य चिकित्सा पेशेवरों की क्षमता, प्रतिबद्धता तथा उनके समर्पण पर निर्भर करेगी।

आपके जैसे चिकित्सा संस्थानों को इस बात पर गंभीरता से विचार करना चाहिए कि हमारे देश की स्वास्थ्य प्रणाली कैसी होनी चाहिए। क्या यह लाभ पर आधारित पूर्णत: वाणिज्यिक प्रणाली हो या फिर यह हमारी सामाजिक आर्थिक स्थिति के प्रति संवेदी हो, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि आप छात्रों में कैसी मूल्य आधारित शिक्षण का समावेश करते हैं। मैं आपका आह्वान करता हूं कि युवा चिकित्सकों के मन में देश भक्ति और सामाजिक उत्तरदायित्व की दृढ़ भावना का समावेश करें। युवा चिकित्सकों की, अधिक कौशल प्राप्त करने और अपने अवसरों में वृद्धि के लिए, प्रमुख विदेशी संस्थानों से उच्च शिक्षा प्राप्त करने की इच्छा आसानी से समझ में आती है। परंतु उन्हें अपनी मातृभूमि से पवित्र रिश्ता बनाकर रखना चाहिए। हमें देश के कल्याण के कार्य में ऐसे मेधावी और योग्य चिकित्सकों की सहभागिता सुनिश्चित करने के लिए उपाय तलाश करने चाहिए।

चिकित्सा के पेशे को समाज में सभी सम्मान देते हैं। ईश्वर के बाद चिकित्सकों को स्थान दिया जाता है। मुझे विश्वास है कि हमारा चिकित्सक समुदाय लोगों द्वारा उन पर रखे जाने वाले भरासे और विश्वास का सम्मान करेंगे। इस पेशे में प्रवेश करने वाले चिकित्सकों को हिपोक्रेट की शपथ दिलाई जाती है। युवा मस्तिष्कों में इस शपथ के सही अर्थ का समावेश करना जरूरी है। इसलिए चिकित्सा संस्थानों का यह उत्तरदायित्व है कि वे अपने छात्रों के मस्तिष्कों में नैतिक व्यवहार की भावना भरें।

मैं उन विद्यार्थियों को बधाई देता हूं जिन्होंने आज उपाधियां प्राप्त की हैं। आपकी इस व्यावसायिक उपाधि ने आपको देश के लिए योगदान देने—लाखों लोगों के जीवन को प्रभावित करने और उसे बदलने की शक्ति प्रदान की है। मुझे उम्मीद है कि आप लोग समाज की नि:स्वार्थ सेवा के पावन उद्देश्य के प्रति अपनी प्रतिबद्धता पर अडिग रहेंगे। मैं आपको अपने जीवन और जीविकोपार्जन में सफलता की कामना करता हूं। मैं इस महान संस्थान में कार्यरत चिकित्सकों, संकाय सदस्यों और अन्य लोगों को उनके प्रयासों के लिए शुभकामना देता हूं।

धन्यवाद,

जय हिंद!