भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, जोधपुर में प्रथम दीक्षांत व्याख्यान देना मेरे लिए गौरव तथा सम्मान की बात है। मैं इसके अध्यक्ष, निदेशक, बोर्ड के विशिष्ट सदस्यों, शिक्षकों कर्मचारियों तथा विद्यार्थियों को इस बात के लिए बधाई देता हूं कि उन्होंने बहुत ही कम समय के अंदर भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, जोधपुर को देश तथा विदेशों में एक प्रमुख प्रौद्योगिकी संस्थान के रूप में ख्याति दिलाई।
दीक्षांत समारोह एक महत्वपूर्ण अवसर होता है जो कि विद्यार्थियों के जीवन के एक महत्वपूर्ण चरण की समाप्ति का प्रतीक है। मैं भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, जोधपुर से स्नातक की उपाधि पा रहे सभी विद्यार्थियों को हार्दिक बधाई देता हूं। मुझे विश्वास है कि आप यह स्वीकार करेंगे कि आपकी सफलता आपके परिजनों और संकाय सदस्यों की सहायता और सहयोग के बिना संभव नहीं होती।
पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान खड़गपुर में 1956 में एक व्याख्यान में कहा था- ‘‘आप किसी भी प्रौद्योगिकीय रूप से विकसित देश में देखेंगे कि किस तरह इंजीनियर एवं वैज्ञानिक अपने इंजीनियरी तथा विज्ञान के क्षेत्रों से बाहर भी कहीं अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।’’ यह सही बात है और यही भारत में होना अवश्यंभावी है। भारतीय प्रौद्योगिकीय संस्थान प्रणाली, प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत की प्रगति और सफलता का प्रतीक है। मुझे यह जानकर प्रसन्नता हो रही है कि भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, जोधपुर ने प्रणाली विज्ञान तथा जैव-प्रेरित प्रणाली विज्ञान जैसे पूर्व स्नातक कार्यक्रम शुरू किए हैं जहां कला, मानविकी, इंजीनियरी, जैव-प्रौद्योगिकी, क्वांटम भौतिकी, इकॉनोमैट्रिक, प्रणाली चिंतन तथा प्रणाली डायनॉमिक्स जैसे विभिन्न विषयों के बीच परस्पर संपर्क द्वारा विज्ञान की मौजूदा सीमाओं को चुनौती दी जा रही है।
भारत आज महानता के द्वार पर खड़ा है। जहां हमारे सामने चुनौतियां हैं वहीं व्यापक अवसर भी मौजूद हैं। विज्ञान और प्रौद्योगिकी को, विश्व के राष्ट्रों की अग्रिम पंक्ति में ले जाने के माध्यम के तौर पर मान्यता प्रदान की गई है। हमें अपनी प्रगति में सहयोग के लिए बड़ी संख्या में वैज्ञानिक तथा तकनीकी कर्मियों को तैयार करना होगा। हमारी बढ़ती हुई युवा जनसंख्या है। एक दशक के अंदर हमारे पास विश्व की सबसे बड़ी कार्मिक शक्ति होने की संभावना है। हमें देश में तकनीकी शिक्षा का प्रसार करके जनसंख्या के इस बदलाव का लाभ उठाना होगा। ग्यारहवीं योजना अवधि के दौरान इस दिशा में शुरू की गई एक महत्वपूर्ण पहल थी, आठ नए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान खोलकर प्रख्यात भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान प्रणाली का प्रसार करना। सबसे नए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान के रूप में, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, जोधपुर के समक्ष न केवल उच्चतम मानकों को बनाए रखने का, जिसके लिए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान जाने जाते हैं, बल्कि इंजीनियरी शिक्षा क्षेत्र में अपने लिए एक विशिष्ट स्थान बनाने का भी महत्त्वपूर्ण काम है।
मित्रो, शिक्षा में सामाजिक कायाकल्प के लिए महान शक्ति निहित है। हाल ही में, महिलाओं और बच्चों पर पाशविक हमले की बढ़ती घटनाओं ने राष्ट्र की सामूहिक अंतरात्मा को झकझोर दिया है। इन दुखद घटनाओं से उनकी सुरक्षा तथा हिफाजत सुनिश्चित करने की जरूरत महसूस हुई है। इससे हमारे द्वारा मूल्यों के पतन को तत्काल रोकने की जरूरत भी महसूस हुई है। खासकर, इससे हम सभी को आत्मचिंतन करने तथा अपनी नैतिक दिशा का पुन: निर्धारण करने की जरूरत भी सामने आई है। स्कूलों से शुरू होकर हमारे शिक्षा संस्थानों को समसामयिक नैतिक चुनौतियों का सामना करने के लिए मार्गदर्शक के रूप में काम करना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि मातृभूमि के प्रति प्रेम; कर्तव्यों का निर्वाह; सभी के प्रति करुणा; बहुलवाद के प्रति सहिष्णुता; महिलाओं तथा बुजुर्गों का सम्मान; जीवन में सच्चाई और ईमानदारी; अनुशासन एवं आचरण में आत्म संयम तथा कार्यों में जिम्मेदारी के अनिवार्य सभ्यतागत मूल्य युवाओं के मस्तिष्कों में पूरी तरह समाहित हों।
हमारे उच्च शिक्षा क्षेत्र में आज ऐसे पर्याप्त अच्छी गुणवत्तायुक्त संस्थान नहीं हैं जो हमारे युवाओं की बढ़ती अभिलाषाओं को पूरा कर सकें। इनकी संख्या बढ़ाने के साथ-साथ शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने के अभियान पर हमारे नीति निर्धारकों का ध्यान आकृष्ट होना चाहिए। यह चिंता की बात है कि विश्व में सर्वोत्तम 200 विश्वविद्यालयों की सूची में भारत के एक भी संस्थान का नाम नहीं है। पहले हमारे यहां ऐसा नहीं था। आठवीं सदी ईसापूर्व से शुरू होकर लगभग आठ सौ वर्षों तक तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला, वल्लभी, सोमपुरा जैसे प्राचीन विश्वविद्यालय पूरी विश्व शिक्षा प्रणाली पर छाए हुए थे। तेरहवीं सदी में नालंदा विश्वविद्यालय के पतन के साथ, इस प्रणाली के हृस से पूर्व भारत की विशाल शिक्षा प्रणाली को अत्यंत दक्षतापूर्ण माना जाता था।
हममें अपनी खोई हुई हैसियत को फिर से पाने की क्षमता है। यह संभव है कि हमारे कुछ विश्वविद्यालय विश्व में शीर्ष श्रेणी में शामिल हो सकें। परंतु इसके लिए हमें अपने संस्थानों के प्रबंधन तथा उसमें प्रदान की जा रही शिक्षा के तरीकों में जरूरी बदलाव लाने होंगे। अकादमिक प्रबंधन में लचीलापन होना चाहिए। उनमें उत्कृष्टता की संस्कृति का समावेश किया जाना चाहिए। प्रत्येक विश्वविद्यालय को ऐसे एक या दो विभाग तैयार करने चाहिएं, जिन्हें उत्कृष्टता केंद्र के रूप में बदला जा सके।
मित्रो, प्रौद्योगिकी से शिक्षण पद्धति में परिष्कार लाया जा सकता है। इससे संख्या, गुणवत्ता, उपलब्धता, वहनीयता तथा संकाय की कमी की चुनौतियों का सामना किया जा सकता है। ई-कक्षाओं से फासलों को नजरअंदाज करते हुए दूर-दूर तक व्याख्यानों का प्रसारण करके सूचना तथा ज्ञान को साझा करने में सहायता मिलती है। प्राय: किसी एक फील्ड में विशेषज्ञों की कमी को देखते हुए विशेषज्ञों को आपस में आदान-प्रदान करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए जिससे उस विषय विशेष को लाभ हो। सूचना और संचार प्रौद्योगिकी के माध्यम से राष्ट्रीय शिक्षा मिशन इस दिशा में एक महत्त्वपूर्ण पहल है।
उच्च शिक्षा को केवल कुछ ही भाग्यशाली लोगों को प्राप्त उत्पाद नहीं होना चाहिए। इसके लिए देश के कोने-कोने तक गुणवत्तायुक्त शैक्षणिक संस्थानों के विकास की जरूरत है। इसके लिए आर्थिक रूप से कठिन पृष्ठभूमि से आने वाले मेधावी छात्रों को शिक्षा को वहनीय बनाने के लिए विभिन्न विद्यार्थी सहायता योजनाओं को संस्थागत रूप देना होगा। उच्च शिक्षा की उपलब्धता में वृद्धि से और अधिक युवा इस व्यवस्था में प्रवेश पाएंगे और इसके परिणामस्वरूप हमारी अर्थव्यवस्था के विकास केंद्रों को ऊर्जा प्रदान करने के लिए काफी बड़ी प्रशिक्षित तथा सक्षम कार्मिक शक्ति उपलब्ध होगी।
मित्रो, नवान्वेषण को भविष्य की पूंजी माना जा रहा है। इससे व्यापार को प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त मिलती है तथा यह कारगर शासन के लिए समाधान उपलब्ध कराते हैं। अत: इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि विश्व भर में सरकारें नवान्वेषण के लिए सुव्यवस्थित प्रयास कर रही हैं। उच्च शिक्षा के हमारे संस्थानों, खासकर भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों को नवान्वेषण कार्यकलापों का जनक होना चाहिए। इसके लिए अनुसंधान अध्येता, अन्तरविधात्मक तथा अन्तर विश्वविद्यालयी अनुसंधान सहयोग अपेक्षित है।
2010-20 के दशक को भारत में नवान्वेषण का दशक घोषित किया गया है। हमने इस वर्ष विज्ञान, प्रौद्योगिकी तथा नवान्वेषण नीति तैयार की है, जिसका लक्ष्य नवान्वेषण आधारित विकास है। इस नीति में जमीनी नवान्वेषकों सहित, ऐसे नवान्वेषकों की पहचान तथा उनको प्रोत्साहन देने की जरूरत बताई गई है जो कि अपनी उत्कृष्ट प्रतिभा से प्रक्रियाओं में मूल्य संवर्धन करें जिसका आम आदमी को लाभ होगा। इन प्रयासों में उच्च शिक्षा केंद्रों और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों को प्रमुख भूमिका निभानी है। मैं भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, जोधपुर को राजस्थान सरकार के सहयोग से नवान्वेषण तथा उद्भवन केंद्र स्थापित करने के लिए बधाई देता हूं। मुझे उम्मीद है कि इस उदाहरण का अन्य संस्थानों द्वारा अनुकरण किया जाएगा।
मैं उन विद्यार्थियों को बधाई देता हूं जो आज स्नातक बने हैं। आप न केवल अपने पेशे के लिए बहुमूल्य संपत्ति हैं बल्कि हमारे देश की बौद्धिक संपदा भी हैं। आप एक प्राचीन सभ्यता से उत्पन्न नवीन राष्ट्र की शिक्षा प्रणाली की उपज हैं। आपको हमारे देश के लोकतांत्रिक आदर्शों को पूरी तरह समझ लेना चाहिए। आपको न केवल हमारी राजव्यवस्था में प्रदत्त अधिकारों का उपयोग करना चाहिए बल्कि देश के प्रति अपने उत्तरदायित्वों को भी सच्चे दिल से स्वीकार करना चाहिए।
अरस्तू के शब्दों में, ‘‘उत्कृष्टता कभी भी दुर्घटनावश नहीं आती। यह सदैव ऊंचे इरादों, ईमानदारी से प्रयास, बुद्धिमत्ता से निष्पादन का परिणाम होती है; यह बहुत से विकल्पों में से बुद्धिमत्तापूर्ण चयन का प्रतीक होती है—विकल्प, न कि संयोग आपके भाग्य का निर्धारण करता है।’’ आप, जिन भी विद्यार्थियों ने इस सम्मानित संस्थान का हिस्सा बनने का निर्णय लिया तथा जो आज इस संस्थान से प्रस्थान कर रहे हैं, उन्हें यह याद रखना चाहिए कि आप हमारे देश के सबसे मेधावी युवाओं में से हैं। हमारे देश के शासन तथा राष्ट्रीय महत्त्व के मुद्दों पर आपकी रुचि होनी चाहिए। उनके बारे में पढ़ें, सीखें तथा उन पर अपना मत बनाएं। किसी भी स्वस्थ लोकतंत्र की विशेषता सूचना पर आधारित सहभागिता होती है। खुद सूचना संपन्न हों और दूसरों को सूचना प्रदान करें। हमारे सुंदर, जटिल, प्राय: दुरुह और कभी-कभार शोरगुल युक्त लोकतंत्र में सहभागिता करें। ऐसे बेहतर नागरिक बनाने में देश की सहायता करें जो अपने अधिकारों और उत्तरदायित्वों को समझते हों।
मुझे विश्वास है कि भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, जोधपुर में प्रदान की गई शिक्षा ऐसे कुशल पेशेवरों को उत्पन्न करेगी जो देश की बौद्धिक संपदा में वृद्धि करेंगे तथा खुद अपनी प्रगति का रास्ता बनाएंगे। आज स्नातक बनने वाले सभी विद्यार्थियों को मेरी शुभकामनाएं। मैं अंत में महात्मा गांधी को उद्धृत करना चाहूंगा। उन्होंने कहा था, ‘‘वह परिवर्तन बनें जो आप विश्व में देखना चाहते हैं’’ और मैं आप सबसे कहता हूं कि विश्व का नेतृत्व करें, परिवर्तन बनें तथा भारत का गौरव बढ़ाएं।
धन्यवाद,
जय हिंद!