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‘सिल्क लेटर मूवमेंट’ पर स्मारक डाक टिकट जारी करने के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण

नई दिल्ली : 11.01.2013



यहां ‘सिल्क लेटर मूवमेंट’ पर समर्पित डाक टिकट को जारी करने के लिए यहां उपस्थित होना मेरे लिए वास्तव में खुशी का अवसर है। जैसा हम सभी जानते हैं, 15 अगस्त, 1947 का समय लगभग दो सौ वर्षों के दौरान आयोजित प्रतिरोधों, सघन राजनीतिक गतिविधियों, उपवासों, यात्राओं, विरोधों, प्रदर्शनों तथा अन्य विभिन्न प्रकार के आंदोलनों का चरमोत्कर्ष था।आज जब हम इस संघर्ष की महागाथा पर नजर डालते हैं तो हम हर वर्ग के लोगों द्वारा अपनी वैयक्तिक सुविधा और सुरक्षा की परवाह किए बिना दीर्घकाल तक वीरतापूर्वक लड़ी गई इस लड़ाई को हैरत से देखते रह जाते हैं। यह एक बड़ा आंदोलन था जिसके बहुपक्षीय आयाम थे। इस आंदोलन में विभिन्न धंधों, विभिन्न विचारधाराओं के लोगों ने विदेशी सत्ता के खिलाफ बहुपक्षीय प्रतिरोध प्रस्तुत किया। इस विशिष्ट संघर्ष की विशेषता यह थी कि लोगों ने देश को विदेशी प्रभुत्व से मुक्त करने के लिए विभिन्न उपायों का सहारा लिया, जिन लोगों ने इस संघर्ष में भाग लिया वे विभिन्न विचारधाराओं और नजरियों के लोग थे। उनके दृष्टिकोणों और विदेशी सत्ता के विरुद्ध उनके प्रतिरोध के तरीकों में अंतर होते हुए भी वे सभी उपवनिवेशवादी सत्ता के जुए से अपनी मातृभूमि को आजाद कराने की आकांक्षा में एकजुट थे।

‘सिल्क लेटर मूवमेंट’ भी कुछ क्रांतिकारियों द्वारा किया गया ऐसा ही एक प्रयास था। यह आंदोलन वास्तव में, अंग्रेजों के शासन का तख्ता पलटने के लिए भारत के अंदर विद्रोह को आयोजित करने में अफगानिस्तान और तुर्की की सरकारों का समर्थन हासिल करने की एक योजना थी। ओबेदुल्ला सिंधी तथा मौलाना महमूद हसन इस आंदोलन के दो प्रमुख नेता थे। अगस्त, 1916 में रेशम पर लिखे हुए कुछ पत्र अंग्रेजों के हाथ पड़ गए। यह माना जाता है कि अंग्रेज सरकार द्वारा जब्त किए गए रेशमी पत्रों में आजाद हिंद की अनंतिम सरकार का ब्योरा तथा इसकी योजना और सेना गठित करने और तुर्की की सरकार की सहायता प्राप्त करने की विस्तृत योजना थी।

सिल्क लेटर मूवमेंट जैसे आंदोलनों से जुड़े व्यक्तियों और समूहों का बलिदान, भारत के स्वतंत्रता संघर्ष के इतिहास में एक शानदार अध्याय है और इसको मान्यता देने और प्रशंसा करने की जरूरत है। आजाद भारत में पैदा हुई और आजादी के फलों का आनंद उठाती युवा पीढ़ी को इस संघर्ष की कहानियां बार-बार सुनाए जाने की जरूरत है।

मुझे खुशी है कि डाक विभाग ने इस दिशा में अपना योगदान दिया है। पिछले वर्षों के दौरान, इसने उन विभिन्न समूहों और आंदोलनों को मान्यता प्रदान करने के लिए डाक टिकट जारी किए हैं, जिन्होंने भारत को आजाद कराने के समग्र प्रयासों में अपने-अपने तरीके से योगदान दिया है। सामान्य भारतीय डाक टिकट, अक्तूबर, 1854 में गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी के कार्यकाल में शुरू किए गए थे। लाल तथा नीले रंग के लिथोग्राफ पर मुद्रित ये डाक टिकट क्रमश: एक आना तथा आधा आना मूल्य के थे तथा इन पर महारानी विक्टोरिया का चित्र छपा था। अंग्रेजी राजशाही के ये प्रतीक 15 अगस्त, 1947 को भारत द्वारा आजादी प्राप्त करने पर समाप्त हो गए थे। यह हमारे लिए एक गर्व का क्षण था जब कि जयहिंद छपे हुए पहले तीन डाक टिकट आजाद भारत द्वारा जारी किए थे। मुझे बताया गया है कि तब से इस विभाग ने तीन हजार से अधिक डाक टिकट जारी कर दिए हैं जिनमें से कई उन महान शख्सियतों तथा घटनाओं पर हैं जिन्होंने स्वतंत्रता संघर्ष में योगदान दिया।

मैं श्री कपिल सिब्बल को ‘सिल्क लेटर मूवमेंट’ पर डाक टिकट समर्पित करने के उनके प्रयासों के लिए बधाई देता हूं जो कि स्वतंत्रता संघर्ष के बहु-सांस्कृतिक तथा बहु-पक्षीय आयामों का सच्चा प्रतिबिंब करता है। मैं आप सबके साथ इस महान आंदोलन के महान प्रयासों और योगदान को शृद्धांजलि देता हूं।

जय हिंद!