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राष्ट्रीय शिक्षा दिवस समारोह के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण

नई दिल्ली : 11.11.2012



मुझे, आज राष्ट्रीय शिक्षा दिवस समारोह में आपके बीच उपस्थित होकर बहुत गौरव की अनुभूति हो रही है। एक महान स्वप्नदर्शी, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, विद्वान, पंथ-निरपेक्ष विचारक, सुप्रसिद्ध शिक्षाविद् तथा भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आज़ाद की जन्म जयंती के उपलक्ष्य में 11 नवम्बर को राष्ट्रीय शिक्षा दिवस मनाया जाता है।

इस दिन को इस प्रकार से उनको समर्पित करना केवल आजाद भारत में शिक्षा की मजबूत आधारशिला रखने में मौलाना के योगदान को याद करने का देश का तरीका नहीं है बल्कि उस रास्ते को तथा तरक्की को संकल्पना देने के लिए भी है जिसे लेकर भारतीय शिक्षा प्रणाली को हर स्तर पर आगे बढ़ना है। मेरी राय में इस अवसर पर हम हर साल विद्यार्थियों, शिक्षकों, शिक्षाविदों, शिक्षा प्रशासकों, अनुसंधानकर्ताओं, माता-पिताओं, गैर शैक्षणिक कार्मिकों तथा समग्र समाज, सभी भागीदारों के प्रयास द्वारा भारत को एक ऐसे ज्ञानवान समाज के रूप में पुन: उद्घाटित करने के लिए खुद को पुन: समर्पित करते हैं जो कि विश्व के देशों में अपने लिए एक स्थान बना रहा है।

इस अवसर पर, इस महान नेता की याद ताजा करना तथा शिक्षा को उच्च प्राथमिकता प्रदान करने और एक जीवंत तथा आधुनिक भारत के निर्माण में इसकी भूमिका प्रदान करने में उनके योगदान को याद करना उचित होगा। मौलाना अबुल कलाम आज़ाद हमारी आजादी की लड़ाई के उन महान नेताओं में से थे जिन्होंने आजादी के संघर्ष से पहले और उसके बाद भारत की एकता का पक्ष लिया। स्वतंत्र विचारों की उनकी भावना तथा आजाद और पंथनिरपेक्ष मूल्यों में उनके दृढ़ विश्वास के कारण उन्होंने अपने नाम के आगे आज़ाद शब्द जोड़ लिया।

भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री के रूप में उनका विश्वास था कि शिक्षा सामाजिक परिवर्तन का साधन है। मौलाना आजाद मानते थे कि देश तभी अधिक उन्नति और प्रगति कर पाएगा जब शिक्षा प्रणाली को अधिक व्यवहार्य, व्यवहारिक तथा समाज और उद्योग की तात्कालिक जरूरतों के प्रति उपयोगी बनाया जाए। शिक्षा की जरूरत के महत्त्व को स्वीकार करते हुए उन्होंने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग तथा भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान जैसे कई शिक्षा आयोग, परिषद तथा संस्थान स्थापित किए।

जब हम मौलाना की देन पर विचार करते हैं तो हमें उनके समग्र योगदान को स्वीकार करना होगा जो कि केवल शिक्षा तक ही सीमित नहीं था बल्कि जीवन के अन्य क्षेत्रों में भी था। खिलाफत आंदोलन में उनकी भागीदारी ने उन्हें महात्मा गांधी जी के निकट आने का अवसर दिया और उसके बाद उनका सान्निध्य जगज़ाहिर है। मौलाना आज़ाद के संघर्ष का महत्त्व आज और भी स्पष्ट हो जाता है जबकि हम यह याद करते हैं कि एक राष्ट्रीय नेता के रूप में उन्होंने संप्रदायिकता के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया। उन्होंने धर्म के आधार पर अलग-अलग मतदान क्षेत्रों का भी कड़ा विरोध किया और एक ऐसे आजाद भारत का समर्थन किया जो कि पंथनिरपेक्ष हो। उन्होंने समाजवाद के सिद्धांत का भी समर्थन किया जिससे उन्हें असमानता, निर्धनता तथा दूसरी आर्थिक समस्याओं से लड़ने का बल मिला। समानता तथा समता के लिए उनकी प्रतिबद्धता के कारण वे नेहरू जी को बहुत प्रिय हो गए थे और वे उन्हें प्यार से ‘मीर-ए-कारवां’ अर्थात् कारवां का मुखिया कहते थे।

मौलाना आज़ाद भारत की सामासिक संस्कृति के प्रति भी पूरी तरह जागरूक थे। इसलिए सामाजिक-धार्मिक तथा सांस्कृतिक खाई को पाटने के लिए तथा भारतीय संस्कृति तथा विरासत को समृद्ध करने के लिए उन्होंने ललित कला अकादमी, संगीत नाटक अकादमी तथा साहित्य अकादमी जैसे कई राष्ट्रीय महत्त्व के संस्थान स्थापित किए।

मौलाना आजाद 1956 में यूनेस्को के महा सम्मेलन के भी अध्यक्ष थे और मुझे खुशी है कि यूनेस्को की महानिदेशक सुश्री इरिना बोकोवा आज हमारे बीच हैं। मौलाना आजाद की एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि थी, अन्य देशों के साथ सांस्कृतिक संबंधों को बढ़ाने के लिए भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद की स्थापना, तथा मुझे खुशी है कि परिषद के अध्यक्ष डॉ. कर्ण सिंह जो यूनेस्को की कार्यकारी परिषद में भारत के पदनामित प्रतिनिधि भी हैं, यहां हमारे बीच उपस्थित हैं।

मौलाना आज़ाद मानते थे कि, ‘‘देश की दौलत देश के बैंकों में नहीं बल्कि प्राथमिक स्कूलों में है।’’ वह समझते थे कि आजाद भारत की शिक्षा की विषयसामग्री औपनिवेशिक भारत से अलग होनी चाहिए। मौलाना आजाद मानते थे कि शिक्षा प्रणाली चार स्तरीय होनी चाहिए। सबके लिए मुफ्त तथा अनिवार्य बुनियादी शिक्षा; प्रौढ़ शिक्षा की व्यवस्था; तकनीकी शिक्षा में सुधार तथा उसका प्रसार; तथा राष्ट्रीय स्तर पर विश्वविद्यालयी शिक्षा का पुनर्गठन तथा उसमें सुधार।

मौलाना आज़ाद का यह दृढ़ मत था कि प्रत्येक व्यक्ति को शिक्षा का अधिकार होना चाहिए ताकि वह अपनी योग्यताओं का विकास कर सके और पूर्ण मानव जी सके। उन्होंने यह भी कहा था कि ऐसी शिक्षा हर एक नागरिक का जन्मसिद्ध अधिकार है। स्वतंत्र और अनिवार्य शिक्षा के लिए बच्चों का अधिकार अधिनियम, 2009 मौलाना के स्वप्नों को साकार करता है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय इस समय उपेक्षित पर स्थित तथा वंचित समूहों पर विशेष ध्यान देते हुए सभी के लिए गुणवत्तायुक्त शिक्षा की नीति को कार्यान्वित कर रहा है। सर्वशिक्षा अभियान में बालिकाओं तथा वंचित समूहों और कमजोर तबकों से आने वाले बच्चों और इस बात को सुनिश्चित करने पर विशेष ध्यान दिया गया है कि प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्कूल बस्तियों के नजदीक उपलब्ध हों जैसा कि इस अधिनियम में व्यवस्था की गई है। इसके अलावा, स्कूली स्तर पर समावेशी शिक्षा का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए सर्वशिक्षा अभियान को यह सुनिश्चित करना होगा कि अपंगता की किस्म, श्रेणी तथा उसकी मात्रा पर ध्यान दिए बिना विशेष जरूरतों वाले हर एक बच्चे को उपयोगी तथा गुणवत्तायुक्त शिक्षा प्रदान की जाए। शिक्षा का अधिकार अधिनियम में, गंभीर अपंगता से ग्रस्त बच्चों के लिए घर पर शिक्षा का भी विकल्प रखा गया है। पिछले वर्ष 11 नवंबर 2011 को राष्ट्रीय शिक्षा दिवस पर जो ‘शिक्षा का हक’ अभियान शुरू किया गया था वह यह सुनिश्चित करने के लिए है कि देश के सभी स्कूलों में इस अधिनियम के प्रावधानों का अनुपालन हो। 11वीं पंचवर्षीय योजना में प्राथमिक शिक्षा की प्राप्ति एक प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र है। मुझे बताया गया है कि इस समय स्कूलों की संख्या बढ़कर 13.04 लाख हो चुकी है और सकल पंजीकरण अनुपात लगभग 120 प्रतिशत तक पहुंच गया है। राष्ट्रीय लक्ष्यों को पूरा करना सदैव एक चुनौती रहेगी लेकिन हमें इस पर व्यापक तथा कारगर ढंग से कार्य करना होगा।

मुझे यह जानकर प्रसन्नता हो रही है कि शिक्षक क्षमता, शिक्षक प्रशिक्षण तथा उत्प्रेरण, कारगर शिक्षा पद्धति को बढ़ावा देकर तथा जिला और ब्लॉक स्तर पर स्कूली शिक्षा प्रणाली के बेहतर प्रबंधन की क्षमता में सुधार करके सर्व शिक्षा अभियान के तहत शिक्षा की गुणवत्ता पर समुचित ध्यान दिया जा रहा है।

सर्वशिक्षा अभियान के सफलतापूर्वक कार्यान्वयन से राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान के द्वारा माध्यमिक शिक्षा को सशक्त करने की भी जरूरत महसूस हुई है। इस अभियान को 2009-10 में माध्यमिक शिक्षा के पंजीकरण बढ़ाने, विज्ञान, गणित और अंग्रेजी शिक्षा पर विशेष ध्यान देने, विद्यार्थियों के स्कूल बने रहने की दर में सुधार करने तथा पंजीकरण में लैंगिक, सामाजिक तथा क्षेत्रीय खाई को कम करने के लिए शुरू किया गया था। सरकार द्वारा माध्यमिक और उच्च माध्यमिक स्कूली स्तर पर क्षमता को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। इस समय 6000 मॉडल स्कूल स्थापित करने का कार्य चल रहा है तथा इनमें से 2500 सार्वजनिक-निजी भागीदारी के तहत है।

स्कूलों में सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी शुरू करने से शैक्षणिक सामग्री तैयार हो पाएगी और इसे इस स्कीम के तहत तैयार हो रहे नेटवर्क के माध्यम से स्कूलों को उपलब्ध कराया जाएगा। माध्यमिक स्तर पर शुरू की गई दूसरी स्कीमों से भी गुणवत्तायुक्त शिक्षा तथा इस स्तर पर और अधिक पंजीकरण का लक्ष्य प्राप्त करने के कार्य को प्रोत्साहन मिलेगा। 8 सितम्बर, 2009 को अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस के मौके पर शुरू की गई साक्षर भारत स्कीम महिला साक्षरता पर समुचित ध्यान केंद्रित करेगी और साथ ही साक्षरता तथा दक्षता विकास के बीच तालमेल भी बिठाएगी।

यदि हम देश की जनसंख्या की प्रकृति से लाभ उठाना चाहते हैं, तो हमें अपने युवाओं में दक्षता विकास के महत्त्वपूर्ण कार्य को आगे बढ़ाना होगा। मुझे बताया गया है कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने हाल ही में एक राष्ट्रीय व्यावसायिक शिक्षा अर्हता ढांचा तैयार किया है जिसमें व्यावसायिक शिक्षा तथा सामान्य शिक्षा के बीच समांतर तथा उर्ध्व आवागमन की व्यवस्था है। दक्षता निर्माण के कार्य को बड़े स्तर पर हाथ में लेना होगा ताकि हम अपने देश के युवाओं को नौकरियों और देश के आर्थिक विकास के लिए समुचित रूप से तैयार और प्रेरित कर सकें।

मैं इस बात पर जोर देना चाहूंगा कि प्रौद्योगिकी आधारित शिक्षण, शिक्षा का एक बहुत महत्त्वपूर्ण पहलू है। इसे हमारी विशिष्ट जरूरतों के अनुसार अनुकूलित करना होगा तथा पूरे देश के सभी शिक्षण संस्थानों में तेजी से शुरू करना होगा।

मुझे इस बात की खुशी है कि यूनेस्को भारत सरकार के सहयोग से महात्मा गांधी शांति एवं सतत् विकास संस्थान की स्थापना कर रही है, जो कि एशिया में यूनेस्को का प्रथम श्रेणी का संस्थान होगा। यह उचित ही है कि इस संस्थान का नाम हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के नाम पर रखा गया है और उसे आज भारत के एक दूसरे सपूत मौलाना अबुल कलाम आज़ाद की जन्म जयंती के अवसर पर शुरू किया जा रहा है।

अंत में, मैं इस बात पर जोर देना चाहूंगा कि हमें इस बात का ध्यान रखना होगा कि हमारी शिक्षा प्रणाली का मूल्यांकन केवल उपाधि प्राप्त लोगों से नहीं बल्कि ऐसे लोगों की बड़ी संख्या तैयार करने से होगा जो कि ऐसे ज्ञानवान नागरिक होंगे जो मानवता का आदर करें तथा स्वाभाविक रूप से घृणा, क्षेत्रीयता, हिंसा, फूट की संकीर्ण विचारधाराओं से ऊपर उठकर एक बेहतर, मजबूत और जीवंत भारत के निर्माण के लिए योगदान दें।

स्वामी विवेकानंद का भी मानना था कि किसी भी देश का भविष्य उसकी जनता पर निर्भर है। उनके अनुसार शिक्षा केवल सूचनाओं का संग्रह नहीं है बल्कि इससे कहीं अधिक सार्थक चीज है; शिक्षा से जीवन को दिशा मिलनी चाहिए और चरित्र का निर्माण होना चाहिए। उनके लिए शिक्षा महान विचारों का समावेश था। उनकी एक प्रसिद्ध उक्ति है, ‘‘शिक्षा सूचना की वह मात्रा नहीं है जो हम अपने दिमाग में भरते हैं... हमें ऐसे विचारों का समावेश करना होगा जो जीवन का निर्माण करे, मानव का निर्माण करे और चरित्र का निर्माण करे। यदि आपने पांच विचारों का समावेश किया और उन्हें अपना जीवन और चरित्र बना लिया तो आपने उस व्यक्ति से अधिक शिक्षा प्राप्त कर ली है जिसने एक पूरा पुस्तकालय कंठस्थ कर लिया है...’’

इन्हीं कुछ शब्दों के साथ मैं शिक्षा दिवस के अवसर पर पूरे देश की शिक्षा प्रणाली में शिक्षकों, विद्यार्थियों तथा भागीदारों को बधाई देता हूं। मैं मानव संसाधन विकास मंत्रालय को उनके द्वारा किए जा रहे प्रयासों के लिए बधाई देता हूं तथा उनकी भावी नीतियों एवं कार्यक्रमों की सफलता की कामना करता हूं।

धन्यवाद।