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राष्ट्रीय भू-विज्ञान पुरस्कार 2016 प्रदान करने के अवसर पर, भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण

राष्ट्रपति भवन : 12.04.2017



मेरे लिए आज इस खुशी के अवसर पर आप सबके बीच उपस्थित होना सचमुच बड़े सौभाग्य की बात है,जब हम वर्ष 2016 के लिए राष्ट्रीय भू-विज्ञान पुरस्कार विजेताओं के परिश्रम और समर्पण को मान्यता दे रहे हैं।

संस्थागत और शैक्षिक दोनों स्तर पर ही भारत के भू-वैज्ञानिक की समृद्ध परम्परा है। राष्ट्रीय भू-वैज्ञानिकों के समर्पित कार्य संबंधी योगदान और वर्षों के लिए उन्हें सम्मानित करने की खान मंत्रालय द्वारा आरम्भ किए गए राष्ट्रीय भू-वैज्ञानिक पुरस्कार एक प्रशंसनीय पहल है। पिछले पांच दशकों में ये पुरस्कार भू-विज्ञान के क्षेत्र में सर्वाधिक प्रतिष्ठित पहचान के रूप में उभरे हैं। इन्होंने वैज्ञानिकों को उत्कृष्टता के उच्च स्तर हासिल करने के लिए प्रोत्साहित किया है।

यह जानना हार्दिक प्रसन्नता की बात है कि इस वर्ष के पुरस्कार प्राप्तकर्ता देश के भू-वैज्ञानिक संस्थाओं के एक वृहत विस्तार का प्रतिनिधित्व करते हैं। यह इस वास्तविकता का संकेत है कि आज भू-विज्ञान का पूरे देश में पूर्ण उत्साह और प्रतिबद्धता के साथ अनुसरण किया जा रहा है। मुझे आशा है कि अनुसंधान के उच्च मानकों को वैज्ञानिकों के भावी युवा पीढ़ी द्वारा आगे ले जाया जाएगा।

देवियो और सज्जनो,

आज भारत की विश्व की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से तीव्रता से बढ़ते हुए देश के रूप में प्रशंसा की जाती है। हमारे देश द्वारा उठाए गए तीव्र कदमों ने संवर्धित प्रगति और विकास की उम्मीदों को बढ़ा दिया है। इस संदर्भ में खनन और खनिज क्षेत्र की देश की सतत प्रगति में सर्वाधिक कटिबद्ध योगदानों में से एक के रूप में विशाल क्षमता है।

खनन क्षेत्र की प्रगति को सुनिश्चित करने के लिए महत्त्वपूर्ण उपाय किए गए हैं। सरकार ने खान और खनिज (विकास और विनियमन) संशोधन अधिनियम2015 के द्वारा प्रमुख सुधार आरम्भ किए हैं। उनका एकमात्र उद्देश्य पारदर्शिता के साथ राज्य में बहुधा लाभ सुनिश्चित करना है। मंत्रालय द्वारा अन्वेषण अभिकरणों की वृहद भागीदारी के द्वारा खनिज अन्वेषण बढ़ाने के लिए एक राष्ट्रीय खनिज अन्वेषण ट्रस्ट स्थापित किया गया है।

देवियो और सज्जनो,

देश के लिए उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों के दोहन में हमारे पर्यावरण पर एक अपरिवर्तनीय छाप छोड़ दी है। महात्मा गांधी ने एक बार देखा और कहा, ‘‘मनुष्य की आवश्यकता के लिए संसार में पर्याप्त है परंतु मनुष्य लालच के लिए कुछ भी नहीं है।’’ हमें सुनिश्चित करना है कि हमारे दृष्टिकोण उपयुक्त हों। हमें सावधानीपूर्वक हमारी धरती माता का पोषण करना होगा क्योंकि वह भू-वैज्ञानिक समय से इस पृथ्वी पर जीवन को सहयोग देती आ रही हैं।

बढ़ती हुई आबादी और उच्च जीवन स्तर के लिए संघर्ष ने हर समय प्राकृतिक ऊर्जा संसाधनों के लिए भारी आवश्यकता खड़ी कर दी है। इससे हम पर्यावरणीय अति संवेदनशील महत्त्वपूर्ण दहलीज पर पहुंच गए हैं। इस प्रकार के परिप्रेक्ष्य में भू-विज्ञान की एक अहम भूमिका है। भू-वैज्ञानिकों में अवसंरचना और भू-वैज्ञानिक समय से पृथ्वी के विकास के बारे में अपने लिए एक अद्वितीय दृष्टिकोण विकसित किया है। उन्हें उन प्रक्रियाओं का गहन ज्ञान है जो नदियों,समुद्रों, पहाड़ों और अन्य विविध भू-खण्डों को बनाया है। भू-वैज्ञानिक अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भावी पीढ़ियों की योग्यता के साथ समझौता किए बगैर प्रगति कायम रखने के लिए समाधान प्रदान कर सकते हैं।

देविया और सज्जनो,

भू-दृश्य विकास और भू-प्रक्रियाओं अपनी वृहत समझ से भू-विज्ञान समाज कल्याण में उपयुक्त रूप से योगदान देने के लिए जाने जाते हैं। इस प्रयास से प्राकृतिक और मनुष्य जनित जोखिमों को कम करने;जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के समाधान की व्यवस्था करने और तीव्रता से कम होते हुए जल संसाधन के प्रबंधन में सहायता मिलती है। आज विश्व को भू-वैज्ञानिकों की पहले से कहीं अधिक आवश्यकता है।

यह देश का कर्त्तव्य है कि वह सतत प्रगति के पथ पर अग्रेषित हो। इस मॉडल में,वृद्धि और विकास केवल खनिज संसाधनों की उपलब्धता पर ही निर्भर नहीं हैं बल्कि उनके न्यायसंगत दोहन पर भी निर्भर हैं। भू-सतही खनिज के जमा कण बहुत तेजी से विलुप्त हो रहे हैं। इस प्रकार भू-वैज्ञानिक समुदाय को हमारी आवश्यकता के अनुसार खनिज के लिए गहनतर स्रोतों को खोजकर भावी संसाधनों के लिए मांग को पूरा करने के लिए कदम उठाना है। देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए और हमारी सामरिक आवश्यकताओं हेतु बाह्य स्रोतों से आयातों पर निर्भरता कम करने के लिए सामरिक और महत्त्वपूर्ण खनिजों की खोज पर विशेष ध्यान भी देने की आवश्यकता है। देश के संसाधन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए,हमें उन तटीय क्षेत्रों को भी मस्तिष्क में रखना होगा जो फासफोराईट्स,गैस हाईड्रेट्स और बड़े पैमाने पर समुद्री सतह पर सल्फाईड्स की वृहद क्षमता रखते हैं।

देवियो और सज्जनो,

भू-वैज्ञानिक निकाय के रूप में पृथ्वी की कोई सीमाएं नहीं हैं। इसी प्रकार भू-विज्ञान विभिन्न वैज्ञानिक प्रयासों की सीमाओं को लांघ जाता है। हमें विशेष रूप से सामान्य और भू-विज्ञान में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक साथ कार्य करना होगा और कल बेहतर भविष्य सुनिश्चित करने वाले अभिसरण विचारों का विकास करना होगा।

वैश्विक भू-विज्ञान संबंधी समझ में भारतीय योगदान महत्त्वपूर्ण रहा है। पृथ्वी के भीतरी भाग की उपस्थिति की अवधारणा देश में इसकी मौलिकता है। भारतीय उप महाद्वीप नर्मदा मान से मनुष्य के पूर्वज के प्रथम रूप से साक्ष्य की खोज ने मानव विकास के इतिहास को खोज निकालने में एक महत्त्वपूर्ण संकेत जुटाया है। मुझे विश्वास है कि अनुसंधान की ऐसी समृद्ध परंपरा को आगामी वर्षों में नई ऊँचाई पर ले जाया जाएगा।

पूरे विश्व में अनुसंधान के नए अवसर उभर रहे हैं। हमने भू-वैज्ञानिक युग एंथ्रोपोसीन का उद्घाटन किया है जो मानवीय हस्तक्षेप के द्वारा पृथ्वी प्रणाली प्रक्रिया के बड़े भाग में परिवर्तन के अनेक साक्ष्यों पर आधारित हैं। महत्त्वपूर्ण भाग पर पृथ्वी के सतही पर्यावरण में जल, मृदा,चट्टान, हवा और जीवता की अहम भूमिका को समझने के लिए विकास हेतु विद्वानों के समर्पित समूह अध्ययन कर रहे हैं। भारतीय भू-वैज्ञानिकों को उन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जो इन नए क्षेत्रों के समक्ष आती हैं और जोश और आत्मविश्वास से अपरिचित रूप से आक्रमण करती हैं।

प्रिय पुरस्कार विजेताओं,

आपके समर्पित कार्य को मान्यता देते हुए आज आपको दिए गए सम्मान से आपसे बेहतर अपेक्षाएं हैं। आपको स्वयं को अपने लिए निर्धारित उपलब्धि के उच्च मानकों को बेहतर बनाने के लिए दुगुने उत्साह से स्वयं को संलग्न करना होगा। साथ ही साथ आपकी यह जिम्मेदारी है कि आप अपने सहकर्मियों और युवा पीढ़ी के बीच भू-विज्ञान को सर्वोच्च हित में अपने ज्ञान को प्रसारित करें।

आप सबको मेरी शुभकामनाएं।

ईश्वर करे कि यह आपके लिए एक नई यात्रा की शुरुआत हो,और नए क्षितिज को छूने की जिज्ञासा हो।

धन्यवाद,

जय हिंद!