‘खाद्य सुरक्षा - मानकों की भूमिका’ पर राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण
विज्ञान भवन, नई दिल्ली : 12.12.2012
मुझे आज ‘खाद्य सुरक्षा-मानकों की भूमिका’ पर राष्ट्रीय संगोष्ठी में उपस्थित होकर बहुत गौरव का अनुभव हो रहा है। मैं भारतीय मानक ब्यूरो को खाद्य सुरक्षा तथा भारत में मानकों की भूमिका के बारे में जागरूकता पैदा करने की इस पहल के लिए बधाई देता
हूं।
स्वच्छ, ताजा और पौष्टिक भोजन हमारी जनता के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए अनिवार्य है। हम जो भोजन करते हैं उसकी सुरक्षा के लिए यह जरूरी है कि उसको तैयार करने तथा प्रसंस्करण के दौरान स्वच्छता के निश्चित मानकों का पालन किया जाए। इसके लिए हमें इनके उपभोग से पहले इन वस्तुओं के उचित परिवहन तथा विपणन के तरीके भी निर्धारित करने होते हैं। इनका भंडारण भी अलग-अलग उत्पादों के लिए खास, सुरक्षित तरीके से करने की जरुरत होती है और इसके बारे में भी उपभोक्ता को स्पष्टता बताया जाना चाहिए। ये सभी कारक दर्शाते हैं कि निर्माताओं और उपभोक्ताओं दोनों के लिए मानकों तथा दिशा-निर्देशों की स्थापना तथा उनको लागू करना जरूरी है।
भारत ने पिछले कुछ दशकों में खाद्य उत्पादन के साथ-साथ खाद्य उत्पादों के निर्यात में भी महत्त्वपूर्ण प्रगति की है। भारत दुनिया भर में कृषि उत्पादों का 15वां प्रमुख निर्यातक है। यह उल्लेखनीय है कि वर्ष 2010-2011 में कृषि एवं संबंधित उत्पादों के निर्यात में 39.3 प्रतिशत की अच्छी-खासी बढ़ात्तरी हुई है। वास्तव में यह एक सकारात्मक प्रगति है कि खाद्य विनिर्माता, परिवहन संचालक तथा हमारे देश की खाद्य-श्रृंखला के सभी स्टेकधारक खाद्य सुरक्षा से होने वाले फायदों के प्रति अधिक से अधिक जागरूक होते जा रहे हैं। उनमें से अधिक से अधिक लोग स्वेच्छा से तथा जानबूझकर खाद्य सुरक्षा तथा प्रबंधन के लिए नवान्वेषी प्रणालियां विकसित करने के लिए पंरपरागत विधियों का अनुकूलन कर रहे हैं।
विश्व अर्थव्यवस्था के वैश्वीकरण से भी खाद्य व्यापार को बहुत प्रोत्साहन मिला है और परिणामस्वरूप खाद्य उपभोग पैटर्न, उत्पादन पद्धतियों तथा प्रसंस्करण तकनीकों में आमूल-चूल बदलाव हुआ है। लेकिन इसी के साथ माइक्रोबायलोजिकल, रसायनिक जोखिमों के तेजी से सीमाओं के आर-पार स्थांतरित होने का एक नया खतरा भी सामने आया है। इससे खाद्य सुरक्षा के लिए एक नयी चुनौती सामने आई है। इन संभावित खतरों से निपटने के लिए यह जरूरी है कि अपनी जनता के स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए सुदृढ़ निरोधात्मक तथा उपचारात्मक व्यवस्थाएं स्थापित की जाएं। खाद्य संचारित बीमारियों के उपचार तथा अंतरराष्ट्रीय बाजार में हमारे उत्पादों के अस्वीकार होने अथवा निम्न श्रेणीकरण के कारण, प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष आर्थिक हानि होने से घटिया सुरक्षा मानकों का आर्थिक खामियाजा काफी अधिक हो सकता है।
विशिष्ट अतिथिगण, हमारी जनता की बढ़ती खाद्य जरूरतों की चुनौती से निपटने के लिए यह जरूरी है कि हमारे कृषि, कृषि-व्यापार तथा खाद्य प्रसंस्करण सेक्टरों में बड़े पैमाने पर निवेश किया जाए और नवान्वेषण हो। जहां उपयुक्त प्रौद्योगिकी का उच्चीकरण जरूरी है वहीं सुरक्षित कृषि परिपाटियों तथा प्रबंधन प्रणालियों और आधुनिक प्रजनन तकनीकों पर खाद्य संबंधी अनुसंधानों के साथ-साथ ध्यान दिया जाना चाहिए और इस बात पर समुचित ध्यान दिया जाना चाहिए कि खाद्य सुरक्षा को भारतीय जलवायु तथा अन्य प्रासंगिक भौगोलिक एवं सांस्कृतिक परिस्थितियों के तहत किस प्रकार विनियमित किया जाए।
भारतीय मानक ब्यूरो की इस प्रयास में बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका है। मैंने देखा है कि भारतीय मानक ब्यूरो ने भारतीय मानक तथा अच्छी परिपाटियों और प्रबंधन प्रणालियों पर विभिन्न दिशानिर्देश भी तैयार किए हैं। गली-चौराहों पर खाने-पीने की चीजें बेचने वालों के लिए बुनियादी जरूरतों पर भारतीय मानक तैयार होना। खासकर गली-चौराहों पर खाने-पीने की चीजों के सेक्टर में बढ़ोतरी को देखते हुए—एक महत्त्वपूर्ण कदम है। इसका हमारी शहरी जनता पर बहुत अधिक आर्थिक तथा पौष्टिक प्रभाव होगा क्योंकि गली-चौराहों पर खाने-पीने की चीजें हमारी श्रमिक जनसंख्या के काफी बड़े प्रतिशत के लिए एक सुगम और वहनीय विकल्प है।
हमें इस बात के प्रति भी जागरूक रहना चाहिए कि हमारे खाद्य व्यवसाय का एक बड़ा हिस्सा लघु और कुटीर स्तर की इकाइयां हैं। वे उनके लिए तय किए गए मानकों से भयभीत न हों अथवा उन मानकों का कार्यान्वयन उनके लिए अत्यधिक जटिल न हो। उनकी वास्तविक समस्याओं की सुनवाई तथा इसके लिए व्यावहारिक समाधान निकालने के लिए व्यवस्था होनी चाहिए। उन्हें यह बताया जाना चाहिए कि ये उपाय सरकार तथा विनियामकों द्वारा तैया किए गए हैं और यह उनके हित में हैं। उनके द्वारा बनाए जाने वाले खाने-पीने के सामान की सुरक्षा में सुधार करके तथा खाद्य सुरक्षा प्रणालियों और क्षमता का निर्माण करके उनके लाभ में बढ़ोत्तरी होगी।
खाने-पीने की चीजों के माध्यम से फैलने वाली बीमारियों की रोकथाम पर उपभोक्ता को जानकारी देना एक अन्य सार्वभौमिक जरूरत है। जब उपभोक्ता गुणवत्ता तथा सुरक्षा के प्रति जागरूक होते हैं तो वे अच्छी गुणवत्ता का सुरक्षित खाद्य पदार्थ उपलब्ध कराने के लिए खाद्य उद्योग को प्रोत्साहित करने में खाद्य नियंत्रक एजेंसियों के प्रयासों में हाथ बंटाते हैं।
मुझे यह जानकर खुशी हो रही है कि प्रो. के.वी. थॉमस, माननीय उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं जन वितरण मंत्री, भारत सरकार के सुयोग्य मार्गदर्शन में भारतीय मानक ब्यूरो ने खाद्य सुरक्षा के बारे में जागरूकता लाने के लिए चार संगोष्ठियां आयोजित की हैं। भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा लोगों तक पहुंचने का यह प्रयास ग्राहकों तथा खाद्य आपूर्ति उद्योग के प्रमुख प्रतिभािगयों से बहुमूल्य प्रतिक्रिया प्राप्त करने में भी उपयोगी सिद्ध होगा।
देवियो और सज्जनो, मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह संगोष्ठी सूचना तथा अनुभवों के सार्थक आदान-प्रदान का मार्ग प्रशस्त करेगी। यह हमारे देश में खाए जाने वाले भोजन की सुरक्षा में सुधार के लिए एक व्यवहार्य, व्यावहारिक तथा यथार्थवादी प्रणाली अपनाने में योगदान देगी।
मैं इस राष्ट्रीय संगोष्ठी के प्रतिभागियों को अपनी शुभकामनाएं देता हूं। इन्हीं शब्दों के साथ,मैं इस संगोष्ठी का औपचारिक उद्घाटन करता हूं।
जय हिंद!
स्वच्छ, ताजा और पौष्टिक भोजन हमारी जनता के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए अनिवार्य है। हम जो भोजन करते हैं उसकी सुरक्षा के लिए यह जरूरी है कि उसको तैयार करने तथा प्रसंस्करण के दौरान स्वच्छता के निश्चित मानकों का पालन किया जाए। इसके लिए हमें इनके उपभोग से पहले इन वस्तुओं के उचित परिवहन तथा विपणन के तरीके भी निर्धारित करने होते हैं। इनका भंडारण भी अलग-अलग उत्पादों के लिए खास, सुरक्षित तरीके से करने की जरुरत होती है और इसके बारे में भी उपभोक्ता को स्पष्टता बताया जाना चाहिए। ये सभी कारक दर्शाते हैं कि निर्माताओं और उपभोक्ताओं दोनों के लिए मानकों तथा दिशा-निर्देशों की स्थापना तथा उनको लागू करना जरूरी है।
भारत ने पिछले कुछ दशकों में खाद्य उत्पादन के साथ-साथ खाद्य उत्पादों के निर्यात में भी महत्त्वपूर्ण प्रगति की है। भारत दुनिया भर में कृषि उत्पादों का 15वां प्रमुख निर्यातक है। यह उल्लेखनीय है कि वर्ष 2010-2011 में कृषि एवं संबंधित उत्पादों के निर्यात में 39.3 प्रतिशत की अच्छी-खासी बढ़ात्तरी हुई है। वास्तव में यह एक सकारात्मक प्रगति है कि खाद्य विनिर्माता, परिवहन संचालक तथा हमारे देश की खाद्य-श्रृंखला के सभी स्टेकधारक खाद्य सुरक्षा से होने वाले फायदों के प्रति अधिक से अधिक जागरूक होते जा रहे हैं। उनमें से अधिक से अधिक लोग स्वेच्छा से तथा जानबूझकर खाद्य सुरक्षा तथा प्रबंधन के लिए नवान्वेषी प्रणालियां विकसित करने के लिए पंरपरागत विधियों का अनुकूलन कर रहे हैं।
विश्व अर्थव्यवस्था के वैश्वीकरण से भी खाद्य व्यापार को बहुत प्रोत्साहन मिला है और परिणामस्वरूप खाद्य उपभोग पैटर्न, उत्पादन पद्धतियों तथा प्रसंस्करण तकनीकों में आमूल-चूल बदलाव हुआ है। लेकिन इसी के साथ माइक्रोबायलोजिकल, रसायनिक जोखिमों के तेजी से सीमाओं के आर-पार स्थांतरित होने का एक नया खतरा भी सामने आया है। इससे खाद्य सुरक्षा के लिए एक नयी चुनौती सामने आई है। इन संभावित खतरों से निपटने के लिए यह जरूरी है कि अपनी जनता के स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए सुदृढ़ निरोधात्मक तथा उपचारात्मक व्यवस्थाएं स्थापित की जाएं। खाद्य संचारित बीमारियों के उपचार तथा अंतरराष्ट्रीय बाजार में हमारे उत्पादों के अस्वीकार होने अथवा निम्न श्रेणीकरण के कारण, प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष आर्थिक हानि होने से घटिया सुरक्षा मानकों का आर्थिक खामियाजा काफी अधिक हो सकता है।
विशिष्ट अतिथिगण, हमारी जनता की बढ़ती खाद्य जरूरतों की चुनौती से निपटने के लिए यह जरूरी है कि हमारे कृषि, कृषि-व्यापार तथा खाद्य प्रसंस्करण सेक्टरों में बड़े पैमाने पर निवेश किया जाए और नवान्वेषण हो। जहां उपयुक्त प्रौद्योगिकी का उच्चीकरण जरूरी है वहीं सुरक्षित कृषि परिपाटियों तथा प्रबंधन प्रणालियों और आधुनिक प्रजनन तकनीकों पर खाद्य संबंधी अनुसंधानों के साथ-साथ ध्यान दिया जाना चाहिए और इस बात पर समुचित ध्यान दिया जाना चाहिए कि खाद्य सुरक्षा को भारतीय जलवायु तथा अन्य प्रासंगिक भौगोलिक एवं सांस्कृतिक परिस्थितियों के तहत किस प्रकार विनियमित किया जाए।
भारतीय मानक ब्यूरो की इस प्रयास में बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका है। मैंने देखा है कि भारतीय मानक ब्यूरो ने भारतीय मानक तथा अच्छी परिपाटियों और प्रबंधन प्रणालियों पर विभिन्न दिशानिर्देश भी तैयार किए हैं। गली-चौराहों पर खाने-पीने की चीजें बेचने वालों के लिए बुनियादी जरूरतों पर भारतीय मानक तैयार होना। खासकर गली-चौराहों पर खाने-पीने की चीजों के सेक्टर में बढ़ोतरी को देखते हुए—एक महत्त्वपूर्ण कदम है। इसका हमारी शहरी जनता पर बहुत अधिक आर्थिक तथा पौष्टिक प्रभाव होगा क्योंकि गली-चौराहों पर खाने-पीने की चीजें हमारी श्रमिक जनसंख्या के काफी बड़े प्रतिशत के लिए एक सुगम और वहनीय विकल्प है।
हमें इस बात के प्रति भी जागरूक रहना चाहिए कि हमारे खाद्य व्यवसाय का एक बड़ा हिस्सा लघु और कुटीर स्तर की इकाइयां हैं। वे उनके लिए तय किए गए मानकों से भयभीत न हों अथवा उन मानकों का कार्यान्वयन उनके लिए अत्यधिक जटिल न हो। उनकी वास्तविक समस्याओं की सुनवाई तथा इसके लिए व्यावहारिक समाधान निकालने के लिए व्यवस्था होनी चाहिए। उन्हें यह बताया जाना चाहिए कि ये उपाय सरकार तथा विनियामकों द्वारा तैया किए गए हैं और यह उनके हित में हैं। उनके द्वारा बनाए जाने वाले खाने-पीने के सामान की सुरक्षा में सुधार करके तथा खाद्य सुरक्षा प्रणालियों और क्षमता का निर्माण करके उनके लाभ में बढ़ोत्तरी होगी।
खाने-पीने की चीजों के माध्यम से फैलने वाली बीमारियों की रोकथाम पर उपभोक्ता को जानकारी देना एक अन्य सार्वभौमिक जरूरत है। जब उपभोक्ता गुणवत्ता तथा सुरक्षा के प्रति जागरूक होते हैं तो वे अच्छी गुणवत्ता का सुरक्षित खाद्य पदार्थ उपलब्ध कराने के लिए खाद्य उद्योग को प्रोत्साहित करने में खाद्य नियंत्रक एजेंसियों के प्रयासों में हाथ बंटाते हैं।
मुझे यह जानकर खुशी हो रही है कि प्रो. के.वी. थॉमस, माननीय उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं जन वितरण मंत्री, भारत सरकार के सुयोग्य मार्गदर्शन में भारतीय मानक ब्यूरो ने खाद्य सुरक्षा के बारे में जागरूकता लाने के लिए चार संगोष्ठियां आयोजित की हैं। भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा लोगों तक पहुंचने का यह प्रयास ग्राहकों तथा खाद्य आपूर्ति उद्योग के प्रमुख प्रतिभािगयों से बहुमूल्य प्रतिक्रिया प्राप्त करने में भी उपयोगी सिद्ध होगा।
देवियो और सज्जनो, मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह संगोष्ठी सूचना तथा अनुभवों के सार्थक आदान-प्रदान का मार्ग प्रशस्त करेगी। यह हमारे देश में खाए जाने वाले भोजन की सुरक्षा में सुधार के लिए एक व्यवहार्य, व्यावहारिक तथा यथार्थवादी प्रणाली अपनाने में योगदान देगी।
मैं इस राष्ट्रीय संगोष्ठी के प्रतिभागियों को अपनी शुभकामनाएं देता हूं। इन्हीं शब्दों के साथ,मैं इस संगोष्ठी का औपचारिक उद्घाटन करता हूं।
जय हिंद!