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इलाहाबाद उच्च न्यायालय न्यायाधिकरण के अध्यर्धशतवर्षीय समारोह के उद्घाटन के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण

इलाहाबाद : 13.03.2016



1. मुझे इलाहाबाद उच्च न्यायालय के अध्यर्धशतवर्षीय समारोह के उद्घाटन के लिए न्यायाधीशों,विधिवेत्ताओं, बार के सदस्यों तथा अन्य गणमान्यों के इस विशिष्ट बैठक में शामिल होने पर प्रसन्नता हुई है।

2. इलाहाबाद उच्च न्यायालय 17मार्च, 2016को अपनी स्थापना के 150वर्ष पूरे कर लेगा। उच्च न्यायालय की इमारत को भी नवम्बर, 2016को 100 वर्ष हो जाएंगे। इस प्रकार यह भारत ही नहीं बल्कि संपूर्ण विश्व के एक विशालतम न्याय के मंदिर में इन समारोहों को मनाने का दोहरा उद्देश्य हो सकता है।

3. इलाहाबाद उच्च न्यायालय की स्थापना17 मार्च, 1866को उत्तर पश्चिमी प्रांत के उच्च न्यायालय न्यायाधिकरण के रूप में राजकीय घोषणापत्र के द्वारा की गई थी और आरंभ में इसकी पीठ आगरा में थी।1869में उच्च न्यायालय इलाहाबाद स्थानांतरित हो गया।

4. इस उच्च न्यायालय ने वर्षों के दौरान सुदृढ़ परंपराओं और आदर्शों के साथ उच्च मानदंडयुक्त संस्थान के रूप में ख्याति अर्जित की है। इसकी पीठ और बार अपनी प्रबुद्ध विद्वता और विधिक दक्षता के लिए प्रख्यात रही है।

5. बार के सदस्यों ने स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और इसमें पंडित मदन मोहन मालवीय,पंडित मोतीलाल नेहरू,सर तेजबहादुर सप्रु,पुरुषोत्तम दास टंडन और जवाहरलाल नेहरू जैसी विभूतियां इसमें शामिल थीं। प्रसिद्ध चौरी-चौरा तथा मेरठ षडयंत्र कुछ ऐसे मामले हैं जिनमें न्यायालय ने स्वतंत्रता की अवधारणा बनाए रखते हुए स्मरणीय निर्णय दिए।

6. आज, इलाहाबाद उच्च न्यायालय का भारत के सबसे बड़े राज्य पर न्यायाधिकार है जिसमें हमारी जनसंख्या का लगभग छठा हिस्सा शामिल था। छह न्यायाधीशों के साथ शुरुआत करने के बाद,अब इसके न्यायाधीशों की स्वीकृत संख्या 160है जो देश में सबसे अधिक है। उच्च न्यायालय की बार में 6अधिवक्ता थे। आज उच्च न्यायालय की रजिस्ट्री में रखी गई सूची के अनुसार कुल कर्मियों की संख्या लगभग15000है। इस न्यायालय से उत्पन्न समृद्ध न्यायप्रज्ञा से न केवल उत्तर प्रदेश बल्कि पूरा देश लाभान्वित हुआ है।

7. इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पांच न्यायाधीशों,सर्वश्री के.एन.वांचू, मिर्जा हमीदुल्लाह बेग,रघुनंदन स्वरूप पाठक,कमल नारायण सिंह तथा विश्वेश्वर नाथ खरे को भारत का मुख्य न्यायाधीश के पद को सुशोभित किया है। मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि मेरे विशिष्ट पूर्ववर्ती डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने 1945में उच्च न्यायालय के नए संकाय का उद्घाटन किया था। राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने शताब्दी समारोह में भाग लिया तथा राष्ट्रपति आर. वेंकटरमन ने125 वर्ष समारोह में भाग लिया था।

मित्रो, देवियो और सज्जनो,

8. भारत की न्यायपालिका ने स्वतंत्रता के बाद से देश के लोकतांत्रिक ढांचे को मजबूत बनाने तथा विधि शासन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भारत के संविधान के अंतर्गत विशेषतया उच्च न्यायालयों का एक विशिष्ट स्थान है। वे न केवल लोक अधिकारों और स्वतंत्रता के संरक्षक हैं बल्कि उन पर यह सुनिश्चित करने का भारी दायित्व है कि आर्थिक अथवा अन्य अक्षमता के कारण कोई भी नागरिक न्याय से वंचित न हो जाए।

9. हमारे लोकतंत्र के तीन महत्वपूर्ण स्तंभों में से एक न्यायपालिका संविधान और विधि की अंतिम व्याख्याता है। इससे विधि के गलत पक्ष पर खड़े लोगों से तेजी और प्रभावी ढंग से निपट कर सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखने में मदद मिलेगी। विधि शासन के संरक्षक के रूप में, न्यायपालिका की पावन भूमिका है। न्यायपालिका में लोगों की आस्था और विश्वास हमेशा बनाए रखना चाहिए। लोगों के लिए न्याय का अर्थ सुगम्यता,वहनीयता और शीघ्रता होना चाहिए। यद्यपि भारतीय न्यायपालिका की अनेक विशेषताएं हैं परंतु हमें अभी भी तीव्र और वहनीय न्याय के लिए हमारे लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करना है।

10. हमारे न्यायालय आज भी लंबित मामलों की विशाल संख्या के कारण दबे पड़े हैं। पूरे देश के अनेक न्यायालयों में तीन करोड़ से अधिक मामले लंबित हैं। इनमे से लगभग38.5 लाख मामले उच्च न्यायालयों में लंबित हैं। उच्च न्यायालयों में लंबित मामलों की संख्या2014 के 41.5लाख से थोड़ा कम होकर 2015में38.5 लाख हो गई। परंतु हमें अभी बहुत कार्य करना है। सभी उच्च न्यायालयों में कुल मिलाकर1056 न्यायाधीशों की स्वीकृत संख्या में से देशभर में उच्च न्यायालयों के कार्यशील न्यायाधीशों की संख्या मात्र591थी। इसी प्रकार देश के जिला और अधीनस्थ न्यायालयों में न्यायिक अधिकारियों की स्वीकृत संख्या लगभग20,500है जिसमें से कार्यशील संख्या वर्तमान में लगभग16,000 ही है।

11. आज इलाहाबाद उच्च न्यायालय में 160जजों की स्वीकृत संख्या की तुलना में मुख्य न्यायाधीश सहित केवल71 न्यायाधीश हैं। फरवरी, 2016में इस न्यायालय के अनुमानित लंबित मामले 911908है जो 2014 के10.1 लाख मामलों की तुलना में कम है। उत्तर प्रदेश के अधीनस्थ न्यायालयों में29.02.2016 को अनुमानित 57,06,103मामले लंबित हैं। उनमें से 4217089से अधिक (29.02.2016तक) आपराधिक मामले हैं।

12. न्याय में देरी न्याय से वंचित करना है। मुझे विश्वास है कि केंद्र और राज्य सरकार लंबित मामलों को कम करने के प्रयास में इलाहाबाद उच्च न्यायालय को हर संभव मदद करेंगी। सरकारों,न्यायाधीशों और वकीलों को न्याय को एक जीती जागती वास्तविकता बनाने के लिए मिलकर कार्य करना चाहिए।

13. सभी स्तर पर न्यायालयों और न्यायाधीशों तथा न्यायिक अधिकारियों की संख्या को बढ़ाना समय पर न्याय प्रदान करने का उद्देश्य प्राप्त करने की दिशा में पहला कदम होगा। सरकार और न्यापालिका उच्च न्यायालयों तथा जिला व अधीनस्थ न्यायालयों के स्तर पर न्यायाधीशों की स्वीकृत संख्या को निरंतर बढ़ाकर इस मुद्दे पर मिलकर ध्यान दे रहे हैं। इन स्वीकृत पदों को शीघ्र भरा जाना चाहिए ताकि मामलों के समय पर निस्तारण के लिए आवश्यक न्यायिक जनशक्ति उपलब्ध हो सके।

14. न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाने के साथ-साथ न्यायिक ढांचे का विकास एक प्राथमिकता वाला क्षेत्र है। मुझे प्रसन्नता है कि केंद्र सरकार ने ढांचागत विकास की एक केंद्रीय रूप से प्रायोजित योजना आरंभ की है तथा पिछले पांच वर्षों के दौरान राज्यों/संघशासित क्षेत्रों को 3694 करोड़ रुपये स्वीकृत किए हैं जिससे राज्यों के संसाधनों से मिलकर देशभर में नए न्यायालय परिसरों और आवासीय भवनों का निर्माण हो रहा है।

15. यह आवश्यक है कि हम न्यायिक प्रणाली में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी को तेजी से अपनाएं। जिला और अधीनस्थ न्यायालयों की कंप्यूटरीकरण प्रक्रिया केंद्र सरकार की ई-न्यायालय समेकित मिशन पद्धति परियोजना के माध्यम से जारी है। अधिकांश न्यायालय इस पहल के बाद पहले ही कम्प्यूटरीकृत हो गए हैं। मैं उत्सुकता के साथ उस दिन की प्रतीक्षा कर रहा हूं जब देश के सभी न्यायालय राष्ट्रीय न्यायिक आंकड़ा ग्रिड से जुड़ जाएंगे। मैं विशेषकर प्रसन्न हूं कि सूचना प्रौद्योगिकी केंद्र इलाहाबाद में स्थापित किया गया है तथा 50करोड़ पृष्ठों में निहित अनुमानित एक करोड़ निर्णीत मामले एक वर्ष में डिजीटाइज किए जाने हैं।

16. विगत कुछ दशक के दौरान,हमारे न्यायालयों में दायर मामलों की संख्या में कई गुना वृद्धि हुई है। सरकार विरोधाभासी और फालतू कानूनों को समाप्त करते हुए विधिक प्रक्रियाओं के सरलीकरण तथा उन मामलों को कम करने के लिए दृढ़ता से प्रतिबद्ध है जिनमें सरकार एक वादी है। सरकार एक राष्ट्रीय वाद नीति आरंभ करने की दिशा में सक्रिय है जिससे आनावश्यक सरकारी मुदकमेबाजी से बचा जा सकेगा।

17. न्यायालयों के समक्ष अधिकांश मामलों को कम करने का एक अन्य उपाय वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्रों का व्यापक अंगीकरण है जिससे विवादों का त्वरित और प्रभावी निस्तारण हो पाएगा। वैकल्पिक विवाद समाधान के प्रयोग का समर्थन करने के लिए न्यायालयों को उपयुक्त प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए तथा साथ ही साथ वादियों को वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्रों के प्रयोग के लाभों की जानकारी दी जानी चाहिए तथा इन्हें प्रयोग करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। मध्यस्थता वैवाहिक और संपत्ति से संबंधित विवाद सुलझाने का एक अत्यंत प्रभावी माध्यम है।

18. इसके अलावा नि:शुल्क कानूनी सहायता की पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिए। पूरे राष्ट्र में विधिक साक्षरता के प्रसार तथा विधिक शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने के प्रयास करने की भी आवश्यकता है।

मित्रो, देवियो और सज्जनो,

19. जैसा कि आपको ज्ञात है,सरकार ने हमारे देश को निर्माण केंद्र में बदलने के लिए भारत में निर्माणअभियान आरंभ किया है। इस कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए हमें अपने देश में कारोबार करना आसान बनाना होगा। अनुबंधों को अमल में लाना कारोबार करने की आजादी को अपनाने का एक प्रमुख पैमाना है। सरकार और न्यायपालिका को विवाद समाधान की लागत और समय कम करने के लिए मिलकर कार्य करना चाहिए।

20. विगत कुछ वर्षों के दौरान,अनेक वैधानिक बदलावों,सिविल और अपराधिक मुकदमों के प्रक्रियागत विधान आरंभ किए गए हैं। इनमें वे उपाय शामिल हैं जिनसे यह सुनिश्चित हो कि दैनिक आधार पर मुकदमों पर कार्यवाही हो,अनावश्यक स्थगन कम हो;जानबूझकर विलंब करने पर जुर्माना लागत लगे तथा न्यायालय प्रक्रियाओं में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी का समेकन हो। धारा436ए में उन बंदियों को रिहा करने के लिए आपराधिक प्रक्रिया संहिता जोड़ी गई है जिनका मुकदमा चल रहा है और जिन्होंने उक्त अपराध के लिए अधिकतम कारावास की आधी सजा काट ली है। इन सभी बदलावों से न्याय प्रदान करने में विलंब रुकेगा।

मित्रो, देवियो और सज्जनो,

21. वकील की जनता को न्याय प्रदान में अहम भूमिका है। जिस समाज में विधि शासन रहता है वहां विधिक पेशे को एक नेक पेशा माना जाता है। भारत में हमारे अधिकांश राष्ट्रीय नेता वकील रहे हैं। हमारे संवैधानिक शासन और न्यायिक प्रक्रिया की व्यवस्था में वकील एक प्रमुख स्तंभ है। उन्हें नागरिकों के अधिकारों के लिए वकालत करने तथा विधिक प्रणाली की निष्ठा और स्वतंत्रता कायम रखने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। वकीलों को इस पेशेवर जिम्मेदारी को उत्साहपूर्वक पूरा करना चाहिए।

22. आज मैं,इलाहाबाद उच्च न्यायालय को डेढ़ सौ वर्ष के दौरान किए गए महान योगदान के लिए बधाई देता हूं। मुझे विश्वास है कि उच्च न्यायालय हमारे संविधान में निहित समानता,स्वतंत्रता और न्याय के बुनियादी मूल्यों को कायम रखेगा तथा हमारे लोगों की स्वतंत्रता और मौलिक अधिकारों की संरक्षा करता रहेगा ताकि वे इस महान राष्ट्र के योग्य नागरिकों के रूप में अपनी पूरी क्षमता साकार कर सकें।

धन्यवाद।

जयहिन्द।