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सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के शिखर सम्मेलन के उद्घाटन के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण

विज्ञान भवन, नई दिल्ली : 13.12.2013



 

1. मुझे लोक उद्यम विभाग तथा भारतीय उद्योग परिसंघ द्वारा आयोजित किए जा रहे सार्वजनिक क्षेत्र उद्यमों के वैश्विक शिखर सम्मेलन का उद्घाटन करने के लिए आज यहां उपस्थित होकर प्रसन्नता हो रही है। यह भारत की विकास यात्रा में सार्वजनिक क्षेत्र की बहुमूल्य साझीदारी की सराहना का अवसर है। यह सार्वजनिक क्षेत्र को सुदृढ़ बनाने की हमारी प्रतिबद्धता दोहराने का एक मंच भी है।

देवियो और सज्जनो

2. सार्वजनिक क्षेत्र ने स्वतंत्रता के पश्चात भारतीय अर्थव्यवस्था में शानदार भूमिका निभाई है। भारतीय संविधान ने सार्वजनिक क्षेत्र के प्रति हमारे दृष्टिकोण का मार्गदर्शन किया है। राज्य के एक नीति निर्देशक सिद्धांत में कहा गया है कि ‘‘समुदाय के भौतिक संसाधनों का स्वामित्व और नियंत्रण इस तरीके से वितरित किया जाना चाहिए कि सभी के हितों का सर्वोत्तम ध्यान रखा जा सके।’’ 1948 और 1956 के औद्योगिक नीति संकल्पों में बल दिया गया था कि सार्वजनिक क्षेत्र हमारे विकास कार्यक्रम का आधार है। 1956 की नीति में सार्वजनिक क्षेत्र को स्पष्ट रूप से नेतृत्वकारी भूमिका सौंपी गई थी। इसमें कहा गया था कि ‘राज्य उत्तरोत्तर नए औद्योगिक उपक्रमों की स्थापना तथा परिवहन सुविधाएं विकसित करने का प्रमुख और सीधा दायित्व ग्रहण करेगा।’

3. सार्वजनिक क्षेत्र ने खनन, इस्पात, बुनियादी और भारी मशीनरी तथा अवसंरचना जैसे अतिमहत्वपूर्ण क्षेत्रों में कार्य करते हुए हमारे औद्योगिक विकास के सुदृढ़ आधार के रूप में कार्य किया है। एक ऐसी अर्थव्यवस्था में, जिसे बुनियाद से खड़ा किया जाना था, सार्वजनिक क्षेत्र ने, भारत को विनिर्माण राष्ट्रों के समूह में शामिल करने में एक प्रेरक शक्ति के रूप में कार्य किया। साधारण सी वस्तुएं निर्मित करने में सक्षम औद्योगिक क्षेत्र को जटिल और विविध उत्पादों की क्षमता वाले विशाल विनिर्माण और ढांचागत क्षेत्र में बदल दिया गया। सार्वजनिक क्षेत्र के जरिए तीव्र औद्योगिक विस्तार ने भारतीयों के आत्मविश्वास को बढ़ाया है। सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम लाखों लोगों को रोजगार देने वाले एक प्रमुख नियोजक के तौर पर उभरे। उन्होंने संतुलित क्षेत्रीय विकास को बढ़ावा दिया तथा उन समुदायों और समाजों के कल्याण में योगदान दिया जहां वे कार्यरत थे। वर्षों के दौरान, सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम सभी भौगोलिक परिस्थितियों में नवान्वेषी और कार्यनीति संचालन में सक्रिय भागीदारी करते हुए वैश्विक कंपनियों के रूप में उभरे हैं। आर्थिक विकास में हमारे सार्वजनिक क्षेत्र का योगदान वास्तव में अत्यंत प्रभावशाली है।

देवियो और सज्जनो,

4. सार्वजनिक क्षेत्र का विकास भारत की आर्थिक प्रगति का प्रतिबिंब है। सार्वजनिक क्षेत्र ने आर्थिक विकास की शुरुआत के लिए एक चुनिंदा माध्यम के रूप में की। आर्थिक प्रगति से, उन्नत प्रौद्योगिकी-प्रबंधनीय पद्धतियों के तहत कुशल संचालन के द्वारा निजी कॉर्पोरेट क्षेत्र की मौजूदगी में वृद्धि हुई है। सरकार को उन क्षेत्रों से हटने में सुविधा हुई जिनमें निजी क्षेत्र भली-भांति कार्य कर सकता था। इसी प्रकार, वित्तीय संतुलन को बनाए रखने के लिए, सरकार के निवेश कार्यक्रम का पुन: अभिमुखीकरण ग्रामीण आवास और ग्रामीण ऊर्जा जैसी सामाजिक क्षेत्र की परिसंपत्तियों का निर्माण के लिए जरूरी हो गया। क्रय शक्ति के आधार पर हम विश्व की तीसरी विशालतम अर्थव्यवस्था हैं। इसमें सार्वजनिक और निजी क्षेत्र दोनों के सह-अस्तित्व की गुंजाइश और आवश्यकता है।

5. बदलाव के साथ निरंतरता भारत की औद्योगिक नीति की एक प्रमुख विशेषता रही है। यद्यपि 1991 के आर्थिक सुधारों में सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के पुनर्निर्माण और उनकी भूमिका के पुन: अभिमुखीकरण का लक्ष्य रखा गया था परंतु, राष्ट्र की प्रगति और विकास को बढ़ावा देने के माध्यम के तौर पर, उनके सृजन के बुनियादी विचार में बदलाव नहीं हुआ। हमारे देश को निजी उद्योग के प्रयासों में सहयोग के लिए एक सुदृढ़ सार्वजनिक क्षेत्र की आवश्यकता है। इससे सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों को मजबूत बनाने के उपाय करने की आवश्यकता महसूस होती है।

6. एक फलते-फूलते उद्योग क्षेत्र के महत्वपूर्ण सदस्यों के रूप में, सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों को औद्योगिक और आर्थिक विकास में तेजी लानी चाहिए। इसके लिए सक्रिय तरीके से बाजार की मांग पूरी करने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को सक्षम बनाने के लिए अधिक स्वायत्तता की जरूरत है। महारत्न, नवरत्न और मिनी रत्न योजना के माध्यम से लाभ अर्जित करने वाले केन्द्रीय क्षेत्र के सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को प्रबंधकीय और वाणिज्यिक स्वायत्तता प्रदान की गई है। आज सात महारत्न, चौदह नवरत्न, और सत्तर मिनिरत्न उद्यम हैं। बाजार के अनुसार तीव्र प्रचालन लचीलापन प्रदान करके इन उपायों से उनके कार्य निष्पादन में सुधार आया है। तथापि, उदारीकरण और वैश्वीकरण के दबाव का अर्थ यह है कि हमें अपनी उपलब्धियों पर ठहरना नहीं है। संचालन में लचीलापन और तेजी से निर्णय के मामले में सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के बीच बराबरी का अवसर उपलब्ध करवाने के लिए काफी कुछ किए जाने की आवश्यकता है। स्टॉक एक्सचेंज में सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की सूचीबद्धता इस प्रक्रिया में सहायक उपाय हो सकता है। सूचीबद्धता से लाखों छोटे और बड़े शेयरधारक इनके स्वामित्व में भागीदारी कर सकेंगे, जिनके सामूहिक प्रयासों से सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम अपने निष्पादन को बेहतर बना सकते हैं।

देवियो और सज्जनो,

7. मुझे खुशी है कि इस वैश्विक शिखर सम्मेलन से अन्य देशों में सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के समक्ष सफलता के उदाहरण सामने आएंगे। सरकार के स्वामित्व वाली कंपनियों के अनुभव हर देश में अलग-अलग होते हैं। यद्यपि प्रत्येक सरकार ने अपने सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के संसाधनों से लाभ उठाने का प्रयास किया है, परंतु उनके मॉडल अलग-अलग हैं। विभिन्न राष्ट्रों के सार्वजनिक क्षेत्र के मॉडल तुलनात्मक अलग-अलग हैं। परंतु ऐसे मॉडलों के अध्ययन द्वारा हम अपनी अर्थव्यवस्था और समाज की आवश्यकताओं को शामिल करने वाला एक अनुकूल फार्मेट विकसित कर सकते हैं।

8. मेरे विचार से, आज भारतीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के समक्ष सबसे प्रमुख चुनौती बाजार की शक्तियों का सामना करने के लिए उनकी प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाना है। प्रबंधन को उच्चतम पेशेवर दक्षता लानी होगी ताकि वह उत्पादकता तथा दक्षता में वैश्विक मानदंडों को प्राप्त करने तथा समसामयिक वैश्विक उद्यमों से अपेक्षा के अनुसार विभिन्न उद्देश्यों की प्राप्ति में सफल हों। हमारे बहुत से सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम उत्पादकता और गुणवत्ता में उदाहरण के रूप में उभरे हैं। उनके कारोबारी तरीकों का अध्ययन करके उसे अन्य समतुल्य और कम सफल सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम में समुचित रूप से प्रचारित प्रसारित करना होगा। मौजूदा कौशल में अंतर को पाटने तथा भविष्य में कौशल के पूर्वानुमान और तैयारी सहित मानव संसाधनों के प्रबंधन को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

9. सामाजिक विकास के अभिरक्षकों के तौर पर सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों से उच्च स्तर की सामाजिक संबद्धता की अपेक्षा है। यद्यपि, केन्द्रीय सेक्टर के सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम कारपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व के क्षेत्र में पहले ही अपने दायित्व पूरे कर रहे हैं, परंतु उन्हें कंपनी अधिनियम 2013 में निर्धारित प्रावधानों के अनुरूप अपने निजी क्षेत्र के समकक्षों के सामने उदाहरण प्रस्तुत करना होगा।

10. औद्योगिक विकास के लिए प्रौद्योगिकी विकास और नवान्वेषण को उच्च प्राथमिकता देने की आवश्यकता है। नए उत्पादों और प्रक्रियाओं का विकास, नए बाजारों में प्रवेश तथा नए उपभोक्ताओं पर ध्यान देना एक सतत् कारोबारी कार्यनीति है। सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों को ऐसे कारोबारी आचरण अपनाने में एक अग्रणी भूमिका निभानी होगी।

11.एक विशाल निगम को गतिशील और फलते-फूलते बाजार का फायदा उठाने के लिए वैश्विक अवसरों को खोजना होता है। अधिकांश सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के पास विदेशों से व्यापार संबंधी सक्रिय कार्यक्रम हैं। उन्हें वैश्विक अर्थव्यवस्था में प्रभुत्व स्थापित करने के लिए अपनी कार्यनीति बनानी होगी।

12. सार्वजनिक और निजी फर्मों को जोड़ने वाली एक मजबूत आपूर्ति श्रृंखला सेहमारे औद्योगिक क्षेत्र और अर्थव्यवस्था को अत्यधिक लाभ पहुंचने की संभावना है। औद्योगिक कार्य को स्थिर बनाए रखने और मूल्य श्रृंखला में सभी फर्मों की प्रगति के लिए वेंडर भुगतान की सहज और सुचारु प्रणालियां, सूचना और प्रौद्योगिकी के अधिक प्रयोग तथा छोटी फर्मों की अधिक भागीदारी जैसी कार्यनीतियों को अपनाना होगा।

देवियो और सज्जनो,

13. भारत के सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम हमारे देश के औद्योगिक परिदृश्य के अभिन्न अंग रहे हैं। उन्होंने, भारतीय उद्योग के जनक के रूप में तथा भारतीय अर्थव्यवस्था को स्थिरता प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। एक आदर्श नियोक्ता तथा औद्योगिक समुदाय के अग्रणी के रूप में सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों ने कई तरीकों से योगदान दिया है। मुझे विश्वास है कि यह मजबूती से विकास करेगा और राष्ट्र की बढ़ती हुई अपेक्षाओं को पूरी करेगा। मैं इस पहल के लिए लोक उद्यम विभाग और भारतीय उद्योग परिसंघ को बधाई देता हूं। मैं आप सभी को इस सम्मेलन के सफल आयोजन के लिए शुभकामनाएं देता हूं।

धन्यवाद,

जय हिन्द!