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चण्डीगढ़ में अखिल भारतीय आयुर्वेद महासम्मेलन के 58वें अधिवेशन के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण

चण्डीगढ़ : 14.03.2015



1. वैद्यों और आयुर्वेदाचार्यों की इस विशिष्ट सभा को संबोधित करना वास्तव में गर्व का विषय है। सबसे पहले मैं इस 58वें अखिल भारतीय आयुर्वेद महासम्मेलन के आयोजन के लिए तथा इस क्षेत्र के विशेषज्ञों को इस प्राचीन विज्ञान के आधुनिक अनुप्रयोग पर दृष्टिकोण के आदान-प्रदान तथा विचार-विमर्श के लिए तथा इसके उपयोग को बढ़ावा देने के कार्य पर मिलजुलकर विचार करने के लिए एक महत्त्वपूर्ण मंच उपलब्ध कराने के लिए बधाई देता हूं।

देवियो और सज्जनो,

2. आयुर्वेद, एक विज्ञान के रूप में भारत का है। यह दुनिया में सबसे पुरानी जीवंत चिकित्सा पद्धति है। इसकी शुरुआत 5000 वर्षों से भी पहले पाई गई है। यह माना जाता है कि आयुर्वेद के सिद्धांत सिंधु-घाटी की सभ्यता के लोगों को ज्ञात थे। इस विज्ञान का हमारे इतिहास के वैदिक काल के दौरान बहुत विकास हुआ था। वास्तव में,इस क्षेत्र में मुख्य ज्ञान के स्रोत वेदविशेषकर अथर्ववेदहैं जिन्हें 1000 ईसवी पूर्व के लगभग लिखा गया माना जाता है। हम जानते हैं कि 5वीं सदी में हमारे सबसे महान वैद्यों सुश्रुत और चरक के विद्वत्तापूर्ण निबंधों को संस्कृत से चीनी भाषा में अनूदित किया गया था तथा 700 ईसवी में चीनी विद्वान भारत में नालंदा विश्वविद्यालय में चिकित्सा शास्त्र का अध्ययन कर रहे थे।8वीं सदी तक इन पुस्तकों का अरबी तथा फारसी में अनुवाद हो चुका था। हम देखते हैं हमारे आयुर्वेदिक ग्रंथों से उद्धृत अरबी रचनाएं 12वीं सदी तक यूरोप पहुंच गई थी। आज, यह संतुष्टि का विषय है कि आयुर्वेद ने न केवल खुद को दक्षिण एशिया के बहुत से देशों में बनाए रखा है वरन् यह समुद्र पार यूरोप के कुछ देशों और संयुक्त राज्य अमरीका में भी लोकप्रिय है।

3. भारत में हम में से अधिकांश लोग जानबूझकरअथवा परंपरागत रूप में अपने दैनिक जीवन में आयुर्वेद पर निर्भर हैं। यहां तक कि हम में से जो लोग औपचारिक रूप से आयुर्वेद में प्रशिक्षित नहीं है, उन्होंने भी अपने दैनिक जीवन में इसके सिद्धांतों तथा भोजन संबंधी प्राथमिकताओं को अपना लिया है। भारत के विभिन्न इलाकों की विभिन्न संस्कृतियों में परिवारों द्वारा जड़ी-बूटियों, मसालों,पौधों, पत्तियों, फूलों तथा तेलों को विभिन्न तरह से सम्मिश्रणों के रूप में तैयार कर छोटी-बड़ी बीमारियों के उपचार के लिए प्रतिरोधी पेयों अथवा चिकित्सा उपायों के लिए उनका प्रयोग किया जाता है। उदाहरण के लिए, हमारे रोजाना के भोजन में हल्दी का प्रमुख तत्त्व होने का एक खास कारण है; इसी प्रकार तुलसी के पत्तों का पवित्र जल अथवा चरणामृत में मिलाकर दैनिक पूजा के बाद ग्रहण किया जाता है और गाय के दूध से निर्मित घी सदियों से खाना पकाने का प्रमुख माध्यम रहा है। आयुर्वेदिक उपायों की सरल प्रवृत्ति के कारण हमें से बहुत से लोग आधुनिक दवाओं के हानिकारक प्रभावों से बचने के लिए आयुर्वेद पर निर्भर रहना पसंद करते हैं।

विशिष्ट प्रतिभागीगण,

4. विज्ञान के रूप में आयुर्वेद को दुर्भाग्यवश औपनिवेशिक सत्ता के अधीन बहुत लंबे समय तक दबाए रखा गया जिसके कारण इस प्राचीन विज्ञान में प्रशिक्षण एवं शिक्षा को बहुत क्षति पहुंची।

5. सौभाग्य से, आजादी के बाद की अवधि में हमारी केंद्र सरकार तथा राज्य सरकारों ने इस प्राचीन चिकित्सा रहस्य के बहुमूल्य खजाने को फिर से जीवित करने के लिए बहुत से कदम उठाए हैं। भारत सरकार में आज आयुर्वेद, योग तथा प्राकृतिक चिकित्सा यूनानी, सिद्ध तथा होम्योपैथी के विकास और प्रोत्साहन के लिए एक पूर्ण आयुष मंत्रालय है। यह मंत्रालय हमारी देशी चिकित्सा पद्धतियों के चिकित्सकों के साथ मिलकर इन विज्ञानों में शिक्षा और प्रशिक्षण के विकास और उसे मजबूत करने के कार्य में लगा हुआ है। सुश्रुत संहिता तथा चरक संहिता अब विद्यार्थियों को हिंदी और अंग्रेजी में उपलब्ध है। मुझे विश्वास है कि इस तरह के प्रयासों से हमारे देश तथा विदेशों में आयुर्वेद को विकसित करने में अच्छा प्रोत्साहन मिलेगा।

देवियो और सज्जनो,

6. मैं इस बात बल देना चाहूंगा कि आयुर्वेद को केवल चिकित्सा की एक पद्धति के रूप में न देखा जाए। यह वास्तव में विधाओं का समूह है जो हमारे अंदर संतुलन और समरसता के सृजन के लिए मिलकर कार्य करती है। यह इस विचार पर आधारित है कि जीवन आत्मा, मन,इंद्रियों और शरीर के बीच के संबंध का प्रतीक है। यह शरीर के शारीरिक, मानसिक भावनात्मक तथा आध्यात्मिक अव्यवों में संतुलन बनाए रखने के लिए विज्ञान और दर्शन का एक विशिष्ट संयोजन है। आयुर्वेद के चिकित्सक मानते हैं कि यह संतुलन अच्छे स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए जरूरी है। इस तरह का संतुलन बीमारों को ठीक करने में, जो स्वस्थ हैं उनका स्वास्थ्य ठीक रखने में तथा बीमारी रोकने और अच्छा जीवन स्तर बनाए रखने में सहायता देता है।

7. आयुर्वेद को लंबे समय से एक अप्रमाणितविधा के तौर पर देखा जाता है। मैं चाहूंगा कि आयुर्वेदिक औषधियों को रहस्यात्मकता के आवरण से बाहर निकालकर उन्हें सूचनाप्रद वाणिज्यिक कार्य-योजना तथा प्रयोक्ता के लिए उपयुक्त पैकेजिंग के द्वारा लोकप्रिय बनाया जाए; मुझे उस दिन का इंतजार है जब पूरे भारत के गांव-गांव में आयुर्वेदिक उपचार तथा दवाएं प्रदान करने के लिए मोबाइल औषधालय मौजूद होंगे। मैं, विशेषकर, भारत के युवाओं को प्रोत्साहित करना चाहूंगा कि वे इस प्राचीन ज्ञान प्रणाली का अध्ययन करें, उसका अनुरक्षण करें तथा उसमें इलाज करें और उसका प्रचार करें।

8. यह माना जाता है कि आयुर्वेद और सिद्ध चिकित्सा पद्धतियों में सदियों पहले आज के एचआईवी तथा क्षय रोग के नाम से जानी जाने वाली बीमारियों से मिलती-जुलती बीमारियों के सफल उपचार के लिए पद्धति निर्धारित कर ली गई थी। यदि इन उपचारों पर अनुसंधान किया जाए तथा उनके निष्कर्षों पर अनुवर्ती कार्रवाई हो तो यह लाखों लोगों के लिए नई उम्मीद तथा आधुनिक चिकित्सा में क्रांति लाएगी। इसकी प्राप्ति के लिए मैं चाहूंगा कि इलाज की पद्धति पर व्यापक डाटा बेस तैयार करने तथा हमारी जनता के लिए सफल चिकित्सा परिपाटियों के विकास के लिए आयुर्वेदिक तथा एलोपैथिक अनुसंधानकर्ताओं के बीच अधिक सहयोग हो। आयुर्वेदिक प्रयोगशालाओं तथा औषधि विनिर्माताओं के बीच सीधे संबंधों के चैनल भी स्थापित करना उपयुक्त होगा। कुछ आधुनिक अस्पताल समेकित चिकित्सा के नाम पर आयुर्वेद की चिकित्सा भी प्रदान कर रहे हैं। मैं पूरे देश में अस्पतालों को प्रोत्साहित करना चाहूंगा कि वे जैसे भी संभव हो आयुर्वेदिक चिकित्सा की सुविधा और सेवा उपलब्ध कराएं। इसी संदर्भ में योग के महत्त्व को स्वास्थ्य की रक्षा तथा बीमारी के उपचार के लिए स्वीकार किया गया है। इसी वर्ष संयुक्त राष्ट्र संघ ने मतदान के बिना एक संकल्प पारित करके 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस घोषित करते हुए माना है कि योग स्वास्थ्य तथा कुशलता के लिए एक सर्वांगीण नजरिया उपलब्ध कराता है। क्योंकि योग और आयुर्वेद एक दूसरे के पूरक हैं और योग का प्रयोग आयुर्वेद के लाभदायक प्रभावों को बढ़ाता है, इसलिए योग और आयुर्वेद का संयोजन अच्छा स्वास्थ्य प्रदान करने तथा बीमारी रोकने में काफी लाभदायक सिद्ध हो सकता है।

9. मुझे विश्वास है कि 58वें महासम्मेलन के विचार-विमर्श, आयुर्वेद के बारे में जागरूकता फैलाएंगे और उसके प्रयोग को एक नया संबल प्रदान करेंगे तथा इसे आधुनिक वैज्ञानिक उपायों के माध्यम से आसान बनाकर तथा लोकप्रिय बनाकर हमारे समसामयिक समाज में इसकी प्रासंगिकता की वृद्धि में सहायता देंगे।

10. इन्हीं शब्दों के साथ, मैं एक बार फिर से इस सम्मेलन के आयोजकों को बधाई देता हूं और इसकी सफलता के लिए अपनी शुभकामनाएं देता हूं।

धन्यवाद,

जय हिंद!