सर्वप्रथम, मैं असम विश्वविद्यालय के तेरहवें वार्षिक दीक्षांत समारोह के इस उल्लासमय अवसर पर अपनी शुभकामनाएं देता हूं। मैं, इस अवसर पर सभी पदक, उपाधि और डिप्लोमा प्राप्तकर्ताओं को बधाई देता हूं।
विश्वविद्यालय के कुलाध्यक्ष के रूप में, हमारे अनुरोध को स्वीकार करने और उनके साथ जुड़ने पर हमें गौरवान्वित करने के लिए मैं, मानद उपाधि प्राप्तकर्ताओं का धन्यवाद करता हूं।
देवियो और सज्जनो, शिक्षा सामाजिक परिवर्तन और प्रगति का एक महत्त्वपूर्ण उत्प्रेरक है। महिलाओं और बच्चों के विरुद्ध अपराध के मामलों में वृद्धि को देखते हुए प्रभावी कदम उठाने की जरूरत है ताकि उनकी सुरक्षा और हिफाजत सुनिश्चित हो सके। इससे हमारे समाज के लिए आत्मविश्लेषण तथा नैतिक पतन को रोकने के तरीके ढूंढ़ने की आवश्यकता भी रेखांकित होती है। यह हमारे विश्वविद्यालयों और अन्य उच्च शिक्षण संस्थाओं का दायित्व है कि वे नैतिक चुनौतियों का सामना करने के लिए एक अभियान चलाएं और यह सुनिश्चित करें कि सभी के प्रति करुणा, बहुलवाद के प्रति सहनशीलता, महिलाओं के प्रति सम्मान, व्यक्तिगत जीवन में सत्य और ईमानदारी; आचरण में अनुशासन और आत्मसंयम तथा कार्य में उत्तरदायित्व के सभ्यतागत मूल्य हमारे युवाओं के मन में समाविष्ट हो जाएं।
शिक्षा, किसी भी समाज और राष्ट्र के विकास में बुनियादी भूमिका निभाती है। वास्तविक सशक्तीकरण केवल ज्ञान से ही प्राप्त किया जा सकता है। यदि हमारे देश को उच्च विकास के पथ पर अग्रसर होते रहना है तो उच्च शिक्षा स्तर प्राप्त करने का अनवरत प्रयास, इसकी प्राप्ति में एक अपरिहार्य आवश्यकता है। हमने इस दिशा में उल्लेखनीय प्रगति की है। ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना अवधि के दौरान, 21 केन्द्रीय विश्वविद्यालयों सहित 65 नए केन्द्रीय संस्थान आरंभ किए गए तथा केन्द्रीय संस्थानों की संख्या लगभग 75 प्रतिशत तक बढ़ गई। एक राज्य को छोड़कर, आज हमारे देश के प्रत्येक राज्य में कम से कम एक केन्द्रीय विश्वविद्यालय है। यह असाधारण वृद्धि देश में उच्च शिक्षा की आवश्यकता को पूरा करने के लिए अभी भी अपर्याप्त है।
आज शिक्षा क्षेत्र संख्या और गुणवत्ता दोनों की दृष्टि से समस्याओं का सामना कर रहा है। यह सुखद है कि भारत में शैक्षिक संस्थाओं का घनत्व ग्यारहवीं योजना अवधि के दौरान प्रति 1000 वर्ग किलोमीटर में 10 से बढ़कर 14 संस्थान हो गया है। परंतु यह कष्टकर है कि हमारे देश के बहुत से स्थानों पर ऐसी उच्च शिक्षा संस्थाएं नहीं हैं जो महत्वाकांक्षी विद्यार्थियों की पहुंच के भीतर हो।
भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली की चुनौतियों पर विचार करने के लिए, हमने इस वर्ष फरवरी में राष्ट्रपति भवन में केन्द्रीय विश्वविद्यालयों के कुलपतियों का एक सम्मेलन आयोजित किया था। बैठक के दौरान, हम तात्कालिक, अल्पकालिक और मध्यवर्ती उपायों पर कुछ परिणामों पर पहुंचे जो राष्ट्र की आवश्यकताओं पर ध्यान देने के लिए हमारी शिक्षा प्रणाली में आवश्यक बदलाव लाने के लिए जरूरी हैं। प्रधान मंत्री, मानव संसाधन विकास मंत्री तथा कुलपति इस क्षेत्र में हमारे समक्ष मौजूद चुनौतियों पर ध्यान देने की अत्यावश्यकता पर सहमत थे। यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने लिए गए निर्णयों का पूरी गंभीरता से कार्यान्वयन शुरू कर दिया है।
भारत में विश्व की दूसरी विशालतम उच्च शिक्षा प्रणाली है परंतु 2010 में देश में कुल प्रवेश संख्या लगभग 19 प्रतिशत थी जो 29 प्रतिशत के विश्व औसत से काफी नीचे थी। राष्ट्रीय औसत की तुलना में पिछड़े वर्गों की कम प्रवेश दर और भी बड़ी समस्या है।
अधिक विद्यार्थियों तक शिक्षा को सुगम्य बनाने के लिए, हमारे प्रयासों का लक्ष्य उच्च शिक्षा को, विशेषकर देश के सुदूर कोनों में रहने वाली आबादी के निकट लाने का होना चाहिए। हमें राज्यों, क्षेत्रों और समाज के वर्गों में उच्च शिक्षा की पहुंच के असंतुलन को दूर करना होगा।
ज्ञान प्राप्ति के बहुत सारे आयाम हैं। सुगम्यता और पहुंच के परिणामस्वरूप इससे लैंगिक समता आती है। मुझे खुशी है कि उत्तर-पूर्व ने अब महिला शिक्षा पर ध्यान केंद्रित किया है। अब उत्तर-पूर्व की लड़कियां बड़ी संख्या में भारत के प्रमुख शहरों में शिक्षा प्राप्त कर रही हैं तथा वे महानगरों में रोजगार प्राप्त कर रही हैं।
विकसित देशों में, विश्वविद्यालय स्वयं को वर्चुअल और मेटा विश्वविद्यालयों में बदल रहे हैं जो विद्यार्थियों एवं अकादमिकों, दोनों शैक्षिक समुदायों को एक संस्थान से दूसरे संस्थान में मुक्त आवाजाही की अनुमति देते हैं। प्रक्रिया के लचीलेपन तथा कड़ी गुणवत्ता से वे विश्व के विभिन्न हिस्सों के विद्यार्थियों को विशाल संख्या में आकर्षित करते हैं। वे वास्तव में विश्वस्तरीय हैं। हम वास्तविक रूप में उनकी बराबरी कैसे कर सकते हैं? अकादमिक उत्कृष्टता का केन्द्र बनाने के लिए समूची शिक्षा प्रणाली को संवारा जाना चाहिए। हमें याद रखना चाहिए कि कभी हमारे यहां नालंदा और तक्षशिला में विश्वस्तरीय विश्वविद्यालय थे। इसलिए, भारत में विश्व स्तरीय विश्वविद्यालयों के निर्माण का स्वप्न एक पूरा करने योग्य आकांक्षा है।
एक सुदृढ़ वैज्ञानिक और तकनीकी जनशक्ति से युक्त भारत के पास आने वाले वर्षों में एक प्रमुख ज्ञान शक्ति बनने का मौका है। इस सपने को साकार करने के लिए, हमें अनुसंधान और विकास में निवेश करना होगा। एक राष्ट्र द्वारा अपनी युवा शक्ति में किया गया निवेश ही सर्वोत्तम निवेश है। विशाल जनसांख्यिकी तथा प्रचुर वैज्ञानिक प्रतिभा भण्डार का फायदा उठाने के लिए, हमने विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवान्वेषण नीति 2013 की घोषणा की है। हमें नवान्वेषण की पहचान करनी है और इसे जनता के समीप लाना है।
यह दशक नवान्वेषण का दशक है। नवान्वेषण तभी सार्थक होंगे जब इसके लाभ सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था के निचले पायदान तक पहुंचेगे। इस वर्ष आयोजित केन्द्रीय विश्वविद्यालयों के कुलपतियों के सम्मेलन में, शिक्षण और विद्यार्थी समुदायों तथा जमीनी नवान्वेषकों के बीच संवाद को सुगम बनाने के लिए, केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में नवान्वेषण क्लब स्थापित करने के लिए एक सिफारिश की गई थी। हाल ही में, मुझे बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय, लखनऊ में ऐसे ही एक क्लब का उद्घाटन करने का अवसर प्राप्त हुआ। मुझे युवाओं द्वारा किए गए नवान्वेषणों को देखकर खुशी हुई थी।
आज, मुझे प्रसन्नता हो रही है कि असम विश्वविद्यालय, सिलचर ने नवान्वेषण क्लब स्थापित किया है और नवान्वेषकों की एक प्रदर्शनी आयोजित की है। मैं, विश्वविद्यालयों द्वारा चिह्नित प्रेरित शिक्षकों से भी मुलाकात करूंगा। मैं, इस पहल के लिए तथा ऐसे कार्यों की शुरुआत करने वाले कुछ शुरुआती विश्वविद्यालयों में शामिल होने के लिए कुलपति और उनकी टीम की सराहना करता हूं। मुझे उम्मीद है कि इससे इस क्षेत्र में नवान्वेषण का एक मंच उपलब्ध होगा ताकि कोई भी नवान्वेषण अनदेखा और अप्रयुक्त न रह जाए।
मुझे, देश का पूर्वोत्तर भाग सदैव अत्यंत प्रिय रहा है। इस क्षेत्र में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने की क्षमता है। असम विश्वविद्यालय के कुलाध्यक्ष के रूप में, मैं, असम विश्वविद्यालय को उच्च गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने में अग्रता प्राप्त करने तथा उच्च शिक्षा वर्ग में एक आदर्श बनते हुए देखना चाहता हूं।
दीक्षांत समारोह विश्वविद्यालय और विद्यार्थियों के जीवन में एक विशेष अवसर होता है। यह शिक्षा के दौर के पूर्ण होने का प्रतीक है। मैं, इस अवसर पर एक बार फिर से, आज स्नातक बने सभी विद्यार्थियों को तथा उनको अपने अकादमिक लक्ष्यों को पूरा करने के अवसर प्रदान करने के लिए विश्वविद्यालय को बधाई देता हूं।
धन्यवाद,
जय हिंद!