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भारत के 67वें स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति जी का राष्ट्र के नाम संदेश

नई दिल्ली : 14.08.2013



प्यारे देशवासियो :

हमारी स्वतंत्रता की 66वीं वर्षगांठ की पूर्व संध्या पर, मैं आपको तथा विश्व भर में सभी भारतवासियों को हार्दिक बधाई देता हूं।

2. मेरा ध्यान सबसे पहले हमारे स्वतंत्रता संग्राम को दिशा प्रदान करने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और हमारे देश की स्वतंत्रता के लिए सर्वोच्च बलिदान देने वाले शहीदों सहित उन महान देशभक्तों की ओर जाता है, जिनके अदम्य संघर्ष ने हमारी मातृभूमि को लगभग दो सौ वर्षों के औपनिवेशिक शासन से मुक्ति दिलवाई। गांधीजी, न केवल विदेशी शासन से, बल्कि हमारे समाज को लम्बे समय से जकड़ कर रखने वाली सामाजिक बेड़ियों दोनों से, मुक्ति चाहते थे। उन्होंने हर भारतीय को खुद पर विश्वास करने की तथा बेहतर भविष्य के लिए उम्मीदों की राह दिखाई। गांधीजी ने स्वराज, अर्थात् सहिष्णुता तथा आत्म-संयम पर आधारित स्व-शासन का वायदा किया। उन्होंने अभावों तथा दरिद्रता से मुक्ति का भरोसा दिलाया। अब पिछले लगभग सात दशकों से हम खुद अपने भाग्य के नियंता हैं। और यही वह क्षण है जब हमें पूछना चाहिए कि क्या हम सही दिशा में आगे बढ़ रहे हैं? यदि हम उन मूल्यों को भुला देंगे जो गांधीजी के आंदोलन की बुनियाद थे, अर्थात्, प्रयासों में सच्चाई, उद्देश्य में ईमानदारी तथा सबके हित के लिए बलिदान, तो उनके सपनों को साकार करना संभव नहीं होगा।

3. हमारे राष्ट्र निर्माताओं ने औपनिवेशिक दुनिया के मरुस्थल के बीच एक हरे-भरे उद्यान की रचना की थी जो कि लोकतंत्र से पोषित है। लोकतंत्र, वास्तव में, केवल हर पांच साल में मत देने के अधिकार से कहीं बढ़कर है; इसका मूल है जनता की आकांक्षा; इसका जज़्बा नेताओं के उत्तरदायित्व तथा नागरिकों के दायित्वों में हर समय दिखाई देना चाहिए। लोकतंत्र, एक जीवंत संसद, एक स्वतंत्र न्यायपालिका, एक जिम्मेदार मीडिया, जागरूक नागरिक समाज तथा सत्यनिष्ठा और कठोर परिश्रम के प्रति समर्पित नौकरशाही के माध्यम से ही सांस लेता है। इसका अस्तित्व जवाबदेही के माध्यम से ही बना रह सकता है न कि मनमानी से। इसके बावजूद, हम बेलगाम व्यक्तिगत संपन्नता, विषयासक्ति, असहिष्णुता, व्यवहार में उच्छृंखलता तथा प्राधिकारियों के प्रति असम्मान के द्वारा अपनी कार्य संस्कृति को नष्ट होने दे रहे हैं। हमारे समाज के नैतिक ताने-बाने के कमजोर होने का सबसे ज्यादा दुष्प्रभाव युवाओं और निर्धनों की उम्मीदों पर तथा उनकी आकांक्षाओं पर पड़ता है। महात्मा गांधी ने हमें सलाह दी थी कि हमें ‘‘सिद्धांत के बिना राजनीति, श्रम के बिना धन, विवेक के बिना सुख, चरित्र के बिना ज्ञान, नैतिकता के बिना व्यापार, मानवीयता के बिना विज्ञान तथा त्याग के बिना पूजा’’ से बचना चाहिए। जैसे-जैसे हम आधुनिक लोकतंत्र का निर्माण करने की ओर अग्रसर हो रहे हैं, हमें उनकी सलाह पर ध्यान देना होगा। हमें देशभक्ति, दयालुता, सहिष्णुता, आत्म-संयम, ईमानदारी, अनुशासन तथा महिलाओं के प्रति सम्मान जैसे आदर्शों को एक जीती-जागती ताकत में बदलना होगा।

प्यारे देशवासियो :

4. संस्थाएं राष्ट्रीय चरित्र का दर्पण होती हैं। आज हमें अपने देश में शासन व्यवस्था तथा संस्थाओं के कामकाज के प्रति, चारों ओर निराशा और मोहभंग का वातावरण दिखाई देता है। हमारी विधायिकाएं कानून बनाने वाले मंचों से ज्यादा लड़ाई का अखाड़ा दिखाई देती हैं। भ्रष्टाचार एक बड़ी चुनौती बन चुका है। अकर्मण्यता तथा उदासीनता के कारण देश के बेशकीमती संसाधन बर्बाद हो रहे हैं। इससे हमारे समाज की ऊर्जा का क्षय हो रहा है। हमें इस क्षय को रोकना होगा।

5. हमारे संविधान में, राज्य की विभिन्न संस्थाओं के बीच शक्ति का एक नाजुक संतुलन रखा गया है। इस संतुलन को कायम रखना होगा। हमें ऐसी संसद चाहिए जिसमें वाद-विवाद हों, परिचर्चाएं हों और निर्णय लिए जाएं। हमें ऐसी न्यायपालिका चाहिए जो बिना विलंब किए हुए न्याय दे। हमें ऐसा नेतृत्व चाहिए जो देश के प्रति तथा उन मूल्यों के प्रति समर्पित हो, जिन्होंने हमें एक महान सभ्यता बनाया है। हमें ऐसा राज्य चाहिए जो लोगों में यह विश्वास जगा सके कि वह हमारे सामने मौजूद चुनौतियों पर विजय पाने में सक्षम है। हमें ऐसे मीडिया तथा नागरिकों की जरूरत है जो अपने अधिकारों पर दावों की तरह ही अपने दायित्वों के प्रति भी समर्पित हों।

प्यारे देशवासियो :

6. शिक्षा प्रणाली के माध्यम से समाज को फिर से नया स्वरूप दिया जा सकता है। विश्व स्तर का एक भी विश्वविद्यालय न होने के बावजूद हम विश्व शक्ति बनने की आकांक्षा नहीं पाल सकते। इतिहास गवाह है कि हम कभी पूरी दुनिया के मार्गदर्शक हुआ करते थे। तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला, वल्लभी, सोमपुरा तथा ओदांतपुरी, इन सभी में वह प्राचीन विश्वविद्यालय प्रणाली प्रचलित थी, जिसने छठी सदी ईस्वी पूर्व से अठारह सौ वर्षों तक पूरी दुनिया पर अपना प्रभुत्व बनाए रखा। ये विश्वविद्यालय दुनिया भर के सबसे मेधावी व्यक्तियों तथा विद्वानों के लिए आकर्षण का केंद्र थे। हमें फिर से वह स्थान प्राप्त करने का प्रयास करना होगा। विश्वविद्यालय ऐसा वट-वृक्ष है जिसकी जड़ें बुनियादी शिक्षा में और स्कूलों के एक बड़े संजाल में निहित होती हैं जो हमारे समुदायों को बौद्धिक उपलब्धियों का मौका प्रदान करता है। हमें इस बोधि वृक्ष के बीज से लेकर जड़ों तक, तथा शाखा से लेकर सबसे ऊंची पत्ती तक, हर हिस्से पर निवेश करना होगा।

प्यारे देशवासियो :

7. सफल लोकतंत्र तथा सफल अर्थव्यवस्था के बीच सीधा संबंध है, क्योंकि हम जनता के द्वारा संचालित राष्ट्र हैं। जनता अपने हितों का बेहतर ढंग से तभी ध्यान रख सकती है जब वह पंचायत तथा स्थानीय शासन के विभिन्न स्वरूपों में निर्णय लेने की प्रक्रिया में भागीदारी करती है। हमें स्थानीय निकायों के कामकाज में बेहतर परिणाम प्राप्त करने के लिए उनको कार्य, कर्मचारी तथा धन देकर तेजी से अधिकार संपन्न बनाना होगा। तीव्र विकास से हमें संसाधन तो मिले हैं परंतु बढ़े हुए परिव्ययों के उतने बेहतर परिणाम नहीं मिल पाए हैं। समावेशी शासन के बिना हम, समावेशी विकास प्राप्त नहीं कर सकते।

8. 120 करोड़ से अधिक की आबादी वाले हमारे विकासशील देश के लिए, विकास और पुनर्वितरण के बीच बहस अत्यावश्यक है। जहां विकास से पुनर्वितरण के अवसर बढ़ते हैं, वहीं आगे चलकर पुनर्वितरण से विकास की गति बनी रहती है। दोनों ही बराबर महत्वपूर्ण हैं। दूसरे के हितों के विपरीत, इनमें से किसी भी एक पर जोर देने से देश को दुष्परिणामों का सामना करना पड़ सकता है।

9. भारत, पिछले दशक के दौरान, विश्व में एक सबसे तेजी से प्रगति करता हुआ देश बनकर उभरा है। इस अवधि के दौरान, हमारी अर्थव्यवस्था में प्रतिवर्ष 7.9 प्रतिशत की औसत दर से वृद्धि हुई है। हम आज खाद्यान्न के उत्पादन में आत्मनिर्भर हैं। हम, दुनिया भर में चावल के सबसे बड़े तथा गेहूं के दूसरे सबसे बड़े निर्यातक हैं। इस वर्ष दालों का 18.45 मिलियन टन का रिकार्ड उत्पादन हुआ है, जो दालों के उत्पादन में आत्म-निर्भरता प्राप्त करने की दिशा में एक शुभ संकेत है। कुछ वर्षों पहले तक इस बारे में कोई सोच भी नहीं सकता था। इस गति को बनाए रखना होगा। वैश्वीकृत दुनिया में, बढ़ती हुई आर्थिक जटिलताओं के बीच, हमें अपनी बाहरी तथा घरेलू दोनों ही प्रकार की कठिनाइयों का बेहतर ढंग से सामना करना सीखना होगा।

प्यारे देशवासियो :

10. अपनी आजादी की भोर में, हमने आधुनिकता का तथा समतापूर्ण आर्थिक विकास का दीपक जलाया था। इस दीपक के जलते रहने के लिए, गरीबी का उन्मूलन हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता है। यद्यपि गरीबी की दर में स्पष्ट रूप से गिरावट का रुझान दिखाई देता है परंतु गरीबी के विरुद्ध हमारी लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है। भारत के पास इस अभिशाप के उन्मूलन के लिए प्रतिभा, योग्यता तथा संसाधन मौजूद हैं।

11. जिन सुधारों ने हमें यहां तक पहुंचने में सक्षम बनाया है, उन्हें शासन के सभी स्तरों पर जारी रखने की जरूरत है। अगले दो दशकों के दौरान, जनसंख्या में अनुकूल बदलाव का हम बहुत लाभ उठा सकते हैं। इसके लिए औद्योगिक रूपांतरण की और रोजगार के अवसरों के तेजी से सृजन की आवश्यकता है। इसके साथ ही सुव्यवस्थित शहरीकरण भी जरूरी है। सरकार द्वारा पिछले कुछ समय के दौरान शुरू की गई नई विनिर्माण नीति, शहरी अवसरंचना का नवीकरण तथा महत्वाकांक्षी कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रमों जैसी विभिन्न पहलों पर, अगले वर्षों के दौरान बारीकी से नजर रखने की जरूरत पड़ेगी।

12. हमने अपनी जनता को रोजगार, शिक्षा, भोजन तथा सूचना के अधिकार की कानूनी गारंटियों के साथ, हकदारियां प्रदान की हैं। अब हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि इन हकदारियों से जनता को सच्ची अधिकारिता प्राप्त हो। इन कानूनों को कारगर बनाने के लिए हमें मजबूत सुपुर्दगी तंत्रों की जरूरत होगी। कारगर जन-सेवा सुपुर्दगी तथा जवाबदेही के नए मानदंड तय करने होंगे। इस वर्ष के आरंभ में शुरू की गई प्रत्यक्ष लाभ अंतरण योजना से पारदर्शिता आएगी, दक्षता बढ़ेगी तथा बहुमूल्य संसाधनों का अपव्यय रुकेगा।

प्यारे देशवासियो :

13. प्रगति की अपनी दौड़ में, हमें यह ध्यान रखना होगा कि इन्सान और प्रकृति के बीच का संतुलन बिगड़ने न पाए। इस तरह के असंतुलन के विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं। उत्तराखंड में अपनी जान गंवाने वाले तथा कष्टों का सामना करने वाले असंख्य लोगों के प्रति, मैं अपनी संवेदना व्यक्त करता हूं। मैं, अपनी सुरक्षा तथा सशस्त्र सेनाओं के बहादुर जवानों, सरकार तथा गैर सरकारी संस्थाओं को नमन् करता हूं, जिन्होंने इस आपदा के कष्टों को कम करने के लिए भारी प्रयास किए। इस आपदा के लिए मानवीय लोलुपता तथा मां प्रकृति का कोप, दोनों ही जिम्मेदार हैं। यह प्रकृति की चेतावनी थी। और अब समय आ गया है कि हम जाग जाएं।

प्यारे देशवासियो :

14. पिछले दिनों आंतरिक और बाह्य सुरक्षा के लिए गंभीर चुनौतियां हमारे सामने आई हैं। छत्तीसगढ़ में माओवादी हिंसा के बर्बर चेहरे ने बहुत से निर्दोष लोगों की जानें लीं। पड़ोसी देशों के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध बनाने के भारत के निरंतर प्रयासों के बावजूद सीमा पर तनाव रहा है और नियंत्रण रेखा पर युद्ध विराम का बार-बार उल्लंघन हुआ है, जिससे जीवन की दुखद हानि हुई है। शांति के प्रति हमारी प्रतिबद्धता अविचल है परंतु हमारे धैर्य की भी एक सीमा है। आंतरिक सुरक्षा सुनिश्चित करने और राष्ट्र की क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा करने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाए जाएंगे। मैं निरंतर चौकसी रखने वाले अपने सुरक्षा और सशस्त्र बलों के साहस और शौर्य की सराहना करता हूं और उनके प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं, जिन्होंने मातृभूमि की सेवा में सबसे मूल्यवान उपहार, अपने जीवन का सर्वोच्च बलिदान दिया।

15. हमारे अगले स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर, आपको फिर से संबोधित करने से पहले, हमारे देश में आम चुनाव होंगे। लोकतंत्र का यह महान त्योहार हमारे लिए एक ऐसी स्थिर सरकार को चुनने का महान अवसर है जो सुरक्षा तथा आर्थिक विकास सुनिश्चित करेगी। हर एक चुनाव अधिक सामाजिक सौहार्द, शांति तथा समृद्धि की ओर राष्ट्र की यात्रा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित होना चाहिए।

16. लोकतंत्र ने हमें एक और स्वर्ण युग के निर्माण का मौका दिया है। हमें यह असाधारण मौका नहीं चूकना चाहिए। हमारी भावी यात्रा बुद्धिमत्ता, साहस तथा दृढ़ संकल्प की मांग करती है। हमें अपने मूल्यों तथा संस्थाओं के सर्वांगीण पुनरुत्थान का प्रयास करना होगा। हमें यह समझना होगा कि अधिकार तथा उत्तरदायित्व एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। हमें आत्म-चिंतन तथा आत्म-संयम जैसे सद्गुणों को फिर से अपनाना होगा।

17. अंत में मैं, महान ग्रंथ भगवद्गीता के एक उद्धरण से अपनी बात समाप्त करना चाहूंगा, जहां उपदेशक अपने दृष्टिकोण का प्रतिपादन करते हुए कहता है, ‘‘यथेच्छसि तथा कुरु...’’ ‘‘आप जैसा चाहें, वैसा करें, मैं अपने दृष्टिकोण को आप पर थोपना नहीं चाहता। मैंने आपके समक्ष वह रखा है जो मेरे विचार में उचित है। अब यह निर्णय आपके अंत:करण को, आपके विवेक को, आपके मन को लेना है कि उचित क्या है।’’

आपके निर्णयों पर ही हमारे लोकतंत्र का भविष्य निर्भर है।

जय हिंद!