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राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण दिवस-2012 के उद्घाटन के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण

विज्ञान भवन, नई दिल्ली : 14.12.2012



देवियो और सज्जनो,

मुझे राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण पुरस्कार 2012 प्रदान करने के अवसर पर यहां उपस्थित होकर बहुत खुशी हो रही है। इन पुरस्कारों से समाज में ऊर्जा संरक्षण का संदेश फैलाने में बहुत सहयोग मिलता है। इस तथ्य के प्रति अधिक समझ बढ़नी चाहिए कि बेहतर सतत् भविष्य के लिए यह जरूरी होगा कि हमारा समाज अपनी ऊर्जा की खपत तथा उसकी लागत और उपलब्धता के बीच बेहतर संतुलन बनाए। मैं विभिन्न उद्योगों के उन सभी पुरस्कार विजेताओं को बधाई देता हूं जिन्होंने सतत् विकास को बढ़ावा देने के सरकार के प्रयासों में सहयोग दिया है।

मुझे ऊर्जा संरक्षा के संदेश को फैलाने के लिए आयोजित पेंटिंग प्रतियोगिता में अपनी सरल और रंगबिरंगी पेंटिंगों के साथ भाग लेने वाले बच्चों को देखकर भी बहुत खुशी हो रही है। मैं इन बच्चों को हार्दिक बधाई देता हूं।

आज पूरी दुनिया में पर्यावरण संबंधी चिंताएं परिचर्चाओं के केंद्र में हैं। परंतु सही मायने में विकास की दिशा में सतत् मार्ग अपनाने की ओर हमारी यात्रा अभी शुरू ही हुई है। हमारे देश की प्रगति की जरूरतों के अनुरूप अगले दो दशकों में भारत में ऊर्जा की खपत दोगुना होने की उम्मीद है।

भारत ऊर्जा खपत के मामले में अमरीका, चीन और रूस के बाद दुनिया भर में चौथे स्थान पर है। परंतु इतनी अधिक खपत को बनाए रखने के लिए हमारे देश के पास इतना बहुतायत में ऊर्जा संसाधन मौजूद नहीं हैं। भारत के लिए ऊर्जा प्रबलता, जो कि किसी भी देश की अर्थव्यवस्था की ऊर्जा दक्षता का मापदंड है और ऊर्जा को सकल घरेलू उत्पाद के बदलने की लागत को दर्शाती है, यू.के., जर्मनी, जापान तथा अमरीका जैसे विकसित देशों के मुकाबले ऊंची है। इसलिए देश के लिए उच्च सकल घरेलू उत्पाद प्राप्त करना और साथ-साथ जनता की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करना हमारे लिए एक बड़ी चुनौती रहेगा।

2012 के मार्च के अंत की स्थिति के अनुसार ऊर्जा की संचित स्थापित क्षमता 2 लाख मेगावाट के करीब है जिसमें 24503 मेगावाट की नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता शामिल है। ग्यारहवीं योजना अवधि के दौरान इस क्षमता में लगभग 55000 मेगावाट की वृद्धि हुई थी जो कि पहले की किसी भी योजना अवधि के मुकाबले 2.5 गुना अधिक है। बारहवीं योजना अवधि के दौरान, ऊर्जा संसाधनों के घरेलू उत्पादन के 6.84 प्रतिशत की वार्षिक औसत दर बढ़ने की संभावना बताई गई है। तथापि, इसकी संभावना कम है कि हम आयातों पर अपनी अधिक निर्भरता को सीमित कर पाएंगे। वास्तव में बारहवीं योजना अवधि के दौरान ऊर्जा के विशुद्ध आयात के 8 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से बढ़ने की संभावना दर्शाई गई है। हालांकि उच्च विकास दर प्राप्त करने की बाध्यता है परंतु आयातों पर इस तरह की निर्भरता हमारी अर्थव्यवस्था के वित्तीय संतुलन पर असर डालेगी। सतत् विकास के लिए उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों का अधिक दक्षतापूर्ण उपयोग अनिवार्य है। तद्नुसार हमें, जहां ऊर्जा की सार्वभौमिक उपलब्धता प्राप्त करनी है वहीं इसके साथ-साथ ऊर्जा दक्षता को भी बढ़ावा देना है। अत: अधिक स्वच्छ ऊर्जा संसाधनों की ओर बढ़ना जरूरी है।

जलवायु परिवर्तन जहां एक ओर खतरा है, वहीं दूसरी ओर यह मिलजुल कर कार्य करने का एक बेजोड़ अवसर भी है। जलवायु की नाजुकता वाले विकासशील देशों में अग्रणी होने के नाते जलवायु परिवर्तन के लिए एक सफल, नियम आधारित, समतापूर्ण तथा बहुपक्षीय समाधान के विकास में भारत की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। ‘जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना’ की शुरुआत करके घरेलू स्तर पर एक अच्छी शुरुआत कर दी गई है। इस कार्य योजना में विकास के समग्र संदर्भ में जलवायु परिवर्तन के लिए एक व्यापक समाधान निर्धारित किया गया है और ऐसे उपायों को चिह्नित किया गया है जो हमारे विकास लक्ष्यों को बढ़ावा देंगे और जलवायु परिवर्तन के मुद्दे के कारगर ढंग से समाधान के लिए साथ-साथ लाभ भी प्रदान करेंगे। इस कार्य योजना के तहत चलाए जाने वाले आठ मिशनों में वैज्ञानिक अनुसंधान के साथ-साथ अनुकूलन तथा न्यूनीकरण का भी ध्यान रखा गया है।

यह उल्लेख करना उचित होगा कि मांग प्रबंधन उपायों की, ऊर्जा की कमी को समस्या को खत्म करने में तथा काफी हद तक मांग और आपूर्ति के बीच अंतर को पाटने में प्रमुख भूमिका है। मुझे यह देखकर खुशी हो रही है कि पिछले पांच वर्षों के दौरान हमारे आर्थिक विकास में ऊर्जा दक्षता तथा मांग प्रबंधन कारक भी शामिल किए गए हैं। वर्तमान सरकार की एक महत्त्वपूर्ण पहल बेहतर ऊर्जा दक्षता पर राष्ट्रीय मिशन, जिसे ऊर्जा मंत्रालय द्वारा चलाया जा रहा है, में अनुकूल विनियमन और नीतिगत व्यवस्थाएं सृजित करके ऊर्जा दक्षता के लिए बाजार को मजबूत करने का लक्ष्य रखा गया है। यह हमारी ऊर्जा सुरक्षा के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। परंतु मैं यह बात दोहराना चाहूंगा कि केवल विनियामक एवं नीतिगत व्यवस्थाएं बनानी ही काफी नहीं है बल्कि उन नीतियों का कार्यान्वयन और उनका प्रवर्तन करना कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण है।

आज के बच्चे कल के नागरिक और राष्ट्र निर्माता हैं। ऊर्जा मंत्रालय द्वारा प्रति वर्ष आयेजित होने वाली राष्ट्रीय पेंटिंग प्रतियोगिता से देश में ऊर्जा संरक्षण का संदेश देने में स्कूली बच्चों की सहभागिता सुनिश्चित होती है। ‘बिजली बचाओ, उन्नति लाओ’, ‘डू द नेशन ए फेवर, बी एन एनर्जी सेवर’ तथा ‘विंड वाटर एंड सन : एनर्जी फॉर द लाँग रन’ जैसे शीर्षकों के साथ, इस वर्ष हमारे बच्चों ने अपनी रंग-बिरंगी पेंटिंगों के जरिए जो जीवंत परंतु सरल विचार प्रस्तुत किए हैं, उनसे पता चलता है कि उन्हें विषय की तथा पर्यावरणीय अनुकूल सतत् विकास प्राप्त करने के लिए क्या किया जाना चाहिए इसकी अच्छी समझ है। मैं इन बच्चों को देश में ऊर्जा संरक्षण का संदेश फैलाने के लिए बधाई देता हूं।

इन्हीं शब्दों के साथ, मैं एक बार फिर ऊर्जा मंत्रालय को ऊर्जा बचत की दिशा में उद्योग द्वारा किए जा रहे प्रयासों को मान्यता देने के लिए बधाई देना चाहूंगा। मैं पुरस्कार विजेताओं को भी बधाई देता हूं और उम्मीद करता हूं कि वे ऊर्जा बचत को बढ़ावा देने की दिशा में कार्य करते रहेंगे।

जय हिंद!