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भारत के राष्ट्रपति द्वारा कोलकाता में एशियाटिक सोसायटी में राष्ट्रीय अखंडता पर इंदिरा गांधी स्मृति व्याख्यान

कोलकाता : 14.12.2015



1. मैं वर्ष 2013में एशियाटिक सोसायटी इंदिरा गांधी स्मृति व्याख्यान देने में अपने आपको सम्मानित महसूस कर रहा हूं। मैं परिषद के सदस्यों और एशियाटिक सोसायटी के सलाहकार बोर्ड के सदस्यों के प्रति व्याख्यान देने हेतु मुझे आमंत्रित करने के लिए आभार प्रकट करता हूं।

2. सर विलियम जोन्स द्वारा 1784में स्थापित एशियाटिक सोसायटी को प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की पहल पर संसद के अधिनियम द्वारा राष्ट्रीय महत्त्व के संस्थान के रूप में घोषित किया गया। एशियाटिक सोसायटी के द्विशताब्दी समारोह का दिनांक11जनवरी, 1984में उद्घाटन के दौरान,श्रीमती गांधी ने कहा और मैं उसे उद्धृत करता हूं, ‘‘कुछ संस्थाएं इतिहास को प्रतिबिंबित करती हैं और कुछ इसमें योगदान देती हैं। इस सोसायटी ने दोनों कार्य किए हैं। अपने कार्य से,हमने यूरोप में भारत की संस्कृति और बौद्धिक उपलब्धियों को जाहिर किया है। जब हम संदेह और कठिनाई से घिरे हुए थे,तो इसने एक आशा की किरण का कार्य किया। हमारे लोगों के लिए इसका अर्थ अपनी विरासत की पुन: खोज और अपने आत्म-सम्मान की बहाली है।’’

3. यह कहा जा सकता है कि भारत का आत्मभाव यहां से आरंभ हुआ। विश्व का ध्यान भारत की दार्शनिक विचारधारा,साहित्य,गणित,ज्योतिष और वैज्ञानिक अन्वेषण की ओर आकर्षित किया गया। समाज ने संस्कृत पाठ और फारसी और अन्य भाषाओं में वैज्ञानिक और दार्शनिक ज्ञान के भण्डार को लोकप्रियता दी। भारतीय पुरातत्व,युद्धशास्त्र,पुरालेख विद्या,इतिहास लेखन आदि की नींव यहीं पड़ी। अनुसंधान अन्वेषण को मान्यता मिली,जिसके परिणामस्वरूप अनेक राष्ट्रीय संगठन बने।

4. आज के व्याख्यान का विषय है राष्ट्रीय अखंडता। भारत ने अपने विशाल आकार और असीम विविधता के बावजूद सदियों से उल्लेखनीय एकता और अस्मिता को कायम रखा है। भारत के विकास के विचार के लिए राष्ट्रीय अखंडता अत्यावश्यक है। अंतरराष्ट्रीय मंच पर प्रभावकारी भागीदार के तौर पर भारत के उभरने से,मिलकर विचार करने,एकजुट होकर कार्य करने तथा साथ-साथ विकास से1.28बिलियन आबादी वाले हमारे राष्ट्र की समस्याओं को सफलतापूर्वक निपटाया जा सकता है।

5. राष्ट्रीय एकता की नींव सभी भारतीयों के मन और हृदय में डालनी होगी। इस देश के प्रत्येक नागरिक को जानना चाहिए कि भारत क्या है और क्या रहा है। उसे हमारे दीर्घ इतिहास तथा इस धरती पर पनपी महान सभ्यता की पूरी जानकारी होनी चाहिए। सभी भारतीयों को इन लोगों के बारे में जानना चाहिए जो विश्व के विभिन्न भागों से आए और जिन्होंने भारतीय संस्कृति की उत्कृष्ट बनावट में अपना योगदान दिया। यहां जन्म लेने वाले विभिन्न पंथों और महान संतों का ज्ञान प्रत्येक शिक्षा का प्रमुख भाग होना चाहिए। प्रत्येक भारतीय को विश्व के साथ हमारे प्राचीन संबंधों और विश्व सभ्यता में हमारे योगदान के बारे में जानकारी होनी चाहिए। सबसे महत्त्वपूर्ण यह है कि हमारे लोगों,जातीयताओं,भाषाओं और संस्कृतियों की व्यापक विविधता के बीच हमें एक सूत्र में बांधने वाली वास्तविक एकता प्रत्येक नागरिक विशेषकर युवाओं में संचारित करनी चाहिए।

6. जैसा कि प्रत्येक देश में होता है,हमारी सुंदरता,उपलब्धि और भावी प्रगति की क्षमता पर कुछ कमियों और असफलताओं की धूल जमी होती है। प्रत्येक भारतीय को विगत की भूल और उन सीमाओं के प्रति भी सजग होना चाहिए जो हमारे बीच असमानता की समस्याओं को जन्म देती है। हममें से प्रत्येक का इस आशय का एक महान भारत का सपना भी होना चाहिए कि हम समानता,न्याय,स्वतंत्रता और वैयक्तिक मर्यादा के मूल्यों पर आधारित एक जोशपूर्ण लोकतंत्र बनाने के प्रति प्रतिबद्ध हैं,जैसा कि हमारे संविधन की संकल्पना है।

7. पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपनी पुस्तकडिस्कवरी ऑफ इंडियामें व्यापक और विस्तार रूप से हमारे विगत समय का वर्णन किया है। यह सुनिश्चित करना हमारी जिम्मेदारी है कि हम देश के प्रत्येक बच्चे को अपने लिए भारत की खोज करने का अवसर दें। इस संबंध में हमारी शिक्षा पद्धति की बड़ी अहम भूमिका है। स्कूल का कार्य परिवार द्वारा घर पर,और मास मीडिया जैसे अनौपचारिक शिक्षा चैनलों के द्वारा भी जारी रहना चाहिए।

देवियो और सज्जनो,

8. भारत एक प्राचीन सभ्यता परंतु युवा देश है। इसके स्वभाव और बहु संस्कृति ने पीढ़ियों को बांधकर रखा है। केवल भारत का ज्ञान पर्याप्त नहीं है। हमें सबको अपने देश को अपनी मां की तरह प्रेम करना सीखना चाहिए। जैसे-जैसे हमारा प्रेम गहरा होगा, हमारे चारों ओर जो कुछ भी है,वह हमारे प्रति स्वयं आकर्षित होगा। हम ऊंचे पर्वतों,घने जंगलों,हरी घाटियों,उर्वरक मैदानों,प्यारी नदियों,वृहत्त तटों,वनस्पति जगत,पूजा स्थलों और आश्चर्यजनक ऐतिहासिक स्मारकों से प्रेम करना आरंभ कर देंगे। हम अपने देश की असीम विविधता वाले लोगों,उनकी भाषाओं,सांस्कृतिक परंपराओं और उपलब्धियों से प्रेम करना आरंभ कर देंगे और उससे भी अधिक हमें भारत के महान बेटे-बेटियों से और उन देशभक्तों से प्रेम करना चाहिए जो हमारी स्वतंत्रता के लिए जिए और मरे। हमारा प्रेम इससे भी अधिक उन मूल्यों के प्रति कटिबद्ध होना चाहिए जिन्हें भारत युगों से समर्थन देता रहा हैजैसा कि महिलाओं के प्रति सम्मान,पारस्परिक सौहार्द,अहिंसा,अलगाव,समाज के प्रति वचनबद्धता और विविधता में एकता। यह प्रत्येक नागरिक की मातृभूमि के लिए वह प्रेम है जो राष्ट्रीय अखंडता की भावना को मजबूती और महत्त्व देता है।

9. अपने देश को जानने और प्रेम करने के साथ-साथ,प्रत्येक नागरिक को निरंतर इसकी सेवा के लिए संघर्षरत होना चाहिए। देश द्वारा सामना की जा रही चुनौतियों से निपटने की योग्यता और हमारे लोगों द्वारा उनकी पूर्व क्षमता को विकसित करने की योग्यता,उनके द्वारा अपनी मातृभूमि के कल्याण के लिए उनकी निष्ठा और सुदृढ़ता पर निर्भर करेगा। यदि भारत को विकास की चुनौतियों से निपटना है और देशों के समूह में अपने लिए एक सम्मानजनक स्थान बनाना है तो इसके नागरिकों को निरंतर उत्पादन बढ़ाने,संपत्ति वितरण और सभी लोगों में समान रूप से सेवाएं प्रदान करने के लिए निरंतर प्रयास करने होंगे। उन्हें देश की प्रगति और एक महान भारत के सामूहिक सपने को साकार करने के लिए निरंतर परिश्रम करना होगा।

10. मित्रो,किसी भी देश में,प्रत्येक व्यक्ति एक ही समय पर अनेक समूहों से संबंध रखता है। इससे समूह और व्यक्ति दोनों ही महत्त्वपूर्ण हो जाते हैं। इसलिए समूह स्तर पर राष्ट्रीय अखंडता की नींव डालना भी आवश्यक है। एक व्यक्ति अपने परिवार,व्यवसाय,निवास स्थान, भाषा,धर्म,देश,समूचे विश्व और अंतत: समस्त भूमि से जुड़ा होता है। वह एक ही समय पर इन सबके प्रति कर्त्तव्यनिष्ठ होता है। इन भिन्न भिन्न समूहों के प्रति निष्ठा को एक दूसरे के विरुद्ध नहीं होना चाहिए। वे शांति से रह सकते हैं और टकराव की स्थिति में,उनके समाधान को स्थान मिलना चाहिए।

11. राष्ट्रीय एकता के लिए जरूरी है कि प्रत्येक नागरिक व्यक्तिगत या सामूहिक हित के ऊपर राष्ट्रीय हित को प्रमुखता दे। बड़े सामाजिक लक्ष्य बनाए रखने से न केवल समूचे समाज,बल्कि इसके सभी अवयव व्यक्तियों और समूहों के लिए सुपरिणाम होते हैं। इसलिए जब भी राष्ट्रीय विकास के लिए आवश्यक हो,हमें प्रत्येक नागरिक या समूह को उनके व्यक्तिगत और सामूहिक हितों को गौण बनाने की शिक्षा देनी चाहिए। इससे राष्ट्रीय अखंडता में प्रगति होगी।

देवियो और सज्जनो,

12. यदा-कदा क्षेत्रीय हित राष्ट्र के प्रति हमारी निष्ठा पर हावी हो जाते हैं,परंतु हमें ऐसी प्रवृत्ति से बचना चाहिए जबकि हमारे जैसे भाषायी रूप से बहुवादी समाज में सभी भाषाओं को प्रोत्साहन और समर्थन मिलना चाहिए। राष्ट्रीय अनिवार्यताओं के हित में कुछ स्थान की आवश्यकता बनी रहेगी।

13. हमें अपने सभी नागरिकों में व्यापक मानव दृष्टिकोण को प्रोत्साहन देना चाहिए तथा उन्हें जातिगत और सांप्रदायिक प्रतिबद्धता से ऊपर उठने के लिए उन्हें जागरूक बनाना चाहिए। हमें अल्पसंख्यकों के अधिकारों और संवेदना दोनों का शब्दश: और भावना से सम्मान करना चाहिए। हमें एक पंथ निरपेक्ष और लोकतांत्रिक नज़रिया पैदा करना चाहिए और समावेशी तौर तरीके को बढ़ावा देना चाहिए तथा नागरिक कर्त्तव्यों और अधिकारों तथा दायित्वों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। हमें ऐसा माहौल कायम करना चाहिए जहां प्रत्येक समुदाय स्वयं को राष्ट्रीय गाथा का एक हिस्सा समझे।

14. देश का जीवन स्तर बढ़ाने और सत्ता,सम्पत्ति,आय,उपभोग में असमानता कम करने और शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी सामाजिक सेवाओं की उपयोगिता पर ध्यान देने की आवश्यकता है। राष्ट्र को धार्मिक असंतुलन कम करने के लिए और एक सटीक,साफ और अच्छे प्रशासन के लिए सर्वोत्तम प्रयास करने चाहिए,जिससे अलग जाति,धर्म,प्रजाति,रंग,लिंग या जन्मस्थान के रहते हुए भी प्रत्येक नागरिक के लिए समान व्यवहार सुनिश्चित हो सके।

15. राष्ट्रीय अखंडता को बढ़ाने के लिए हमारे देश की शैक्षिक संस्थाएं बहुत कुछ कर सकती हैं। एशियाटिक सोसायटी जैसे संस्थान भविष्य के नेतृत्व के रखवाले हैं। उन्हें निरंतर नई खोज करनी चाहिए और समय के साथ कदम बनाए रखना चाहिए। इतिहास में राष्ट्रीय अखंडता बनाए रखने के लिए कोई अवकाश नहीं था और इसके लिए24/7घंटे परिश्रम जारी रखा गया। इस संबंध में प्रयास बढ़ाने के लिए इतना ही पर्याप्त नहीं है।

16. प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने 1976 में शैक्षिकों के अभिसमय में कहा था जिसे मैं उद्धृत करता हूं, ‘‘भारतीयता में एक ऐसी बात है जो हम सबको जोड़कर रखती है और जिसने इस देश को हजारों वर्षों से एक साथ बनाए रखा।’’

17. मैं यहां पर,प्रत्येक को अपनी मातृभूमि को समझने और प्रेम करने की बात कहकर समाप्त करता हूं। आइए,हम सब मिलकर वास्तविक एकता की नींव पर एक सशक्त और उदार राष्ट्र का सृजन करें जो विश्व में सम्मानित हो। संसार की कोई ताकत हमारे समाज को विभाजित न कर सके। हमारे विचार एक महान देश के प्रति सामान्य दृष्टिकोण से समेकित हों,हम अपने को देश के प्रति निष्ठावान बनें और अपने देश को और अधिक ऊंचाई पर ले जाएं।

धन्यवाद,

जय हिंद!