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स्नातकोत्तर चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान के 33वें वार्षिक दीक्षांत समारोह के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण

चंडीगढ़ : 15.03.2013



मुझे स्नातकोत्तर चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान के 33वें वार्षिक दीक्षांत समारोह के अवसर पर यहां आकर खुशी हो रही है। पिछली बार 2008 में मुझे इस संस्थान के दीक्षांत समारोह में शामिल होने का मौका तब मिला था, जब मैं विदेश मंत्री था। मुझे पांच वर्ष बाद फिर से संस्थान की स्थापना की स्वर्ण जयंती समारोह पर यहां आकर प्रसन्नता हो रही है।

स्नातकोत्तर चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान 1962 में अस्तित्व में आया, जिसका श्रेय पंजाब के प्रथम मुख्यमंत्री, सरदार प्रताप सिंह कैरों की बुद्धिमत्ता और दूरदृष्टि को जाता है तथा इसके अस्पताल का उद्घाटन पंडित नेहरू द्वारा किया गया था।

इस संस्थान को, यथासंभाव अधिक से अधिक शाखाओं में स्नातकोत्तर चिकित्सा शिक्षा का विकास करने तथा चिकित्सा की विभिन्न विधाओं में विशेषज्ञों को तैयार करने के लिए उत्कृष्टता केंद्र के रूप में स्थापित किया गया था। बुनियादी विचार यह था कि ये विशेषज्ञ देश भर के विभिन्न मेडिकल कॉलेजों तथा संस्थानों में फैल जाएंगे तथा इस तरह से प्रत्येक संस्थान में उत्कृष्टता केंद्र स्थापित करेंगे। यह गर्व की बात है कि इस संस्थान से प्रशिक्षित चिकित्सकों को आज देश के हर हिस्से में पाया जा सकता है तथा इस संस्थान को शिक्षा, अनुसंधान तथा रोगी की देखभाल के क्षेत्र में व्यापक सुविधाओं के लिए जाना जाता है। मैं उन सभी लोगों को बधाई देता हूं जो कि इस महान संस्थान की स्थापना तथा विकास से जुड़े रहे हैं।

स्नातकोत्तर चिकित्सा एवं अनुसंधान संस्थान का ध्येय ‘आर्त्त सेवा सर्वभद्र: शोधश्च’ अर्थात् ‘समाज की सेवा, जरूरतमंदों की देखभाल तथा सभी की भलाई के लिए अनुसंधान’, में इस संस्थान द्वारा भारत में स्वास्थ्य सेवा सेक्टर में निभाई जा रही अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका का सार है।

जब तक स्नातकोत्तर चिकित्सा एवं अनुसंधान संस्थान तथा ऐसे ही अन्य उत्कृष्टता संस्थानों का मिशन तब तक अधूरा रहेगा जब तक आम आदमी के हित का ध्यान नहीं रखा जाता। जब भारत के सुदूर जिलों में रहने वाले ग्रामीण निवासी तक आपके अनुसंधान का लाभ पहुंचेगा तथा आपके वार्ड का सबसे वंचित बच्चा आपकी सेवा से संतुष्ट होकर घर वापस लौटेगा, तब आपको लगेगा कि आपका मिशन सही मायने में पूर्ण हुआ है।

जनता का अच्छा स्वास्थ्य देश की आधारशिला होती है। जो व्यक्ति स्वस्थ नहीं है वह सीखने, विकास करने तथा उत्पादक कार्य करने से संबंधित अवसरों का उपयोग नहीं कर सकता। भारत में, नागरिकों को बहुत से अधिकारों की गारंटी दी गई है परंतु इनमें से किसी भी अधिकार का ऐसे व्यक्तियों द्वारा न तो उपयोग किया जा सकता है और न ही उनको लागू करवाया जा सकता है जो बीमार हैं, कमजोर हैं तथा जो अपनी सारी ऊर्जा, अपने इलाज पर तथा चिकित्सा देखभाल पर व्यय कर देते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अध्ययन के अनुसार, राष्ट्रीय स्तर पर, वर्ष 2005 में सभी बीमारियों के कारण हुई मृत्युओं के कारण भारत को इसके सकल घरेलू उत्पाद की 1.3 प्रतिशत आर्थिक हानि उठानी पड़ी थी। गैर संक्रामक बीमारियों में वृद्धि होने के कारण, यदि इस पर रोक न लगाई गई तो 2015 तक यह हानि 5 प्रतिशत तक बढ़ने की आशंका है।

हमारी चिकित्सा स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली को ग्रामीण तथा शहरी क्षेत्र के समाज के सभी वर्गों की चिकित्सा जरूरतों को पूरा करने के लिए विकसित करना होगा। एक अच्छी स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली देश आधारित होने चाहिए और इसीलिए भारत को अपने खुद के नजरिए तथा जरूरतों के आधार पर, दूसरों के अनुभवों से प्राप्त सीखों से भी लाभ उठाते हुए, सभी के लिए स्वास्थ्य सुविधा का लक्ष्य प्राप्त करने का प्रयास करना होगा।

स्वास्थ्य पर होने वाले व्यय का 72 प्रतिशत निजी खर्च औषधियों पर होता है। भारत ने सरकारी अस्पतालों में स्वास्थ्य देखभाल के लिए पहुंचने वाले मरीजों को मुफ्त जेनेरिक दवाएं वितरित करने का बड़ा निर्णय लिया है। इससे उनकी जेबों से होने वाला खर्च कम होगा तथा खासकर निर्धन तथा वंचित लोगों को दवाएं कम खर्च में मिल पाएंगी। इसके कार्यान्वयन के लिए धन तथा कारगर प्रबंधन प्रणाली जरूरी होगी। आज के युग में टेलीमेडिसिन सहित, प्रौद्योगिकी आधारित पहलों को स्वास्थ्य देखभाल की पहुंच बढ़ाने के लिए प्रयोग किया जा सकता है।

सरकार स्वास्थ्य पर होने वाले व्यय को वर्तमान स्तर से 2017 तक अर्थात 12वीं योजना के अंत तक, सकल घरेलू उत्पाद के 2.5 प्रतिशत तक और 2022 तक, अर्थात 13वीं योजना के अंत तक, 3 प्रतिशत करने का प्रयास कर रही है। सरकार अकेले स्वास्थ्य देखभाल प्रदान नहीं कर सकती। जहां एक ओर हमारा लक्ष्य सार्वजनिक स्वास्थ्य सेक्टर को मजबूती प्रदान करने का है वहीं हमें स्वास्थ्य संबंधी लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सार्वजनिक तथा निजी सेक्टरों के बीच सहयोग को प्रोत्साहन देने की संभावना की भी तलाश करनी चाहिए। सभी के लिए स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करने के प्रयासों में सभी स्टेकधारकों की सहभागिता होनी चाहिए। फार्मासिस्ट से चिकित्सक तक, उद्योग से लेकर दवा निर्माता तक, स्वास्थ्य बीमा से लेकर अस्पताल के प्रबंधन तक तथा प्राथमिक स्वस्थ केंद्रों के संचालन तक, स्वास्थ्य प्रणाली की सफलता में सभी की भूमिका है। भारत की अकादमिक, वैज्ञानिक, तकनीकी तथा औद्योगिक क्षमताओं को देखते हुए इसे चिकित्सा अनुसंधान तथा नवान्वेषण के केंद्र के रूप में विकसित किए जाने की संभावना का भी पूरा पता लगाया जाना चाहिए।

यदि हम स्वास्थ्य सेवा को केवल उपचारात्मक तथा इन्टरवेंशन के नजरिए से देखते हैं तो यह गलत होगा। खासकर भारत में निरोधात्मक स्वास्थ्य देखभाल भी जरूरी है जहां मधुमेह तथा हृदय रोगों से संबंधित मरीजों की संख्या बढ़ रही है। अत: हमारी स्वास्थ्य प्रणाली को न केवल लोगों का इलाज करना होगा बल्कि इसी के साथ उन्हें इन स्वास्थ्य संबंधी हालातों का सामना करने तथा उनसे बचाव करने के लिए भी परामर्श तथा मार्गदर्शन देना होगा। बीमारियों की रोकथाम के लिए स्वच्छता तथा सफाई बुनियादी जरूरतें हैं। इन प्रयासों में स्थानीय स्तर पर, खासकर ग्रामीण स्तर पर, पंचायती राज संस्थाओं के माध्यम से सहभागिता से कारगर कार्यान्वयन सुनिश्चित हो सकता है।

भारत की स्वास्थ्य प्रणाली की ऐसी कायापलट, कि वह सभी को स्वास्थ्य सुविधा प्रदान कर सके, लंबे समय में हो पाएगी। इस दिशा में एक बड़ी पुन: अभिमुखीकरण की प्रक्रिया राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन से शुरू हुई जिसे 2005 में आरंभ किया गया था। इसके तहत देश के सभी गांवों तक स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं तक पहुंचाना तथा उपकेंद्रों, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों तथा सामुदायिक स्वास्थ्य देखभाल अवसंरचना को बढ़ाना शामिल है। अब शहरी क्षेत्रों तक भी यह सुविधा फैलाने का लक्ष्य है। स्वास्थ्य देखभाल के हर स्तर पर की जाने वाली देखभाल के लिए निर्धारित मानदंड होने चाहिए। स्वास्थ्य देखभाल केंद्रों का एक संजाल स्थापित करना होगा। इसे केवल पर्याप्त संख्या में चिकित्सकों तथा अन्य अर्धचिकित्सा कर्मियों की सहायता से ही चलाया जा सकता है। केवल अस्पतालों का निर्माण कर देना ही काफी नहीं है। उनके संचालन तथा कारगर होने के लिए मानव संसाधनों की जरूरत है। इसके लिए मेडिकल कॉलेज, नर्सिंग संस्थानों तथा अर्धचिकित्सा कर्मियों के लिए प्रशिक्षण विद्यालयों की संख्या में भी काफी वृद्धि करनी होगी। सभी को स्वास्थ्य देखभाल उपलब्ध कराने में प्रशिक्षित स्वास्थ्य कमियों की कमी एक बड़ी बाधा हो सकती है।

स्वास्थ्य सेक्टर में प्रगति भविष्य में, विश्व में, भारत की प्रमुखता के लिए अनिवार्य है। किसी भी देश की उत्पादकता इसके नागरिकों के स्वास्थ्य और खुशहाली पर निर्भर करती है। ऐसा आर्थिक विकास, जिससे परिहार्य मृत्यु दर तथा खराब स्वास्थ्य में कमी का लक्ष्य प्राप्त नहीं होता, वह न तो टिकाऊ हो सकता है और न ही वांछित ही।

इसलिए सभी के लिए स्वास्थ्य का प्रावधान सरकार के लिए विश्वास का विषय है। इसके लिए पूरे देश में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा को बड़े पैमाने पर विस्तार तथा सुदृढ़ करना होगा। हमें बहुत सी नर्सों, चिकित्सकों, अर्ध-चिकित्साकर्मियों, स्वास्थ्य कर्मियों की जरूरत है। हमें स्वास्थ्य देखभाल की योजना निर्माण तथा कार्यान्वयन को जिला और उप-जिला स्तर तक विकेन्द्रीकृत करना होगा। हमें परिवारों के दरवाजों तक स्वास्थ्य सेवाओं को ले जाना होगा—प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र भी आज के मानकों तथा जरूरतों के हिसाब से काफी दूर हैं। हमें राज्यों के तथा केंद्र के स्वास्थ्य विभागों में नवीन प्रबंधकीय तथा प्रशासनिक सुधारों की जरूरत है। हमें चाहिए कि जन स्वास्थ्य पेशेवर जन स्वास्थ्य कार्यक्रमों की अगुआई करें। हमें लगातार बढ़ रही शहरी जनता के लिए स्वास्थ्य देखभाल के कारगर मॉडलों का विकास करने की जरूरत है। भारत की राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रणाली को एक मजबूत, संवेदनात्मक तथा कारगर जनस्वास्थ्य प्रणाली होना चाहिए।

मैं सभी स्टेकधारकों का आह्वान करता हूं कि वे आने वाले वर्षों में भारत के स्वास्थ्य सेक्टर के ऐतिहासिक रूपांतरण के लिए ठोस आम राय बनाने के लिए मिलकर प्रयास करें।

स्नातकोत्तर चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान उन सभी संकाय सदस्यों, कर्मचारियों तथा विद्यार्थियों का सम्मान है जिन्होंने इस संस्थान को आज के गौरवशाली स्थान तक पहुंचाने के लिए नि:स्वार्थ भाव से वर्षों तक कार्य किया। इस संस्थान को निर्धारित समय सीमा के अंदर विश्व के सबसे बेहतरीन चिकित्सा विश्वविद्यालयों में अपना स्थान बनाने के लिए आगे आना होगा। यह लक्ष्य बहुत महत्वाकांक्षी है परंतु मुझे विश्वास है कि इसके संकाय सदस्य, विद्यार्थी तथा कर्मचारी मिलकर इसे प्राप्त कर सकते हैं। हमें केवल परंपरागत विशेषज्ञताओं के क्षेत्र में ही नहीं बल्कि संक्रामक बीमारियों, टीका विकास तथा पुनरुत्पादक विज्ञान जैसे संबद्ध विषयों पर भी विश्व स्तरीय उत्कृष्टता केंद्रों का विकास करना चाहिए। मैं, स्नातकोत्तर चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान के संकाय सदस्यों तथा विद्वानों से आग्रह करूंगा कि वे आगे बढ़ें और चिकित्सा की दुनिया के सिरमौर बनें। सरकार इस प्रयास में हर संभव तरीके से आपका सहयोग करेगी।

मैं उपाधि प्राप्त करने वाले सभी विद्यार्थियों और विजेताओं को उनके भावी प्रयासों में सफलता की कामना करता हूं। मैं आपसे देश तथा अपने देशवासियों की सेवा में खुद को समर्पित करने का आग्रह करता हूं।

धन्यवाद,

जय हिंद!