मुझे आदिमजाति शिक्षा आश्रम के हीरक जयंती समारोहों में आप लोगों के बीच आकर प्रसन्नता हो रही है, जो मणिपुर के जनजातीय समुदाय के कल्याण और विकास के लिए समर्पित एक सम्माननीय संस्थान है। मुझे इस आश्रम में आकर बहुत गौरव का अनुभव हो रहा है, जिसकी नींव 1953 में हमारे देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने रखी थी। मुझे विशेषकर, इस बात की प्रसन्नता है कि इस आश्रम के मुख्य संरक्षक श्री रिशांग किसिंग हैं जो कि 1952 की पहली लोक सभा से संसद सदस्य रहे हैं और वे आज यहां हमारे साथ उपस्थित हैं।
निर्धन जनजातीय बच्चों के उत्थान के लिए इस आश्रम की शुरुआत, उत्तर प्रदेश से आए एक विद्वान तथा सामाजिक कार्यकर्ता स्वर्गीय श्री देशबंधु अधिकारी के अथक प्रयासों के कारण संभव हो सकी थी। वे राष्ट्रीय एकीकरण के प्रबल हिमायती थे। उन्होंने मणिपुर के जनजातीय लोगों को शिक्षा, दक्षता तथा व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए यह संस्थान तथा आंदोलन शुरू किया था। सभी कठिनाइयों पर विजय पाते हुए 1952 में, निर्धन जनजातीय विद्यार्थियों को मुफ्त शिक्षा प्रदान करने के लिए एक आवासीय हिंदी माध्यम का स्कूल स्थापित किया गया था।
देवियो और सज्जनो, मणिपुर का सभी भारतीयों के दिलों में विशेष स्थान है। उपनिवेशवाद के खिलाफ हमारी लड़ाई के इतिहास में मणिपुर के राजा ने अंग्रेजों के समक्ष सबसे अंत में आत्मसमर्पण किया था। स्वतंत्रता तथा संप्रभुता की भावना मणिपुर में कभी भी नहीं बुझी थी। मणिपुर वह पहला स्थान था जिसे नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में इन्डियन नेशनल आर्मी द्वारा अंग्रेजों से मुक्त कराया गया था। प्रथम लोक सभा अध्यक्ष जी.वी. मावलंकर, राजकुमारी अमृत कौर, गोविंद बल्लभ पंत जैसे शुरुआती पीढ़ी के राष्ट्रीय नेताओं ने इस आश्रम की यात्रा की। मणिपुर को वीर टिकेन्द्रजीत सिंह तथा रानी गैदिनल्यू जैसे नेताओं की धरती होने पर भी गर्व होना चाहिए जिन्होंने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में बहुत सहयोग दिया।
मैं पहले कई बार मणिपुर आ चुका हूं तथा मुझे इस समय यहां आकर बहुत प्रसन्नता हो रही है। आदिमजाति शिक्षा आश्रम ने दलितों तथा वंचितों के लिए निरंतर कार्य किया है। यह आश्रम इस राज्य में, कताई और सिलाई, पाठ्येत्तर कार्यकलापों को बढ़ावा देने के लिए टूर आयोजित करने, आंगनवाड़ी का प्रशिक्षण देने तथा शिशुगृहों के संचालन जैसी बहुत-सी पहलों में अग्रणी रहा है।
यह आश्रम मणिपुर में तकनीकी शिक्षा में भी अग्रणी रहा है। इसको पूर्वोत्तर राज्यों के जनजातीय विद्यार्थियों को तकनीकी शिक्षा प्रदान करने के लिए 1956 में तकनीकी संस्थान स्थापित करने का श्रेय जाता है। मुझे बताया गया है कि इस संस्थान में, जिसे अब मणिपुर सरकार द्वारा चलाया जा रहा है तथा सरकारी पालीटेक्नीक के नाम से जाना जाता है, सभी मुख्य इंजीनिरी शाखाओं में डिप्लोमा पाठ्यक्रम पढ़ाए जाते हैं।
आदिमजाति शिक्षा समिति को जनजातीय बच्चों को, बिहार के हिंदी विद्यापीठ में भेजकर 1976 से हिंदी प्रशिक्षण की एक योजना को संचालित करने का भी श्रेय जाता है। मुझे बताया गया है कि इस कार्यक्रम के तहत प्रशिक्षित 150 विद्यार्थियों को सरकारी स्कूलों में नियुक्त किया गया है। यह प्रयास राष्ट्रीय एकीकरण की दिशा में एक प्रशंसनीय प्रयास है तथा इससे हम सभी को प्रेरणा मिलनी चाहिए।
संस्थाएं समाज और सभ्यता की शक्ति होती हैं। ये लोकतंत्र की सुदृढ़ नींव का निर्माण करती हैं। यह आश्रम एक ऐसी उत्कृष्ट संस्था है जो ज्ञानवान समाज के लिए आवश्यक मूल्यों का समावेश करने में मदद देती है।
भारत की स्वतंत्रता का उद्देश्य कभी मात्र सत्ता का हस्तांतरण नहीं था। 1930 के लाहौर सम्मेलन के बाद, जवाहरलाल नेहरू ने पूर्ण स्वराज्य की संकल्पना को मात्र शासक बदलने से नहीं बल्कि राजनीतिक दासता, आर्थिक गुलामी और सांस्कृतिक ठहराव से मुक्ति बताया था। इसी विचार को नेहरू और डॉक्टर बी.आर. अम्बेडकर ने भारत के संविधान में समाविष्ट किया था। भारतीय संविधान को सामाजिक-आर्थिक रूपंतर का महाधिकार-पत्र कहा गया है। संविधान के नीतिनिर्देशक सिद्धांतों में ये विचार सन्निहित हैं। हमें इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अभी कुछ और प्रयास करने होंगे। आज की विकास संकल्पना ‘ट्रिकल डाउन’ नहीं रही है। इसके बजाय यह हकदारी के द्वारा समर्थित सशक्तीकरण बन गयी है। इसीलिए, सरकार ने सूचना का अधिकार, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना, शिक्षा का अधिकार आदि आरंभ किए हैं।
हम सभी को भारत के सामाजिक-आर्थिक रूपांतर में योगदान देना होगा। पूर्वोत्तर के बहुत से हिस्सों को हमारी पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से शुरू की गई विकास प्रक्रिया का पूरा लाभ नहीं मिल पाया है। इस अभाव को सामूहिक प्रयास और योगदान के द्वारा दूर किया जाना चाहिए।
हीरक जयंती समारोह के अवसर पर हीरक जयंती स्मारक का अनावरण तथा बालिका छात्रावास और एमिटी हॉल का उद्घाटन करके मुझे करके प्रसन्नता हो रही है। मुझे विश्वास है कि ये नए भवन अपने उन अच्छे उद्देश्यों को अवश्य पूरा करेंगे जिसके लिए ये निर्मित किए गए हैं। मैं, कामकाजी महिला छात्रावास और जनजातीय छात्रावास के निर्माण का शिलान्यास करके भी सम्मान का अनुभव कर रहा हूं। मुझे इनके तेजी से पूर्ण होने की उम्मीद है।
मुझे विश्वास है कि आदिमजाति शिक्षा आश्रम असीम समर्पण की अपनी यात्रा जारी रखेगा और सभी के लिए प्रेम, शांति और सौहार्द का केन्द्र बना रहेगा। मैं 60 वर्ष की बहुमूल्य सेवा पूरी करने पर आश्रम को बधाई देता हूं। मैं, उनके भावी प्रयासों के सफल होने की भी कामना करता हूं।
धन्यवाद,
जय हिंद!