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गांधी शांति पुरस्कार 2013 प्रदान किए जाने के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण

राष्ट्रपति भवन : 15.07.2014



मुझे हमारे समय के आजीवन गांधीवादी तथा समर्पित और आधुनिक दूरद्रष्टा पर्यावरणविद् श्री चण्डी प्रसाद भट्ट को 2013 का गांधी शांति पुरस्कार प्रदान करते हुए अपार प्रसन्नता हो रही है।

गांधी शांति पुरस्कार की स्थापना गांधीजी के जन्म के 125वें वर्ष में, 1995 में की गई थी। गांधी शांति पुरस्कार हमारे इस विश्वास की अभिव्यक्ति है कि गांधीजी जिन आदर्शों का पालन करते थे, वह हमारी सामूहिक जीवंत विरासत का हिस्सा है। इस विरासत में ‘एक राष्ट्र’ होने का विचार व्याप्त है। यह हमारी विविधता का, हमारी बहु-संस्कृति का, हमारी विभिन्न भाषाओं, धर्मों तथा विभिन्न जीवन शैलियों का समारोह है। इसी विचार से वह लोग प्रेरित थे जिन्होंने भारत की स्वतंत्रता के लिए प्रयास किया। लोकतंत्र के प्रति हमारी गहन तथा अविचल प्रतिबद्धता इसी विचार से उपजी है। हमने इन आदर्शों से मार्गदर्शन लेना जारी रखा है; हम उनके प्रति प्रतिबद्ध हैं, इसलिए नहीं कि यह हमारा अतीत है वरन् इसलिए क्योंकि यह हमारा भविष्य भी है।

गांधी जी ने कहा था, ‘‘मेरा जीवन ही मेरा संदेश है।’’ गांधीजी की रचना ‘महात्मा गांधी की संग्रहीत कृतिया’’ के 90 खण्डों के वृहद संकलन की अपनी प्रस्तावना में श्रीमती गांधी ने इन शब्दों के महत्त्व को स्पष्ट किया है। उन्होंने लिखा था, ‘‘वह उन लोगों में से थे जो जैसा सोचते थे वैसा कहते थे और जैसा कहते थे वैसा करते थे। वह उन कुछ लोगों में से थे जिनके वचन और कर्म के बीच कोई छाया नहीं पड़ती थी। उनके शब्द कर्म थे और उन्होंने एक आंदोलन और एक राष्ट्र का निर्माण किया तथा असंख्य लोगों के जीवन को बदल दिया।’’ यह कौन सी छाया थी जिसका उल्लेख इंदिरा जी ने किया? यह छाया असत्य और झूठ की है। जिस व्यक्ति ने सत्य को ईश्वर के रूप में देखा हो केवल वही जीवन का, एक संदेश के रूप में उल्लेख कर सकता है।

अतीत में इस पुरस्कार के प्राप्तकर्ताओं में राष्ट्रपति जूलियस न्येरेरे, राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला, वाक्लेव हावेल, आर्चबिशप डेसमंड टुटु तथा बाबा आम्टे आदि शामिल हैं। रामकृष्ण मिशन और भारतीय विद्या भवन दो ऐसे संगठन हैं जिन्हें यह सम्मान प्रदान किया गया है। इनमें से प्रत्येक व्यक्ति और संगठन ने अपने जीवन और कार्य के द्वारा मानव स्वतंत्रता, सभी मनुष्यों के प्रति करुणा तथा भीषण अन्याय के सम्मुख दृढ़तापूर्वक अहिंसक और संवेदनशील बने रहने की क्षमता वाले गांधीवादी आदर्शों को आगे बढ़ाया है। उनके कार्य एक न्यायपूर्ण और समतामूलक समाज निर्मित करने के तरीके के तौर पर अहिंसात्मक कर्म की सर्वव्यापकता का उदाहरण हैं।

आज हम श्री चण्डी प्रसाद भट्ट को गांधी शांति पुरस्कार प्रदान करने के लिए एकत्र हुए हैं जिनका जीवन भी उनका संदेश रहा है। श्री भट्ट का कार्य एक अनूठे प्रेम का साकार रूप है, एक ऐसा प्रेम जो दीर्घकाल से सार्वभौमिक बना हुआ है। यह प्रकृति के प्रति प्रेम है और वह प्रकृति जो पूरी सृष्टि में व्याप्त है।

श्री भट्ट का जन्म गोपेश्वर, उत्तराखण्ड के कृषक तथा रुद्रनाथ मंदिर के पुरोहित कुल में हुआ था। एक पहाड़ी व्यक्ति के रूप में, उनको रोजगार, स्वास्थ्य देखभाल, बुनियादी सुविधाओं और शिक्षा के अभाव की पृष्ठभूमि में गांववालों की मुश्किलों का अनुभव था। एक सच्चे गांधीवादी तथा सर्वोदय आंदोलन के सदस्य के रूप में उन्होंने समय की आश्यकता को महसूस किया। जनता की आकांक्षाओं ने उन्हें 1964 में दसौली ग्राम स्वराज्य संघ के गठन के लिए प्रेरित किया। उन्होंने संघ के माध्यम से, वन आधारित उद्योगों के अंतर्गत अपने घरों के निकट रोजगार उपलब्ध करवाते हुए तथा गांधीवादी अहिंसक सत्याग्रह के जरिए गलत नीतियों के खिलाफ लड़ते हुए ग्रामीणों के जीवन को सुधारने के प्रति स्वयं को समर्पित कर दिया। 1973 में उनके द्वारा शुरू किए गए चिपको आंदोलन में भी ईंधन तथा चारा इकट्ठा करने के पहाड़ी लोगों के विधि सम्मत अधिकारों की प्राप्ति तथा बड़े पैमाने पर वनों के कटान के कारण उन्हें प्राकृतिक आपदाओं से बचाने के लिए इसी प्रकार का शांतिपूर्ण तथा अहिंसक सत्याग्रह शुरू किया गया था।

चिपको आंदोलन न केवल गहन प्रेम का आंदोलन था वरन् अभी भी बना हुआ है। वह प्रेम जो वृक्षों के आलिंगन में निहित है। इसका अर्थ है प्रकृति को दूसरी सभी विविधताओं, उपहारों तथा अनुग्रहों सहित अपनाना। आंदोलन में न केवल श्री भट्ट के प्रिय गढ़वाल के वृक्ष बल्कि विश्वभर की सारी सृष्टि भी शामिल हैं। इसमें उस सृष्टि की रक्षा की खास जिम्मेदारी पर जोर दिया गया है जो मानव को प्रदान की गई है। यह तुच्छ लालच के विरुद्ध प्रेम का आंदोलन है। और इसी दृष्टि से श्री भट्ट के कार्य महात्मा गांधी के जीवन और विचारों से प्रेरित हैं।

कवि टैगोर की भांति गांधीजी का प्रकृति तथा इस विशाल और अत्यंत जटिल रिश्ते में मानव चेतना की अनूठी स्थिति के प्रति स्थायी जुड़ाव था। जहां कवि ने इसकी महिमा का गान किया और हम सबकी ओर से नमन किया, गांधीजी ने मानव-प्रकृति सम्बन्ध के अपने ज्ञान के केंद्र में प्रेम को स्थापित किया।

गांधीजी ने कहा था कि उनके लिए नैतिकताविहीन अर्थतंत्र का कोई महत्त्व नहीं है। इस साधारण सी ढाल ने एक ऐसा नैतिक ढांचा खड़ा किया है जिसके तहत मानवीय दक्षता को संचालित होना है। मानव लालच की सीमा बाहरी जरूरतों से नहीं बल्कि आंतरिक आवश्यकताओं द्वारा निर्धारित करनी होगी। यदि हम इसको सुनने और इसके निर्देशों का पालन करने की योग्यता पैदा करें तो यह आंतरिक आवश्यकता, जिसे उन्होंने सुंदर शब्दों में एक सूक्ष्म और मौन स्वर कहा है, हम सभी के पास है। यह योग्यता श्री भट्ट ने प्राप्त की और व्यवहार में दर्शाया।

अर्थतंत्र के केंद्र में नैतिकता को स्थान देकर, गांधीजी ने हमें एक विचार प्रदान किया जिसका महत्त्व हमने अभी समझना शुरू किया है। विश्वास के विचार पर आधारित यह ट्रस्टीशिप का विचार एक विशिष्ट मानव क्षमता है। हम सभी विश्वास के द्वारा और विश्वास के माध्यम से जीते हैं। गांधीजी ने हमसे न्यासी बनने तथा अपने हृदय और दूसरों के हृदय की अच्छाई में विश्वास करने के लिए कहा। यह अच्छाई हमें, जो हमारा है जो हमारा नहीं है, के न्यासी के रूप में कार्य करने के योग्य बनाएगी। एक न्यासी बनने के लिए प्रकृति को, सम्पूर्ण सृष्टि और जो अभी आना है, उस सबकी सम्पत्ति के रूप में देखना जरूरी है। न्यासिता के विचार को पुनर्वितरण न्याय के विचार के रूप में भी देखा गया है। धनी और धनार्जन की क्षमता वाले लोग इसका प्रयोग दूसरों तथा सम्पूर्ण समाज, जिसका इस धन पर अधिकार है, के हित के लिए करते हैं। श्री भट्ट का आंदोलन न्यासिता के इस विचार का एक श्रेष्ठतम उदाहरण है। श्री भट्ट ने अपने कार्य के माध्यम से इस राष्ट्र और समूचे विश्व को याद दिलाया है कि हम भविष्य के प्रति भी जिम्मेदार हैं।

जब हम न्यासी के तौर पर कार्य करते हैं तो हम अहिंसक ढंग से कार्य करते हैं। अहिंसा मात्र एक तरीका या उपकरण ही नहीं है। इसके तहत राज्य सहित दूसरों तथा उन लोगों की मानवीयता का सम्मान करना अपेक्षित है जिन्हें हम चुनौती देना चाहते हैं। अहिंसा इस विचार पर आधारित है कि दूसरे लोग सत्य की पहचान करने में सक्षम हैं और इस पर अमल कर सकते हैं, भले ही वह कितने ही पथभ्रष्ट या दमनकारी हों। अहिंसा केवल किसी को चोट पहुंचाना ही नहीं है। यह एक सक्रिय शक्ति है जो मैं और तुम के भेद को समाप्त करते हुए दूसरों को गले लगाती है।

कवि टैगोर और गांधी जी ऐसे दो आधुनिक भारतीय थे, जिन्होंने ऐसी अहिंसा की ताकत को समझा जो दमनकारी को दूसरों के प्रति नाइंसाफी और कष्ट देते रहने की जरूरत और इच्छा से अन्यायी और मुक्त करती है। अहिंसा स्वतंत्रता को व्यापक बनाती है तथा अन्य लोगों को अपने दायरे में शामिल करने के लिए इसके क्षेत्र का विस्तार करती है। श्री भट्ट के आंदोलन ने संकटग्रस्त और अचेतन को गले लगाकर अहिंसा को व्यवहार में लाने का मार्ग प्रशस्त किया। श्री भट्ट ने न केवल दायित्व की हमारी समझ को बढ़ाया है बल्कि अहिंसा की शक्ति के बारे में विश्व को प्रेरणादायक शिक्षा भी प्रदान की है।

हम भारतीयों को सदैव ध्यान रखना चाहिए कि हम महात्मा गांधी की विरासत के न्यासी हैं। न्यासी के रूप में उस विरासत की संरक्षा, सुरक्षा तथा उसका प्रसार करना हमारा पावन कर्तव्य है जो संपूर्ण मानवता की धरोहर है।

भारत सरकार ने संस्कृति मंत्रालय के माध्यम से इस संबंध में दो महत्त्वपूर्ण और दूरगामी पहलें की हैं। गत वर्ष सितम्बर में भारत और विश्व के लोगों को गांधी विरासत पोर्टल समर्पित किया गया था। यह गांधी जी के लेखन तथा उनके आदर्शों पर आधारित विद्वतापूर्ण लेखन कार्य का एक प्रामाणिक, व्यापक, मुक्त स्रोत वाला डिजीटल लेखागार है। गांधी विरासत पोर्टल गांधीजी के संदेश विश्व के सम्मुख प्रस्तुत करने के लिए प्रौद्योगिकी का प्रयोग करता है।

संस्कृति मंत्रालय ने भी गांधी विरासत साइट मिशन नामक पंचवर्षीय मिशन आरंभ किया है। इस मिशन को गांधी जी के जीवन की सृजित विरासत के संरक्षण का कार्य सौंपा गया है। यह ढांचागत डाटाबेस का निर्माण करेगा तथा दक्षिण अफ्रीका, बांग्लादेश, ईंग्लैंड और भारत में भी गांधी जी के जीवन से सम्बंधित लगभग 39 करोड़ साइटों की संरक्षा के लिए दिशानिर्देश मुहैया करवाएगा। मुझे विश्वास है कि इन प्रयासों से गांधीवादी आदर्शों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को पुन: सशक्त बनाने के लिए हमारे लिए धरातल तैयार हो पाएगा जबकि हम आने वाले वर्षों में दो महत्त्वपूर्ण समारोह मनाने जा रहे हैं।

9 जनवरी, 2015 को हम दक्षिण अफ्रीका में अपने लम्बे और जीवन बदलने करने वाले सत्याग्रह के बाद गांधीजी की भारत वापसी के 100 वर्ष पूरे होने का समारोह मनाएंगे। यह न केवल गांधीजी बल्कि उन सभी भारतीय मूल के प्रवासी भारतीयों पर गौरवान्वित होने का अवसर होगा जिन्होंने अपने अपनाए हुए देश तथा मातृ भूमि भारत के प्रति उल्लेखनीय योगदान किए हैं। वर्ष 2019 में, हम गांधी जन्म जंयती की 150वीं वर्षगांठ भी मनाएंगे जिसे हम शौचालय रहित घरों की अपमानजनक स्थिति को समाप्त करके तथा सरकार द्वारा पूरे देश में स्वच्छता, अपशिष्ट प्रबंधन तथा सफाई सुनिश्चित करने के लिए घोषित स्वच्छ भारत अभियान को सफल बनाकर ही सही मायने में मना सकते हैं।

श्री भट्ट, आपको सम्मानित करके हम उन असंख्य महिलाओं और पुरुषों का सम्मान कर रहे हैं जो प्रकृति के न्यासी बने और जिन्होंने अपने आलिंगन द्वारा हमारे स्वराज का विस्तार किया। मैं, पर्यावरण के संरक्षण के लिए आपके समर्पण, अथक और अमूल्य कार्य के लिए आपका नमन करता हूं। मैं, हमारे राष्ट्र के प्रति वृहद योगदान के लिए आपका धन्यवाद करता हूं तथा आपके स्वास्थ्य और हमारे देशवासियों की निरंतर सेवा में लंबे जीवन के लिए अपनी शुभकामनाएं देता हूं।

धन्यवाद!

जय हिंद।