मुझे, एसोचैम द्वारा ‘असाधारण रोगों का उपचार : नवान्वेषणों का आदान-प्रदान’ विषय पर आयोजित 10वें ज्ञान सहस्राब्दि शिखर सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए बहुत खुशी हो रही है। मैं एसोचैम को स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में नवान्वेषणों को बढ़ाने की जरूरत पर, इस समयानुकूल शिखर सम्मेलन के आयोजन के लिए बधाई देता हूं।
भारतीय उपमहाद्वीप में विश्व की कुल जनसंख्या के 16.5 प्रतिशत लोग रहते हैं और यह अनुमान लगाया गया है कि किसी भी समय के दौरान यहां 2 मिलियन से अधिक लोग असाध्य तथा पुरानी बीमारियों से ग्रस्त होते हैं। अधिकांश भारतीय रोगियों की बीमारी का जब पता लगता है तब तक वे बीमारी की काफी अग्रिम अवस्था (75 प्रतिशत से 80 प्रतिशत) में पहुंच चुके होते हैं। भारत में पिछले कुछ वर्षों के दौरान कैंसर से अनुमानत: 556000 लोगों की मृत्यु हुई। वर्ष 2030 तक यह मृत्यु दर बढ़कर प्रति वर्ष लगभग 1.5 मिलियन तक पहुंचने का अनुमान है।
तथापि, अच्छी बात यह है कि पिछले कुछ दशकों से उत्तरजीविता में लगातार वृद्धि हो रही है। वर्तमान में यह लगभग 64 वर्ष है तथा भारत द्वारा आने वाले वर्षों के दौरान दी जाने वाली बेहतर स्वास्थ्य सेवा सुविधाओं के कारण इसमें और वृद्धि की संभावना है। इस समय विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़े दर्शाते हैं कि भारत में केवल 35 प्रतिशत लोगों को ही जरूरी दवाएं और स्वास्थ्य सेवाएं प्राप्त हो पाती हैं। अमरीका के सकल घरेलू उत्पाद का 14.6 प्रतिशत अस्पताल, चिकित्सक, नर्सिंग होम, निदान प्रयोगशालाओं, फार्मेसियों, चिकित्सा उपकरण निर्माताओं तथा स्वास्थ्य सेवा प्रणाली के अन्य उपादानों पर व्यय होता है जबकि भारत इस पर अपने सकल घरेलू उत्पाद का केवल 6.1 प्रतिशत व्यय करता है, जो कि 6.2 प्रतिशत के वैश्विक भारित औसत से भी कम है। इसलिए, ऐसी नवान्वेषी स्वास्थ्य सेवा सुविधा की, जिसके द्वारा दवाएं तथा उपचार वहनीय लागत पर प्राप्त हो सकें, तात्कालिक जरूरत है।
ज्ञान, आज की दुनिया का संचालक है। जहां हम विश्व-मंच पर विभिन्न क्षेत्रों में महानता के द्वार पर खड़े हैं, स्वास्थ्य सेवा तथा चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में हमारे नवान्वेषण अभी अपेक्षित ऊंचाई तक पहुंचने बाकी हैं। भारत को, नए उपचारों की खोज, वहनीय स्वास्थ्य सेवा के लिए मौजूदा तथा नवीन प्रौद्योगिकियों को जुटाने, हमारी परंपरागत औषधियों की विशाल विरासत के प्रयोग तथा बीमारियों की रोकथाम और खुशहाली लाने के लिए नए आयामों की तलाश करते हुए स्वास्थ्य सेवा में नवान्वेषी उपायों के नए मुकाम तक पहुंचने की जरूरत है।
स्वास्थ्य सेवा सदैव साक्ष्य आधारित नवान्वेषणों में आगे रही है। परंतु जब इस प्रकार के नवान्वेषण एक स्थान पर सफलतापूर्वक कार्यान्वित कर दिए जाते हैं तब भी उनका प्रसार धीरे-धीरे होता है। नवान्वेषणों का प्रसार सभी प्रकार की स्वास्थ्य सेवा में एक बड़ी चुनौती है। हमें इन नवान्वेषणों की संकल्पना करके, इन नवान्वेषणों के विश्लेषण करने तथा उनकी संख्या बढ़ाने के लिए एक बिरादरी तैयार करनी चाहिए जिससे यह उन लोगों तक पहुंच सके जिनकी पहुंच से यह बाहर है।
विश्व भर में, सरकारों की मुख्य चिंता सभी के लिए स्वास्थ्य सेवा सुनिश्चित करना है और यही बात हमारे देश के मामले में भी सही है। निदान तथा उपचार के लिए उच्च गुणवत्ता की प्रौद्योगिकियों में तेजी से वृद्धि तथा इस तथ्य के मद्देनजर के लोग अब अधिक उम्र तक जीवित रहते हैं और उन्हें उम्र बढ़ने पर स्वास्थ्य सहायता की अधिक जरूरत हो सकती है, यह एक चुनौती बन गई है।
यह अपने आप में चिकित्सा बिरादरी, बीमाकर्ताओं तथा अन्य सेवा प्रदाताओं के लिए चुनौती खड़ी करती है। नवान्वेषी प्रौद्योगिकियां, प्रक्रियाएं तथा भारत सरकार द्वारा निजी कंपनियों के साथ की गई भागीदार के चलते, स्वास्थ्य सुविधाओं में अंतराल अब कम होने लगा है। निजी सेक्टर में निजी निवेश को प्रोत्साहित करते रहने में सरकार की गहरी रुचि है और स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता में सुधार लाने और स्वास्थ्य सेवा संबंधी वित्त उपलब्ध कराने के लिए वह अब सार्वजनिक निजी साझीदारी मॉडलों का विकास कर रही है। अब पूंजी निवेश, प्रौद्योगिकी करारों तथा डायग्नोस्टिक्स, चिकित्सा उपकरण, बड़े अस्पताल शृंखला, शिक्षा तथा प्रशिक्षण सहित विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग करके उपक्रम खोलकर भारत के स्वास्थ्य सेवा सेक्टर में प्रवेश करने में विदेशी उपक्रमों की भी रुचि बढ़ रही है।
गरीबों को स्वास्थ्य बीमा सेवा प्रदान करने तथा छोटे शहरों में अस्पताल निर्मित करने से लेकर सुरक्षित पेयजल के लिए प्रौद्योगिकी के प्रयोग तथा उपचार परिणामों में सुधार जैसे विभिन्न मोर्चों पर उन्नति हो रही है। हमें इस बात पर गर्व होना चाहिए कि भारत में हृदय की शल्य चिकित्सा पर अमरीका में आने वाले व्यय की तुलना में दसवें भाग से भी कम व्यय होता है।
परंतु इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि भारत में स्वास्थ्य सेवा में बहुत अंतराल है। यह अनुमान लगाया गया है कि भारत की 64 प्रतिशत निर्धनतम जनता प्रतिवर्ष स्वास्थ्य सेवा पर लगने वाले खर्च का भुगतान करने के कारण कर्जदार हो जाती है। अनौपचारिक सेक्टर में कार्यरत 85 प्रतिशत कामगारों का किसी तरह का बीमा नहीं होता तथा उन्हें कारगर सामाहिक सुरक्षा स्कीम भी मुहैया नहीं है।
स्वास्थ्य सेवा सुपुर्दगी में सुधार में सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी जैसी नई प्रौद्योगिकियां बड़ी भूमिका निभा सकती हैं। इसका एक उपाय टेलीमेडिसिन—वीडियो कान्फ्रैंसिंग अथवा इन्टरनेट के द्वारा रोगी का दूरस्थ निदान, मानीटरिंग और उपचार है।
सभी के लिए स्वास्थ्य सेवा की उपलब्धता सरकार के लिए आस्था का विषय है। सरकार के स्वास्थ्य पर होने वाले सार्वजनिक निवेश को मौजूदा सकल घरेलू उत्पाद के 1.2 प्रतिशत से बढ़कर 2017 तक अर्थात 12वीं योजना के अंत तक सकल घरेलू उत्पाद के 2.5 प्रतिशत और 2022 तक अर्थात् 13वीं योजना के अंत तक 3 प्रतिशत तक करने का इरादा है। इसके लिए पूरे देश में जन स्वाथ्य प्रणाली में बड़े पैमाने पर विस्तार तथा सुदृढ़ीकरण करना होगा। हमें स्वास्थ्य सेवाओं को परिवारों के घरों के दरवाजों तक ले जाना होगा। हमें केंद्र और राज्यों के स्वास्थ्य विभागों में त्वरित प्रबंधकीय तथा प्रशासनिक सुधार लाने की जरूरत है। बढ़ती हुई शहरी जनसंख्या के लिए स्वास्थ्य सेवा के कारगर मॉडल विकसित करने होंगे और यह भी ध्यान रखना होगा कि ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा संबंधी जरूरतों को नजरअंदाज न किया जाए। भारत की राष्ट्रीय स्वस्थ्य सेवा प्रणाली की जड़ें मजबूत, संवेदनात्मक तथा कारगर होनी चाहिए।
भारतीय स्वास्थ्य सेवा सेक्टर के समक्ष भारी चुनौतियां हैं परंतु अवसर भी उतने ही प्रभावी हैं। जो कंपनियां भारतीय स्वास्थ्य सेवा सेक्टर को आधा भरा हुआ गिलास मानती हैं उनके लिए बहुत अवसर मौजूद हैं क्योंकि ऑटामेशन, सर्जिकल रोबोटिक्स, मॉडयूलर आपरेटिंग थियेटर, मिनिमल एक्सेस सर्जरी सिस्टम, टेलीमेडिसिन, रेडियोलॉजी जैसी अद्यतन प्रौद्योगिकियों के लिए भारत दुनिया भर के कुछ गिने-चुने स्थानों में से है।
अंत में मैं यह कहना चहूंगा कि समय आ गया है कि भारतीय स्वास्थ्य सेवा प्रणाली खुद में बड़ा बदलाव लाए और भारत को इसकी स्वास्थ्य सेवा संबंधी जरूरतों में आत्म्निर्भरता प्रदान करे।
धन्यवाद,
जय हिंद!