मैं, सुश्री इला रमेश भट्ट को वर्ष 2011 के इंदिरा गांधी शांति, निरस्त्रीकरण और विकास पुरस्कार प्रदान करना एक महान सौभाग्य समझता हूं। भारत की निर्धन ग्रामीण महिलाओं के उत्थान के लिए जिनका अनुकरणीय कार्य, जमीनी स्तर के लोकतंत्र को संभव बनाने के लिए एक के मॉडल बन गया है।
हमारी पूर्व प्रधानमंत्री स्व. श्रीमती इंदिरा गांधी के नाम से आरंभ किया गया यह पुरस्कार, उन मूल्यों का प्रतीक है जिन पर वह डटी रहीं तथा जिनके लिए वह हमारे राष्ट्र और इसकी जनता की सेवा के लिए लड़ीं। वह ऐसे लोगों की सच्ची नेता थीं, जो निर्धनों और वंचितों के हितों के लिए लड़े तथा जिन्होंने मानव समाज की बेहतरी के लिए शांति व सार्वभौमिक निरस्त्रीकरण के लिए अथक प्रयास किए। हम, प्रत्येक वर्ष श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा अपनाए गए आदर्शों की दिशा में कार्यरत व्यक्ति या संस्था के गंभीर, रचनात्मक प्रयासों को सम्मानित करते हैं।
श्रीमती इंदिरा गांधी मानती थीं कि मानव जाति का एक साझा भविष्य है, इसलिए यह उनका कर्तव्य है कि वे विश्व में शांति की स्थापना करने और उसे कायम रखने के लिए मिलकर प्रयास करें। वह शांति की एक ऐसी सकारात्मक धारणा का समर्थन करती थीं, जिसके लिए मानव कल्याण के प्रति एक सुदृढ़ विश्वास आवश्यक था। शांति और विकास एक दूसरे से सहज रूप से जुड़े हुए हैं। जब तक समाज के सभी वर्गों तक विकास नहीं पहुंचेगा तब तक न केवल शांति क्षणभंगुर होगी बल्कि ऐसे तनाव पैदा होंगे जिनके परिणाम अनिवार्यत: खतरनाक होंगे।
श्रीमती गांधी की निर्धन और पिछड़ों के प्रति अविचल चिंता थी। ‘सामाजिक न्याय सहित विकास’ का आह्वान, समाज के सभी वर्गों तक विकास के लाभ समान रूप से पहुंचाने के लिए प्रणालियों और संस्थाओं के निर्माण के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है।
देवियो और सज्जनो, समानता लाने तथा लोगों में छिपी हुई क्षमताओं को उजागर करने के लिए एकजुट प्रयासों के जरिए ही ग्रामीण पिछड़ेपन को दूर किया जा सकता है। सुश्री इला भट्ट के कार्य ने समाजिक-आर्थिक उत्थान के इस नजरिए पर बल दिया है।
सुश्री भट्ट ने 1972 में स्वनियोजित महिला एसोसिएशन (सेवा) का निर्माण किया जिसके 13 लाख से ज्यादा सदस्य हैं। उन्होंने 1974 में सेवा सहकारी बैंक की भी स्थापना की, जिसकी पहुंच 30 लाख महिलाओं तक है। ये साधारण आंकड़े, महिलाओं को सफलतापूर्वक गरीबी से निकालकर उनके जीवन में आत्मविश्वास और सम्मान लाने के सुश्री इला भट्ट और उनकी टीम के निष्ठावान प्रयासों को दर्शाते हैं।
यदि महिलाओं की हमारी अर्थव्यवस्था के उत्पादक प्रयासों में कम भागीदारी होती है तो यह न केवल अविवेकपूर्ण है बल्कि सामाजिक प्रगति के लिए भी हानिकार है। सुश्री भट्ट के अथक प्रयासों के कारण, ‘सेवा’, महिलाओं के स्वरोजगार और आत्मनिर्भरता बढ़ाने का एक प्रभावी माध्यम बन गई है। इन लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए, यह संगठन बचत और ऋण, स्वास्थ्य देखभाल, बाल देखभाल, कानूनी सहायता, बीमा, क्षमता विकास और संचार के क्षेत्र में सहयोगपूर्ण सेवाएं प्रदान कर रहा है। यह श्रमिकों के सामूहिक प्रयास, सहकारिता तथा महिला आंदोलन वाला एक बहुआयामी संगठन बन गया है।
सुश्री भट्ट का कार्य देश की सीमाओं के बाहर भी फैला हुआ है। उन्हें सामाजिक एकजुटता के माध्यम से सामूहिक प्रगति के लक्ष्य युक्त अनेक अंतरराष्ट्रीय प्रयासों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने का श्रेय जाता है। उन्होंने वीमेंस वर्ल्ड बैंकिंग, इंटरनेशनल अलायंस ऑफ होम बेस्ड वर्कर्स, इंटरनेशनल अलायंस ऑफ स्ट्रीट वेंडर्स तथा गरीब कामकाजी महिलाओं को सुधारने के लक्ष्य वाले एक वैश्विक नेटवर्क, वीमेन इन इन्फोर्मल एंप्लायमेंट : ग्लोबलाइजिंग, आर्गेनाइजिंग’ की स्थापना और अध्यक्षता की है।
देवियो और सज्जनो, हमारी कुल आबादी का 48.5 प्रतिशत महिलाएं हैं। यद्यपि 2001 से 2011 तक के दशक के दौरान, कुल लैंगिक अनुपात 7 तक बढ़ गया है परंतु 2011 में प्रति 1000 पुरुषों की तुलना में 940 महिलाओं का अनुपात निराशाजनक है और यह उस अंतर को दिखाता है जो अभी भी वास्तविक समानता प्राप्त करने की राह में रोड़ा बना हुआ है।
महिलाओं की साक्षरता दर 2001 के 53.7 प्रतिशत से बढ़कर 2011 में 65.5 प्रतिशत हो गई है। तथापि, महिला साक्षरता पुरुष साक्षरता की तुलना में अभी भी 16.7 प्रतिशत पीछे है। सर्वेक्षणों से संकेत मिला है कि कृषि में भी महिलाओं की प्रति घंटा मजदूरी की दर पुरुष मजदूरी की दर से 50 से 75 प्रतिशत कम है।
हमारे देश में लैंगिक विसंगति को, महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण, पर्याप्त सामाजिक और भौतिक अवसरंचना के निर्माण तथा शासन में महिलाओं की भूमिका बढ़ाने जैसे क्षेत्रों में सक्रिय प्रयासों से ही समाप्त किया जा सकता है। महिलाओं सशक्तीकरण न केवल महिला समानता के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए बल्कि राष्ट्र निर्माण में हमारे सभी नागरिकों की पूर्ण सहभागिता प्राप्त करने के लिए भी आवश्यक है।
हमें उन प्रणालियों और प्रक्रियाओं को मजबूत बनाना होगा जिनसे महिलाओं का अपने जीवन पर नियंत्रण करने और उस पर दावा करने में सहयोग मिलता है। सशक्तीकरण को सही अर्थ प्रदान करने के लिए, हमें उनके लिए विकल्पों की स्वतंत्रता बढ़ानी होगी। निर्धन महिलाएं प्राय: अकेले कार्य करने में अक्षम होती हैं इसलिए उनकी आर्थिक बहाली अत्यंत आवश्यक है।
विकासशील देशों में, स्व-सहायता समूहों के माध्यम से सहभागितापूर्ण संस्था निर्माण को महिला सशक्तीकरण का एक सबसे प्रभावी माध्यम माना गया है। 31 मार्च, 2012 तक भारत में लगभग 63 लाख महिला स्व-सहायता समूह थे, जिनकी कुल बैंक बचत 51,000 करोड़ से अधिक थी। ऐसे स्व-सहायता समूहों की संख्या 2009-10, 2010-11 और 2011-12 के दौरान क्रमश: 9.2, 14.8 और 3.3 प्रतिशत की विकास दर से बढ़ रही है।
महिला सशक्तीकरण के लिए परस्पर अथवा स्व-सहायता पद्धति पर आधारित सूक्ष्म वित्त पहल उपयुक्त है क्योंकि समूह के स्वामित्व, नियंत्रण और प्रबंधन तथा सामूहिक निर्णय पर बल देकर महिलाएं स्थानीय शासन के ढांचों में भागीदारी के लिए भी तैयार हो गई हैं। मुझे खुशी है कि भारत, सेवा जैसे मॉडल संगठनों द्वारा सर्वोत्तम रूप से प्रदर्शित ऐसी पहल का गौरवपूर्ण स्थान है।
देवियो और सज्जनो, सुश्री भट्ट को, हमारे देश की महिलाओं को सशक्त बनाने तथा गरिमापूर्ण स्वतंत्र जीवन जीने में समर्थ बनाने के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जाना जाता है। सुश्री भट्ट का व्यक्तितव और कृतित्व सही मायने में उस दर्शन तथा आदर्शों का प्रतीक है जिनका समर्थन हमारी स्वर्गीय प्रधानमंत्री, श्रीमती इन्दिरा गांधी ने किया था। सुश्री भट्ट को आज प्रदान किया गया शांति पुरस्कार समाज में महिलाओं की बेहतरी तथा मानवता की प्रगति के प्रति उनके अविचलित प्रयासों के लिए सम्मान है।
मुझे विश्वास है कि सुश्री भट्ट के उदाहरण से समाज के नवीकरण तथा लोगों के सर्वांगीण विकास के लिए लक्षित हमारे देश और अन्य स्थानों पर बहुत सी पहलों को बढ़ावा मिलेगा। मैं सेवा से आग्रह करता हूं कि वह निर्धन महिलाओं में उद्यमशीलता को बढ़ावा देने के अपने लक्ष्य के उत्कृष्ट कार्य का विस्तार करती रहे। मैं, सुश्री भट्ट और सेवा को उनके भावी प्रयासों में सफलता की शुभकामनाएं देता हूं।
धन्यवाद।