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कुपोषण के विरुद्ध सूचना, शिक्षा एवं संप्रेषण अभियान के शुभारंभ के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण

नई दिल्ली : 19.11.2012



मुझे आज, कुपोषण के विरुद्ध सूचना, शिक्षा एवं संप्रेषण अभियान का शुभारंभ करते हुए बहुत संतोष का अनुभव हो रहा है। मैं उन सभी पूर्व वक्ताओं को धन्यवाद देना चाहूंगा जिन्होंने महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा शुरू किए गए इस अभियान के विभिन्न पहलुओं का विस्तार से परिचय दिया है।

आज स्वर्गीय श्रीमती इन्दिरा गांधी की जन्म जयंती के अवसर पर इस अभियान की शुरुआत एक अच्छा अवसर है। यह, विभिन्न सरकारी कार्यक्रमों और नीतियों के द्वारा, भारत में महिलाओं तथा बच्चों के कल्याण से जुड़े हुए विभिन्न मुद्दों को प्राथमिकता देने की उनकी परिकल्पना तथा नेतृत्व के प्रति श्रद्धांजलि है। उन्होंने कुपोषण के बारे में कहा था, ‘‘दुनिया में भूख से इतने व्याकुल लोग हैं कि भगवान उन्हें केवल रोटी के रूप में ही दिखाई दे सकते हैं।’’

आज ‘कुपोषण के विरुद्ध सूचना, शिक्षा एवं संप्रेषण अभियान’ का शुभारंभ एक महत्त्वपूर्ण और सामयिक शुरुआत है। यह चिंता की बात है कि हमारे देश में हर तीसरी महिला अल्प-पोषण और हर दूसरी महिला खून की कमी से प्रभावित है। कुपोषण का यह चक्र पीढ़ी-दर-पीढ़ी निरंतर चलता है जिसके कारण लगभग 22 प्रतिशत मामले जन्म के समय कम वजन के होते हैं और इससे शिशुओं में संक्रमण, वृद्धि में अक्षमता तथा खून की कमी का खतरा बढ़ जाता है। भारत में पांच वर्ष से कम आयु वर्ग में हर पांच में से दो, अर्थात् 42.5 प्रतिशत बच्चे कम वजन से प्रभावित हैं। वास्तव में यह चिंता की बात है और एक विडंबना भी है क्योंकि इस दौर में भारतीय अर्थव्यवस्था तेजी से प्रगति की दिशा में बढ़ रही है। यह विसंगति इसलिए भी अक्षम्य है क्योंकि हम इस समय कृषि उत्पाद, जीव-प्रौद्योगिकी तथा न केवल कृषि विज्ञान में बल्कि स्वास्थ्य एवं चिकित्सा विज्ञान में भी अनुसंधान एवं विकास के क्षेत्र में भी तेजी से प्रगति कर रहे हैं। ये आंकड़े एक चेतावनी हैं और कुपोषण के विरुद्ध एक सुव्यवस्थित अभियान चलाए जाने की जरूरत की ओर इशारा करते हैं। जब तक हम अपने बच्चों और उनकी माताओं के लिए अच्छा पौष्टिक भोजन तथा स्वास्थ्य सुनिश्चित नहीं कर पाते तब तक हम सतत् तथा समावेशी विकास के अपने लक्ष्यों को नहीं पा सकते। अपने बच्चों की वृद्धि तथा उनके विकास में ऐसी स्थायी खामियों से बचने के लिए जोकि बाद में ठीक नहीं हो सकती, जितना जल्दी हो सके उन्हें जीवन भर कुपोषण से बचाने के कार्य को अधिकतम प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

देवियो और सज्जनो, भारत में कुपोषण के कारण जटिल हैं। इनमें से कुछ हैं—घरेलू खाद्य असुरक्षा, निरक्षरता, खराब पर्यावरणीय हालात, खास कर महिलाओं में जागरूकता की कमी, स्वास्थ्य सेवाओं, सुरक्षित पेयजल तथा स्वच्छता की अपर्याप्तता तथा अपर्याप्त खरीद क्षमता। कम उम्र में विवाह तथा शिशुओं के लिए पौष्टिक तत्त्वों की जरूरत के प्रति अनभिज्ञता से भी बहुत से कारक पैदा होते हैं। यह स्पष्ट है कि सक्रिय सामाजिक जागरूकता, तथा सरकार के सामूहिक प्रयास और उनमें जमीनी स्तर के संगठनों का सहयोग ही वह रास्ता है जिससे माताओं तथा बच्चों में कुपोषण को रोका जा सकता है।

इस समय भारत सरकार के ऐसे प्रमुख कार्यक्रमों में समन्वय किया जा रहा है जिनका लक्ष्य माताओं और बच्चों में कुपोषण को दूर करना है। पोषाहार संबंधी इस चुनौती से निपटने के लिए दो स्तरों पर कार्य हो रहा है : पहला, सभी पोषाहार संबंधी सेक्टरों में कुपोषण के कारकों पर तेजी से कार्रवाई करने के लिए बहु-सेक्टरीय अप्रत्यक्ष कार्यविधि। दूसरा छह वर्ष से कम उम्र के बच्चों और गर्भवती दुग्धपान करा रही माताओं और किशोरावस्था की लड़कियों जैसे विशिष्ट संवेदनशील समूहों के लिए प्रत्यक्ष तथा केंद्रित प्रयास।

ऐसे बहुत से राष्ट्रीय कार्यक्रम हैं जो कि प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से बेहतर पोषाहार परिणाम की दिशा में योगदान दे रहे हैं। एकीकृत बाल विकास सेवाओं के अलावा इन कार्यक्रमों में, किशोरावस्था की बालिकाओं के सशक्तीकरण के लिए राजीव गांधी स्कीम, इन्दिरा गांधी मातृत्व सहयोग योजना, राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन, निर्मल भारत अभियान, राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम, मध्याह्न भोजन स्कीम, लक्षित जन-वितरण प्रणाली, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी स्कीम तथा राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन शामिल हैं। वर्तमान अभियान महत्त्वपूर्ण योगदान प्रदान करते हुए इन जारी स्कीमों को प्रोत्साहन देगा। मैंने पाया है कि यह अभियान संबंधित भागीदारों के द्वारा आपसी सलाह मशविरा करके तैयार किया गया है। मैं समझता हूं कि इसे चार चरणों में कार्यान्वित करते हुए लक्षित जनता को व्यवस्थित ढंग से सूचना तथा सलाह प्रदान की जाएगी और कुपोषण से लड़ने के लिए उनकी प्रतिक्रियाओं का समावेश किया जाएगा।

मुझे बताया गया है कि श्री आमिर खान ने इस अभियान के लिए स्वैच्छिक सेवाएं दी हैं तथा यूनीसेफ ने तकनीकी सहयोग दिया है। मैं उनके तथा शेष अन्य प्रतिभागियों के बहुमूल्य योगदान की प्रशंसा करता हूं जिन्होंने इस अभियान को विकसित करने के लिए अपना समय और ऊर्जा प्रदान की है।

कुपोषण के विभिन्न पहलुओं के बारे में जनता में जागरूकता बढ़ाना इस तरह के अभियानों की प्रमुख अपेक्षा है। विभिन्न कार्यक्रमों के बारे में जनता को अलग-अलग और एक साथ जागरूक करना जरूरी है। शुरुआती कार्रवाई के द्वारा कुपोषण रोकने के लिए जनता का सहयोग प्राप्त करना एक जरूरी अपेक्षा है। मैं अपेक्षा करता हूं कि इस अभियान से ऐसा अनुकूल सामाजिक तथा मीडिया वातावरण तैयार होगा जिससे परिवार तथा समुदाय और शेष भागीदार न केवल कुपोषण की चुनौतियों को अच्छी तरह समझ पाएंगे बल्कि इसके समाधान के लिए दी गई सलाह के अनुसार सुविचारित सामूहिक प्रयास करने में सक्षम होंगे। सकारात्मक परिवार सेवा संबंधी परंपराओं, खासकर मातृत्व देखभाल, बच्चे के आहार, मानसिक-सामाजिक सेवा, स्वास्थ्य, स्वच्छता, तथा खासकर बालिका और महिलाओं की देखभाल को प्रोत्साहित करने की जरूरत है। सामुदायिक जागरूकता से बच्चों की देखभाल तथा स्वास्थ्य सेवाओं के कारगर उपयोग को प्रोत्साहन मिलेगा तथा इससे समुदायों को सरकारी कार्यक्रमों को अपना समझने और उनमें सहयोग देने के लिए भी प्रोत्साहन मिलेगा।

मुझे यह उल्लेख करते हुए खुशी हो रही है कि संयोग से इस अभियान का शुभारंभ एकीकृत बाल विकास सेवाओं के सशक्तीकरण तथा पुनर्गठन को सरकार द्वारा अनुमोदन दिए जाने के साथ हो रहा है। इससे पूरे देश में 13.2 लाख बस्तियों में सबसे अधिक वंचित तथा संवेदनशील वर्ग के, छह साल से कम उम्र के लगभग 8 करोड़ बच्चों तथा 1.8 करोड़ गर्भवती तथा दुग्धपान कराने वाली महिलाओं के जीवन पर सीधा और सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। मुझे याद है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के दृढ़ संकल्प के परिणामस्वरूप 1975 में यह कार्यक्रम 33 सामुदायिक विकास खंडों में शुरू किया गया था और आज यह कार्यक्रम छोटे बच्चों के लिए एकीकृत विकास का विश्व का सबसे बड़ा और अनोखा कार्यक्रम बन चुका है।

बारहवीं योजना में एकीकृत बाल विकास सेवा, अधिक समावेशी विकास का एक ऐसा शक्तिशाली कार्यक्रम बनकर उभरा है जो स्वास्थ्य, पोषाहार, सामुदायिक केंद्र स्तर पर आरंभिक शिक्षा तथा विभिन्न जरूरी सेवाओं के समन्वय के प्रथम केंद्र के रूप में आंगनवाड़ी केंद्र पर निर्भर है। हमारे आंगनवाड़ी कार्यकर्ता तथा आंगनवाड़ी सहायक, जिनमें से कुछ अन्य यहां मौजूद हैं, इस अभियान को कारगर ढंग से बढ़ावा दे सकते हैं।

मुझे विश्वास है कि सूचना, शिक्षा और संप्रेषण का अभियान से अपेक्षित कारगर सामाजिक जागरूकता, कारगर कार्यक्रम कार्यान्वयन तथा बहु सेक्टर तालमेल और अन्त: सेक्टर सहयोग को बढ़ावा मिलेगा।

मैं, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को बधाई देता हूं जिन्होंने प्रधानमंत्री जी के नेतृत्व में भारत की पोषण संबंधी चुनौतियों पर राष्ट्रीय परिषद की पहल के अनुसरण में इस अभियान को शुरू किया है।

इस पहल को हमारे देश के विभिन्न भागों में माताओं, बच्चों तथा समुदायों तक पहुंचाने के लिए मैं श्रीमती कृष्णा तीरथ को, उनकी टीम को तथा फील्ड में काम करने वाले वृहत नेटवर्क को बधाई देता हूं।

इन्हीं शब्दों के साथ, मुझे कुपोषण के विरुद्ध सूचना, शिक्षा एवं संप्रेषण अभियान का शुभारंभ करते हुए तथा खुशी हो रही है तथा मैं उन सबको इस अभियान की सफलता के लिए शुभकामनाएं देता हूं जो इसके कार्यान्वयन से जुड़े हुए हैं।

जय हिंद!