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लोयोला कॉलेज, चेन्नै में ‘लोयोला स्कूल ऑफ कॉमर्स एंड इकॉनॉमिक्स’ के उद्घाटन के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण

चेन्नै, तमिलनाडु : 20.12.2013



मुझे, आज 88 वर्षों के इतिहास से समृद्ध, लोयोला कॉलेज के विस्तृत तथा सुंदर प्रांगण में आपके बीच आकर बहुत खुशी हो रही है। लोयोला कॉलेज हमारे देश का एक अग्रणी शिक्षा संस्थान है जिसने वर्षों की अपनी सेवा से अपने लिए एक खास स्थान बना लिया है। आरंभ में रेव. फादर फ्रांसिस बर्ट्राम एस.जे., जो फ्रांस से आए थे, से लेकर बहुत से प्रसिद्ध जेसुइट फादर और ब्रदर इस संस्था के निर्माण से जुड़े। इस संस्था ने निरंतर मस्तिष्क के विकास और चरित्र के निर्माण के लिए शिक्षा प्रदान करने पर अपना ध्यान केंद्रित रखा।

मुझे यह जानकर खुशी हो रही है कि इसके पूर्व छात्रों में मेरे प्रख्यात पूर्ववर्ती राष्ट्रपति आर. वेंकटरमण; प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष तथा आंध्र प्रदेश के पूर्व राज्यपाल तथा भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर, डॉ. सी. रंगराजन; जाम्बिया के पूर्व प्रधान मंत्री डेनियल लिसुलो; वित्त मंत्री, पी. चिदंबरम; पश्चिम बंगाल के राज्यपाल, एम.के. नारायणन; पुडुच्चेरी के पूर्व मुख्यमंत्री वी. वैथिलिंगम और एम.ओ.एच. फारूक; मेघालय के पूर्व राज्यपाल, एम.एम. जेकब; इन्डियन ग्रेंडमास्टर तथा पूर्व विश्व शतरंज चैंपियन विश्वनाथ आनंद; भारत में श्वेत क्रांति के जनक वर्गीज कुरियन जैसे लोग शामिल हैं। इस कॉलेज द्वारा मानव मात्र के प्रति प्रेम, सम्मान तथा सेवा की बुनियादी मानवीय मूल्यों के अनुरूप दी गई खुली शिक्षा ने इसके विद्यार्थियों में पीढ़ी-दर-पीढ़ी बौद्धिक साधना तथा नैतिक ईमानदारी के मूल्यों का समावेश किया है।

केवल 75 विद्यार्थियों के साथ 1925 में शुरू हुए इस कॉलेज में आज 11000 विद्यार्थियों और 328 शिक्षक हैं। मुझे खासकर यह जानकर खुशी हुई कि इस कॉलेज में पिछले पांच वर्षों के दौरान 131 शोधार्थियों ने पीएच.डी. प्राप्त की है। मैं समझता हूं कि 1949 में इसने अपने अनुसंधान प्रकाशन शुरू किए थे तथा इसके विद्यार्थियों और शिक्षकों ने पिछले पांच वर्षों के दौरान 439 अंतरराष्ट्रीय तथा 433 राष्ट्रीय शोध पत्र प्रकाशित किए हैं। यह भी प्रशंसनीय है कि लोयोला कॉलेज ने औद्योगिक अनुसंधान में भी अपना स्थान बनाया है तथा इसने 8 पेटेंट करवाए हैं तथा 8 पेटेंट विचाराधीन हैं। मुझे इस बात की खुशी है कि वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान विभाग ने लोयोला कॉलेज को वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान संगठन के रूप में मान्यता दी है जो कि किसी भी कला एवं विज्ञान कॉलेज के लिए उच्चतम अनुसंधान सम्मान है।

देवियो और सज्जनो,

हमारे विश्वविद्यालयों में युवाओं के मस्तिष्कों को संवारने की क्षमता है। उच्च शिक्षा के इन मंदिरों को समसामयिक चुनौतियों का सामना करने तथा यह सुनिश्चित करने के लिए मार्गदर्शक के रूप में काम करना चाहिए कि मातृभूमि के प्रति प्रेम; दायित्वों का निर्वाह; सभी के प्रति करुणा; सहिष्णुता; बहुलता; महिलाओं और बुजुर्गों के प्रति सम्मान; जीवन में सच्चाई और ईमानदारी, अनुशासन तथा आचरण में आत्मसंयम तथा कार्य में जिम्मेदारी के सभ्यतागत मूल्यों का युवाओं के मस्तिष्कों में पूरी तरह समावेश हो। हमारे समाज में नैतिकता के हृस को रोकने की तथा मूल्यों में पतन के रुझान को रोकने की जरूरत है। लोयोला कॉलेज जैसी संस्थाओं को इस संबंध में पहल करनी चाहिए।

मित्रो, किसी भी देश का विकास खासकर उसकी शैक्षणिक स्थिति पर निर्भर करता है। उच्च आर्थिक विकास की हमारी कार्यनीति का उद्देश्य गरीबी समाप्त करना तथा सभी के लिए विकास सुनिश्चित करना है। हमें अपनी जनता, खासकर सामाजिक-आर्थिक सोपान में सबसे नीचे स्थित, के लिए उपयोगी विकास लाना है। लोकतांत्रिक राजव्यवस्था के उच्च लक्ष्य के रूप में वितरणात्मक न्याय केवल मजबूत शिक्षा प्रणाली से ही प्राप्त किया जा सकता है। भारत की जनसंख्या के स्वरूप में बदलाव हो रहा है और 2025 तक दो तिहाई से अधिक भारतीय कामकाजी आयु के होंगे। इस बदलाव से लाभ उठाने के लिए हमारे युवाओं को गुणवत्तायुक्त उच्च शिक्षा तथा व्यावसायिक प्रशिक्षण के माध्यम से तैयार होना होगा।

हमारे देश में उच्च शिक्षा अवसंरचना में 650 से अधिक उपाधि प्रदाता संस्थान और 33000 से अधिक कॉलेज हैं। इसके बावजूद, हमारे पास मांग को पूरा करने के लिए अच्छे स्तर के संस्थानों की कमी है। राष्ट्रीय ज्ञान आयोग ने उच्च शिक्षा में गिरते स्तर का ‘एक प्रशांत संकट जो गहराई तक पैठा है’ के रूप में उल्लेख किया है।

छठी सदी ईसा पूर्व से 13वीं सदी ईस्वी तक लगभग अठारह सौ वर्षों के दौरान, तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला, वल्लभी, सोमापुरा तथा ओदांतपुरी जैसे भारतीय विश्वविद्यालयों का विश्व शिक्षा प्रणाली पर दबदबा रहा। तक्षशिला में भारतीय, पारसी, यूनानी तथा चीनी, चार सभ्यताओं का मिलन हुआ तथा यहां चंद्रगुप्त मौर्य, चाणक्य, पाणिनी, सेंट थॉमस, फाह्यान, चरक तथा डेमोक्राइटस जैसे विख्यात व्यक्तियों का आगमन होता था। यह दु:ख की बात है कि आज हमारे विश्वविद्यालय वैश्विक सूची में कहीं नहीं दिखाई देते।

हमारे पास उच्च शिक्षा में अग्रणी स्थिति प्राप्त करने की क्षमता है। हमारे पास किसी चीज की कमी नहीं। हमारे पास सर्वोत्तम विद्यार्थी और शिक्षक हैं। हमें बस जरूरत है समन्वय और केंद्रित प्रयासों की। हमें अपने कॉलेजों और विश्वविद्यालयों को विश्व स्तरीय शैक्षणिक संस्थानों के रूप में विकसित करना होगा। दृढ़ निश्चय तथा अडिगता के साथ उत्कृष्टता की संस्कृति को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। हमारे कॉलेजों में 87 प्रतिशत विद्यार्थी उच्च शिक्षा के होते हैं। लोयोला कॉलेज जैसी संस्थानों को अन्य ऐसे कॉलेजों के लिए उदाहरण प्रस्तुत करना जारी रखना होगा।

हमारे विश्वविद्यालयों को पहुंच, गुणवत्ता तथा संकाय की कमी की समस्या के समाधान के लिए ई-एजुकेशन जैसे प्रौद्योगिकी समाधानों का प्रयोग करना चाहिए। ई-क्लास रूम प्रौद्योगिकी का प्रयोग करके महत्त्वपूर्ण व्याख्यानों को अलग-अलग स्थानों में पढ़ रहे विद्यार्थियों तक पहुंचाया जा सकता है। सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी के माध्यम से शिक्षा संबंधी राष्ट्रीय मिशन द्वारा इस तरह के सहयोगी सूचना आदान-प्रदान प्रयासों में सहायता दी जा सकती है।

भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली विश्व भर में दूसरी सबसे बड़ी है परंतु 18 से 24 वर्ष की आयु वर्ग में यहां केवल 7 प्रतिशत बच्चे प्रवेश लेते हैं। इसकी तुलना में जर्मनी में यह 21 प्रतिशत है और अमरीका में 34 प्रतिशत। आज जरूरत है खासकर सुदूर के इलाकों में उच्च शिक्षा की अधिक पहुंच। सामाजिक-आर्थिक रूप से निम्न पृष्ठभूमि के मेधावी विद्यार्थियों के लिए उच्च शिक्षा को वहनीय बनाने के लिए छात्रवृत्ति, विद्यार्थी ऋण तथा स्व-सहायता स्कीमें जरूरी हैं।

हमें अपने स्नातकों को विश्व के सर्वोत्तम स्नातकों से प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार करना होगा। इसके लिए उनको, रचनात्मक चिंतन, समस्या-समाधान, प्रभावी संप्रेषण, अन्तर वैयक्तिक संबंधों का प्रबंधन, तथा तनाव प्रबंधन आदि जीवनोपयोगी कौशलों से सुसज्जित करना होगा। ये कौशल किसी व्यक्ति के स्वस्थ विकास के लिए महत्त्वपूर्ण हैं तथा इनको हमारी शैक्षणिक पाठ्यचर्या में उचित स्थान मिलना चाहिए।

मित्रो, हमारे उच्च शिक्षा संस्थानों में अच्छे शिक्षकों की कमी है। अत: हमें रिक्तियों को भरने तथा अपने शिक्षकों में क्षमता के निर्माण को प्राथमिकता देनी होगी। प्रख्यात कवि विलियम बटलर ईट्स ने कहा था, ‘‘शिक्षा केवल पात्र भरना नहीं है बल्कि रोशनी प्रज्जवलित करना है’’। हमें ऐसे प्रेरित शिक्षकों की जरूरत है जो हमारे युवाओं के विचारों को दिशा प्रदान कर सकें। इस प्रकार के शिक्षक अपने शब्दों, कार्यों और कर्मों द्वारा विद्यार्थियों को प्रेरित करते हैं तथा उन्हें कार्य निष्पादन और विचारों के उच्च स्तर तक ले जाते हें। वह अपने विद्यार्थियों को किसी विषय का व्यापक नजरिये से आकलन करने के योग्य बनाते हैं। वे अपने विद्यार्थियों में अच्छे मूल्यों का समावेश करते हैं। हमारे शिक्षा संस्थानों को इस तरह के शिक्षकों को पहचान करके उन्हें सम्मानित करना चाहिए तथा उन्हें अपना ज्ञान, विवेक तथा दर्शन अधिक से अधिक विद्यार्थियों के साथ बांटने के लिए प्रोत्साहित करना होगा।

नवान्वेषण भावी आर्थिक प्रगति की कुंजी है। चीन और अमरीका आज विश्व नवान्वेषण के क्षेत्र में अग्रणी हैं और प्रत्येक ने वर्ष 2011 के दौरान 5-5 लाख से अधिक नवान्वेषण आवेदन प्रस्तुत किए हैं। यह प्रशंसनीय है कि लोयोला कॉलेज के पास 8 पेटेंट हैं तथा 8 आवेदन विचाराधीन हैं। यह कष्ट की बात है कि भारत के पास केवल 42000 पेटेंट आवेदन हैं तथा वह चीन और अमरीका से बहुत पीछे है। हमें ऐसी प्रणाली स्थापित करनी होगी जिससे विदेशों में कार्यरत भारतीय अनुसंधानकर्ता हमारे देश में अल्पकालीन परियोजनाओं पर कार्य के लिए वापस आएं।

इस दशक को नवान्वेषण का दशक घोषित किया गया है। हमारे पास ऐसे जमीनी नवान्वेषण हैं जिनको उपयोगी उत्पाद बनाने के लिए उनको प्रौद्योगिकीय तथा वाणिज्यिक मानीटरिंग की जरूरत है। इस वर्ष कुछ समय पहले राष्ट्रपति भवन में आयोजित विश्वविद्यालयों के कुलपतियों के सम्मेलन में सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों में नवान्वेषण क्लबों की स्थापना तथा विश्वविद्यालयों और जमीनी नवान्वेषकों के बीच संपर्क की सुविधा प्रदान करने की संस्तुत की गई थी। तब से मैंने विभिन्न केंद्रीय विश्वविद्यालयों तथा भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों/राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों में ऐसे क्लबों का शुभारंभ किया है। मैं लोयोला कॉलेज से भी इसके लिए आग्रह करता हूं।

असीमित मांगों तथा सीमित संसाधनों के मद्देनज़र, यह जरूरी है कि निजी सेक्टर भी उच्च शिक्षा प्रदान करने के लिए बेहतर योगदान दें। विश्व के अन्य देशों में भी उच्च शिक्षा में निजी सेक्टर ने प्रमुख भूमिका निभाई है। हार्वर्ड येल तथा स्टान्फोर्ड सहित बहुत से सर्वोत्तम विश्वविद्यालय भी निजी सेक्टर के प्रयासों का परिणाम है। ऐसा कोई कारण नहीं कि भारत का निजी सेक्टर यह उपलब्धि न प्राप्त कर सके। तथापि, शिक्षा को जनसेवा के लिए अपनाया जाना चाहिए न कि निजी लाभ के लिए। अंत में मैं महामना पंडित मदन मोहन मालवीय जी को उद्धृत करना चाहूंगा। उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में एक व्याख्यान में कहा था, ‘‘जीवन भर अध्ययन जारी रखें। निष्पक्ष रहें और किसी से डरें नहीं। केवल वह कार्य करने से डरें जो बुरा और घृणित हो। सच्चाई के पक्ष में खड़े हों। अपने साथी इन्सानों की सेवा से आनंदित हों। मातृभूमि से प्रेम करें। जन सामान्य की भलाई को बढ़ावा दें। जब भी मौका मिले भलाई करें। जो भी दे सकें उसे देने में आनंद महसूस करें।’’

मुझे, अत्याधुनिक सुविधाओं से युक्त ‘‘लोयोला कॉलेज स्कूल ऑफ कॉमर्स एंड इकॉनामिक्स’’ के भवन का शुभारंभ करते हुए खुशी हो रही है तथा मुझे यह जानकर प्रसन्नता हो रही है कि वाणिज्य और अर्थशास्त्र विभागों के लिए तैयार यह अत्याधुनिक चार मंजिला भवन, कॉलेज के पूर्व विद्यार्थियों के मुक्त योगदान से निर्मित हुआ है।

धन्यवाद,

जय हिंद!