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राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, अरुणाचल प्रदेश के प्रथम दीक्षांत समारोह में भारत के राष्ट्रपति का अभिभाषण

अरुणाचल प्रदेश : 21.11.2014


1. 2006-07 के बाद स्थापित दस राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों में से एक राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान,अरुणाचल प्रदेश के प्रथम दीक्षांत समारोह में भाग लेना मेरे लिए सौभाग्य की बात है।

2.मुझे इस सुन्दर राज्य, जिसकी जिसकी नैसर्गिक खूबसूरती और हरे-भरे परिवेश ने इसेप्रकृति का खजानाबना दिया है,की एक बार फिर यात्रा करने का अवसर प्राप्त करके भी प्रसन्नता हो रही है। इसके गीत,नृत्य और शिल्प इस स्थान की भव्यता को और बढ़ा देते हैं। अरुणाचल प्रदेश एक ऐतिहासिक भूमि है जिसका उल्लेख कालिका पुराण और महाभारत जैसे प्राचीन ग्रंथों में मिलता है। यहां तवांग मठ और परशुरामकुंड स्थित होने से यह एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल बन गया है।

3.अरुणाचल प्रदेश जल विद्युत ऊर्जा और पर्यटन जैसे सेक्टरों में विकास की सहायता से सामाजिक-आर्थिक बदलाव की दहलीज पर है। इस बदलाव की प्रक्रिया में शिक्षा सहायक बनी है जिसे यहां काफी प्रोत्साहन प्राप्त प्राप्त हुआ है।

4.राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान अरुणाचल प्रदेश की स्थापना 2010में की गई थी। तबसे इसने शुरुआती स्तर पर आने वाली कठिनाइयों पर विजय प्राप्त करते हुए तेजी से प्रगति की है। यह संस्थान35 संकाय सदस्यों और स्नातक से पीएचडी स्तर के कार्यक्रमों में400 विद्यार्थियों के साथ मुख्य धारा की इंजीनियरी विधाओं से लेकर नवीन विषयों तक के अध्ययन का अवसर दे रहा है। एक अस्थायी परिसर से संचालित होने के बावजूद इस संस्थान ने शिक्षण की गुणवत्ता को बनाए रखने के सर्वोत्तम प्रयास किए हैं। मैं,आरंभिक वर्षों के दौरान अत्यधिक प्रशंसनीय तरीके से इस संस्थान को आगे बढ़ाने में उनकी ऊर्जा,गतिशीलता तथा समर्पण के लिए राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान के प्रबंधन और शिक्षकों की सराहना करता हूं।

मित्रो और मेरे प्रिय विद्यार्थियो,

5.इस संस्थान ने आज एक प्रमुख पड़ाव पार कर लिया है क्योंकि आज विद्यार्थियों के प्रथम बैच को उपाधियां प्रदान की गई हैं। मैं नए स्नातकों को बधाई देता हूं जो अपने परिश्रम और लगन से इस अंतिम चरण पर पहुंचे हैं। अब आप अपने शैक्षिक संस्थान से बाहरी दुनिया में कदम रखने के लिए तैयार हैं। मुझे विश्वास है कि आप अपने पेशे में सफलता प्राप्त करने के लिए यहां अर्जित ज्ञान का सर्वोत्तम प्रयोग करेंगे। याद रखें कि आपको जीवन के प्रत्येक स्तर पर सीखने का अवसर मिलेगा। इस अवसर को मत चूकें। महात्मा गांधी ने कहा था, ‘‘ऐसे जीएं जैसे आप कल नहीं रहेंगे, ऐसे सीखें जैसे आप हमेशा जीएंगे।’’

6.आप देश की वैज्ञानिक जनशक्ति का हिस्सा बनने जा रहे हैं,जो हमारे विकासात्मक ढांचे का एक महत्वपूर्ण अंग है। विकास और औद्योगिक विकास की चुनौतियों को पूर्ण करने में मदद देना आपकी जिम्मेदारी है। मुझे विश्वास है कि आप सौंपे गए दायित्वों से बढ़कर कार्य करेंगे।

7.हमारे इंजीनियरी संस्थानों, प्रमुख रूप से भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों तथा राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों,पर सामाजिक रूप से ऐसे जागरूक और पेशेवर रूप से कुशल कार्मिकों को तैयार करने की जिम्मेदारी है जो महत्वाकांक्षी भारत को नई ऊचाईयों तक ले जा सकें। उन्हें न केवल नवान्वेषी समाधानों से सामाजिक मुद्दों का समाधान करने के लिए हमारे उदीयमान इंजीनियरों को सुसज्जित करना होगा बल्कि उनमें हमारे समाज के बारे में समझ का भी विकास करना होगा।

8.शैक्षिक क्षेत्र से परे, राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों सहित,हमारे उच्च शैक्षिक संस्थानों को समाज में, जहां वह स्थित हैं उन क्षेत्रों की प्रगति में,एक बड़ी भूमिका निभानी है। उन्हें भागीदारों के साथ संपर्क स्थापित करना होगा,क्षेत्र के विकास में रुकावट पैदा करने वाली समस्याओं की पहचान करनी होगी तथा इनके समाधान खोजने के लिए अपनी शैक्षिक और अनुसंधान विशेषज्ञता का प्रयोग करना होगा। पिछले महीने राष्ट्रपति भवन में आयोजित राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों के निदेशकों के सम्मेलन में, मैंने राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों से पांच-पांच गांव गोद लेने तथा हाल ही में शुरू सांसद आदर्श ग्राम योजना के अनुरूप उन्हें मॉडल गांवों में बदलने का आह्वान किया था। मुझे विश्वास है कि राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान अपने क्षेत्रों के सामूहिक विकास के जरिए हमारे राष्ट्र के विकास में तेजी लाएंगे।

मित्रो,

9.देश की इंजीनियरी शिक्षा की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए विगत कुछ वर्षों के दौरान अनेक संस्थान खोले गए हैं। परंतु संख्या में विस्तार के साथ गुणवत्ता में सुधार नहीं हो पाया है। यद्यपि हमारे यहां कुछ विख्यात इंजीनियरी संस्थान हैं परंतु यह भी सच है कि वे अंतरराष्ट्रीय वरीयता में पिछड़े हुए हैं। वरीयता प्रक्रिया को और अधिक प्रोत्साहन प्रदान करने की जरूरत है। साथ ही,बहुत से संस्थानों के गिरते हुए स्तर को रोक लगाने की आवश्यकता है। राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों सहित,हमारे उच्च स्तरीय संस्थानों के बीच स्पर्धा की भावना पैदा होनी चाहिए। मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि राष्ट्रीय वरीयता प्रणाली का विकास किया जा रहा है। इससे हमारे संस्थानों को बेहतर बनने के प्रेरणा मिलेगी।

10.भौतिक अवसंरचना उच्च शिक्षा की उत्प्रेरक है और शिक्षा इसकी आधार है। विद्यार्थियों को अत्यंत स्पर्द्धात्मक और वैश्वीकृत विश्व के लिए तैयार करने के लिए श्रेष्ठ संकाय द्वारा विश्व स्तरीय अध्यापन प्रदान करने की दिशा में बहुत कुछ किया जाना बाकी है। शिक्षकों के रिक्त पदों को प्रतिभावान विद्वानों के द्वारा भरा जाना चाहिए। पुनश्चर्या पाठ्यक्रम,अंतरराष्ट्रीय सेमिनारों और कार्यशालाओं तथा समकक्षों द्वारा समीक्षा किए जाने वाले जर्नलों में शोधपत्र के प्रकाशन को प्राथमिकता प्रदान करनी होगी। बहुत से राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों ने शिक्षकों और विद्यार्थियों के आदान-प्रदान के लिए विदेशी विश्वविद्यालयों के साथ समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए हैं। उन्हें देखना होगा कि इन संस्थागत संयोजनों से हमारे शैक्षिक समुदाय को यथासंभव अधिकतम संभावित फायदे हासिल हों।

मित्रो,

11.राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों के अकादमिक विकास में अनुसंधान और नवान्वेषण को प्रमुखता देनी होगी। मैं समझता हूं कि जिन कुछ उपायों पर बल देने की जरूरत है,उनमें पाठ्यक्रम और अनुसंधान में अंतर-विधात्मक दृष्टिकोण, दक्षता के क्षेत्रों की पहचान तथा उत्कृष्टता के केन्द्रों को प्रोत्साहन, स्नातक अनुसंधान को सुदृढ़ बनाना तथा अनुसंधान को अध्ययन शिक्षा प्रक्रिया का अभिन्न अंग बनाना शामिल है। अनुसंधान सहयोग के लिए विदेशी संस्थानों के साथ किए गए अनुसंधान सहयोग के समझौता ज्ञापनों की प्रभावशीलता सुनिश्चित करने के लिए उन पर नियमित तौर नजर रखनी होगी। राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों के निदेशकों के सम्मेलन में एक सुझाव दिया गया था कि उत्तर पूर्व के सभी राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों की ओर से विद्यार्थियों और शिक्षकों,सामग्री और प्रकाशनों के आदान-प्रदान तथा संयुक्त शिक्षा और अनुसंधान कार्यकलापों पर संगापुर के संस्थानों के समूह के साथ एक ही समझौता ज्ञापन पर बातचीत और हस्ताक्षर किए जा सकते हैं। ऐसे सहयोग से हमारीपूरब की ओर देखोनीति को भी प्रोत्साहन मिलेगा।

 

12.राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों को विश्व स्तरीय इंजीनियरी संस्थानों में बदलने के लिए बहुत सी संयोजकताओं को स्थापित करने की जरूरत होगी। राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों को अनुसंधान सहयोग तथा सर्वोत्तम परिपाटियों के आदान-प्रदान के लिए अन्य संस्थानों के साथ सक्रिय रूप से जुड़ना होगा। उन्हें उद्योगों के साथ संपर्कों के लिए और अधिक सक्रियता से कार्य करना होगा। अधिकांश राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों में उद्योग सहयोग प्रकोष्ठ हैं। इस प्रकोष्ठ को उद्योगों द्वारा पीठों की स्थापना के प्रायोजन,परियोजना मार्गदर्शन और पाठ्यक्रम निर्माण में उद्योगों के विशेषज्ञों की नियुक्ति;तथा विकास केन्द्रों, प्रयोगशालाओं तथा अनुसंधान पार्कों की स्थापना जैसी संभावनाओं की तलाश करनी होगी। हमारे देश को विनिर्माण केन्द्र के रूप में स्थापित करने के लक्ष्य सहितभारत में निर्माणपहल काफी हद तक इन शिक्षा-उद्योग संबंधों की सुदृढ़ता पर निर्भर करती है।

13.राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों को अपने उन पूर्व छात्रों के साथ संपर्क करने के तंत्र विकसित करने होंगे,जिनमें से बहुत से लोगों ने अपने पसंदीदा क्षेत्र में उत्कृष्टता प्राप्त की है। उन्हें संस्थान की संचालन व्यवस्थाओं में शामिल किया जा सकता है अथवा विद्यार्थियों के कार्य तथा परियोजना परामर्श के लिए और पाठ्यक्रम निर्माण में उनका उपयोग किया जा सकता है। मुझे उम्मीद है कि आज स्नातक बने प्रथम बैच सहित इस संस्थान के पूर्व विद्यार्थी अपना संपर्क बनाए रखेंगे तथा लगातार संवाद करते रहेंगे।

मित्रो,

14.अपनी बात समाप्त करने से पूर्व, मैं इस बात पर बल देना चाहूंगा कि हमारे शैक्षिक संस्थान,विशेषकर तकनीकी स्कूलों को, अपने विद्यार्थियों में वैज्ञानिक प्रवृति पैदा करनी चाहिए। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने कहा था, ‘‘वैज्ञानिक प्रवृत्ति की विशेषता,तथ्यों के लिए जुनून, सावधानीपूर्वक निरीक्षण तथा निष्कर्षों का सतर्क प्रस्तुतीकरण होता है। इसमें अस्पष्ट अनुभवों,दूसरों के बताए गए साक्ष्यों तथा जल्दबाजी में किए गए साधारणीकरण पर निर्भरता को हतोत्साहित किया जाता है। इसमें वस्तुनिष्ठ प्रकृति के भावरहित,बुद्धिमतापूर्ण चिंतन की आवश्यकता होती है।’’ हमारे संस्थानों को अपने विद्यार्थियों में कल्पना शक्ति पैदा करनी होगी। उन्हें पुस्तकों में लिखे हुए तथ्यों से परे सोचने;पूरी जांच-परख के बाद ही तथ्य को स्वीकार करने के लिए प्रोत्साहित करने;तथा एक ऐसी व्यापक संकल्पना विकसित करने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए जिसे वे अनुसंधान और जांच के जरिए वास्तविकता में बदल सकते हैं।

15.मैं, एक बार पुन: इस संस्था के अब तक प्रयासों की सराहना करता हूं और उन्हें भविष्य के लिए शुभकामनाएं देता हूं। मैं स्नातक बनने वाले विद्यार्थियों को उज्ज्वल जीवन तथा संतुष्टिपूर्ण भावी जीवन के लिए शुभकामनाएं देता हूं।

धन्यवाद!

जयहिन्द!