1. मेरे स्वागत के लिए आपके शब्दों के लिए धन्यवाद। आज यहां विशिष्ट साहित्यिक शख्सियतों के बीच उपस्थित होना एक बहुत ही सुखद अहसास है। मैं आपके बीच बहुत से मित्रों को देख रहा हूं और इस अवसर पर आपको यहां देखकर मुझे खुशी हो रही है। वर्ष 2011 के लिए 47वां भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार डॉ. प्रतिभा राय को प्रदान करके, हम भारतीय साहित्य की समृद्धि में उल्लेखनीय योगदान के लिए, एक प्रख्यात उड़िया साहित्यकार, उपन्यासकार और शिक्षाविद् का सम्मान कर रहे हैं।
2. उनकी कृतियों से मेरा परिचय यद्यपि, हाल ही में हुआ है परंतु हमारे जटिल आधुनिक समाज में समसामयिक मुद्दों और मूल्यों के हृस के उनके चित्रण से मैं बेहद प्रभावित हुआ हूं। एक दूसरी साहित्यिक धारा के तहत, उड़ीसा के सुदूर समाजों के सामाजिक और आर्थिक पहलुओं पर उनका अनुसंधान विशेष तौर से उल्लेखनीय है।
3. डॉ. राय ने आपने उपन्यासों के माध्यम से और अपने व्यक्तिगत जीवन में समाज सुधारों पर सक्रियता के साथ कार्य किया तथा सामाजिक अन्याय और भ्रष्टाचार के विरूद्ध आवाज़ उठाई। अपनी औपन्यासिक कृतियों में प्रामाणिक यथार्थता के लिए उनकी सराहना की जाती रही है। उनकी पुस्तक ‘अधिभूमि’ जो उड़ीसा के बोंडा पहाड़ियों के बोंडाओं के जीवन पर मानव-वैज्ञानिक शोध है, को एक उत्कृष्ट रचना माना गया है। सन् 1999 के महाचक्रवात पर आधारित उनके उपन्यास ‘मग्नमाटी’ (पुनर्जीवनदात धरती) को, जो व्यक्ति और उसकी सभ्यता पर इस चक्रवात के रूपातंरकारी प्रभाव पर लिखा गया है, उनकी महानतम कृति माना जाता है।
4. डॉ. राय को एक पूर्ण लेखिका कहा जाता है और उनके खाते में उपन्यास, लघुकथा, बालकथा, आत्मकथा, अनुवाद और गीत शामिल हैं। इस सबके बावजूद, वह अपने लेखन में यथार्थता और मानवता, पारंपरिक मूल्यों और मानव गरिमा के प्रति निरंतर समर्पित रही हैं। उनकी कृतियों का अनेक भारतीय भाषाओं में अनुवाद किया गया है।
5. मेरी यह हार्दिक इच्छा है कि हमारे स्कूल और कॉलेज, हमारी देशी भाषाओं में प्रकाशित प्रचुर गद्य और पद्य के अध्ययन को प्रोत्साहित करें। इससे हमारे युवाओं को उन सुदूर क्षेत्रों का ज्ञान होगा जिनके बारे में उन्हें जानकारी नहीं है, और इससे वे हमारे देश की सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता के प्रति अधिक संवेदनशील बन पाएंगे।
देवियो और सज्जनो,
6. यह प्रतिष्ठित पुरस्कार भारतीय साहित्य की व्यापक संकल्पना का प्रतीक बन चुका है। मैं इस अवसर पर, साहू जैन परिवार द्वारा स्थापित भारतीय ज्ञानपीठ ट्रस्ट की प्रशंसाकरना चाहूंगा। इस प्रकार की पहलें सराहनीय हैं क्योंकि इनसे हमारी सांस्कृतिक विरासत को सहयोग देने और प्रोत्साहित करने में राज्य की भूमिका में सहायता मिलती है। ऐसे ही परोपकारियों और कला के निजी संरक्षकों के प्रयासों से भारतीय साहित्यक प्रतिभाएं फलती-फूलती रही हैं। मैं, पांच दशकों से अधिक समय से भारतीय साहित्य के विकास में अनवरत् सहयोग के लिए ट्रस्टियों को बधाई देता हूं और उनकी सराहना करता हूं।
7. इन्हीं कुछ शब्दों के साथ, मैं एक बार पुन: डॉ. प्रतिभा राय को बधाई देता हूं और कामना करता हूं कि वे आने वाले लम्बे समय तक सर्जनात्मक लेखन करती रहें और अपने भावी प्रयासों में बढ़-चढ़करसफलता प्राप्त करें।